SHYAM LLAL MALI filed a consumer case on 24 Jul 2014 against SBBJ in the Jaipur-I Consumer Court. The case no is CC/438/2012 and the judgment uploaded on 27 May 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर प्रथम, जयपुर
समक्ष: श्री राकेश कुमार माथुर - अध्यक्ष
श्रीमती सीमा शर्मा - सदस्य
श्री ओमप्रकाश राजौरिया - सदस्य
परिवाद सॅंख्या: 438/2012
श्याम लाल माली पुत्र स्व0 श्री बोदूराम माली, उम्र 60 वर्ष, जाति माली, निवासी चांदलोई की ढाणी, रींगस रोड, वार्ड नंबर 30, चैमू कस्बा, जिला जयपुर, राजस्थान Û
परिवादी
ं बनाम
1. शाखा प्रबंधक, स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर, शाखा मलिकपुर, गोविन्दगढ़, जिला जयपुर, राजस्थान Û
2. राजीव कुमार कर्मचारी स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर, शाखा मलिकपुर, गोविन्दगढ़, जिला जयपुर, राजस्थान Û
विपक्षी
अधिवक्तागण :-
श्री महावीर कालवा - परिवादी
श्री जितेन्द्र सिंह राठौड़ - विपक्षी बैंक
परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक: 09.04.12
आदेश दिनांक: 06.05.2015
परिवाद में अंकित तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का विपक्षी सॅंख्या 1 के यहां एक खाता सॅंख्या 51051700479 खुलवा रखा है तथा इसी खाते में परिवादी का वेतन एवं सेवा निवृत्ति पश्चात पैंशन राशि जमा होती है । परिवादी का कथन है कि उसने वर्ष 2006 में विपक्षी सॅंख्या 1 से 1,20,000/- रूपए का ऋण लिया था जिसके पुर्नभुगतान के लिए विपक्षी ने परिवादी से 36 मासिक किश्त , प्रत्येक 4000/- रूपए के अनुसार दिनांक 24.12.2009 तक प्राप्त कर ली । इस प्रकार परिवादी ने सम्पूर्ण ऋण राशि का भुगतान कर दिया लेकिन विपक्षी सॅंख्या 1 द्वारा एन.ओ.सी. जारी नहीं की गई है । विपक्षी सॅंख्या 1 ने दिनंाक 10.03.2011 को अवैध रूप से परिादी के बैंक खाते से 7228/- रूपए अवैधानिक रूप से काट लिए जो काटने का विपक्षी को अधिकार नहीं था । परिवादी का कथन है कि उसने अपने खाते से 28000/- रूपए निकलवाने के लिए विड्राॅल फार्म भरकर विपक्षी के यहां दिया परन्तु विपक्षी ने राशि खाते में होते हुए भी विड्राॅल वापिस लौटा दिया । इस प्रकार विपक्षी बैंक ने सेवादोष कारित किया है । ऐसी स्थिति में परिवादी ने 7228/- रूपए वापिस दिलवाए जाने, ऋण खाते का स्टेटमेंट एवं एन.ओ.सी. दिलवाए जाने, इन्श्योरेंस पाॅलिसी बाॅण्ड परिवादी को दिलवाए जाने, मानिसक, शारीरिक, आर्थिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा की क्षतिपूर्ति के लिए 4,00,000/- रूपए, परिवाद व्यय 11000/- रूपए दिलवाए जाने का निवेदन किया है ।
विपक्षी बैंक की ओर से परिवादी का खाता उनके यहां होना, परिवादी द्वारा लोन लिया जाना स्वीकार किया गया है । विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने ऋण की अदायगी मासिक किश्त 2685/- रूपए प्रतिमाह के हिसाब से 60 किश्तों में करनी थी लेकिन परिवादी ने मनमाने ढंग से 4000/- रूपए किश्त के जमा करवाए । विपक्षी का कथन है कि 24.12.2009 तक परिवादी के ऋण खाते में 6125/- रूपए एवं दिसम्बर 2009 का ब्याज बकाया था इसलिए परिवादी का यह कहना गलत है कि उसने ऋण राशि का सम्पूर्ण भुगतान कर दिया था और ऋण की बकाया राशि एवं ब्याज अदा नहीं करने के कारण 7228/- रूपए विधिक रूप से काटे गए थे । जहां तक 28000/- रूपए विड्राॅ नहीं करने देने का प्रश्न है उसके लिए विपक्षी का कथन है कि यह कहानी मिथ्या गढ़ी है बल्कि सही तथ्य यह है कि परिवादी की ओर राशि ऋण बाबत बकाया थी इसलिए परिवादी के खाते से राशि काट ऋण खाते में जमा कर परिवादी को सूचना दे दी गई थी उसके साथ कोई दुव्र्यवहार नहीं किया गया । विपक्षी का कथन है कि परिवादी का इंश्योरेंस पाॅलिसी आवेदन एस.बी.आई.लाईफ इंश्योरेंस द्वारा अस्वीकार कर पाॅलिसी जारी नहीं की गई थी और प्रीमियम राशि परिवादी के बचत खाते में वापिस लौटा दी गई थी । विपक्षी का कथन है कि उनके द्वारा कोई सेवादोष कारित नहीं किया गया है ना ही परिवादी को किसी प्रकार हैरानी-परेशानी हुई है अत: परिवाद पत्र खारिज किया जावे ।
मंच के समक्ष दोनों ही पक्षों के अधिवक्तागण ने जबानी बहस नहीं की है परन्तु दोनों की ओर से लिखित तर्क प्रस्तुत हुए हैं । अत: मंच द्वारा पक्षकारान द्वारा प्रस्तुत लिखित तर्को एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
परिवादी का अभिवचन है कि विपक्षी बैंक से उसने ऋण खाता सॅंख्या 61013761365 में 1,20,000/- रूपए का ऋण प्राप्त किया था जिसके पेटे उसने 4000/- रूपए प्रतिमाह की दर से समस्त ऋण राशि वापिस चुका दी और अंतिम किश्त दिनांक 24.12.2009 को जमा करवाई । इस तथ्य को विपक्षी बैंक द्वारा अस्वीकार नहीं किया गया है लेकिन बैंक का कहना है कि परिवादी ने अपनी स्वेच्छा से 4000/- रूपए प्रतिमाह ऋण के रूप में जमा करवाए जबकि ऋण संविदा के अनुसार मासिक किश्त रूपए 2685/- रूपए की थी जिसकी अवधि 60 माह थी । विपक्षी बैंक का यह कथन परिवादी के विरूद्ध उन्हें कोई सहायता नहीं देता है क्योंकि किसी भी ऋणी को यह अधिकार प्राप्त है कि वह नियमित राशि से अधिक किश्त जमा करवा सकता है और यदि परिवादी ने अधिक राशि जमा करवाई तो उससे ऋण देने वाले बैंक को कोई सहायता प्राप्त नहीं होती है ।
इसके अलावा परिवादी ने स्पष्ट कहा है कि दिनंाक 10.03.2011 को उसके बैंक खाते सॅंख्या 51051700479 में से विपक्षी बैंक द्वारा अवैध रूप से 7228/- रूपए की कटौती कर ली गई जिसका उसे कोई अधिकार नहीं था । इस तथ्य को विपक्षी बैंक ने इस हद तक स्वीकार किया है कि उक्त राशि काटी गई थी क्योंकि किश्तें समय पर जमा नहीं करवाई थी और ब्याज राशि आदि मिलाकर यह राशि काटी गई थी परन्तु इस तथ्य को विपक्षी बैंक साबित करने में असफल रहा है । अत: यही निष्कर्ष निकलता है कि इस राशि की कटौती अवैध रूप से की गई है जो विपक्षी बैंक का सेवादोष दर्शाता है ।
इसके अलावा परिवादी का कथन है कि दिनांक 14.05.2011 को परिवादी ने 28000/- रूपए जरिए विड्राॅल फार्म अपने पेंशन खाते से निकलवाने चाहे थे लेकिन विपक्षी बैंक ने बिना किसी उचित कारण के और पर्याप्त राशि खाते में होने के बावजूद उसका विड्राॅल फार्म उसे वापिस कर दिया और राशि का भुगतान नहीं किया जिससे उसे अनावश्यक रूप से परेशानी उठानी पड़ी । विपक्षी ने इस तथ्य को अस्वीकार किया है परन्तु परिवादी ने विड्राॅल फार्म की फोटो काॅपी पेश की है जिसमें बैंक की मोहर लगी है जिससे स्पष्ट है कि विपक्षी ने परिवादी के विड्राॅल फार्म को वापिस लौटा दिया और राशि का भुगतान नहीं किया । यह भी विपक्षी बैंक का सेवादोष है ।
विपक्षी बैंक का यह कथन है कि दिनांक 24.12.2009 को परिवादी द्वारा 4000/- रूपए की अंतिम किश्त जमा करवाई थी उस दिन उसके ऋण खाते में 6125/- रूपए व दिसम्बर 2009 का ब्याज भी बकाया था परन्तु उक्त कथन सत्य प्रतीत नहीं होता है क्योंकि स्टेटमेंट आॅफ एकाउंट के अनुसार दिनंाक 24.12.2009 को 176/- रूपए ब्याज के रूप मेें बकाया होना दर्शाया गया है जबकि परिवादी ने उसी दिन 4000/- रूपए जमा करवाए थे तथा खाते में लगातार ब्याज जोड़ते हुए राशि बकाया निकाली जा रही थी । अत: इस तरह से विपक्षी बैंक ने अनावश्यक रूप से परिवादी को अदेयता प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया है जबकि वह साबित करने में असफल रहा है कि परिवादी के जिम्मे कोई राशि बकाया थी ।
इसके अलावा परिवादी ने अपने शपथ-पत्र से 28000/- रूपए जरिए विड्राॅल फार्म निकलवाने के लिए कहा है । परिवादी के इस सशपथ कथन को विपक्षी बैंक मैनेजर ने अपने शपथ-पत्र से खण्डित नहीं किया है । अत: इस समस्त विवेचन से यही निष्कर्ष निकलता है कि विपक्षी बैंक ने सेवादोष कारित करते हुए अनावश्यक रूप से 7228/- रूपए की कटौती परिवादी के खाते से की और परिवादी के खाते में राशि होते हुए भी उसे 28000/- रूपए निकलवाने में बाधा उत्पन्न की । विपक्षी के इस कृत्य से स्वभाविक है कि परिवादी को अनावश्यक रूप से मानसिक संताप व आर्थिक हानि झेलनी पड़ी जिसके लिए विपक्षी बैंक परिवादी को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है ।
परिवादी विपक्षी सॅंख्या 2 के विरूद्ध कोई अवैध कृत्य साबित करने में सफल नहीं हुआ है इसलिए उसके विरूद्ध यह परिवाद खारिज किए जाने योग्य है ।
अत: इस समस्त विवेचन के आधार पर परिवादी का यह परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार कर आदेश दिया जाता है कि विपक्षी सॅंख्या 1 यदि परिवादी के खाते से निकाली गई 7228/- रूपए की राशि वापिस उसके खाते में जमा नहीं करवाई गई है तो आज से एक माह की अवधि मंे परिवादी के खाते में 7228/- रूपए अक्षरे सात हजार दो सौ अठाईस रूपए की राशि वापिस जमा करवाएगा तथा इस राशि पर दिनांक 10.03.2011 से अदायगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करेगा। इसके अलावा परिवादी को कारित मानसिक संताप व आर्थिक हानि की क्षतिपूर्ति के लिए उसे 5,000/- रूपए अक्षरे पांच हजार रूपए एवं परिवाद व्यय 1500/- रूपए अक्षरे एक हजार पांच सौ रूपए अदा करेेेगा। आदेश की पालना आज से एक माह की अवधि में कर दी जावे अन्यथा परिवादी उक्त क्षतिपूर्ति एवं परिवाद व्यय की राशि पर भी आदेश दिनांक से अदायगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज पाने का अधिकारी होगा । परिवादी का अन्य अनुतोष अस्वीकार किया जाता है।
निर्णय आज दिनांक 06.05.2015 को लिखाकर सुनाया गया।
( ओ.पी.राजौरिया ) (श्रीमती सीमा शर्मा) (राकेश कुमार माथुर)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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