Rajasthan

Kota

CC/160/2011

Rekha verma - Complainant(s)

Versus

Senior Superintendent, Maharaav Bhim singh Chikitsalay - Opp.Party(s)

Manish gupta

06 Aug 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:-160/2011

कुमारी रेखा वर्मा, एडवोकेट, निवासी ए-10 बालाजी टाउन, उपाध्याय एस.टी.डी. केपास खेडली फाटक, कोटा (राज0)             -परिवादिया

                    बनाम

01.    अघीक्षक, महाराव भीम सिंह चिकित्सालय, कोटा (राजस्थान)
02.     त्मसपहंतम ैत्स् क्पंहदवेजपबे ख् थ्वतउमतसल क्त्स् त्ंदइंगल,     ै।डच्स्म् ब्व्स्स्म्ब्ज्प्व्छ ब्म्छज्म्त् 8ठ-तंर ठींूंद त्वंक,     ब्वससमबजतंजम ब्तपबसमए ज्ञवजंण्
03.    डा0 श्रीमति ममताशमा्र, एसोसियेट प्रोफेसर गायनिक, महाराव     भीमसिंह चिकित्सालय, कोटा।                 -विपक्षीगण

समक्ष:-
भगवान दास     ः    अध्यक्ष    
महावीर तंवर     ः    सदस्य
हेमलता भार्गव    ः    सदस्य
    परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01.    श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, परिवादिया की ओर से। 
02.    श्री मयंक गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 की ओर से। 
03.    श्री योगेश गुप्ता, अधिवक्ता,विपक्षी सं. 2 की ओर     से।
04.    विपक्षी सं. 3 के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही।  

            निर्णय             दिनांक 06.08.2015
         

    परिवादिया ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में सेवा दोष बताया है कि  परिवादिया ने विपक्षी सं. 3 से दिनांक 14.06.10 को परामर्श लिया जिसमें ख्ैम्त्न्ड च्त्व्स्।ब्ज्प्छ, ब्लड की जांच कराने हेतु लिखा जिसके लिये विपक्षी सं. 1 के काउन्टर पर जरिये रसीद सं. 645731 दिनांक 19.06.10 को 25/- रूपये जमा कराये गये तथा रक्त का सेम्पल दिया गया वहा से जांच रिर्पोट लेकर विपक्षी सं. 3 को दिखाया गया जिसने बताया कि उसे जांच लिखी वह नहीं की गई है। विपक्षी सं. 1 की प्रयोगशाला द्वारा ैम्त्म्ड च्त्व्ज्प्म्छ की जांच कर दी जबकि ैम्त्न्ड च्त्व्स्।ब्ज्प्छ की जांच होनी थी जिसकी जांच कराने हेतु  परिवादिया विपक्षी सं. 1 के अस्पताल में गई वहाॅ सेन्टर में पुनः शुल्क मांगे जाने पर  कर्मचारी ने एन.ओ.सी. देकर बाहर से जांच करवाने के लिये कहा इसलिये उनसे एन.ओ.सी. लेकर विपक्षी सं. 2 की प्रयोगशाला में दिनांक 29.06.10 को 375/- रूपये अदा करके जांच हेतु सेम्पल दिया गया जिसकी रिपोर्ट 01.07.10 को लेने के लिये कहा गया लेकिन रिर्पोट नहीं दी गई दिनांक 05.07.10 को पुनः परिवादिया रिर्पोट लेने गई तब भी नहीं दी गई दिनांक 08.07.10 को रिर्पोट लेने गई तब भी नहीं दी गई। पुनः दूसरी बार परिवादिया ने  दिनांक 21.08.10 को विपक्षी सं. 1 से एन.ओ.सी. लेकर अन्य प्रयोगशाला ( साक्षी एक्स रे एण्ड गायग्नोस्टिक सेण्टर) को सेम्पल देकर जांच करवाई। विपक्षी सं. 1 व 2 को कानूनी नोटिस भेजा गया जिसका विपक्षी सं. 1 ने गलत जवाब दिया। विपक्षीसं. 2 ने कोई जवाब नहीं दिया रिर्पोट भी नहीं दी। विपक्षी सं. 3 ने सही रूप से जांच नहीं लिखी, सभी विपक्षीगण ने अपने कर्तव्य में गंभीर लापरवाही के साथ-साथ गंभीर सेवादोष किया, उससे उसे मानसिक संताप हुआ। 
    विपक्षी सं. 1 की ओर से जवाब प्रस्तुत कर संक्षेप मे प्रकट किया गया है कि विपक्षी सं. 1 की पर्ची से प्रथम दृष्ट्या जांच  ैम्त्म्ड च्त्व्ज्प्म्छ लिखना प्रकट होता है इसलिये इस जांच का शुल्क 25/- रूपये जमा करके उसके टेष्ट की पर्ची बना दी गई। बाद में डा0 श्रीमति ममता शर्मा द्वारा जांच ैम्त्न्ड च्त्व्स्।ब्ज्प्छ कराने हेतु लिखा अर्थात् पूर्व में अस्पष्ट भाषा लिखी होने से डा. श्रीमति ममता शर्मा ही उत्तरदायी है। विपक्षी सं. 1 का कोई दोष नही है। ं लिखी गई जांच सुविधा नहीं होने से एन.ओ.सी. जारी कर दी गई। यह भी आपत्ति ली गई है कि राज्य सरकार को पक्षकार नहीं बनाया गया है इसलिये भी उनके विरूद्ध परिवाद चलने योग्य नहीं है। 
    विपक्षी सं. 2 की ओर से जवाब प्रस्तुत कर संक्षेप में कहा गया है कि परिवादिया द्वारा जांच हेतु दिये गये सेम्पल की मात्रा कम होने के कारण उनके मुम्बई कार्यालय से उन्हे पुनः सेम्पल भेजने की सूचना प्राप्त हुई जिससे परिवादिया को अवगत करा दिया गया परन्तु परिवादिया ने उन्हे सेम्पल नहीं दिया इस कारण ही जांच नहीं हो सकी, इसलिये स्वयं परिवादिया ही उत्तरदायी है। विपक्षी का कोई सेवादोष नहीं है।  परिवादिया को 01.07.10 को पुनः सेम्पल देने हेतु बुलाया गया था लेकिन उसने पुनः सेम्पल नहीं दिया। उनके विरूद्ध परिवाद खारिज करने की प्रार्थना की गई।  
    विपक्षी सं. 3  द्वारा परिवाद का नोटिस मिलने पर दिनांक 20.07.11 को  उपस्थिति दी गई । कोई जवाब नहीं दिया गया इसके पश्चात उपस्थिति भी नहीं दी । इसलिये उसके विरूद्ध दिनांक 30.03.12 को  एक पक्षीय कार्यवाही अमल में लाई गई। 
    परिवादिया ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा डा0 ममता शर्मा की पर्ची दिनांक 14.06.10,  विपक्षी सं. 1 के यहाॅ जांच हेतु अदा की गई राशि 25/- रूपये की रसीद, विपक्षी सं. 1 द्वारा जारी एन.ओ.सी., विपक्षी सं. 2 के यहाॅ जांच हेतु अदा की गई राशि 375/-रू0 की रसीद, विपक्षी सं. 1 के यहा से  उन्हे जारी एन.ओ.सी. दिनांक 21.08.10  व साक्षी एक्स रे एण्ड गायग्नोस्टिक सेण्टर के यहाॅ पर जमा कराई गई राशि की रसीद, विपक्षीसं. 1 व 2 को प्रस्तुत कानूनी नोटिस उनकी पोस्टल रसीद, विपक्षी सं. 1 से प्राप्त जवाब आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की गई। 
    विपक्षी सं.1 ने अपनी साक्ष्य में अधीक्षक ए0आर0 गुप्ता का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया है।  
    विपक्षी सं. 2 ने साक्ष्य में  डा0 मनीश गुप्ता का शपथ-पत्र एवं ई मेल की प्रति प्रस्तुत की।
    मैने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया गया। 
     प्रकरण में निम्न बिन्दु विचारणीय हैः-
01.    क्या विपक्षी सं. 3 ने जांच सही रूप से नहीं लिखकर सेवामें     कमी     की  है?
02.    क्या विपक्षी सं.1 ने सही जांच नही करके सेवा में कमी की है ?
03.    क्या विपक्षी सं. 2 ने जांच हेतु सेम्पल लेने के बावजूद जांच     रिर्पोट न देकर सेवा में कमी की है?
    उक्त बिन्दुओं पर साक्ष्य का विवेचन व हमारा निर्णय बिन्दुवार निम्न प्रकार हैः-
बिन्दु सं. 1:-
    विपक्षी सं. 3 का सेवादोष बताया गया है कि उसने पर्ची में जांच सही रूप से नहीं लिखी, लेकिन इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। उनकी पर्ची पेश की गई है जिसके मुख्य पृष्ठ पर जांच अंग्रजी शब्दों में लिखी गई है, इसलिये यह प्रकट होता है कि मुख्य पृष्ठ पर जो शब्द है वह स्पष्ट उनके अलावा अन्य किसी के समझने में नहीं आये इसलिये उसे पृष्ठ भाग पर केपीटल में लिख दिया जिसे किसी भी प्रकार से सेवादोष नहीं माना जा सकता। 
बिन्दु सख्या 2ः-
    जहाॅ तक विपक्षी सं. 1 का प्रश्न है उनके द्वारा भी भूल इसी कारण से हुई कि विपक्षी सं. 3 की पर्ची के मुख्य पृष्ठ पर जो जांच लिखी गई वह जैसी समझी वह वही जांच कर दी गई जबकि जांच दूसरी अपेक्षित थी जिसे मुख्य पृष्ठ के पीछले भाग पर केपीटल लेटर में लिखे जाने पर, विपक्षी सं. 1 ने स्पष्ट कर दिया कि वह जांच उनकी प्रयोगशाला में नहीं हो सकती थी इसलिये उसके लिये एन.ओ.सी. जारी कर दी गई। इस प्रकार विपक्षी सं. 1 ने परिवादिया के नोटिस के जवाब में स्पष्ट करते हुये जांच हेतु जमा कराई गई राशि वापस प्राप्त करने के लिये अवगत कर दिया, इसलिये हम पाते है कि विपक्षी सं. 2 का कोई सेवादोष सिद्ध नही है। 
बिन्दु सख्यज्ञ 3:-
    इस बारे में विवाद की स्थिति नहीं है कि परिवादिया ने विपक्षी सं. 3 के यहाॅ जांच कराने हेतु दिनांक 29.06.10 को सेम्पल दिया तथा उसकी शुल्क 375/- रूपये की राशि अदा की । यह भी विवाद का विषय नहीं है कि रक्त का सेम्पल विपक्षी सं. 2 की प्रयोगशाला में कार्य करने वाले कर्मचारी ने ही लिया था। यह भी र्निविवाद है कि सेम्पल की जांच रिर्पोट परिवादिया को उपलब्ध नहीं कराई गई। 
    जहाॅ तक परिवादिया का यह कहना है कि बार-बार सम्पर्क करने पर भी रिर्पोट नहीं दी गई, नही उसके पते पर भेजी गई वही विपक्षी सं. 1 का यह कहना है कि उनके मुम्बई कार्यालय से सेम्पल की मात्रा कम होने की सूचना आने पर परिवादिया को पुनः सेम्पल देने हेतु दिनांक 01.07.10 को बुलाया गया लेकिन उसने पुनः सेम्पल नहीं दिया इसलिये ही जांच नहीं हो सकी व रिर्पोट नही दी जा सकी। हमारे समक्ष विपक्षी सं. 2 की ओर से ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया है कि परिवादिया को पुनः सेम्पल देने हेतु दिनांक 01.07.10 को सूचना भेजी गई थी। परिवादिया की ओर से विपक्षी सं. 2 को रजिस्टर्ड कानूनी नोटिस दिनांक 29.07.10 को भेजा जिसे प्राप्त होना  विपक्षी सं. 2 ने अपने जवाब में स्वीकार किया है। लेकिन तत्काल उस नोटिस के संबंध में कोई जवाब या स्पष्टीकरण  परिवादिया को इस आशय का नहीं दिया गया कि- ष्पुनः सेम्पल देने हेतु सूचित करने के बावजूद सेम्पल नही दिये जाने के कारण ही जांच नहीं हो सकी व रिपोर्ट नही दी जा सकीष्  अपितु परिवाद प्रस्तुत होने व उसका नोटिस मिलने पर दिनांक 30.03.12 को जवाब प्रस्तुत करते समय प्रथम बार यह कहानी गढी गई हेै कि परिवादिया को दिनांक 01.07.10 को पुनः सेम्पल देने हेतु सूचित कर दिया इसके बावजूद उसके द्वारा सेम्पल नही देने से ही जांच नही हो पाई जो पूर्ण रूप से पश्चातवर्ती गढी हुई कहानी है। जिसे सही नही माना जा सकता। इस प्रकार हम पाते है कि विपक्षी सं. 2 द्वारा यह लापरवाही व सेवादोष सिद्ध है कि परिवादिया से जांच हेतु शुल्क लेने के बावजूद जांच रिर्पोट नही दी गई, जिसके फलस्वरूप उसे मानसिक संताप होना भी स्वभाविक है। 
                         आदेश 
    अतः परिवादिया कुमारी रेखा वर्मा का परिवाद, विपक्षी सं. 2 के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि परिवादिया से जांच हेतु प्राप्त की गई शुल्क राशि 375/- रूपये एवं मानसिक क्षति की भरपाई हेतु 2,000/- रूपये अक्षरे दो हजार रूपये व परिवाद व्यय की भरपाई हेतु 2,000/- रूपये अक्षरे दो हजार रूपये  कुल 4,375/- रूपये अक्षरे चार हजार तीन सौ पिच्चतहर रूपये दो माह में अदा किये जावे। विपक्षी सं 1व 3 के विरूद्ध परिवादिया का परिवाद खारिज किया जाता है।  


(महावीर तंवर)                 (हेमलता भार्गव)                (भगवान दास)  
  सदस्य                        सदस्य                       अध्यक्ष
 

     निर्णय आज दिनंाक 06.08.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
  सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष
           

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