राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-81/2016
(सुरक्षित)
NITESH VERMA
S/o Late Shri Om Prakash,
R/o 705, Goundu Compound,
Sipri Bazar, Jhansi
....................परिवादी
बनाम
1. SBI LIFE INSURANCE CO. LTD.
Registered Office: “Natraj”, M.V. Road
And Western Express Highway Junction,
Andheri (West), Mumbai-400069
Through its Chairman/Managing Director
2. SBI LIFE INSURANCE CO. LTD.
1st Floor, 237, Guru Kripa Complex,
Civil Lines, Jokhanbagh, Jhansi-284001
Through its Banch Manager
...................विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्हा,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री सचिन गर्ग,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 09-12-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह परिवाद परिवादी नितेश वर्मा ने धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षीगण (1) एस0बी0आई0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा चेयरमैन/मैनेजिंग
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डायरेक्टर और (2) एस0बी0आई0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 द्वारा ब्रांच मैनेजर के विरूद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
(i) to pay the complainant insured amount for Rs.30,00,000/- with 24% interest from the date of death i.e. 24.05.2015 till the date of actual payment.
(ii) to pay the complainant Rs. 5 lakhs for mental agony and harassment and expenses incurred in several visits and correspondence to the insurance company.
(iii) to pay the complainant Rs. 55,000/- towards legal and incidental expenses.
(iv) to pass such other orders which this Hon’ble Commission may deem fit and proper under the circumstances of the case in favour of complainant.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसके पिता स्व0 श्री ओम प्रकाश ने विपक्षीगण की इंश्योरेंस पालिसी “Smart Shield” लिया था, जिसकी पालिसी सं0 45003940204 और बीमित धनराशि 30,00,000/-रू0 थी। परिवादी के पिता ने यह पालिसी अपने जीवन काल में विपक्षीगण के एजेन्ट श्री धीरज कुमार अग्रवाल के माध्यम से ली थी और परिवादी को बीमा पालिसी में अपना नामिनी बनाया था। पालिसी का प्रीमियम
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अर्धवार्षिक 11,934/-रू0 था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उपरोक्त पालिसी 02 साल 07 महीने चलने के बाद उसके पिता की मृत्यु दिनांक 24.05.2015 को हार्ट अटैक से हो गयी। अत: परिवादी ने अपने पिता के नामिनी के रूप में विपक्षीगण के यहॉं बीमा दावा प्रस्तुत किया और आवश्यक अभिलेख विपक्षीगण को दिनांक 10.06.2015 को उपलब्ध कराये। तब विपक्षीगण ने आश्वासन दिया कि क्लेम का निस्तारण 06 महीने में कर दिया जायेगा। उसके बाद परिवादी अनेकों बार विपक्षीगण के कार्यालय गया और विपक्षीगण ने उसे क्लेम के भुगतान का आश्वासन दिया फिर भी उसे रिपुडिएशन पत्र दिनांकित 05.11.2015 प्राप्त हुआ, जिसके द्वारा उसके बीमा क्लेम को मनमाने ढंग से रिपुडिएट कर दिया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने परिवादी का बीमा दावा इस आधार पर रिपुडिएट किया है कि उसके पिता ने पालिसी लेते समय अपनी पूर्व बीमारी, पूर्व में लिये गये चिकित्सीय अवकाश और पूर्व में ली गयी बीमा पालिसी को छिपाया था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसके पिता ने अवकाश अपने घर का नवीनीकरण कराने के लिये लिया था। इसके साथ ही परिवादी ने परिवाद पत्र में यह भी कहा है कि परिवादी के पिता ने दिनांक 14.09.2012 को मात्र प्रपोजल फार्म
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लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया की पालिसी हेतु भरा था उसे बीमा पालिसी प्राप्त नहीं हुई थी। अत: लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया की बीमा पालिसी को प्रश्नगत बीमा पालिसी लेते समय घोषित नहीं किया गया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसके पिता द्वारा पालिसी लिये जाने के बाद दो साल की अवधि बीत चुकी है। विपक्षीगण परिवादी को उसके पिता की प्रश्नगत पालिसी की बीमित धनराशि का भुगतान करने हेतु उत्तरदायी हैं।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसके पिता का मेडिकल परीक्षण करने के पश्चात् प्रश्नगत बीमा पालिसी विपक्षीगण ने जारी किया था। अत: उसके पिता द्वारा अपनी बीमारी छिपाये जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। विपक्षीगण ने परिवादी का बीमा दावा अनुचित आधार पर अस्वीकार किया है। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी ने वर्तमान परिवाद राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवाद राज्य आयोग के भौमिक क्षेत्राधिकार से परे है। परिवादी के पिता ने अपने स्वास्थ्य और पूर्व बीमा पालिसी एवं चिकित्सीय अवकाश के सम्बन्ध में गलत सूचना देकर बीमा पालिसी प्राप्त की थी। अत: विपक्षीगण को परिवादी का बीमा दावा रिपुडिएट करने का अधिकार है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि
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बीमित व्यक्ति, जो परिवादी के पिता थे, भारतीय रेलवे के कर्मचारी थे और झांसी में नियुक्त थे। नियोजक के सर्टिफिकेट के अनुसार उन्होंने चिकित्सीय अवकाश लिया था और उनकी नियमित चिकित्सा चल रही थी। वह दिनांक 01.12.2011 से दिनांक 24.05.2015 को मृत्यु के समय तक बराबर बीमार थे और उनका इलाज रेलवे हास्पिटल झांसी में हुआ है। उन्होंने मेडिकल लीव दिनांक 09.07.2012 से दिनांक 15.09.2012 तक (68 दिन) लिया था, जबकि प्रश्नगत बीमा पालिसी का प्रस्ताव दिनांक 04.09.2012 का है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बीमा प्रस्ताव के समय परिवादी के पिता चिकित्सीय अवकाश पर थे और उसके बाद भी वह दिनांक 15.09.2012 से दिनांक 30.10.2012 तक (45 दिन) चिकित्सीय अवकाश पर रहे हैं। लिखित कथन में कहा गया है कि परिवादी के पिता ने लिये गये चिकित्सीय अवकाश को बीमा प्रस्ताव में दर्शित नहीं किया है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि सर्टिफिकेट आफ हास्पिटल ट्रीटमेन्ट में बीमित को BPH with stricture Urethra-Carcinoma Urinary Bladder डायग्नोस किया गया है, जिसके लिए वह दिनांक 09.07.2012 से दिनांक 20.11.2013 तक इलाज में था। सेन्ट्रल रेलवे हास्पिटल के इन्डोर केस सीट के अनुसार वह दिनांक 09.07.2012 को हास्पिटल में उपरोक्त रोग हेतु भर्ती किया गया था और दिनांक 20.07.2012 को डिस्चार्ज किया गया था।
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लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादी के पिता बीमा पालिसी लेने के पूर्व से ही बीमारी से ग्रस्त थे और चिकित्सीय अवकाश ले चुके थे, परन्तु इन तथ्यों को उन्होंने छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्त की है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि विपक्षीगण ने परिवादी के पिता का प्रश्नगत बीमा पालिसी का प्रस्ताव प्राप्त होने पर उनकी चिकित्सीय जांच दी गयी सूचना के प्रकाश में करायी है और परिवादी के पिता द्वारा दी गयी सूचना पर विश्वास कर बीमा पालिसी जारी किया है। परिवादी के पिता द्वारा गलत सूचना देकर बीमा पालिसी प्राप्त किये जाने के कारण विपक्षीगण की बीमा कम्पनी को परिवादी का बीमा दावा रिपुडिएट करने का अधिकार है। विपक्षीगण ने परिवादी का बीमा दावा रिपुडिएट कर सेवा में कोई कमी नहीं की है।
परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादी नितेश वर्मा का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन के समर्थन में श्रीमती नीलम सिंह, ऑथराइज्ड रिप्रजेन्टेटिव का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद की अन्तिम सुनवाई की तिथि पर परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा और विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री सचिन गर्ग उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
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परिवादी की ओर से लिखित तर्क भी प्रस्तुत किया गया है। मैंने परिवादी के लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्न नजीरें प्रस्तुत की हैं:-
1. III (2019) CPJ 96 (NC) LIC OF INDIA versus PANCHFULA SHRIRAM JADHAV
2. II (2019) CPJ 313 (NC) LIFE INSURANCE CORPORATION OF INDIA versus JASWINDER KAUR
3. (2018) CPJ 20A (CN) (Raj.) AVIVA LIFE INSURANCE CO. LTD. versus RAMESHWAR PRASAD JAIN
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है और प्रस्तुत नजीरों का अवलोकन किया है।
परिवादी के पिता की प्रश्नगत बीमा पालिसी विपक्षीगण को स्वीकार है। विपक्षीगण के अनुसार परिवादी के पिता ने अपनी पूर्व बीमारी एवं चिकित्सीय अवकाश और पूर्व बीमा पालिसी के महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाकर यह बीमा पालिसी प्राप्त किया है। अत: बीमा कम्पनी ने उचित आधार पर बीमा क्लेम अस्वीकार किया है।
बीमा प्रस्ताव झांसी में भरा गया है और रिपुडिएशन लेटर परिवादी को झांसी के पते पर भेजा गया है। अत: परिवाद राज्य
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आयोग के क्षेत्राधिकार में है।
LIFE INSURANCE CORPORATION OF INDIA versus JASWINDER KAUR के उपरोक्त निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने धारा 45 इंश्योरेंस एक्ट के आधार पर माना है कि, “No policy can be repudiated on grounds of Concealment/Supression of facts after expiry of two years.”
धारा 45 इंश्योरेंस एक्ट निम्न है;
“No policy of life insurance effected before the commencement of this Act shall after the expiry of two years from the date of commencement of this Act and no policy of life insurance effected after the coming into force of this Act shall, after the expiry of two years from the date on which it was effected be called in question by an insurer on the ground that statement made in the proposal or in any report of a medical officer, or referee, or friend of the insured, or in any other document leading to the issue of the policy, was inaccurate or false, unless the insurer shows that such statement was on a material matter or suppressed facts
which it was material to disclose and that it was fraudulently made by the policy-holder and that the
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policy-holder knew at the time of making it that the statement was false or that it suppressed facts which it was material to disclose:
Provided that nothing in this section shall prevent the insurer from calling for proof of age at any time if he is entitled to do so, and no policy shall be deemed to be called in question merely because the terms of the policy are adjusted on subsequent proof that the age of the life insured was incorrectly stated in the proposal.”
रिपुडिएशन लेटर दिनांकित 05.11.2015, जो परिवाद पत्र का संलग्नक 4 है, के अनुसार परिवादी के बीमित पिता ने प्रश्नगत बीमा पालिसी के प्रस्ताव फार्म के प्रश्न 11, 13 (IV), 13 (V) और 13 (XV) का उत्तर न में देकर अपनी पूर्व बीमा पालिसी और पूर्व बीमारी तथा पूर्व में लिये गये चिकित्सीय अवकाश को छिपाया है और गलत सूचना दिया है।
परिवादी के पिता ने भारतीय जीवन बीमा निगम की पालिसी हेतु प्रस्ताव दिनांक 14.09.2012 को भरा है और भारतीय जीवन बीमा निगम की पालिसी दिनांक 14.09.2012 से प्रभावी है। अत: वर्तमान पालिसी के प्रस्ताव दिनांक 04.09.2012 में इस पालिसी को घोषित न करने का उचित आधार है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित AVIVA LIFE INSURANCE CO.
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LTD. versus RAMESHWAR PRASAD JAIN (2018) CPJ 20A (CN) (Raj.) के निर्णय में राज्य आयोग, राजस्थान ने माना है कि, “Non disclosure of previous policy is not a material fact”, परन्तु राजस्थान आयोग का यह मत माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा RELIANCE LIFE INSURANCE CO. LTD & ANR. versus REKHABEN NARESHBHAI RATHOD II (2019) CPJ 53 (SC) के निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर मान्य नहीं है।
परिवादी के पिता ने विपक्षीगण द्वारा कथित अवधि में अवकाश लिया है यह परिवादी ने परिवाद पत्र में स्वीकार किया है। परिवादी का कथन है कि उसके पिता ने अवकाश घर का नवीनीकरण कराने के लिये लिया था। परिवादी ने पिता के द्वारा लिये गये अवकाश को चिकित्सीय अवकाश होने से इन्कार नहीं किया है।
विपक्षीगण ने लिखित कथन की धारा 10 में कहा है कि परिवादी के पिता बीमित ओम प्रकाश झांसी में रेल विभाग में प्वाइन्ट्स मैन के पद पर कार्यरत थे और उनके Employer के Certificate के अनुसार वह चिकित्सीय अवकाश पर दिनांक 10.07.2012 से मृत्यु की तिथि दिनांक 24.05.2015 तक थे और उनका इलाज रेलवे अस्पताल झांसी में हो रहा था। Employer Certificate लिखित कथन का संलग्नक D है, जिसके अनुसार बीमित ओम प्रकाश दिनांक 01.12.2011 से दिनांक 06.12.2011
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तक, दिनांक 10.07.2012 से दिनांक 15.07.2012 तक, दिनांक 15.07.2012 से दिनांक 15.08.2012 तक चिकित्सीय अवकाश पर रहे हैं, परन्तु यह तथ्य उन्होंने बीमा प्रस्ताव के प्रश्न 13 VI में छिपाया है और नकारात्मक में उत्तर दिया है।
अस्पताल के डिस्चार्ज समरी की प्रति लिखित कथन का संलग्नक F है, जिसके अनुसार बीमित ओम प्रकाश दिनांक 09.07.2012 से दिनांक 20.07.2012 तक उक्त अस्पताल में urethral stricture रोग हेतु भर्ती रहे हैं। परिवादी द्वारा अपने पिता की बीमारी का स्पष्ट रूप से खण्डन नहीं किया गया है, जबकि विपक्षीगण की तरफ से प्रस्तुत मिस नीलम सिंह, ऑथराइज्ड रिप्रजेन्टेटिव के शपथ पत्र की धारा 11 में कहा गया है कि बीमित ओम प्रकाश को BPH with stricture Urethra-Carcinoma Urinary Bladder Diagnose किया गया था और वह दिनांक 09.07.2012 से दिनांक 20.11.2013 तक इलाज में थे। अस्पताल का प्रमाण पत्र एवं डिस्चार्ज समरी क्रमश: संलग्नक E व F है। मिस नीलम सिंह के शपथ पत्र एवं शपथ पत्र के संलग्नकों को देखते हुए यह मानने हेतु उचित आधार है कि बीमित ओम प्रकाश प्रश्नगत बीमा पालिसी के प्रस्ताव के पूर्व अस्पताल में भर्ती थे और उनका इलाज हुआ था। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि उन्होंने बीमा प्रस्ताव के प्रश्न 13 IV का उत्तर नकारात्मक में देकर वास्तविकता को छिपाया है।
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धारा 17 भारतीय संविदा अधिनियम 1872 में कपट (Fraud) को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है:-
17. ‘Fraud’ defined-‘Fraud’ means and includes any of the following acts committed by a party to a contract, or with his connivance, or by his agent, with intent to deceive another party thereto or his agent, or to induce him to enter into the contract:-
(1) the suggestion, as a fact, of that which is not true, by one who does not believe it to be true;
(2) the active concealment of a fact by one having knowledge or belief of the fact;
(3) a promise made without any intention of performing it;
(4) any other act fitted to deceive;
(5) any such act or omission as the law specially declares to be fraudulent.
Explanation-Mere silence as to facts likely to affect the willingness of a person to enter into a contract is not fraud, unless the circumstances of the case are such that, regard being had to them, it is the duty of the person keeping silence to speak, or unless his silence, is, in itself, equivalent to speech.
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माननीय राष्ट्रीय आयोग ने Allaudin Alias Ajauddin versus Kotak Mahindra Old Life Insurance Ltd. 2018 (1) C.P.R. 167 के निर्णय में कहा है कि, “Insurance Policy obtained by acting concealment of material information thereby playing a fraud upon insurer is vitiated.”
सतवन्त कौर सन्धु बनाम न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 IV (2009) C.P.J. 8 SC के निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि, धारा 45 इंश्योरेंस एक्ट 1938 लाइफ इंश्योरेंस पालिसी पर लागू होती है। मेडीक्लेम पालिसी पर नहीं। सतवन्त कौर सन्धु बनाम न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 का यह वाद मेडीक्लेम पालिसी के सम्बन्ध में था। वर्तमान परिवाद लाइफ इंश्योरेंस पालिसी के सम्बन्ध में है और प्रश्नगत पालिसी प्रभावी होने के 02 साल से अधिक समय के बाद परिवादी के पिता की मृत्यु हुई है। अत: धारा 45 इंश्योरेंस एक्ट 1938 वर्तमान प्रकरण में लागू होगी। ऐसी स्थिति में मात्र बीमा पालिसी के प्रस्ताव फार्म में परिवादी के बीमित पिता द्वारा पूर्व बीमारी और पूर्व में लिये गये चिकित्सीय अवकाश के सम्बन्ध में गलत सूचना देने के आधार पर बीमा कम्पनी परिवादी का बीमा दावा रिपुडिएट नहीं कर सकती है।
धारा 45 इंश्योरेंस एक्ट 1938 के अन्तर्गत बीमा दावा रिपुडिएट करने हेतु Mithoolal Nayak Vs. L.I.C. of India,
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A.I.R. 1962 S.C. 814 के निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त के अनुसार निम्न शर्त आवश्यक है;
(1) That the statement is on a material fact.
(2) The suppression has been made fraudulently by the policy holder.
(3) The fact suppressed was in the knowledge of policy holder at the time of making statement.
LIC OF INDIA versus PANCHFULA SHRIRAM JADHAV III (2019) CPJ 96 (NC) के निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Civil Appeal No. 8245 of 2015 Sulbha Prakash Motegaonkar & Ors. Vs. LIC of India के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त का अनुसरण किया है और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का निम्न अंश सन्दर्भित किया है:-
"It is not the case of the Insurance Company that the ailment that the deceased was suffering from was a life threatening disease which could or did cause the death of the insured. In fact, the clear case is that the deceased died due to ischaemic heart disease and also because of myocardial infarction. The concealment of lumbar spondilitis with PID with sciatica persuaded the respondent not to grant the insurance claim.
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We are of the opinion that the National Commission was in error in denying to the appellants the insurance claim and accepting the repudiation of the claim by the respondent. The death of the insured due to ischaemic heart disease and myocardial infarction had nothing to do with his lumbar spondilitis with PID with sciatica. In our considered opinion, since the alleged concealment was not of such a nature as would disentitle the deceased from getting his life insured, the repudiation of the claim was incorrect and not justified."
परिवादी ने अपने पिता की मृत्यु का जो चिकित्सीय प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है, वह डाक्टर डी0के0 अग्रवाल B.A.M.S. द्वारा दिया गया है। इसमें प्रमाणित किया गया है कि परिवादी के पिता ओम प्रकाश आयु 58 वर्ष की मृत्यु दिनांक 24.05.2015 को हुई है। प्रमाण पत्र में अंकित है; “as per examine No Blood Pressure. No Pulse and Pupil dilated. Death Probably by heart attack or Chest Pain.”
परिवादी द्वारा अपने पिता की मृत्यु का जो डाक्टरी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है, उसमें मृत्यु का स्पष्ट कारण अंकित नहीं है, जबकि बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि परिवादी के पिता प्रश्नगत बीमा पालिसी का प्रस्ताव भरने के पूर्व बीमार थे और लम्बा चिकित्सीय अवकाश लिया था।
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माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Sulbha Prakash Motegaonkar & Ors. Vs. LIC of India के उपरोक्त निर्णय में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर यह देखा जाना आवश्यक है कि परिवादी के बीमित पिता को प्रश्नगत बीमा पालिसी के प्रस्ताव के पहले जो बीमारी थी और जिसका इलाज हुआ था क्या वह बीमारी प्राण घातक थी और परिवादी के पिता की मृत्यु का कारण हो सकती है, परन्तु इस बिन्दु पर निर्णय हेतु चिकित्सीय विशेषज्ञ की राय आवश्यक है।
सम्पूर्ण विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि परिवाद स्वीकार कर विपक्षी बीमा कम्पनी को परिवादी के बीमा दावा की जांच कर इस निर्णय में की गयी विवेचना के प्रकाश में पुन: विचार करने हेतु निर्देशित किया जाना आवश्यक है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी के बीमा दावा की जांच कर इस निर्णय में की गयी विवेचना के प्रकाश में पुन: विचार करें और अन्तिम निर्णय इस निर्णय की तिथि से दो मास के अन्दर लें तथा परिवादी को अवगत करावें।
परिवाद में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1