जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 46/2015
निम्बाराम पुत्र स्व. नारायणराम उर्फ नारूराम, जाति-जाट, निवासी ग्राम-बलाया, हाल निवासी-मानासर नागौर, तहसील-मूण्डवा व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. भारतीय स्टेट बैंक जरिये प्रबन्ध निदेशक, प्रधान कार्यालय- स्टेट बैंक भवन, मेडेम कामा रोड, मुम्बई 400021 (महाराष्ट्र)।
2. शाखा प्रबन्धक- भारतीय स्टेट बैंक, शाखा गांधी चैक, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राजस्थान)।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री दिनेश हेडा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री शफीक खिलजी, अधिवक्ता वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे श दिनांक 29.09.2015
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के पिता नारायण राम ने अप्रार्थी संख्या 2 की शाखा में किसान के्रडिट खाता खुलवा रखा था। उक्त खाते में खाता धारक की दुर्घटनापूर्वक मृत्यु होने पर 50,000/- रूपये की बीमा राशि उतराधिकारी को देय है। दिनांक 29.10.2012 को नारायण राम की मृत्यु सांप के काटने से हो गई। दिनांक 23.11.2012 को बीमा राशि के लिए रजिस्टर्ड डाक से आवेदन भेजा गया। परन्तु अप्रार्थीगण ने कोई कार्रवाई नहीं की। पुनः दिनांक 07.03.2013 को रजिस्टर्ड डाक से बीमा धन के लिए निवेदन किया फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। दिनांक 22.04.2013 को प्रार्थी की ओर से नोटिस दिया गया परन्तु कोई जवाब नहीं दिया गया। पुनः दिनांक 11.03.2014 को विधिक नोटिस दिया गया परन्तु आज तक भुगतान नहीं हुआ है। इस प्रकार से अप्रार्थीगण का यह कृत्य सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार की श्रेणी में आता है। प्रार्थी को बीमा राशि 50,000/- रूपये मय ब्याज एवं शारीरिक, आर्थिक व मानसिक क्षति के रूप में 40,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के 5000/- रूपये अप्रार्थीगण से दिलाये जाये।
2. अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से संक्षेप में यह कहना है कि प्रार्थी के पिता का अप्रार्थी बैंक में खाता था, उसने केसीसी ऋण लिया हुआ था परन्तु बीमा धन राशि का कोई प्रावधान नहीं था। कभी भी प्रार्थी के पिता ने बीमा की कोई प्रीमियम राशि जमा नहीं करवाई। प्रार्थी ने विधिक रूप से कोई क्लेम अप्रार्थी के यहां प्रस्तुत नहीं किया है। प्रार्थी के नोटिस का जवाब दिनांक 16.05.2014 को भिजवा दिया गया है। प्रार्थी प्रार्थना -पत्र में वर्णित कोई भी राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
3. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का अद्योपान्त अध्ययन एवं मनन किया गया। अप्रार्थी बैंक से प्रार्थी के पिता को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा मिली हुई थी। प्रार्थी के पिता ने उक्त पाॅलिसी के तहत 3,00000/- रूपये का ऋण भी ले रखा था। प्रश्न उत्पन होता है कि क्या प्रार्थी, अप्रार्थी बैंक से बीमा राशि प्राप्त करने का अधिकारी है? इस सम्बन्ध में विद्वान अधिवक्ता प्रार्थी का यह तर्क है कि नाबार्ड बैंक ने सभी अधीनस्थ बैंकों का,े जिसमें अप्रार्थी बैंक भी सम्मिलित है सर्कूलर त्च्ब्क्ण्च्स्थ्ैण्ठब्ण्छव्ण्ध्1ध् 05.05.2009/ 2000-2001 जारी किया हुआ है जो कि सभी काॅमर्शियल बैंकों पर लागू है जिसमें अप्रार्थी बैंक भी सम्मिलित है। तदानुसार व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा के सम्बन्ध में सभी बैंकों को केसीसी योजना में इंश्योरेंस कम्पनी से मास्टर बीमा पाॅलिसी लेना अनिवार्य था। जिसकी प्रीमियम राशि स्वयं अप्रार्थी बैंक को व्यवस्थित करनी थी। अप्रार्थी बैंक की पूर्ण लापरवाही रही है। भारतीय स्टेट बैंक का भी किसान क्रेडिट कार्ड के सम्बन्ध में बीमा सम्बन्धी दस्तावेज प्रस्तुत किया है। अतः प्रार्थी का वाद मंजूर किया जावे क्योंकि अप्रार्थी बैंक की सेवा में पूर्णतः कमी रही है। स्पष्टतः सेवा दोष है।
4. विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थी का तर्क है कि प्रार्थी के पिता ने कोई प्रीमियम राशि नहीं दी। बिना प्रीमियम राशि के किसी भी सूरत में बीमा प्राप्त करने का अधिकार नहीं बनता है। परिवाद खारिज किया जावे।
5. हमने नाबार्ड बैंक के उक्त सर्कूलर का अवलोकन किया। केसीसी कार्ड धारक उपभोक्ता को ऋणदात्री बैंक द्वारा मास्टर पाॅलिसी के तहत व्यक्तिगत दुर्घटना मामले में मृत्यु होने पर बीमा करवाया जाने की अनिवार्यता है परन्तु बैंक ने अपने उक्त विधिक कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया। प्रार्थी के पिता नारायण राम की मृत्यु पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेजात से प्रमाणित होती है कि सांप के काटने से हुई थी। समय पर प्रार्थी ने जो कि मृतक का उतराधिकारी है, अप्रार्थी के यहां क्लेम प्रस्तुत किया परन्तु आज तक अप्रार्थी ने बीमा राशि अदा नहीं की है। स्पष्टतः सेवा में कमी एवं सेवा दोष है। परिवाद-पत्र स्वीकार किये जाने योग्य है। परिवाद निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता हैः-
आदेष
6. आदेश दिया जाता है कि अप्रार्थी, प्रार्थी को 50,000/- रूपये (अक्षरे पचास हजार रूपये) बीमा राशि परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख से तारकम वसूली 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याजदर से अदा करें। साथ ही अप्रार्थी, प्रार्थी को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/- रूपये (दस हजार रूपये) एवं परिवाद व्यय के 3,000/- रूपये (तीन हजार रूपये) भी अदा करें।
आदेश आज दिनांक 29.09.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या