Rajasthan

Kota

CC/293/2010

Ratan Jain - Complainant(s)

Versus

Secretery, Nagar Vikaas Nyas, Kota - Opp.Party(s)

Rakesh Gupta

26 Oct 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-293/10
श्रीमति रतन जैन पत्नी ज्ञानचंद जैन आयु 72 वर्ष निवासी बी-75 कोटा।                     -परिवादिया।
             बनाम
01.    सचिव, नगर विकास न्यास, कोटा, कोटा, राजस्थान।
02.    रामगोपाल धानुका पुत्र बैजनाथ धानुका निवासी भगवान भवन,
 नयापुरा, कोटा।
03.    राजेश सोनी पुत्र कन्हैया लाल सैनी 690 शास्त्री नगर, कोटा।
04.    राजू लाल गूर्जर पुत्र गजानंद जाति गूर्जर निवासी नई पुलिया
के पास, किशोर पुरा, कोटा।             -विपक्षीगण
समक्ष   :
अध्यक्ष  :        भगवान दास 
सदस्य  :    महावीर तंवर        
सदस्य  :        हेमलता भार्गव 
       परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति-
1  श्री राजेश गुप्ता, अधिवक्ता, परिवादिया की ओर से।
2  श्री गुलाब सिंह, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 की ओर से।
3. श्री आबिद अब्बासी, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 2 व 4 की ओर से। 
4. विपक्षी सं. 3 के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही। 
    निर्णय           दिनांक 26.10.15

     परिवादिया ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि विपक्षी सं. 4 के खाते की कृषि भूमि खसरा नं. 26,33,35,36,26/516 वाके ग्राम दौलत गंज उर्फ नया गांव में उसकी सहमति से विपक्षी सं 2 व 3 ने गौरव नगर के नाम से कालोनी विकसित की, प्लाट काटे, जिसमें प्लाट सं. बी-7,8,13 व 14 विपक्षी सं. 3 ने परिवादिया को 19.03.94 जरिये इकरारनाम बेचकर कुल रकम 50,000/- रूपये नकद प्राप्त किये, उसके नियमितिकरण/ रूपान्तरण हेतु नियमानुसार परिवादिया ने 30.03.2000 को विपक्षी सं. 1 के यहाॅ 34,200/- रूपये जमा कराये तथा आवेदन-पत्र के साथ सभी दस्तावेजात 31.03.02 को प्रस्तुत कर दिये, इसके बावजूद उन प्लाटों का नियमितिकरण उसके पक्ष में नहीं किया गया। विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भेजे गये, इसके बावजूद सुनवाई नहीं की गई, जिससे परिवादिया को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।  

    विपक्षी सं. 1 के जवाब का सार है कि विवादित कृषि भूमि सरकारी सिवाय चक है सेटलमेन्ट की गलती से विपक्षी सं. 4 के नाम से पर्चा लगान जारी कर उसे बतौर खातेदार अंकित कर दिया गया, जिससे उसे कानूनी खातेदार के अधिकार प्राप्त नहीं हुये है। भूमि के संबंध में धारा 90-बी की कार्यवाही भी नहीं हो सकती। पट्टा भी नहीं दिया जा सकता तथा उसका आवासीय प्रयोजन हेतु रूपान्तरण/ नियमितिकरण नहीं हो सकता है यह भी  आपत्ति उठाई गई है कि परिवादिया उनके संबंध में उपभोक्ता नहीं है तथा वह परिवादिया के लिये सर्विस प्रोवाइडर नहीं है।     विपक्षी सं. 2 से 4 का उनसे कोई संबंध नहीं है। इसलिये उसके विरूद्ध कोई सेवा-दोष नहीं है। 

    विपक्षी सं. 2 व 4 की ओर से प्रस्तुत जवाब का सार है कि परिवादिया ने सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किये है। परिवादिया की भूमि का  रूपान्तरण व कालोनी विकसित करने का कार्य विपक्षी सं. 1 का विधिवत विधि पूर्ण वांछित आवश्यकता पूरी करने पर ही होता है, इससे उनका भी कोई संबंध नहीं है। उन्हे अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है। 
    विपक्षी सं. 3 की ओर से जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिये उसके विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही के आदेश दिये गये। 
     
    परिवादिया ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा नियमितिकरण हेतु प्रस्तुत दस्तावेजात, इकरारनामा, जमा बंदी, राशि जमा कराने की रसीद,विपक्षी के पत्र दिनांक 06.10.10 आदि की प्रति प्रस्तुत की है। 
    विपक्षी ासं. 1,2 व 4 की  ओर से कोई शपथ-पत्र या दस्तावेज पेश नहीं किये गये । 
    हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। परिवादिया की ओर से लिखित बहस भी प्रस्तुत की गई है। पत्रावली एवं लिखित बहस का अवलोकन किया गया। 
    परिवादिया की मुख्य शिकायत है कि विपक्षी सं. 1 ने राशि प्राप्त करने के बावजूद उसके प्लाट का आवासीय उद्धेश्य के लिये नियमितिकरण नहीं किया । हम पाते है कि इस संबंध में विपक्षी सं. 1 को सेवा प्रदाता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता तथा परिवादिया उपभोक्ता नहीं है। यदि विपक्षी सं. 1 ने नियमितिकरण नहीं करके नियमों की अवहेलना की है तब उसके लिये विधि-अनुसार परिवादिया सिविल न्यायालय से उपचार ले सकती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उसका प्रकरण सुनवाई योग्य नहीं है। विपक्षी सं. 2 से 4 के विरूद्ध भी कोई सुनवाई योग्य मामला नहीं बनता है, क्योंकि नियमितिकरण से उनका कोई संबंध नहीं है। गुण-दोष के आधार पर विपक्षी सं. 1 ने यह भी स्पष्ट किया है कि विवादित भूमि सरकारी सिवाय चक है जिसका रूपान्तरण/ नियमितिकरण नियमानुसार आवासीय उद्धेश्य के लिये नहीं होता है लेकिन इस बिन्दु पर भी हम अपना कोई मत प्रकट नही कर रहे है क्योंकि यह विवाद हमारे सुनवाई योग्य ही नही है। परिणामतः परिवाद सारहीन होने से खारिज योग्य है।  
                     आदेश 
     परिवादिया श्रीमति रतन जैन  का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे। 

(महावीर तंवर)              (हेमलता भार्गव)            ( भगवान दास)  
  सदस्य                    सदस्य                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद   जिला उपभोक्ता विवाद      जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।     प्रतितोष  मंच, कोटा।        प्रतितोष मंच, कोटा।
     निर्णय  आज दिनंाक 26.10.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 

  सदस्य                    सदस्य                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद   जिला उपभोक्ता विवाद      जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।     प्रतितोष  मंच, कोटा।        प्रतितोष मंच, कोटा।

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