Rajasthan

Sawai Madhopur

308/2014

Mahesh Chand Meena - Complainant(s)

Versus

SBI - Opp.Party(s)

24 Mar 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 308/2014
 
1. Mahesh Chand Meena
Gangapur city Sawai MAdhopur
 
BEFORE: 
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

                                       जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सवाई माधोपुर
समक्ष:-    श्री कैलाश चन्द्र शर्मा, अध्यक्ष
               श्री सौभाग्यमल जैन, सदस्य
         
परिवाद सं0:-308/2014                                                    परिवाद प्रस्तुति दिनांकः- 03.07.2014
महेश चन्द मीना पुत्र किशनलाल मीना जाति मीना निवासी आदर्श नगर गंगापुर सिटी जिला सवाई माधोपुर।
                                                                                                                               परिवादी
विरुद्ध
स्टेट बैंक आॅफ इंडिया शाखा गंगाापुर सिटी तहसील गंगापुर सिटी जिला सवाई माधोपुर जरिये शाखा प्रबन्धक।
                                                                                                                               विपक्षी
उपस्थिति:-
1.    श्री भानू कुमार सिंहल अधिवक्ता परिवादी
2.    श्री अरविन्द अग्रवाल अधिवक्ता विपक्षी
द्वारा कैलाश चन्द्र शर्मा (अध्यक्ष)                                                           दिनांक: - 24 मार्च, 2015
                                                                        नि  र्ण  य
    परिवादी ने यह परिवाद संक्षेप में इन कथनों के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवादी ने विपक्षी बैंक से सन् 2009 में अपने आवास हेतू हाउसिंग लोन के रूप में ऋण लिया था। जिसकी लिमिट पांच लाख रूपये थी। उक्त .ऋण उपलब्ध करवाते समय शाखा प्रबन्धक बैंक ने परिवादी से कहा था कि तुम्हे पांच हजार रूपये प्रति माह के हिसाब से 10 वर्ष तक की किश्त जमा करानी है। उक्त ऋण पर फ्लोटिंग ब्याज दर से ब्याज लगेगा जो तिमाही गणना के आधार पर जुडेगा। यदि कोई भी किश्त तुमने समय पर अदा नहीं की तो उस किश्त पर भी तुम्हे तिमाही ब्याज देना पडेगा। 2500/- रूपये तुम्हे शुरू में देने पडेगें इसके अलावा अन्य कोई खर्चा नहीं लगेगा। मकान के असल कागजात बैंक में रखने होगें जो उक्त ऋण चुकारा होने पर तुम्हे वापस दे दिये जावेगें। परिवादी ने उक्त शाखा प्रबन्धक के कथनों पर विश्वास करते हुये उक्त ऋण सुविधा विपक्षी बैंक से प्राप्त की। परिवादी बीपीएल श्रेणी का व्यक्ति है। उक्त ऋण सुविधा प्राप्त करने के बाद परिवादी शुरू में समय पर किश्त नहीं चुका पाया। जिस पर विपक्षी बैंक के अधिकारियों ने परिवादी पर दबाव बनाकर समय समय पर परिवादी से राशियंा जमा करवाई है। इस तरह परिवादी विपक्षी बैंक शाखा में अब तक करीब पांच लाख रूपये जमा करा चुका है। परिवादी ने दिनांक 23.5.14 को अपने ऋण खाते के स्टेटमेन्ट उपलब्ध करवाने के लिए विपक्षी से कहा जिस पर बैंक ने स्टेटमेन्ट उपलबध करवाया तो पाया कि दिनांक 23.5.14 तक परिवादी पर करीब 3,25,075.97 रूपये का बैंलेस गलत तरीके से बकाया दर्शाया है जबकि परिवादी ने विपक्षी बैंक शाखा को करीब पांच लाख रूपये की राशि का भुगतान कर दिया है। विपक्षी बैंक शाखा के प्रबन्धक ने परिवादी से कहा कि हमने जो स्टेटमेन्ट आफ अकाउन्ट दिया है वह हमारे हिसाब से सही है। तुम्हे इस स्टेटमेन्ट के हिसाब से ही बकाया राशि जमा करानी होगी, नही ंतो हम तुम्हारे आदर्श नगर गंगापुर सिटी वाले मकान को हमारे कब्जे में लेकर नीलाम कर राशि वसूल कर लेंगे। हमने तुम्हारे खाली फार्मो पर हस्ताक्षर करवा रखे है। तुम कुछ नहीं कर सकते। विपक्षी बैंक के उक्त कृत्य से परिवादी को घोर मानसिक आघात पहुंच रहा है। अतः परिवादी का परिवाद स्वीकार फरमाया जाकर अनुतोष दिलाये जाने की मांग की है।
    विपक्षी बैंक ने परिवाद का जवाब प्रस्तुत कर कथन किया है कि परिवादी के द्वारा पांच लाख रूपये हाउस लोन की लिमिट जवाबदार से हाउस लोन का बनवाया था। परिवादी के द्वारा यह तथ्य की 5000 रूपये के हिसाब से किश्तें अदा की जावेगी,स्वीकार नहीं है और परिवादी का यह कहना कि ब्याज की दर तिमाही गणना के आधार पर लगेगा, गलत है अस्वीकार है। ब्याज की गणना मासिक आधार से ऋण पर लगाया जाता है। परिवादी के द्वारा जानबूझकर किश्तों की अदायगी नही की। इस पर विपक्षी बेंक ने कई मर्तबा परिवादी से समय पर किश्तों की अदायगी करने हेतु कहा गया था। परिवादी का यह कहना कि वह पांच लाख रूपये जमा करा चूका है, गलत है। बैंक ने परिवादी पर रकम जमा कराने का दबाव नहीं दिया है। परिवादी ने स्वयं अपनी इच्छा से रकम जमा करायी है। परिवादी ने दिनांक 23.5.14 को बकाया राशि 3,28,075.97 रूपये बतलाया है वो गलत है जबकि दिनांक 29.5.14 को बकाया राशि 3,87,325.97 रूपये व ब्याज थी। परिवादी का यह कहना कि विपक्षी बैंक गलत प्रकार से परिवादी से रकम वसूल करना चाहती है, गलत एवं अस्वीकार है। जो खर्चे व ब्याज व फाईन इत्यादि लिखे गये है, वह वाजिब एवं मुताबिक करार है। ब्याज मासिक रूप से जोडा जाता है। बीमा की राशि केवल एक प्रकार से जोडी गयी है। परिवादी के खिलाफ ऋण अदायगी नहीं करने पर सन् 2012 में सरफेसी की कार्यवाही अमल में लायी गयी जिस पर परिवादी के द्वारा रकम जमा कराने पर व प्रार्थना करने पर कि वह अति शीघ्र समस्त बकाया किश्तों कीराशि अदा कर देगा उस समय कार्यवाही रोक दी। सन् 2014 में भी परिवादी के द्वारा काफी डिफाल्ट होने पर सरफेसी की कार्यवाही अमल में लायी जा रही है। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से यह कभी नहीं कहा गया कि हमारे द्वारा खाली फार्माे पर तुम्हारे हस्ताक्षर करवा लिये गये है, यह गलत और अस्वीकार है। परिवादी एक डिफाल्टर है एवं बैंक की रकम की अदायगी समय पर नहीं कर सका है। अब भी परिवादी पर दिनांक 5.7.14 तक 3,90,825.97 व ब्याज सहित कुल 5,16,796 रूपये बकाया चल रहे है। परिवादी ने विपक्षी को केवल मात्र हैरान परेशान करने की नियत से माननीय मंच के समक्ष यह परिवाद पत्र पेश किया है। यदि परिवादी विपक्षी की होम लोन की रकम जमा करा देता है तो बैंक के द्वारा किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही परिवादी के खिलाफ नहीं की जावेगी। अतः परिवादी का परिवाद मय हर्जे खर्चे के खारिज फरमाये जाने का निवेदन किया गया।
    परिवादी परिवाद के समर्थन में स्वयं का शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य में बैंक स्टेटमेन्ट दिनांक 23.7.09 से 23.5.14 तक की फोटो प्रति पेश की है। जबकि विपक्षी बैंक ने भी दस्तावेजी साक्ष्य में उक्त बैंक स्टेटमेन्ट की प्रति,  एग्रीमेन्ट लेटर होम लोन व दस रूपये के नाॅन ज्यूडिशियल स्टाम्प की लिखावट की फोटो प्रति पेश की है।
    उभय पक्षकारान की बहस अंतिम सुनी गई। पत्रावली का अध्योपान अध्ययन किया गया।
    प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने विपक्षीगण पर यह आक्षेप लगाया है कि उसने परिवादी को जारी किये गये बैंक स्टेटमेन्ट दिनांक 23.5.2014 में 3,28,075 रूपये बकाया दर्शाये है। जिसमें अनावश्यक ब्याज जोडा गया है। परिवादी ने यह अनुतोष चाहा है कि विपक्षी वाजिब राशि जमा कर परिवादी को नो ड्यूज प्रमाण पत्र व वांच्छित अनुतोष प्रदान करें। इसके विपरीत विपक्षी द्वारा जवाब प्रस्तुत कर कथन किया गया है कि परिवादी ने 5,00,000 रूप्ये का हाउसिंग लोन लिया था। परिवादी ने दिनांक 23.5.14 को बकाया राशि 3,28,075 रूपये गलत बताई है। जबकि दिनांक 29.5.14 को बकाया राशि 3,87,325 रूपये व ब्याज थी। परिवादी का यह कथन गलत है कि उसने विपक्षीगण के यहंा 5,00,000 रूपये जमा करा दिये है। परिवादी के खिलाफ ऋण अदायगी नहीं करने पर सन् 2012 में सरफेसी की कार्यवाही अमल मे लाई गई। जिस पर परिवादी के द्वारा रकम जमा कराने पर व प्रार्थना करने पर कि वह अति शीघ्र समस्त बकाया किश्तों की राशि अदा कर देगा। उस समय कार्यवाही रोक दी। सन् 2014 में भी परिवादी के द्वारा काफी डिफाल्ड होने पर सरफेसी की कार्यवाही अमल में लाई जा रही है। विपक्षीगण ने सेवा दोष से इन्कार करते हुये परिवाद खारिज किये जाने का निवेदन किया। उभय पक्षों की बहस सुने जाने एवं पत्रावली का अवलोकन किये जाने के पश्चात इस प्रकरण में यह स्वीकार योग्य तथ्य है कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को हाउस लोन दिया गया है। परिवादी समय पर ऋण चुकाने में डिफाल्टर रहा है। डिफाल्टर होने पर बैंक द्वारा लोन एग्रीमेन्ट की शर्तो के अनुसार पेनल इन्टरेस्ट लगाया जाता है। प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने हमारे समक्ष ऐसे कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं किये है कि लोन एग्रीमेन्ट की शर्तो के बाहर जाकर विपक्षी बैंक ने अनावश्यक राशि परिवादी से वसूल की है और कोई सेवा दोष कारित किया हो। अतः प्रस्तुत प्रकरण के समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुये हम विपक्षी बैंक का यह निर्देश दिया जाना उचित समझते हैं कि वह परिवादी को लोन एग्रीमेन्ट की एक प्रमाणित प्रतिलिपि एवं बैंक ऋण की स्वीकृत करने के आॅफर लेटर की एक प्रमाणित प्रतिलिपि तथा अप टू डेट बैंक स्टेटमेन्ट की प्रति निर्णय दिनांक से एक माह की अवधि में बाद रसीद परिवादी को उपलब्ध करावें अथवा रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित करंे। परिवादी उसके खाते में बकाया राशि का भुगतान बैंक को सुनिश्चित करें। यदि बैंक द्वारा परिवादी से लोन एग्रीमेन्ट की शर्तो से बाहर जाकर अनावश्यक कोई राशि वसूल कर ली जाती है तो परिवादी ऐसी राशि भुगतान करने की दिनांक से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24 ए के अनुसार अपना  नया परिवाद दो वर्ष की अवधि में प्रस्तुत करने के लिए सक्षम होगा।  
    अतः परिवादी का परिवाद अस्वीकार किया जाता है। पक्षकारान अपना अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेगें।

 


                                                                 आदेश
    अतः परिवादी का परिवाद अस्वीकार किया जाता है। पक्षकारान अपना अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेगें।


सौभाग्यमल जैन                                                                                                    कैलाश चन्द्र शर्मा
     सदस्य                                                                                                                   अध्यक्ष

                           निर्णय आज दिनांक 24.03.2015 को खुले मंच में सुनाया गया।

सौभाग्यमल जैन                                                                                                   कैलाश चन्द्र शर्मा
     सदस्य                                                                                                                 अध्यक्ष
 

 

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