राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-1595/2024
श्रीमती प्रतिमा भटनागर, पत्नी स्व0 विजय कुमार भटनागर
बनाम
सचिव एल0डी0ए0
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अभिषेक भटनागर,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री योगेश तिवारी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 25.10.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री अभिषेक भटनागर एवं प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री योगेश तिवारी को सुना।
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, प्रथम, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-237/2013 प्रतिमा भटनागर बनाम सचिव एल0डी0ए0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.05.2018 के विरूद्ध लगभग साढ़े छ: वर्ष विलम्ब से योजित की गयी।
मेरे द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी की ओर से अपील पत्रावली पर प्रस्तुत विलम्ब क्षमा प्रार्थना पत्र व उसके समर्थन में प्रस्तुत शपथ पत्र का सम्यक परिशीलन व परीक्षण किया गया।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंशुल अग्रवाल बनाम न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी IV (2011) CPJ 63 (SC)
के वाद में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वाद में विलम्ब माफी के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किया
-2-
गया है, जिसे नीचे उद्धरित किया जा रहा है:-
“It is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that the special period of limitation has been prescribed under the Consumer Protection Act, 1986 for filing appeals and revisions in consumer matters and the object of expeditious adjudication of the consumer disputes will get defeated if this Court was to entertain highly belated petitions filed against the orders of the consumer Foras.”
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत परिवाद में परिवादिनी की ओर से अपना पक्ष प्रस्तुत किया गया है। उभय पक्ष को सुनकर प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांकित 07.05.2018 पारित किया गया है। यदि अपीलार्थी/परिवादिनी जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय से सन्तुष्ट नहीं थी तो उसे अपील समय-सीमा के अन्दर प्रस्तुत करना चाहिए था, परन्तु अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अपील अत्यधिक विलम्ब से लगभग साढ़े छ: वर्ष बाद दिनांक 22.10.2024 को इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया है तथा विलम्ब का जो कारण उल्लिखित किया है वह आधार युक्त व उचित नहीं दिखता है।
सम्पू्र्ण तथ्यों, परिस्थितियों एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा अपील प्रस्तुत करने में हुआ विलम्ब क्षमा करने हेतु उचित आधार नहीं है। अत: अपीलार्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत विलम्ब क्षमा प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है और अपील कालबाधा के आधार पर निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1