Rajasthan

Kota

CC/186/2010

Umarani gautam - Complainant(s)

Versus

Senior Central Manager, Bhartiya Jeevan Beema Nigam - Opp.Party(s)

Om Prakash Sharma

10 Dec 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-  186 /10
श्रीमति उमारानी गौतम पत्नी स्व0 श्याम बिहारी गौतम आयु 53 साल जाति ब्राहमण निवासी मकान नं. 1189, बसंत विहार, कोटा, राजस्थान।              -परिवादिया।
                     बनाम
01.    वरिष्ठ मण्डल प्रबंधंक, भारतीय जीवन बीमा निगम, मण्डल कार्यालय, जीवन प्रकाश बिल्डिंग, रानाडे मार्ग, अजमेर, राजस्थान।
02.    शाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम, ब्रांच द्वितय, एल0आई.सी. बिल्डिंग, पेट्रोल पम्प के पास रंगबाडी रोड़, कोटा राजस्थान।
03.    शाखा प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम, शाखा प्रथम एल.आई.सी. बिल्डिंग छावनी चैराहा, कोटा, राजस्थान।
04.    जे0के0 सिन्थेटिक्स लि0, कमला टावर, कानपुर-208001 (यू0पी0) 
-विपक्षीगण
समक्ष    
                   भगवान दास    -    अध्यक्ष       
              हेमलता भार्गव   -    सदस्य
       परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1  श्री ओम प्रकाश,प्रतिनिधि, परिवादिया की ओर से।
2  श्री दिनेश राय द्धिवेदी , अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 से 3 की ओर से। 
3.  श्री रविन्द्र कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 4 की ओर से।
   
    निर्णय                 दिनांक  10.12.15 

    इस आदेश द्वारा विपक्षी सं. 1 से 3 एवं विपक्षी सं. 4 की ओर से दिनांक 31.03.11 को पृथक-पृथक प्रस्तुत किये गये आवेदन-पत्रों का निस्तारण किया जा रहा है।

परिवादिया ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद संक्षेप में इस आशय का प्रस्तुत किया कि उसकेे पति श्याम- बिहारी गौतम विपक्षी सं. 4 की कोटा स्थित फैक्ट्री में कार्यरत थे। वहाॅ वेतन बचत योजना के अन्तर्गत विपक्षी  सं. 1 लगायत 3 से आठ बीमा पालिसियांॅ ली हुई थी। दिनांक 03.11.97 को उनके पति की दुर्घटना में मृत्यु हो गई, जिसके पश्चात् उन पालिसियों के दावे विपक्षी सं 1 से 3 को प्रस्तुत किये गये, जिसमें से पालिसी सं. 50621390,180298777,180129302 व 180655211 के तहत राशि जर्ये चैक्स दिनांक 31.12.97 को प्राप्त हुई, लेकिन इन पालिसियों में दुुर्घटना-हित लाभ व बोनस की राशि नहीं दी गई। अन्य पांॅच पालिसियाॅं के क्लेम इस आधार पर निरस्त कर दिये गये कि पालिसियां कालातीत हो गई। परिवादिया ने अन्य पांॅच पालिसियों के संबंध में परिवाद संख्या 119/02 इस मंच में प्रस्तुत किया था, जिसका निर्णय दिनांक 27.05.04 को हुआ उसके विरूद्ध परिवादिया ने माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग जयपुर में अपील प्रस्तुत की जिसका निर्णय दिनांक 16.12.08 को हुआ जिसकी पालना में उसके पति की पालिसी सं. 181416733,181417738,18138183 व 181237785 के तहत विपक्षी निगम ने दिनांक 14.07.09 को 1,03,785 की अदायगी की। जिससे स्पष्ट है कि दिनांक 31.12.97 को जिन उपरोक्त पालिसियांे की राशि अदा की गई थी वह सही नहीं है। उनका दुर्घटना हित लाभ एवं अन्य परिलाभ नहीं देकर सेवा-दोष किया गया है। विपक्षीगण को दिनांक 05.08.09 को कानूनी नोटिस भेजे गये उसके बावजूद उन पालिसियों का दुर्घटना हित लाभ व अन्य परिलाभ नहीं दिये गये। जिससे आर्थिक नुकसान व मानसिक संताप हुआ। 
विपक्षी संख्या 1 से 3 एवं विपक्षी सं. 4 ने अलग-अलग आवेदन-पत्र प्रस्तुत कर परिवादिया के  परिवाद के संबंध में यह प्रारभिंक आपत्ति उठाई है कि जिन पालिसियों के संबंध में यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है इन्ही के संबंध में पूर्व में भी परिवाद प्रस्तुत किया गया था जिसका निर्णय हो चुका है, इसलिये यह परिवाद चलने योग्य नहीं है। यह भी आपत्ति उठाई गई है कि विपक्षीगण के पत्र दिनांक 17.09.01 के संबंध में परिवादिया दो वर्ष के अन्दर ही परिवाद प्रस्तुत कर सकती थी। यह परिवाद अवधि बाधित है। इसलिये उक्त कारणों से परिवाद खारिज करने की प्रार्थना की गई है ।  
    परिवादिया की ओर से उक्त आवेदन-पत्रों का संक्षेप में यह जवाब दिया  है कि जिन पालिसियों के संबंध में यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है उनके  संबंध में पूर्व में कोई परिवाद प्रस्तुत नहीं किया गया था। परिवाद अवधि बाधित होने संबंधी आपत्ति पूरी तरह गलत है। 
    विपक्षीगण की ओर से परिवादिया द्वारा पूर्व में इस मंच में प्रस्तुत किये गये परिवाद  सं. 119/02,  उसके संबंध में इस मंच के आदेश दिनांक 27.05.04 माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश दिनांक 16.12.08 एवं माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश दिनांक 15.07.11 की प्रतियाॅं प्रस्तुत की गई है। 


    हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया। 
    प्रस्तुत मामले में विचाराधीन आवेदन-पत्रों के निस्तारण हेतु निम्नलिखित तथ्य विवाद रहित है:-
01.    परिवादिया ने वर्तमान परिवाद में उसके पति की पालिसी सं. 50621390,180298777,180129302 व 180655211 के अन्तर्गत विपक्षी निगम द्वारा दिनांक 31.12.97 को बीमाधन अदा कर देने का कथन किया है।
02.    परिवादिया ने वर्तमान परिवाद में उक्त चारों पालिसियों के अ्रन्तर्गत विपक्षी निगम से दुर्घटना हित लाभ व अन्य परिलाभ की मांग की है। 
03.    परिवादिया ने उक्त चारों पालिसियाॅ सहित कुल आठ पालिसियों के मृत्यु दावे की राशि मय दुर्घटना-हित लाभ सहित दिलाये जाने हेतु विपक्षीगण के विरूद्ध पूर्व में परिवाद संख्या 119/02 इस मंच के समक्ष प्रस्तुत किया था।
04.    इस मंच ने परिवादिया के उक्त पूर्व परिवाद सं. 119/02 का निस्तारण सभी पक्षों को सुनकर दिनांक 27.05.04 को किया जिसके द्वारा परिवाद खारिज किया गया तथा इस आदेश में इस मंच द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि उक्त चारों पालिसियों के तहत विपक्षी निगम से राशि भुगतान प्राप्त होने का खंडन परिवादिया ने नहीं किया तथा यह तथ्य परिवाद में अंकित नहीं किया अर्थात् वह स्वच्छ मन से परिवाद लेकर नहीं आई।
05.    परिवादिया ने उक्त आदेश दिनांक 27.05.04 के विरूद्ध माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, जयपुर में अपील सं. 1369/04 विपक्षीगण के विरूद्ध प्रस्तुत की जिसका निर्णय 16.12.08 को हुआ, जिसमें परिवादिया के पति की अन्य चार पालिसियाॅं जिसके तहत विपक्षी निगम ने कोई राशि अदा नहीं की थी उसके संबंध में इस मंच के आदेश 27.05.04 को अपास्त करते हुये अपील को स्वीकार किया था। विपक्षी निगम को उक्त पालिसियों के तहत कुल बीमाधन 51,000/- रूपये ब्याज सहित अदायगी करने के निर्देश दिये जिसके अनुसरण में विपक्षी निगम ने परिवादिया को जरिये चैक दिनांक 21.07.09 राशि 1,03,785/- रूपये की अदायगी की।
06.    माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग के उक्त निर्णय के विरूद्ध परिवादिया ने   माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग दिल्ली में रिवीजन पिटीशन सं. 2433/10 प्रस्तुत की जिसका निर्णय दिनांक 15.07.11 को हुआ जिसमें माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने उक्त याचिका को स्वीकार करते हुये माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश मे इस प्रकार संशोधन किया कि परिवादिया उन   अन्य पालिसियों के तहत दुर्घटना हित लाभ भी प्राप्त करने की अधिकारी है इसलिये उसे 51,000/- रूपये के स्थान पर 1,02,000/- रूपये की राशि ब्याज सहित अदा की जावेगी।
    उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि परिवादिया ने वर्तमान परिवाद में जिन 4 पालिसियों के अन्तर्गत दुर्घटना हित लाभ व अन्य परिलाभ की मांग की है यही प्रार्थना पूर्व परिवाद सं. 119/02 में भी उक्त पालिसियों के संबंध में की थी तथा उसका वह परिवाद इस मंच से अस्वीकार हुआ था जिसकी अपील उसने माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग में की थी। माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग में परिवादिया ने इन चारों पालिसियों के अन्तर्गत दुर्घटना हित लाभ दिलाये जाने की कोई प्रार्थना नहीं की अ्रन्य पालिसियों के क्लेम की प्रार्थना की गई थी, जिसे माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा स्वीकार किया गया था जिसके विरूद्ध परिवादिया ने माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग मे रिवीजन पिटीशन प्रस्तुत की थी, जिसमें उन अन्य पालिसियों के अन्तर्गत दुर्घटना हित लाभ की अदायगी मानते हुये माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग के निर्णय को संशोधित किया गया था। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि परिवादिया ने वर्तमान परिवाद में जिन पालिसियों के दुर्घटना हित लाभ दिलाने की प्रार्थना की है उनके संबंध में पूर्व में उसका परिवाद अस्वीकार हो गया तथा अंतिम निर्णय माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग तक हो चुका है। उसने माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग दिल्ली में इन पालिसियों के दुर्घटना हित लाभ के संबंध में कोई प्रार्थना नहीं की, इसलिये उक्त पालिसियों के संबंध में दुर्घटना हित लाभ हेतु उसका यह वर्तमान परिवाद चलने योग्य नही है। रेसजूडिकेटा के सिद्धान्त से बाधित है। 
    वर्तमान परिवाद में परिवादिया ने जिन चार पालिसियों के तहत दुर्घटना हित लाभ दिलाने की मांग की गई है स्वीकृत रूप से इन पालिसियों के तहत बीमाधन की राशि परिवादिया को जरिये चैक 31.12.97 को ही प्राप्त हो गयी थी। जिसका उल्लेख उसने अपने पूर्व परिवाद सं. 119/02 में नहीं किया अर्थात् इस तथ्य को छिपाया तथा इस मंच ने अपने पूर्व निर्णय दिनांक 27.05.04 में यह टिप्पणी अंकित की है कि परिवादिया स्वच्छ मन से नहीं आई है। इन चारों पालिसियों के अन्तर्गत दुर्घटना हित लाभ हेतु यह परिवाद पुनः 02.06.10 को प्रस्तुत किया गया है इसलिये निश्चित रूप से अवधि बाधित भी है क्यांेकि उसे 31.12.97 को दुर्घटना हित लाभ नहीं मिला था तो इसकी मांग के लिये दो वर्ष में ही परिवाद प्रस्तुत हो सकता था। पूर्व में उसने परिवाद में बीमाधन मिलने के तथ्य को छिपाते हुये इन पालिसियों के संबंध में दुर्घटना हित लाभ सहित दिलाने की मांग की थी, जो प्रार्थना अस्वीकार हो गई तथा इस संबंध में पूर्ण सुनवाई होकर अंतिम निर्णय हो चुका है। 
    उपरोक्त कारणों से हम पाते है कि उक्त पालिसियों के संबंध में दुर्घटना हित लाभ हेतु वर्तमान परिवाद पुनः चलने योग्य नहीं है। विपक्षीगण के आवेदन-पत्र स्वीकार योग्य है।  
 
                     आदेश 
     अतः विपक्षीगण के आवेदन-पत्र स्वीकार किये जाते है एवं फलस्वरूप
     परिवादिया का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे। 

(हेमलता भार्गव)                             ( भगवान दास)  
  सदस्य                                             अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                          जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।                           प्रतितोष मंच, कोटा।
    निर्णय  आज दिनंाक 10.12.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
  सदस्य                                           अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                         जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।                          प्रतितोष मंच, कोटा।

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.