जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 140/2015
श्रीमति संतोश देवी पत्नी स्वर्गीय श्री ओमप्रकाष , जाति-मेघवाल, निवासी-चिमरानी, तहसील व जिला नागौर
(राज.)। -परिवादी
बनाम
1. एस. बी. आई. जनरल इंष्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड,101 ,210, 301 नटराज, जंक्षन आॅफ वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे एण्ड अंधेरी कुरला रोड, अंधेरी ईस्ट, मुम्बई 400069
2. स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर जरिये बैंक मंैनेजर, षाखा-बेंगू, जिला-चितौडगढ (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री अषोक पंडित, अधिवक्ता वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे श दिनांक 02.12.2015
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिया के पति स्वर्गीय श्री ओमप्रकाष ने अपने जीवनकाल में अप्रार्थी संख्या 1 से जीवन की सुरक्षा के लिए दुर्घटना पाॅलिसी 4,00,000/- रूपये अप्रार्थी संख्या 2 के जरिये ली थी।
परिवादिया के पति की दिनांक 14.09.2013 को जब वह मोटरसाईकिल से जा रहा था तो अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। ईलाज के दौरान दिनांक 25.09.2013 को ओमप्रकाष की जोधपुर में मृत्यु हो गई। दिनांक 01.10.2013 को पुलिस थाना-सदर, नागौर में रिपोर्ट दर्ज करवाई। एफआईआर नम्बर 77/2013 है। अदम पता मुलजिम में एफआर प्रस्तुत हुई।
परिवादिया ने सभी आवष्यक दस्तावेजात के साथ अप्रार्थी संख्या 1 के यहां क्लेम प्रस्तुत किया। अप्रार्थीगण को यह बताया गया कि ओमप्रकाष की मृत्यु दुर्घटना में आई चोटों के कारण हुई है। उसका पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया। इसके बावजुद अप्रार्थीगण ने आज तक क्लेम नहीं दिया है। अतः परिवादिया को मय हर्जा-खर्चा के क्लेम राषि दिलाई जावे।
2. अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से कहना है कि दावेदार या प्रस्ताव करने वाला अगर कोई बीमा के संदर्भ में होने वाले अनुबंध मेें कोई जरूरी सूचना छिपाता है तो बीमा कंपनी को उसका दावा खारिज करने का अधिकार होता हैै। बीमा कंपनी के यहां दावा विचाराधीन है फिर भी परिवाद पेष किया है, जो कि प्री-मैच्योर है। इस आधार पर परिवाद चलने योग्य नहीं है।
परिवादिया ने बावजूद नोटिस के मृतक की एफआईआर, चार्जषीट, नक्षा मौका, एमएलसी रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट एवं पंचनामा आदि की प्रमाणित प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं कराई। इस आधार पर परिवाद खारिज किया जावे।
दुर्घटना के अठारह दिन बाद रिपोर्ट दर्ज करवाई गई। ऐसा प्रकट होता है कि मृतक की दुर्घटना में मृत्यु संदिग्ध है। क्लेम लेने के लिए मंैनेज कर एफआईआर लिखाई गई है। परिवादिया ने यह भी नहीं बताया है कि किस बैंक षाखा से यह बीमा लिया था। मृतक के खाता संख्या से सम्बन्धित बैंक पास बुक, बीमा पाॅलिसी, मृतक का फोटो पहचान-पत्र पेष नहीं किये हैं। बीमा कम्पनी ने यह माना कि ओमप्रकाष की मृत्यु सडक दुर्घटना में नहीं हुई। इसलिए क्लेम खारिज किया गया।
3. बहस उभयपक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का गहनतापूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेजात से यह स्पश्ट है कि परिवादिया का पति ओमप्रकाष गु्रप पर्सनल एक्सीडेंट इंष्योरेंस पाॅलिसी में बीमित था। जो कि प्रदर्ष पी 1 से स्पश्ट है। स्वयं अप्रार्थीगण के जवाब से इस बात की पुश्टि होती है क्योंकि परिवादिया द्वारा क्लेम प्रस्तुत करने पर अप्रार्थीगण द्वारा उपरोक्त वर्णित दस्तावेजात परिवादिया से चाहे गये थे। यदि अप्रार्थीगण के यहां स्वर्गीय श्री ओमप्रकाष का खाता एवं उक्त श्रेणी का बीमा नहीं होता तो अप्रार्थीगण द्वारा उपरोक्त तथाकथित वांछित दस्तावेजात मांगने का प्रष्न ही उत्पन्न नहीं होता।
4. जहां तक स्वर्गीय श्री ओमप्रकाष का सडक दुर्घटना में फौत होने का प्रष्न है। मृतक की ओर से एफआईआर 77/2013 पुलिस थाना- सदर, नागौर दर्ज करवाई गई। रिपोर्ट में अज्ञात वाहन द्वारा टक्कर मारना बताया गया। चोट प्रतिवेदन प्रपत्र प्रदर्ष 4 से यह प्रकट होता है कि 14.09.2013 को स्वर्गीय श्री ओमप्रकाष के चोटें कारित हुई। तत्पष्चात् उसे मथुरादास माथुर चिकित्सालय, डाॅ. एसएन मेडिकल काॅलेज, जोधपुर में भर्ती कराया गया दिनांक 25.09.2013 को अन्तर्वासी रोगी षय्या षीर्श टिकिट के मुताबिक ओमप्रकाष की मृत्यु हो गई। इसकी रिपोर्ट मृत्यु के बाद 01.10.2013 को लिखाई गई। जहां तक रिपोर्ट देरी से लिखाने का प्रष्न है। दुर्घटना कारित होने के तुरन्त पष्चात् परिवारजन चोटिल व्यक्ति की एफआईआर के बजाय उपचार को प्राथमिकता देते हैं जो कि स्वाभाविक है। अप्रार्थीगण ऐसा कोई तथ्य सामने लेकर नहीं आये हैं कि स्वर्गीय ओमप्रकाष को किसी लडाई झगडे में चोट आई हो। स्वःकारित चोट आई हो। यहां इस बात का उल्लेख करना उचित होगा कि क्लेम के मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट होना आवष्यक नहीं है। ऐसा माननीय सर्वोच्च न्यायालय, राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने अनेक न्यायिक निर्णयों में निर्धारित किया है। एफआईआर एवं एफआर पत्रावली पर उपलब्ध हैं। वर्तमान प्रकरण में बताई गई दुर्घटना के सम्बन्ध में अप्रार्थीगण ऐसा कोई सबूत प्रस्तुत नहीं कर सके हैं जिससे कि दुर्घटना को संदिग्ध माना जावे। अप्रार्थीगण की ओर से दावा प्रस्तुति के तीन माह से भी अधिक समय व्यतीत होने के पष्चात् भी दावे का निस्तारण नहीं किया है। इस प्रकार से उपरोक्त समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों से हम यह पाते हैं कि अप्रार्थीगण की सेवा में कमी रही है। पूर्णतः सेवा दोश है। परिवादी अपना परिवाद साबित करने में सफल रहे हंै। परिवादी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेष दिया जाता है किः-
आदेश
5. अप्रार्थीगण, परिवादिया को गु्रप पर्सनल एक्सीडेंट पाॅलिसी के अन्तर्गत 4,00,000/- रूपये परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख से तारकम वसूली मय 9 प्रतिषत वार्शिक ब्याजदर से एक माह में अदा करें। साथ ही अप्रार्थीगण, परिवादिया को मानसिक संताप पेटे 2,500/- रूपये एवं 2,500/- रूपये परिवाद व्यय के रूप में भी अदा करें।
आदेश आज दिनांक 02.12.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या