MO.SHAMIM filed a consumer case on 26 Jul 2021 against SBI in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/138/2010 and the judgment uploaded on 28 Jul 2021.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 138 सन् 2010
प्रस्तुति दिनांक 04.06.2010
निर्णय दिनांक 26.07.2021
मोo शमीम पुत्र मुनीर अहमद साकिन मौजा संजरपुर, परगना व तहसील- निजामाबाद, जिला- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने विपक्षी संख्या 01 के बैंक में अपना बचत खाता संख्या 10955076707 खोला, जिसमें जिसमें वह बराबर धन जमा करता रहा और ए.टी.एम. के माध्यम से व अन्य धन से रुपया निकालता रहा कभी कोई गड़बड़ी नहीं हुई। दिनांक 17.03.2010 को याची ने विपक्षी संख्या 02 से ए.टी.एम. के माध्यम से 20,000/- रुपया निकालने के प्रक्रिया अपनायी। ए.टी.एम. मशीन भी चली लेकिन न तो पैसा ही बाहर आया न तो रसीद ही बाहर आयी। याची 10-15 मिनट बाद पुनः 20,000/- रुपया निकालने का प्रयास किया तो पुनः न तो पैसा ही बाहर आया और न ही रसीद बाहर आयी। याची ने ए.टी.एम. से पैसा न निकलने के बाबत जब पता किया तो पता चला कि स्टेट बैंक की शाखा रानी की सराय की शाखा से केवल एक बार में 15,000/- रुपया ही निकलता है इसलिए न तो रुपया ही बाहर निकला न तो रसीद ही। दिनांक 18.03.2010 को पुनः पैसा निकालने के लिए याची विपक्षी संख्या 01 के यहाँ ए.टी.एम. मशीन का उपयोग किया और 10 हजार निकाला तो 40,000/- रुपया कम दिखा रहा था। परिवादी ने इसके बाबत विपक्षी के यहाँ प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया तो उसके खाते से 40,000/- रुपया दो बार में दिनांक 17.03.2010 को को निकाला गया जो परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए 40,000/- रुपए को याची के खाते में हस्तान्तरित किया जाए। अनुतोष में याची ने यह कहा है कि विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वह परिवादी को 40,000/- रुपया मय 25% वार्षिक ब्याज की दर से अदा करे तथा शारीरिक व मानसिक कष्ट के लिए रुपए 60,000/- रुपए भी अदा करे।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 24ग शाखा प्रबन्धक एस.बी.आई. आजमगढ़ को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 24/2 डिस्प्यूटेड ए.टी.एम. के सन्दर्भ में प्रस्तुत कागजात, कागज संख्या 24/3 स्टेटमेन्ट ऑफ अकाउन्ट प्रस्तुत किया है।
कागज संख्या 10 विपक्षीगण द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवादी ने धोखा-धड़ी व फ्राड के आधार पर अनुतोष मांगा है जो कि पोषणीय नहीं है। परिवादी का यह भी कथन पूरी तरह असत्य एवं भ्रामक है कि उसने मशीन से पैसा निकालने हेतु कार्ड इंसर्ट किया मशीन नहीं चली, भुगतान सम्बन्धी सभी व्यवस्था आधुनिक तकनीकि पर आधारित है। भुगतान न होने की दशा में खाताधारक के खाते से कोई धनराशि निकासी प्रदर्शित नहीं की जा सकती। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा संचालित सभी ए.टी.एम. मशीन से एक दिन में मुo 40,000/-रुपए की निकासी की जा सकती है। यदि उसके कार्ड इंसर्ट किए जाने पर धनराशि प्राप्त नहीं होती तो पुनः वह धन रिवर्स होकर खाता धारक के खाते में दर्ज हो जाती है। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अतः परिवाद निरस्त किया जाए।
विपक्षीगण द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी ने कागज संख्या 7 मुख्य प्रबन्धक एस.बी.आई. आजमगढ़ द्वारा लिखे गए इस आशय का पत्र कि परिवादी से परिवाद की पठनीय प्रति दिलवाई जाए, कागज संख्या 12/1 स्टेट बैंक द्वारा डिस्प्यूटेट ए.टी.एम. के बारे में प्रस्तुत प्रलेख की छायाप्रति, कागज संख्या 12/2 बैलेंस स्टेटस की छायाप्रति, कागज संख्या 12/3 बैंक द्वारा याची को लिखे गए इस सन्दर्भ का पत्र कि आपका ट्रान्जेक्शन सफल रहा, की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
उभय पक्षों को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवाद पत्र के पैरा 02 में यह कहा गया है कि याची का विपक्षी संख्या 01 के बैंक में बचत खाता संख्या 10955076707 है, जिसमें जिसमें वह बराबर धन जमा करता रहा और ए.टी.एम. के माध्यम से व अन्य धन से रुपया निकालता रहा कभी कोई गड़बड़ी नहीं हुई। दिनांक 17.03.2010 को याची ने विपक्षी संख्या 02 से ए.टी.एम. के माध्यम से 20,000/- रुपया निकालने के प्रक्रिया अपनायी। ए.टी.एम. मशीन भी चली लेकिन न तो पैसा ही बाहर आया न तो रसीद ही बाहर आयी। याची 10-15 मिनट बाद पुनः 20,000/- रुपया निकालने का प्रयास किया तो पुनः न तो पैसा ही बाहर आया और न ही रसीद बाहर आयी। दिनांक 18.03.2010 को पुनः पैसा निकालने के लिए याची विपक्षी संख्या 01 के यहाँ ए.टी.एम. मशीन का उपयोग किया और 10,000/- निकाला तो 40,000/- रुपया कम दिखाया। यदि याची द्वारा प्रस्तुत प्रलेखीय साक्ष्य कागज संख्या 07 व 08 का अवलोकन करें तो याची को शाखा प्रबन्धक एस.बी.आई. रानी की सराय में द्वारा स्पष्ट प्रति हेतु पत्र लिखा था, लेकिन परिवादी द्वारा कोई भी स्पष्ट प्रति नहीं दी गयी। इसके विवरीत एस.बी.आई. ने कागज संख्या 15/2 जो खाते का डिटेल प्रस्तुत किया गया है उसके अनुसार दिनांक 17.03.2010 को 20,000/- रुपया, दिनांक 17.03.2010 को 20,000/- रुपया उसके खाते से निकला। कागज संख्या 24/2 जो परिवादी की ओर से प्रस्तुत किया गया है तथा विपक्षी संख्या 01 द्वारा प्रस्तुत कागजात के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि दिनांक 17.03.2010 को ही बैंक से 20-20 हजार रुपया दो बार निकाला गया है। याची व बैंक की ओर से प्रस्तुत अकाउन्ट के विवरण से यह स्पष्ट हो रहा है कि याची के खाता से दिनांक 17.03.2010 को ही दो बार 20-20 हजार रुपया तथा दिनांक 18.03.2010 को 10,000/- रुपया डेबिट हुआ है। ऐसी स्थिति में यह किस प्रकार हुआ इसे बैंक स्पष्ट करने में असफल रहा।
इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “एस.बी.आई. बनाम डॉक्टर टी.सी.एस. कलावती 2017 (II) सी.पी.आर. 632 एन.सी.” का यदि अवलोकन करें तो उक्त न्याय निर्णय में माo राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिधारित किया है कि यदि याची यह दर्शा देता है कि उसका पैसा गलत ढंग से डेबिट कर दिया गया है तो उसे लौटाने के लिए बैंक जिम्मेदार है। उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 01 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को अन्दर 30 दिन रुपया 40,000/- (रु. चालीस हजार मात्र) अदा करे, जिस पर परिवाद दाखिल की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 09% वार्षिक ब्याज भी देय होगा तथा विपक्षी संख्या 01 को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को आर्थिक व मानसिक कष्ट के लिए रुपया 5,000/- (रु. पांच हजार मात्र) भी अदा करे।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 26.07.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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