Arun Kumar Gupta filed a consumer case on 24 Sep 2015 against Senior Branch Manager, Bhartiya Jeevan Beema Nigam in the Kota Consumer Court. The case no is CC/81/2010 and the judgment uploaded on 12 Oct 2015.
अरूण कुमार गुप्ता बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम
परिवाद संख्या 81/2010
24.09.2015 दानों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी निगम का संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उसे पेंशन प्लान जीवन सुरक्षा पोलिसी नं. 184192020 की परिपक्वता तिथी 28.04.09 तक भी आप्शन फार्म प्राप्त नहीं होने पर आवेदन-पत्र दिया गया तब अगस्त 2009 में फार्म भेजा गया, जिसकी पूर्ति करके वापिस 23.08.09 को भेज दिया, लेकिन 16.09.09 तक पेंशन व अन्य परिलाभ नहीं दिये गये। अधिवक्ता के जरिये नोटिस प्रेषित करने पर दिनांक 29.09.2009 को 14 चैक भेजे, जिनमें 8 चैक पोस्ट डेटेड थे। 4 चैक 868/- रूपये प्रत्येक के व अन्य 2 चैक क्रमशः 87/- रूपये व 27/- रूपये के थे। परिवादी ने जिस आप्शन का चयन किया था उसमें मासिक पेंशन 1003/-रूपये थी इसके बजाय 868/-रूपये मासिक पेंशन के चैक भेजकर गलती की गयी। इसी प्रकार कम्यूटेशन की राशि 33500/- रूपये पर 28.04.09 से 29.09.09 तक की अवधि का 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज नहीं दिया गया। विपक्षी को लीगल नोटिस भेजा गया जो प्राप्त हो गया इसके बावजूद बकाया राशि व ब्याज की अदायगी नहीं की गयी जिससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।
विपक्षी के जवाब का सार है कि परिवादी को अगस्त 2009 में आप्शन फार्म भेजे गये व उसका आप्शन प्राप्त हो गया। 16.09.09 तक उसेे कोई भुगतान नही किया गया। उसके नोटिस दिनांक 17.09.09 के तथ्य सही हैं। परिवादी का विकल्प प्राप्त होने के बाद जानकारी में आया कि कम्प्यूटर साफ्टवेयर की त्रूटि के कारण मासिक एन्युटि की गणना में गलती/भूल हो गयी। वास्तव में मासिक पेंशन 868/- रूपय ही होती है जिसे 1003/रूपये प्रदर्शित कर दिया गया था। कम्यूटेशन की राशि पर 8 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज 1100/-रूपये का चैक 04.01.10 को भेजा गया जिसका भुगतान परिवादी को 05.01.10 को हो गया 12 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज की मांग अनुचित है मासिक पेेंशन की अन्तरराशि की मांग भी अनुचित है। परिवादी को कोई आर्थिक हानी नहीं हुयी है मानसिक संताप भी नहीं हुआ है। सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा पोलिसी, विपक्षी को संबोधित पत्र दिनांक 08.06.09 विपक्षी से प्राप्त विकल्प फार्म दिनांक 19.08.09 विपक्षी से प्राप्त चैक के दस्तावेज विपक्षी को प्रेषित नोटिस विपक्षी से प्राप्त कम्यूटेड राशि का पत्र आदि की प्रतियाॅं प्रस्तुत की गयी हैंै।
विपक्षी ने साक्ष्य में टी.जी. विजय के शपथ-पत्र के अलावा बीमा प्रस्ताव, बीमा पोलिसी, भुगतान-पत्र व वाउचर, दण्डिक ब्याज की गणना व भुगतान वाउचर जवाब नोटिस आदि की प्रतियाॅं प्रस्तुत की हैं।
हमने दोनों पक्षोें के तर्कोें पर विचार किया।
विपक्षी निगम के जवाब से ही सिद्ध है कि परिवादी को परिपक्वता तिथी 28.04.09 से पूर्व आॅप्शन फार्म भेजने के बजाय 19.08.09 को भेजे गये अर्थात लगभग 4 माह का विलम्ब किया गया। यह भी सिद्ध है कि परिवादी का आॅप्शन फार्म प्राप्त होने के उपरान्त उसे पेंशन के मासिक चैक व कम्यूटेड राशि का चैक 29.09.09 को भेजे गये। इस प्रकार वास्तव में 28.04.2009 को देय कम्यूटेड राशि का भुगतान 29.09.09 अर्थात लगभग 5 माह के विलम्ब से एवं तबतक देय हो चुके मासिक पेंशन का भुगतान भी देरी से हुआ। कम्यूटेड राशि का देरी सेे भुगतान होने का 8 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज 1100/-रूपये का भुगतान 05.01.10 को जरिये चैक किया गया। इस प्रकार इस ब्याज की अदायगी करने में भी लगभग 3 माह का विलम्ब किया गया। परिवादी की 12 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज की मांग को न्यायोचित नहीं कहा जा सकता है।
जहाॅं तक मासिक पेेंशन की राशि रूपये 1003/- के बजाय रूपये 868/- किये जाने का प्रश्न है, विपक्षी ने गणना की भूल के कारण गलती होना बताया है। तथा स्पष्ट किया है कि वास्तव में परिवादी की पोलिसी व चयनित विकल्प के अनुसार मासिक पेंशन 868/-रूपये ही होती है। परिवादी ने वास्तव में मासिक पेंशन 868/- रूपये से अधिक बनने की कोई गणना प्रस्तुत नहीं की है तथा विपक्षी की गणना का खण्डन नहीं किया है। यह सही है कि उसे अगस्त 2009 में जो आप्शन फार्म भेजा गया था उसमें जिस आप्शन का चयन उसने किया उसमें मासिक पेंशन 1003/-रूपये ही दर्शायी गयी थी जो कम्प्यूटर साफ्टवेयर की त्रुटि से होना प्रकट किया गया है जिसकी जानकारी विकल्प प्राप्त होने के पश्चात ही हो पायी थी। हमारी राय में गणना में सद्भाविक भूल होना स्वाभाविक है, इसे दोष नहीं माना जा सकता। मसिक पेंशन की राशि देरी से भेजने की अवधि का ब्याज भी परिवादी को जरिये चैक मिल गया।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते हैं कि परिवादी को केवल ब्याज की राशि 1100/-रूपये लगभग 3 माह की देरी से मिलने का ही आर्थिक नुकसान हुआ है।
जहाॅं तक मानसिक वेदना का प्रश्न है यह सही है कि विपक्षी निगम ने अपने दायित्व का नियत समय पर निर्वाह नहीं किया तथा भुगतान में देरी की जिससे परिवादी को संताप होना स्वाभाविक है।
अतः विपक्षी निगम को निर्देश दिये जाते हैं कि परिवादी को एक माह के अन्दर 1100/-रूपये का भुगतान देरी से करने के पेटे एकमुश्त 100/-रूपये(एक सौ), मानसिक संताप की भरपाई हेतु 2500/-रूपये(दो हजार पाॅंच सौ) एवं परिवाद व्यय के पेटे 2000/-रूपये(दो हजार) कुल 4600/-रूपये (चार हजार छः सौ) का भुगतान किया जावे। इस एक माह की अवधि के पश्चात् भुगतान करने की अवस्था में भुगतान करने तक की अवधि का 9 प्रशित वार्षिक ब्याज भी अदा करना होगा। आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
(हेमलता भार्गव) (महावीर तॅंवर) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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