जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:-1163/2019 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-20.11.2019
परिवाद के निर्णय की तारीख:-12.04.2023
श्रीमती रजनी अरोरा आयु लगभग 37 वर्ष पत्नी स्वर्गीय श्री गौरव सिन्हा, निवासी-भवन संख्या-डी0-02/500, विकल्प खण्ड-02, निकट-कठौता झील, मोहल्ला-गोमती नगर, पोस्ट व थाना-विभूतिखण्ड, जिला-लखनऊ, पिन-226010 ।
............परिवादिनी।
बनाम
एस0बी0आई0 लाईफ इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड द्वारा प्रबन्धक सेवा प्रदाता शाखा, जिला-लखनऊ, भूतल, मैट्रो टावर, 34/01 सहारागंज मॉल के सामने, शाहनजफ रोड, मोहल्ला, पोस्ट व थाना-हजरतगंज, जिला-लखनऊ।
...........विपक्षी।
परिवादिनी के अधिवक्ता का नाम:-श्री प्रकाश चन्द्रा।
विपक्षी के अधिवक्ता का नाम:-श्री सचिन गर्ग।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादिनी ने प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षी से 9,00,000.00 रूपये मय 15 प्रतिशत ब्याज सहित, मानसिक पीड़ी हेतु 1,00,000.00 रूपये, अनावश्यक भागदौड़ के लिये 50,000.00 रूपये एवं त्रुटिपूर्ण सेवाओं के लिये 50,000.00 रूपये दिఀलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी स्व0 श्री गौरव सिन्हा पुत्र श्री शशि चन्द्र सिन्हा की विधवा पत्नी हैं। गौरव सिन्हा की 39 वर्ष की अल्प आयु में दिनॉंक 11.11.2017 को सुबह 7.45 बजे संजय गांधी स्नातकोत्तर आर्युविज्ञान संस्थान, लखनऊ में दौरान इलाज मृत्यु हो गयी थी। विपक्षी इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा विक्रय की जाने वाली एक बीमा पालिसी एस0बी0आई0 लाईफ स्मार्ट चैम्प इन्श्योरेंस पॉलिसी क्रय की थी जिसकी पालिसी संख्या 1-पी0-00733037 थी। बीमा पालिसी का मूल्य 9,00,000.00 रूपये था। जिसका प्रीमियम मासिक भुगतान किये जाने के आधार पर देय था तथा प्रीमियम की धनराशि सभी करों सहित लगभग 5,000.00 रूपये के आस-पास बनती थी।
3. दिनॉंक 15.11.2015 को उक्त पालिसी जारी की गयी थी, जो दिनॉंक 17.11.2015 से प्रभावी हुई थी। प्रथम किश्त 5,039.00 रूपये दिनॉंक 17.04.2017 को दिनॉंक 17.05.2017 को 5,039.00 रूपये, दिनॉंक 19.06.2017 को 5,039.00 रूपये, दिनॉंक 17.07.2017 को 5,058.00 रूपये, दिनॉंक 17.08.2017 को 5,058.00 रूपये, व दिनॉंक 18.09.2017 को 5,058.00 रूपये अदा किया गया।
4. परिवादिनी के पति अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गये और बीमारी के चलते उन्हें दिनॉंक 02.10.2017 को संजय गांधी स्नातकोत्तर आर्युविज्ञान संस्थान, लखनऊ में भर्ती कराया गया जहॉं उनका लगभग 40 दिन तक सघन इलाज चलता रहा और दिनॉंक 11.11.2017 को उनकी मृत्यु हो गयी।
5. परिवादिनी द्वारा बीमा कम्पनी के समक्ष मृत्यु दावा प्रस्तुत किया गया जिसका आई0डी0 नम्बर-115052 आवंटित किया गया था। बाद में विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादिनी से विभिन्न औपचारिकतायें पूरी करायी। बाद में बीमा कम्पनी ने बीमा दावा आधारहीन तथ्यों पर निरस्त कर दिया और पत्र दिनॉंकित 02.02.2018 से सूचित कर दिया, जो पत्र परिवादिनी को दिनॉंक 11.02.2018 के बाद की तिथि में प्राप्त हुआ था। बीमा कम्पनी का कथानक था कि बीमा कम्पनी को दिनॉंक 16.10.2017 तक की अवधि के लिये बीमा प्रीमियम की धनराशि प्राप्त हुई है, जबकि बीमित व्यक्ति की मृत्यु दिनॉंक 11.11.2017 को हुई है। दूसरा कारण यह बताया गया कि विपक्षी बीमा कम्पनी की पॉलिसी के नियमों एवं शर्तों के अनुसार यह प्रीमियम की धनराशि का भुगतान बीमा पालिसी में विहित की गयी/नियत की गयी छूट की अवधि समाप्त होने की तिथि तक भुगतान नहीं की जाती है तो ऐसी दशा में बीमा पालिसी प्रीमियम की धनराशि का भुगतान न होने के आधार पर स्वत: समाप्त हो जाती है।
6. परिवादिनी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को न केवल अपनी समस्त परेशानियों से अवगत कराया गया वरन उन्हें यह भी बताया गया था कि बीमा प्रीमियम की भुगतान की तिथि 17.10.2017 को मृतक बीमित व्यक्ति गौरव सिन्हा के खाते में 37,940.00 रूपये उपलब्ध था। जबकि प्रीमियम की धनराशि मात्र 5,058.00 रूपये का भुगतान होना था। संबंधित कार्यालय में शिकायत दर्ज करायी गयी। शिकायत दर्ज कर लेने के बाद भी न तो कार्यालय द्वारा परिवादिनी की शिकायत के संबंध में कोई कार्यवाही की गयी और न ही शिकायत का कोई निस्तारण आज तक किया गया। इस प्रकार विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
7. विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि श्री गौरव सिन्हा द्वारा बीमा कराया गया था। रिनीवल प्रीमियम दिनॉंक 17.10.2017 को था। जबकि गौर सिन्हा की मृत्यु दिनॉंक 11.11.2017 को हुई है और दिनॉंक 17.10.2017 को उनके द्वारा कोई भी पैसा अदा नहीं किया गया, जिससे पालिसी समाप्त कर दी गयी। 15 दिन का ग्रेस पीरियड होता है उसमें वह चाहे तो धनराशि जमा कर सकते थे, परन्तु इनके द्वारा कुछ भी नहीं किया गया। इस प्रकार परिवाद पत्र दाखिल करने का कोई भी क्षेत्राधिकार परिवादिनी को नहीं है।
8. परिवादिनी द्वारा अपने कथानक के समर्थन में मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में मृत्यु प्रमाण पत्र, विपक्षी के पत्र की छायाप्रति, स्टेटमेंट ऑफ एकाउन्ट, संजय गांधी आर्युविज्ञान संस्थान द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र, आदि दाखिल किये गये हैं। विपक्षी द्वारा भी मौखिक साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रपोजल फार्म, पालिसी डाक्यूमेंट, रिजेक्शन पत्र, क्लेम इन्टीमेंशन एवं रेपुडिएशन लेटर आदि की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं।
9. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
10. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत क्षतिपूर्ति की धनराशि पाने के लिये निम्नलिखित आवश्यक बिन्दुओं को साबित किया जाना आवश्यक है:-(1) परिवादिनी उपभोक्ता हो तथा (2) सेवा प्रदाता द्वारा उसकी सेवा में कमी की गयी हो।
11. परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों को साबित किये जाने का भार परिवादिनी के ऊपर ही रहता है और विपक्षी की कमियों का लाभ परिवादिनी को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता है। विधि का सुस्थापित तथ्य यह है कि अगर परिवाद पत्र में कोई तथ्य स्वीकृत हो तो उसे साबित किये जाने की आवश्यकता नहीं है। यह तथ्य स्वीकृत है कि मृतक गौरव सिन्हा ने एक पालिसी ली थी जिसके प्रीमियम की अदायगी की धनराशि 5,058.00 रूपये थी जो कि प्रत्येक माह की 17.11.2017 को कटती थी तथा अगला प्रीमियम दिनॉंक 16.11.2017 को देय था। यहॉं यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि स्व0 गौरव सिन्हा की मृत्यु 17 तारीख को 40 दिन के अन्दर भर्ती रहने के कारण हुई है। यद्यपि विपक्षी द्वारा मृत्यु की तिथि स्वीकार की गयी, परन्तु परिवादिनी द्वारा दाखिल प्रमाण पत्र से उनकी मृत्यु दिनॉंक 11.11.2017 को हुई थी। जो कि संजय गांधी आर्युविज्ञान संस्थान में दिनॉंक 02.10.2017 को भर्ती हुए थे। इस प्रकार मृत्यु होना भी स्वीकार किया गया है।
12. विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि ड्यू दिनॉंक प्रीमियम की जो थी उस तिथि को खाते में कोई भी धनराशि न होने के कारण प्रीमियम की कटौती नहीं की जा सकी, क्योंकि उस तिथि पर इनके खाते में प्रीमियम की अदायगी की धनराशि नहीं थी। प्रीमियम की अदायगी का स्टेटमेंट चार्ट लगाया गया है। ड्यू दिनॉंक 17.10.2017 से पहले की तिथि पर निश्चित ही परिवादी के खाते में 619.39 पैसे थे, क्योंकि दिनॉंक 17.10.2017 को इनके द्वारा 36,841.00 रूपये खाते में जमा किया गया जो कि 619.39 रूपये बढ़कर 37,490.39 रूपये हुए थे।
13. परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि दिनॉंक-18.10.2017 को 295.00 रूपये इनके खाते से काटा गया, क्योंकि बैंक ने अपना चार्ज लिया और पर्याप्त धनराशि न होने के कारण यह धनराशि काटी गयी है और इनकी कुल धनराशि 37,195.39 रूपये स्टेटमेंट में दिखाया गया है। यह तथ्य सही है कि फेल ट्रान्जेक्शन के कारण बैंक में 295.00 रूपये पैनल चार्ज भी इनके खाते से काटा गया है। यह सही है कि दिनॉंक 17.10.2017 को परिवादिनी द्वारा 36,841.00 रूपये जमा किया गया है। परिवादिनी अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि जिस तिथि को प्रीमियम देय था उस तिथि को बैंकिंग आवर्स में उसके खाते में पैसा जमा कर दिया गया था। स्टेटमेंट ऑफ एकाउन्ट से भी परिलक्षित होता है कि दिनॉंक 17.10.2017 को 5,058.00 रूपये कटौती के एवज में 36,841.00 रूपये जमा किये गये हैं। परिवादिनी के अधिवक्ता ने जनरल क्लाज एक्ट की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि साल का अभिप्राय क्या होता है। धारा-66 में साल का अभिप्राय यह होता है कि जो ब्रिटिश कलेन्डर में दिया गया है वही मान्य होता है।
14. ब्रिटिश कलेन्डर में साल का प्रारम्भ 01 जनवरी से शुरू होकर 31 दिसम्बर को समाप्त होता है। एक दिन का अभिप्राय यह होता है कि पिछली रात्रि के 12 बजे जीरो आवर्स के बाद अगली तिथि के 24 आवर्स तक का समय एक दिन माना जाता है। मैं परिवादिनी के अधिवक्ता के इन तर्को से सहमत हॅूं कि इसी जनरल क्लाज एक्ट के तहत एक दिन का अभिप्राय जीरों आवर्स से लेकर 24 आवर्स तक माना जाता है।
15. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि दिनॉंक 17.10.2017 को किस्त देय थी। इस प्रकार दिनॉंक 17.10.2017 का अभिप्राय 16.10.2017 की रात्रि जीरो आवर्स से लेकर 17.10.2017 के पूरे दिन अथवा रात्रि 24 आवर्स तक दिन की परिभाषा में आयेगा और दिनॉंक 17.10.2017 को प्रीमियम की कटौती तिथि है। जो व्यक्ति संजय गांधी अस्पताल में विगत 40 दिनों से अस्वस्थ चल रहा है और जिसकी मृत्यु भी बाद में हो जाती है, निश्चित ही कोई साधारण बीमारी से ग्रस्त नहीं रहा होगा। मृतक को Multi organ nspunation, हो जाने के कारण Severe Acure Pancreantis जैसा हो जाने के कारण इनकी मृत्यु हुई है।
16. दिनॉंक 17.10.2017 को बीमारी की अवस्था में मैंने मृतक एवं उसके परिवार के लोग इस तथ्य से कितने चिन्तित थे कि उस दिन उन्हें आभास होने पर कि बैंक एकाउन्ट में पर्याप्त प्रीमियम की धनराशि नहीं है, इसलिए उन्होंने उसका पैसा जमा किया। यह परिवादिनी की सदभावना को दर्शाता है कि वह किसी भी कीमत पर प्रीमियम की अदायगी से डिफाल्टर नहीं होना चाहती थी। भारत वर्ष में दो सेक्टर कार्य करते हैं, एक सरकारी सेक्टर और दूसरा प्राइवेट सेक्टर।
17. सामान्यत: सरकारी संस्थान खुलने का समय 10.00 बजे अथवा 9.30 बजे से लेकर सायं 5.00 बजे या 4.00 बजे तक अथवा 6.00 बजे तक होता है और इसी तरह भारतवर्ष में कार्यपद्धति निर्धारित की गयी और इसी के दौरान भारतवर्ष में बैंक भी खुलते हैं। बैंक में तो कार्य 2.00 बजे के बाद लेन-देन का समाप्त हो जाता है। इसका अभिप्राय है जो भी दिनॉंक 17.10.2017 को परिवादिनी द्वारा 36871.00 रूपये जमा किया गया है वह बैंक में अवश्य जमा किया गया है। जो परिवादिनी की सदभावना दर्शाता है। सामान्यत: बैंक से जब किस्त कटती जो कि अपने आप कट जाती है और वह प्रात: 8.00 बजे के आस-पास होता है। “यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, इस समय तक भारतवर्ष में बैंक खुलने का समय भी नहीं होता है और न ही कहीं खुले होना पाया जाता है।
18. अर्थात परिवादिनी द्वारा धनराशि जमा की गयी। एक सामान्य व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि उसे हर विभाग के हर नियम एवं कानून का अध्ययन है। अर्थात इस प्रकरण के परिप्रेक्ष्य में कि उन्हें इस तथ्य जानकारी थी कि 8.00 बजे के बाद अगर पैसा दिया जाएगा तो वह दिनॉंक 17.10.2017 की प्रात: को जमा माना जायेगा या नहीं अर्थात सामान्य व्यक्ति बैंक के खुलने के बाद बैंक में सम्पर्क किया । दिनॉंक- 17.10.2017 को ही उसकी किस्त कटती थी और उसी दिन उसने पैसा जमा कर दिया और इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि बैंक आवर्स के अन्दर ही जमा किया, इसलिये पर्याप्त धनराशि उपलब्ध किस्त से कई गुना ज्यादा कर दिया। तो इसमें कोई भी दुर्भावना किश्त न अदा करने की परिवादिनी की नहीं समझी जायेगी। अगर वास्तव में यही प्रक्रिया सम्पूर्ण प्रीमियम की अदायगी के लिये है तो मेरे विचार से उपयुक्त नहीं है, क्योंकि अगर प्रीमियम की धनराशि उपलबध न होने के कारण आप उसकी पालिसी बन्द कर रहे है और किश्त का पैसा नहीं होने के कारण 295.00 रूपये काट भी रहे है तो बैंक एवं संबंधित विभाग का भी दायित्व है कि जैसे ट्रांजेक्शन फेल हो रहा है उस तिथि पर दो-तीन-चार बार क्लिक करना चाहिए। क्योंकि उसके बाद तक सारे प्रीमियम की अदायगी आवश्यक है।
19. अंतिम बार तो कार्यालय अवधि की समाप्ति के समय एक बार और अवश्य ही प्रयास करना चाहिए था, और आजकल तो इलेक्ट्रानिक युग है। अगर किसी भी कीमत पर नहीं कटता है तो तुरन्त ही मोबाइल पर मैसेज जाना चाहिए कि आपके प्रीमियम की कटौती पर्याप्त धनराशि न होने के कारण नहीं हो सकी है। अब विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि 115 दिन के अन्दर रिवाइबल नहीं किया तो जो व्यक्ति गंभीर बीमार है वह अस्पताल में भर्ती है जिसकी मृत्यु हो जाती है वह पहले मरे हुए व्यक्ति का इलाज करायेगी और उसे इस बात की पैसा जमा करने के बाद निश्चित हो गयी होगी कि मेरे पास जिस बैंक के खाते से किश्त की अदायगी की जाती है उसमें पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करा दी गयी। इसलिये उसको प्रयास करने की मेरे विचार से कोई आवश्यकता नहीं है।
20. अत: जैसा कि विपक्षी द्वारा यह रेपुडिएशन किया गया कि पर्याप्त धनराशि नहीं थी, मेरे विचार से गलत रेपुडिएशन किया गया। उसके द्वारा प्रयास नहीं किया गया वह भी गलत किया गया। क्योंकि उस दिन उसके खाते में प्रीमियम से ज्यादा धनराशि उपलब्ध करायी गयी है कि जो सात प्रीमियम के बराबर धनराशि थी और ऐसी परिस्थिति में जब कि उसके पति मृत्यु शैया पर हो। इस प्रकार मेरे विचार से जो भी रेपुडिएशन किया गया है वह उपयुक्त नहीं है। संबंधित को निर्देशित किया जाता है कि उस तिथि को पर्याप्त धनराशि मानते हुए उसकी कटौती करते हुए नियमानुसार उसके प्रीमियम का भुगतान किया जाए।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट के लिये मुबलिग 25,000.00 (पच्चीस हजार रूपया मात्र) तथा वाद व्यय के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) भी अदा करें।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-12.04.2023