Naresh kumar filed a consumer case on 28 Aug 2017 against SBI in the Kanpur Nagar Consumer Court. The case no is cc/650/2009 and the judgment uploaded on 27 Feb 2018.
2.श्रीजनल मैनेजर स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया माल रोड, कानपुर नगर।
...........विपक्षीगण
परिवाद दाखिला तिथिः 15.07.2009
निर्णय तिथिः 20.02.2018
डा0 आर0एन0 सिंह, अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःः निर्णयःःः
1. परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि परिवादी को एस.बी.एस. समाधान मंच की योचना के अनुसार एक समय में समझौता करने का अवसर का लाभ विपक्षी सं0-1 व 2 से दिलाया जाये और योजना के तहत कुल धनराषि रू0 34,926.00 के स्थान पर उपरोक्त योजना के तहत न्यूनतम धनराषि रू0 17,463.00 जमा कराकर योजना का लाभ दिलाया जाये, इसके साथ-साथ विपक्षीगण से बतौर हर्जाना रू0 3000.00 एवं परिवाद व्यय रू0 3000.00 दिलाया जाये।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी ने वर्श 2000 में लोहे का व्यापार करने हेतु बैंक आॅफ सौराश्ट्र षाखा नई सड़क से जो वर्तमान में षाखा स्टेट बैंक आफ इण्डिया नई सड़क है, से रू0 50,000.00 का ऋण लिया था। अगस्त 2008 में स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में हो गया। परिवादी ने वर्श 2002 के अन्त तक लगातार बैंक द्वारा प्रस्तावित किष्तों
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को अदा किया, परन्तु 2002 के बाद व्यापार में मंदी की वजह से व्यापार बन्द हो गया। इस कारण परिवादी समय पर प्रस्तावित किष्तों को अदा नहीं कर सका। बैंक आॅफ सौराश्ट्र द्वारा परिवादी के खाते को एन.पी.ए. एकाउन्ट में परिवर्तित कर दिया। इसके बावजूद षाखा प्रबन्धक के निर्देषानुसाार परिवादी ने रू0 20,000.00 जमा किया। दिनांक 02.08.08 को स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र का पत्र सं0-बी.एन. 288 दिनांकित 26.07.08 परिवादी को मिला। जिससे ज्ञात हुआ कि उपरोक्त षाखा ने एस.बी.एस. समाधान मंच योजना के अनुसार एक समय में समझौता करने का अवसर दिया गया, जिसका लाभ सिर्फ 31.03.09 तक ही उपलब्ध है। उपरोक्त योजना के तहत परिवादी को कुल बकाया राषि दिनांक 30.06.08 तक रू0 34,926.00 के स्थान पर एस.बी.एस. समाधान मंच की योजना के अंतर्गत न्यूनतम धनराषि रू0 17,463.00 अदा करनी होगी। परिवादी ने उपरोक्त बैंक की प्रस्तावित समाधान मंच की योजना का लाभ प्राप्त करने का निष्चय किया और दिनांक 04.08.08 को परिवादी षाखा प्रबन्धक से मिला और दिनांक 04.08.08 को अंतर्गत यू.पी.सी. एक पत्र भी षाखा प्रबन्धक को प्रेशित किया कि हमें येाजना स्वीकार है। बैंक आॅफ सौराश्ट्र द्वारा उपरोक्त योजना षुरू करने के बाद ही अगस्त 2008 में बैंक आॅफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में हो गया और स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया के षाखा प्रन्धक विपक्षी सं0-1 ने परिवादी की योजना का लाभ देने में हीला हवाली किया और लगातार आष्वासन देने के बावजूद परिवादी द्वारा बार-बार कहने के बावजूद परिवादी से रू0 17,463.00 नहीं जमा करायें। बावजूद विधिक नोटिस दिनांकित 21.02.09 विपक्षीगण द्वारा परिवादी को योजना का कोई लाभ नहीं दिया गया। परिवादी की नोटिस का जवाब उसके अधिवक्ता को प्रेशित किया कि नरेष कुमार अवस्थी ने दिये गये समय के अंदर उपरोक्त समाधान योजना को स्वीकार नहीं किया, इस कारण उन्हें योजना का लाभ नहीं दिया जा सकता है। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
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3.विपक्षीगण की ओर से आपत्ति के रूप में जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद पत्र में उल्लिखित कतिपय तथ्यों का खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि वास्तव में स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में जरिये सरकारी अधिसूचना दिनांकित 13.08.08 को हुआ था। परिवादी का यह कथन गलत है कि उपरोक्त विलय 02.08.08 को हुआ था। परिवादी द्वारा स्वयं यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी ने स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र षाखा नई सड़क से लिये गये ऋण की मासिक किष्तों की अदायगी वर्श 2002 से बैंक को नहीं की। परिवादी को यह स्वयं साबित करना है कि उसके द्वारा रू0 20000.00 बैंक में जमा किया गया था। परिवादी द्वारा स्वयं यह स्वीकार किया गया है कि बकाया ऋण रू0 34926.00 को न्यूनतम राषि रू0 17463.00 की अदायगी वह जरिये बैंक की समाधान मंच योजना के अंतर्गत जरिये समझौता करना चाहता है। किन्तु परिवादी द्वारा उक्त समझौता के लिए बैंक में न तो संपर्क किया और न ही उक्त योजना का लाभ लेने के लिए प्रस्तावित धनराषि का 25 प्रतिषत डाउनपेमेन्ट बैंक में जमा किया गया। परिवादी द्वारा षाखा प्रबन्धक से दिनांक 04.08.08 को संपर्क करने तथा दिनांक 04.08.08 को ही यू0पी0सी0 द्वारा बैंक को पत्र भेजने का काल्पनिक उल्लेख किया गया है। परिवादी का उक्त कथन मनगढ़त है। इस दौरान स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में दिनांक 13.08.08 को हो गया। स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में उक्त समाधान मंच योजना के अंतर्गत बकायेदारों से समझौता किये जाने हेतु कोई योजना प्रस्तावित नहीं थी। स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र के मात्र उन बकायेदारों को ही समाधान मंच योजना के अंतर्गत योजना का लाभ दिया जा सकता था। जिन्होंने स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में दिनांक 13.08.08 को हो जाने से पूर्व स्टेट बैंक आॅफ सौराश्ट्र द्वारा अपने बकायेदारों हेतु उक्त समाधान मंच योजना का लाभ प्राप्त किये जाने हेतु आवष्यक नियम के अंतर्गत बैंक द्वारा प्रस्तावित राषि का कम से कम डाउन पेमेंट जमा नहीं किया गया। इस
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प्रकार परिवादी प्रस्तावित समझौता हेतु समाधान योजना का लाभ प्राप्त करने का विधिक अधिकारी नहीं है। बल्कि परिवादी पर दिनांक 30.06.08 तक कुल बकाया धनराषि रू0 34926.00 मय संपूर्ण ब्याज विपक्षी सं0-1 को अदा करने के लिए विधिक रूप से बाध्य है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद मात्र विपक्षीगण को परेषान व हैरान करने के उद्देष्य से प्रस्तुत किया गया है। अतः परिवाद सव्यय खारिज किया जाये।
4.परिवादी की ओर से प्रतिआपत्ति के रूप में जवाबुल जवाब प्रस्तुत करके, विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये जवाब दावा में उल्लिखित तथ्यों का प्रस्तरवार खण्डन किया गया है और स्वयं के द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों की पुनः पुश्टि की गयी है।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5.परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 14.07.09, 11.01.11, 07.01.13 व 09.04.13 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची के साथ संलग्नक कागज सं0-1/1 लगायत् 1/7 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
6.विपक्षीगण ने अपने कथन के समर्थन में प्रवीण अवस्थी, षाखा प्रबन्धक का षपथपत्र दिनांकित 21.06.11 व चन्द्रष कुमार गुप्ता, षाखा प्रबन्धक का षपथपत्र 21.04.15 व 30.07.15 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
निष्कर्श
7.फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
8.उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-5 व 6 में वर्णित षपथपत्रीय व अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। उभयपक्षों की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त साक्ष्यों में से मामले को निर्णीत करने में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही आगे उल्लेख किया जायेगा।
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9.उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में यह निर्णीत करना है कि क्या विपक्षीगण/विपक्षी सं0-1 के यहां कोई ऐसा नियम बनाया गया था कि यदि स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र के पूर्व ऋण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों द्वारा उन बकायेदारों को ही समाधान मंच योजना के अंतर्गत योजना का लाभ दिया जायेगा, जिन्होंने स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में दिनांक 13.08.08 को हो जाने से पूर्व स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र द्वारा अपने बकायेदारों हेतु उक्त समाधान मंच योजना का लाभ प्राप्त किये जाने हेतु बनाये गये नियम के अंतर्गत उक्त लाभ प्राप्त करने वालों के द्वारा निष्चित धनराषि जमा कर दी गयी है। इस सम्बन्ध में विपक्षी की ओर से यह कथन किया गया है कि वास्तव में स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में जरिये सरकारी अधिसूचना दिनांकित 13.08.08 को हुआ था। स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र द्वारा अपने बकायेदारों के लिए उक्त ’’समाधान मंच योजना’’ के नाम से योजना बनायी गयी थी। परिवादी द्वारा उक्त समझौते के लिए बैंक में न तो संपर्क किया गया और न ही तो उक्त योजना का लाभ लेने के लिए प्रस्तावित धनराषि का 25 प्रतिषत डाउन पेमेन्ट बैंक में जमा किया गया। स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र में उक्त समाधान मंच योजना के अंतर्गत बकायेदारों से कोई समझौता किये जाने से कोई योचना प्रस्तावित नहीं थी। स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र के मात्र उन बकायेदारों को ही उपरोक्त योजना क अंतर्गत विलय के पष्चात लाभ दिया जा सकता है, जिन बकायेदारों द्वारा विलय से पूर्व प्रस्तावित समझौते हेतु निष्चित धनराषि जमा की जा चुकी थी। विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी का यह कथन असत्य है कि परिवादी द्वारा उक्त योजना का लाभ लेने के लिए प्रस्तावित धनराषि का 25 प्रतिषत डाउन पेमेंट जमा करने हेतु परिवादी द्वारा षाखा प्रबन्धक स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र से दिनांक 04.08.08 को संपर्क किया गया और उसी तिथि पर यू.पी.सी. द्वारा बैंक को पत्र भेजा गया। विपक्षी द्वारा परिवादी के उपरोक्त कथन को मनगढ़ंत ही बताया गया है। किन्तु विपक्षीगण की ओर से अपने
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उपरोक्त समस्त कथन के समर्थन में षपथपत्रीय साक्ष्य के अतिरिक्त अन्य कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसलिए विपक्षीगण का यह कथन तो सिद्ध नहीं होता है कि विपक्षीगण के यहां कोई ऐसा नीतिगत नियम था या बनाया गया था कि स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र के जिन बकायेदारों द्वारा विलय से पूर्व निष्चित धनराषि उपरोक्त योजना का लाभ लेने के लिए जमा किया गया था, उन्हीं को लाभ मिल सकता था। जहां तक विपक्षीगण की ओर से षपथपत्रीय साक्ष्य का सम्बन्ध है, उक्त साक्ष्य के विरूद्ध परिवादी की ओर से भी षपथपत्र प्रस्तुत किये गये हैं। इसके अतिरिक्त विधि का यह भी सुस्थापित सिद्धांत है कि जिन तथ्यों को अन्य प्रलेखीय साक्ष्यों के द्वारा साबित किया जाना संभव हो उन तथ्यों को मात्र षपथपत्रीय साक्ष्य के द्वारा प्रमाणित नहीं माना जायेगा। परिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि उसके द्वारा दिनांक 04.08.08 को स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र षाखा से संपर्क किया गया और उसी तारीख पर यू.पी.सी. के द्वारा षाखा प्रबन्धक को उक्त योजना का लाभ देने हेतु तथा निष्चित धनराषि जमा करने हेतु भी पत्र लिखा गया। स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र के सम्बन्धित षाखा के द्वारा परिवादी के साथ लगातार टाल मटोल व हीला हवाली की जा रही है। यही नहीं परिवादी द्वारा स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र को जरिये स्पीड पोस्ट दिनांक 21.02.09 को विधिक नोटिस भी भेजी गयी। जिसे विपक्षीगण के द्वारा इंकार नहीं किया गया। उपरोक्त स्पीड पोस्ट से मामले की आत्यायिकता प्रमाणित होती है और यह प्रमाणित होता है कि परिवादी उक्त योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने के लिए और योजना की समस्त औपचारिकताओं को पूर्ण करने के लिए सदैव तैयार रहा है। उभयपक्षों की स्वीकारोक्ति के अनुसार स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र का विलय स्टेट बैंक आफ इण्डिया में दिनांक 13.08.08 को हो गया। उभयपक्षों की स्वीकारोक्ति के अनुसार प्रष्नगत योजना का लाभ दिनांक 31.03.09 तक परिवादी/बकायेदार को उपलब्ध था। क्योंकि परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के प्रस्तर-4 में यह कहा गया है कि उक्त योजना का लाभ परिवादी को विपक्षी के पत्र दिनांक 02.08.08 के अनुसार
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दिनांक 31.03.09 तक उपलब्ध थी। जिसका खण्डन विपक्षी के द्वारा अपने जवाब दावा में नहीं किया गया है। परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र को प्रेशित पत्र दिनांकित 26.03.08 की छायाप्रति, परिवादी की ओर से प्रस्तुत पत्र षाखा प्रबन्धक स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र वहक परिवादी कागज सं0-1/1 की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है। जिससे भी यह स्पश्ट होता है कि प्रष्नगत योजना का लाभ परिवादी दिनांक 31.03.09 तक प्राप्त कर सकता था। जिससे परिवादी का कथन सिद्ध होता है।
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध इस आषय से स्वीकार किये जाने योग्य है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर परिवादी स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र समाधान मंच योजना के अनुसार परिवादी, समझौता करने की स्वीकृति प्रदान करते हुए उक्त योजना के तहत कुल धनराषि रू0 34,926.00 के स्थान पर उपरोक्त योजना के तहत न्यूनतम धनराषि रू0 17,463.00 करने पर परिवादी को उक्त योजना का लाभ उपलब्ध कराये तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय के रूप में अदा करे। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है-उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
ःःःआदेषःःः
10. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध आंषिक रूप से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि प्रस्तुत निर्णय पारित करने के 30 दिन के अंदर परिवादी द्वारा विपक्षी स्टेट बैंक आफ सौराश्ट्र में समाधान मंच योजना के अनुसार आवष्यक कार्यवाही करने पर कुल धनराषि रू0 34,926.00 के स्थान पर न्यूनतम धनराषि रू0 17,463.00
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जमा करने पर परिवादी को उक्त योजना का लाभ उपलब्ध कराये तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय के रूप में अदा करे।
( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश
फोरम कानपुर नगर फोरम कानपुर नगर।
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
( सुधा यादव ) (डा0 आर0एन0 सिंह)
सदस्या अध्यक्ष
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