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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 76 सन् 2016
प्रस्तुति दिनांक 22.04.2016
निर्णय दिनांक 03.04.2019
- गुलाबचन्द चौहान पुत्र स्वo कन्हैया लाल चौहान साकिन मुहल्ला नरौली, पोस्ट व तहसील- सदर, थाना- सिधारी, जिला- आजमगढ़।
बनाम
भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा आजमगढ़ जरिये मुख्य शाखा प्रबन्धक जनपद- आजमगढ़।
..............................................................................विपक्षीगण।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह अपने पुत्र को बीoटेकo की शिक्षा हेतु 1,41,000/- रुपये का ऋण जो शिक्षा प्राप्त के एक वर्ष के बाद 04% वार्षिक ब्याज की दर से देय था। सन् 2010 में प्राप्त प्रश्नगत ऋण सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए प्रदान किया गया था। परिवादी के पुत्र प्रदत्त ऋण के माध्यम से अपनी शिक्षा पूरी किया। परिवादी ने शिक्षा पूर्ण होने के एक वर्ष बाद ही उसका भुगतान मुo 1,41,500/- रुपया मार्च माह सन् 2015 में कर दिया, जिसकी छायाप्रति संलग्न है। परिवादी के ऋण खाते में सन् 2010-11 में मात्र मुo 3665/- रुपये की अनुदान राशि एवं 2012-13 के 19,388/- रुपये दिनांक 15.09.2014 को जमा हो चुका है व सन् 2011-12 की अनुदान राशि परिवादी के खाते में विपक्षी बैंक द्वारा आवश्यक कार्यवाही न करते हुए जमा नहीं की गयी। जबकि बैंकिंग लोकपाल कार्यालय उत्तर प्रदेश के पत्रांक के अनुसार परिवादी 2011-12 की ब्याज की अनुदान राशि पाने के लिए मुस्तहक हैं। इसके बावजूद परिवादी पर विपक्षी अनावश्यक ब्याज लगाता रहा। परिवादी के ऋण खाते में 1,64,553/- रुपये जमा हो चुका है। विपक्षी ने बैंकिंग लोकपाल कार्यालय रिजर्व
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बैंक ऑफ इण्डिया के पत्रांक संख्या 6517 दिनांक 05.10.2015 को संज्ञान लेते हुए सन् 2011-12 को अनुदान राशि को परिवादी के ऋण खाते में समायोजित नहीं कर रहा है। परिवादी के ऋण खाते में ब्याज चार्ज बढ़ता जा रहा है। विपक्षी के इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 01.12.2015 को विपक्षी के नाम नोटिस प्रेषित किया कि माननीय बैंकिंग लोकपाल पत्रांक संख्या 6517 के परिप्रेक्ष्य में सन् 2011-12 के अनुदान राशि मंगाकर ऋण खाते में समायोजित कर लेवें व परिवादी के ऋण खाते को अंतिम रुप से बन्द कर देवें एवं अदेयता प्रमाणपत्र जारी कर देवें। परन्तु विपक्षी ऐसा करने से हीलाहवाली कर रहा है। जिससे परिवाद दाखिल कर रहा है। अतः विपक्षी के विरूद्ध इस आशय का आदेश पारित किया जाए कि बैंकिंग लोकपाल के पत्रांक संख्या 6517/05.10.2015 का अनुसरण करते हुए 2011-12 की देय अनुदान राशि को ऋण खाते में समायोजित कर देवें। कम्पाउण्ड ब्याज चार्ज न करें, बल्कि अदेयता प्रमाण पत्र जारी करते हुए ऋण खाते को अन्तिम रूप से बन्द कर देवें। परिवादी को 5,000/- रुपये मानसिक कष्ट के लिए तथा वाद खर्च दिलवाया जाए।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 7/1 मॉडल एजूकेशनल लोन स्कीम फॉर पर्स्विंग हायर एजूकेशन इन इण्डिया एण्ड एब्रॉड की छायाप्रति, बैंकिंग लोकपाल द्वारा पारित आदेश कागज संख्या 7/10, नोटिस कागज संख्या 7/12, शाखा प्रबन्धक एस.बी.आई. को भेजे गए पत्र की छायाप्रति कागज संख्या 7/13, मुख्य प्रबन्धक एस.बी.आई. द्वारा गुलाब चन्द चौहान को लिखे गए पत्र कागज संख्या 7/18, जमा किए गए धन की रसीद 7/19 व 7/20 एस.बी.आई. द्वारा जगदम्बा प्रसाद पाण्डेय को लिखे गए पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
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विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र में किए गए कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवाद झूठ आधार पर दाखिल किया गया है। फोरम को इस परिवाद पत्र के दाखिल करने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।
यह सही है कि याची ने बैंक से 1,41,000/- रुपये का ऋण प्राप्त किया था और उसने आवश्यक प्रपत्रों एवं शर्तों पर अपने स्वतन्त्र सहमति व्यक्त किया था। यह सही है कि याची ने ऋण के सापेक्ष में कुछ धनराशि जमा भी किया है। यह सही है कि पत्र दिनांक 01.12.2015 के माध्यम से परिवादी ने वांछित धनराशि जमा नहीं किया। जिसकी वजह से उसका खाता बन्द करना संभव नहीं है। ऋण खाते में सरकार द्वारा प्राप्त धनराशि जमा करने पर ही उसे समायोजित की जाती है। उक्त खाते में भारत सरकार द्वारा विभिन्न सीमाओं पर प्रदान की गयी सब्सिडी जमा है, जो संलग्न स्टेटमेन्ट के अवलोकन से स्पष्ट है कि सब्सिडी प्रदान करना भारत सरकार का काम है। उसे मिलते ही खाते में जमा कर दिया जाता है। परिवाद बेबुनियाद है। अतः उसे खारिज किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 11ग अपोजिट पॉर्टी द्वारा प्रस्तुत किए गए पेपर, कागज संख्या 12/1 ता 12/7 स्टेटमेन्ट ऑफ अकाउन्ट प्रस्तुत किया गया है।
परिवादी के अनुपस्थिति में विपक्षी को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने अपने पुत्र की शिक्षा के लिए विपक्षी से 1,41,000/- रुपये का ऋण लिया था। जिसका कुछ अंश उसने जमा किया। सन् 2011-12 की अनुदान राशि परिवादी के खाते में बैंक द्वारा आवश्यक कार्यवाही न करते हुए जमा नहीं की गयी। इसके विपरीत विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र के पैरा 09 में यह कहा है कि सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त होने के बाद उसका समायोजन खाते में कर दिया जाएगा। इस
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प्रकार परिवादी ने जो ऋण लिया है वह धनराशि बैंक की नहीं है, बल्कि वह धनराशि सरकार द्वारा प्राप्त अनुदान की धनराशि है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “गौरी देवगन बनाम प्रियादर्शनी गैस एजेन्सी एवं अन्य iii (2018) सी.पी.जे. 293 (एन.सी.)” एवं एक अन्य न्याय निर्णय “चौधरी अशोक बनाम रेवारी सेन्ट्रल कोऑपरेटिव बैंक रीपीटिशन नं. 4814. निर्णित दिनांक 08.02.2013 (एन.सी.)” का यदि हम अवलोकन करें तो इन दोनों न्याय निर्णयों में यह अभिधारित किया गया है कि सब्सिडी का भुगतान न करने को सर्विस की परिभाषा कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 में नहीं आता है।
उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 03.04.2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)