जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 62/2014
पूनाराम जाट पुत्र श्री भंवराराम, जाति-जाट, निवासी-जावली, पोस्ट-रेण, तहसील-मेडतासिटी, जिला-नागौर, (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. श्रीमान् षाखा प्रबन्धक, स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया, षाखा कामरेज, चार रास्ता प्रथम फ्लोर, श्रृश्टि काॅम्पलेक्स, सूरत (गुजरात)।
2. स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर षाखा मेडतासिटी, जिला-नागौर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री मोहम्मद षाहिद सिलावट, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री रामवीरसिंह राठौड, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 20.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में एक खाता संख्या 10338116837 खुलवा रखा है। इस खाते के तहत परिवादी को एटीएम कार्ड संख्या 6220180514900068479 जारी कर रखा है। दिनांक 15.10.2011 को परिवादी को 25,000/- रूपये की आवष्यकता होने पर उसने अपने बैंक खाते से उक्त एटीएम के जरिये रूपये निकालने के लिए एसबीबीजे मेडतासिटी के एटीएम का प्रयोग किया। जिसके तहत उसे 25,000/- रूपये विड्रोल करने की स्लीप तो प्राप्त हुई मगर परिवादी को 15,000/- रूपये ही प्राप्त हुए तथा 10,000/- रूपये की राषि प्राप्त ही नहीं हुई। जबकि परिवादी के खाते में से 25,000/- रूपये की राषि कम हो गई। जिस पर परिवादी ने अप्रार्थीगण को षिकायत की तथा बार-बार मौखिक व लिखित में निवेदन किया जाता रहा मगर लम्बे समय तक अप्रार्थीगण की ओर से झूठे आष्वासन के अलावा कुछ नहीं दिया गया। बाद में षेश राषि देने से साफ इन्कार कर दिया गया। इस पर परिवादी ने अपने अधिवक्ता के जरिये अप्रार्थीगण को नोटिस भी दिया मगर अप्रार्थीगण ने षेश राषि जमा नहीं करवाई। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं घोर लापरवाही की तारीफ में आता है। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार किया जाकर परिवादी की उक्त 10,000/- की राषि मय ब्याज एवं रिजर्व बैंक के निर्देषानुसार पैनल्टी सहित परिवादी के खाते में जमा करवाने का आदेष अप्रार्थीगण को दिया जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश भी दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से बावजूद तामिल कोई उपस्थित नहीं आया तथा न ही जवाब पेष किया गया।
3. अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से बैकिंग कारोबार करना स्वीकार करते हुए बताया गया है कि परिवादी भारतीय स्टेट बैंक की षाखा कामरेज, 4 रास्ता, जिला सूरत का ग्राहक है तथा परिवादी के एटीएम व खाते से सम्बन्धित समस्त समस्याओं का निराकरण करने का दायित्व भी भारतीय स्टेट बैंक का ही है। यह भी बताया गया है कि अप्रार्थी की एटीएम मषीन में किसी प्रकार की कोई खराबी नहीं रही है। यह भी बताया गया है कि परिवादी के अनुसार घटना दिनांक 15.10.2011 की होने से परिवाद मियाद बाहर होकर खारिज होने योग्य है। अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा यह बताया गया है कि दिनांक 17.10.2011 को उनके एटीएम नम्बर 2 में बढी हुई नकदी 14,000/- रूपये अप्रार्थी बैंक में जमा है तथा इस राषि बाबत् आज तक किसी भी बैंक/एटीएम सेल से उक्त राषि क्लेम बाबत् कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई। ऐसी स्थिति में क्लेम सूचना के अभाव में बढी हुई नकदी राषि किसकी है, यह पता लगाया जाना संभव नहीं है। अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि इस बढी हुई नकदी राषि 14,000/- में से 10,000/- रूपये परिवाद के हो सकते हैं। अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा यह बताया गया है कि परिवादी के एटीएम व खाते से सम्बन्धित समस्त समस्याओं का निराकरण करने का दायित्व अप्रार्थी संख्या 1 का रहा है एवं परिवादी अप्रार्थी संख्या 2 से कोई अनुतोश प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।
4. बहस सुनी गई। परिवादी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही अप्रार्थी संख्या 1 को दिनांक 15.10.2011 को दिया आवेदन प्रदर्ष 1, एटीएम स्लीप प्रदर्ष 2 व 3, अप्रार्थीगण को जरिये वकील भेजा गया नोटिस प्रदर्ष 4, पोस्टल एवं प्राप्ति रसीद प्रदर्ष 5, 6 व 7, अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा दिनांक 09.01.2014 को भेजा गया पत्र प्रदर्ष 8 तथा पास बुक प्रदर्ष 9 की फोटो प्रतियां पेष की गई है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण के एटीएम में रही तकनीकी खराबी के कारण परिवादी को 10,000/- रूपये की राषि प्राप्त नहीं हो सकी तथा बाद में परिवादी द्वारा इस बाबत् बार-बार निवेदन एवं षिकायत करने के बावजूद आष्वासन देने के अलावा आज तक कोई राषि प्रदान नहीं की गई। ऐसी स्थिति में परिवाद स्वीकार कर 10,000/- रूपये की राषि मय ब्याज दिलाई जावे।
5. उक्त के विपरित अप्रार्थी संख्या 2 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि उनके एटीएम में किसी प्रकार की कोई खराबी नहीं रही तथा परिवादी के एटीएम व खाते से सम्बन्धित समस्त समस्याओं का निराकरण करने का दायित्व अप्रार्थी संख्या 1 का रहा है, ऐसी स्थिति में अप्रार्थी संख्या 2 के विरूद्ध परिवाद खारिज किया जावे।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि परिवादी का बैंक खाता अप्रार्थी संख्या 1 स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में रहा है तथा अप्रार्थी संख्या 2 भी बैकिंग का कारोबार करता है एवं परिवादी ने उसी के अधिकृत एटीएम से दिनांक 15.10.2011 को राषि विड्राॅल की थी। यह स्वीकृत स्थिति है कि अप्रार्थीगण एटीएम सेवा हेतु निर्धारित षुल्क प्राप्त करते हैं। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता रहा है। परिवादी का तर्क रहा है कि उसके द्वारा दिनांक 15.10.2011 को मेडतासिटी स्थित अप्रार्थी संख्या 2 के एटीएम से 25,000/- रूपये विड्राॅल किये तो एटीएम से प्राप्त स्लीप 25,000/- रूपये विड्राॅल की प्राप्त हुई लेकिन एटीएम की तकनीकी खराबी के कारण मात्र 15,000/- रूपये ही प्राप्त हुए तथा षेश 10,000/- रूपये की राषि प्राप्त नहीं हुई। परिवादी द्वारा उपर्युक्त तथ्य के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही एटीएम स्लीप व पासबुक की फोटो प्रति पेष की गई है। यह उल्लेखनीय है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत अभिकथनों के खण्डन में अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से कोई जवाब या प्रलेखीय साक्ष्य पेष नहीं की गई है। अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से अपने जवाब के अतिरिक्त कथन में यह स्वीकार किया है कि दिनांक 17.10.2011 को उनके एटीएम नम्बर 2 में 14,000/- रूपये नकदी बढी हुई थी तथा हो सकता है कि इस राषि में से 10,000/- रूपये की राषि परिवादी की हो। पत्रावली पर उपलब्ध प्रदर्ष 1 आवेदन दिनांक 15.10.2011 को ही परिवादी की ओर से अप्रार्थी संख्या 1 को भिजवाया गया है लेकिन अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। परिवादी द्वारा अपने वकील के जरिये दिनांक 02.01.2014 को अप्रार्थीगण को नोटिस प्रदर्ष 4 भिजवाया है तथा इस नोटिस के प्राप्त होने के बाद अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से दिनांक 09.01.2014 को कार्यवाही करते हुए एक पत्र प्रदर्ष 8 जारी किया है। जिसकी प्रति परिवादी को प्रेशित की गई है। इस प्रलेख प्रदर्ष 8 के अनुसार परिवादी की षिकायत दर्ज कर उसे षीघ्रतापूर्वक निपटाने हेतु सम्बन्धित षाखा को निर्देष दिये गये हैं लेकिन आज तक परिवादी की षिकायत का कोई निराकरण नहीं हुआ है। अप्रार्थी पक्ष की ओर से पत्रावली पर ऐसा कोई तथ्य नहीं लाया गया है जिसके आधार पर यह माना जा सके कि परिवादी को दिनांक 15.10.2011 को एटीएम से विड्राॅल राषि 25,000/- रूपये पूरी प्राप्त हो गई हो। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री से स्पश्ट है कि परिवादी दिनांक 15.10.2011 से ही लगातार पत्र-व्यवहार करते हुए बकाया राषि 10,000/- रूपये की प्राप्ति हेतु मांग कर रहा है लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा आज तक इस सम्बन्ध में परिवादी की षिकायत/निवेदन का निराकरण नहीं किया गया है जो कि स्पश्टतया अप्रार्थीगण का सेवा दोश रहा है।
7. अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा प्रस्तुत जवाब में यह आपति ली गई है कि घटना दिनांक 15.10.2011 की होने से परिवाद मियाद बाहर है लेकिन इस सम्बन्ध पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि परिवादी आज भी अप्रार्थी बैंक का ग्राहक है तथा दिनांक 15.10.2011 से ही लगातार पत्र व्यवहार करते हुए एटीएम की खराबी के कारण बकाया रहे 10,000/- रूपये प्राप्त करने का निवेदन कर रहा है। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा दिनांक 09.01.2014 को जारी पत्र प्रदर्ष 8 के अनुसार भी यही प्रतीत होता है कि परिवादी की षिकायत षीघ्रतापूर्वक निपटाने हेतु सम्बन्धित षाखा को निर्देष दिये गये हैं लेकिन आज तक परिवादी की षिकायत का निराकरण नहीं हुआ है, ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद मियाद बाहर हो।
8. उपर्युक्त विवेचन से स्पश्ट है कि इस मामले में अप्रार्थीगण के सेवा दोश के कारण ही परिवादी को विड्राॅल की गई पूर्ण राषि आज तक प्राप्त नहीं हुई। यद्यपि अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा अपने पत्र प्रदर्ष 8 अनुसार षीघ्रतापूर्वक कार्यवाही करने का आष्वासन दिया गया था लेकिन इसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार कर उसे बकाया 10,000/- रूपये की राषि दिलाने के साथ ही मानसिक परेषानी हेतु प्रतिकर दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा।
आदेश
9. परिवादी पूनाराम जाट द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादी को 10,000/- रूपये अदा करें तथा इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 14.03.2014 से 9 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण परिवादी को मानसिक व आर्थिक परेषानी स्वरूप 2,000/- रूपये व परिवाद व्यय के भी 1,000/-रूपये अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
10. आदेष आज दिनांक 20.07.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या