DEVENDRA KUMAR JAIN filed a consumer case on 09 Jun 2014 against SBBJ in the Jaipur-I Consumer Court. The case no is 457/2012 and the judgment uploaded on 27 May 2015.
ं जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर प्रथम, जयपुर
समक्ष: श्री राकेश कुमार माथुर - अध्यक्ष
श्री ओमप्रकाश राजौरिया - सदस्य
परिवाद सॅंख्या: 457/2012
देवेन्द्र कुमार जैन एचयूएफ, निवासी 18, मनवाजी का बाग, एम डी रोड़, जयपुर, राजस्थान Û
परिवादी
ं बनाम
स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर जरिए शाखा प्रबंधक महोदय, एस.एम.एस. हाईवे, (चैडा रास्ता), जयपुर Û
विपक्षी
अधिवक्तागण :-
श्री दिनेश कुमार जैन - परिवादी
श्री अजय गुप्ता - विपक्षी
परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक: 11.04.12
आदेश दिनांक: 29.04.2015
परिवाद में अंकित तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का एक पीपीएफ का खाता सॅंख्या 51091757306 विपक्षी बैंक में दिनांक 02.12.1993 को खोला गया था जिसमें नियमानुसार परिवादी अपनी बचत राशि जमा कराता आ रहा था । यह खाता 15 वर्ष के लिए खोला गया था जो दिनांक 02.12.2008 को पूर्ण हो गए थे और पीपीएफ खाता फाईनेन्शियल वर्ष के हिसाब से 31.03.2009 को मैच्योर हो गया था परन्तु यह खाता दिनांक 01.02.2010 तक चलता रहा । परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा मैच्योर राशि प्राप्त करने के लिए आवेदन करने पर विपक्षी ने 8 प्रतिशत ब्याज के आधार पर 1,10,0974/- रूपए का भुगतान किया । परिवादी का कथन है कि हिसाब लगाने पर पता चला कि 73398/- रूपए का कम भुगतान किया गया है विपक्षी से इस बारे में पूछने पर उसने बताया कि 31.03.2009 तक ही ब्याज दिया गया है और दस माह का ब्याज नहीं दिया गया है । परिवादी का कथन है कि सरकारी आदेश के अनुसार 31.03.2011 के बाद ब्याज बंद किया गया था और परिवादी का प्रकरण 2009 का है इसलिए नियम उस पर लागू नहीं होता है और वह 01.02.2010 तक ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है । परिवादी ने 10 माह के ब्याज की राशि 73398/- रूपए, मानसिक व शारीरिक परेशानी की क्षतिपूर्ति के लिए 1,00,000/- रूपए, चक्कर लगाने में हुए खर्च 5602/- रूपए, परिवाद खर्च 10,000/- रूपए, अधिवक्ता फीस 11000/-रूपए कुल दो लाख रूपए दिलवाए जाने का निवेदन किया है ।
विपक्षी की ओर से इस आशय का जवाब प्रस्तुत किया गया है कि परिवादी का खाता 31.03.2009 को परिपक्व हो गया था परन्तु इसके बावजूद भी विपक्षी बैंक में दिनांक 01.02.2010 तक उक्त खाते को बंद नहीं करवाया गया जिसके कारण परिवादी को उस समय लागू नियमों के अनुसार राशि 11,00,974/- रूपए का भुगतान किया गया जो पूर्ण रूप से सही था । परिवादी को दिनांक 01.04.2009 से 01.02.2010 तक कुल 10 माह की अवधि का ब्याज नियमानुसार भुगतान करना विपक्षी बैंक के लिए किसी प्रकार सम्भव नहीं था जिसकी जानकारी परिवादी को दिनांक 01.02.2010 को दे दी गई थी । विपक्षी का कथन है कि भारत सरकार द्वारा एच.यू.एफ. के पी.पी.एफ. खाता धारकों के सम्बन्ध में कुछ समय पश्चात नियमों में संशोधन किया गया जिसके अनुसार परिवादी को दिनांक 01.04.2009 से 01.01.2010 तक की अवधि का ब्याज प्राप्त करने का कानूनी हक प्राप्त हो गया और परिवादी के अधिवक्ता के कानूनी सूचना पत्र दिनंाक 24.02.2012 प्राप्त होने पर विपक्षी बैंक ने उपरोक्त कानूनी सूचना पत्र का जवाब दिनांक 17.03.2012 को प्रेषित कर स्पष्ट कर दिया था कि दिनांक 01.04.2009 से 01.02.2010 तक के ब्याज के भुगतान की स्वीकृति विपक्षी बैंक के प्रधान कार्यालय से प्राप्त होते ही परिवादी को ब्याज का भुगतान कर दिया जाएगा जो किसी भी प्रकार से अनुचित नहीं है । विपक्षी का कथन है कि बैंक को प्रेषित कानूनी सूचना पत्र दिनांक 24.02.2012 में मांगी गई कुल राशि 73,398/- रूपए का भुगतान जरिए बैंकर्स चैक सॅंख्या 282448 दिनांक 21.06.2012 द्वारा परिवादी को किया जा चुका है । विपक्षी का कथन है कि बैंक द्वारा परिवादी को सेवा प्रदान करने में कोई लापरवाही कारित नहीं की गई जिससे कि उसे मानसिक वेदना व आर्थिक क्षति हो । इस प्रकार केे तथ्य व अन्य तथ्य अंकित करते हुए विपक्षी ने परिवाद खारिज किए जाने का निवेदन किया है ।
मंच द्वारा दोनों पक्षांे की बहस सुनी गई एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया ।
इस प्रकरण में विवादित बिन्दु यह है कि परिवादी के पी.पी.एफ. खाते के परिपक्व होने के पश्चात , जो परिपक्व दिनांक 31.03.2009 को हो गया था, दिनांक 01.02.2010 तक चलता रहा परन्तु विपक्षी ने परिवादी को केवल 31.03.2009 तक का ही ब्याज दिया उसके आगे की राशि नहीं दी गई । क्या उक्त अवधि की राशि परिवादी पाने का हकदार था अथवा नहीं ?
विपक्षी ने अपने जवाब में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि बाद में नियमों में संशोधन हो जाने के कारण उसकी बकाया राशि 73398/- रूपए जो कि दिनांक 01.04.2009 से 01.02.2010 तक के ब्याज की राशि थी अदा कर दी गई है । जिस राशि का भुगतान दिनांक 21.06.2012 को किया गया है । इस तथ्य को परिवादी ने स्वीकार किया है परन्तु परिवादी का कथन है कि दिनांक 01.02.2010 को राशि अदा करने के स्थान पर विपक्षी ने दिनांक 21.06.2012 को बकाया राशि अदा की है उस राशि पर कोई ब्याज अदा नहीं किया गया है । इन तथ्यों से स्पष्ट है कि विपक्षी ने सेवादोष कारित करते हुए परिवादी को देय ब्याज राशि उसे अदा नहीं की जिसके लिए वह मुआवजा प्राप्त करने का अधिकारी है ।
अत: इस समस्त विवेचन के आधार पर परिवादी का यह परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार कर आदेश दिया जाता है कि विपक्षी आज से एक माह की अवधि मंे परिवादी को 73398/- रूपए तिहेत्तर हजार तीन सौ अठ्ठयान्वे रूपए पर 02.02.2010 से 21.06.2012 तक का ब्याज निमयानुसार अदा करेगा । उक्त ब्याज राशि परिवादी को एक माह की अवधि में अदा नहीं करने पर परिवादी उक्त राशि पर अदायगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज पाने का अधिकारी होगा । परिवादी का अन्य अनुतोष अस्वीकार किया जाता है ।
निर्णय आज दिनांक 29.04.2015 को लिखाकर सुनाया गया।
( ओ.पी.राजौरिया ) (राकेश कुमार माथुर)
सदस्य अध्यक्ष
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