SHREE RAM TRADERS filed a consumer case on 23 Jan 2015 against SBBJ SUJANGARH in the Churu Consumer Court. The case no is 278/2013 and the judgment uploaded on 30 Mar 2015.
Rajasthan
Churu
278/2013
SHREE RAM TRADERS - Complainant(s)
Versus
SBBJ SUJANGARH - Opp.Party(s)
Dhanna Ram saini
23 Jan 2015
ORDER
Heading1
Heading2
Complaint Case No. 278/2013
1. SHREE RAM TRADERS
SHREE RAM TRADERS RAILWAY BUS STAND SUJANGARH CHURU
BEFORE:
HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
Subash Chandra MEMBER
Nasim Bano MEMBER
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू अध्यक्ष- षिव शंकर सदस्य- सुभाष चन्द्र सदस्या- नसीम बानो
परिवाद संख्या- 278/13 श्री राज टैड्र्रस, रेल्वे बस स्टेण्ड सुजानगढ़ जरिये प्रो. राजकुमार भरतीया पुत्र श्री षिव भगवान भरतीया जाति अग्रवाल उम्र 40 वर्ष निवासी कृषि उपज मण्डी यार्ड, सुजानगढ़ जिला चूरू (राजस्थान) ......प्रार्थी 1. स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर सुजानगढ़ जरिए शाखा प्रबन्धक ......अप्रार्थी दिनांक- 26.03.2015 निर्णय द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर 1. श्री धन्नाराम सैनी एडवोकेट - प्रार्थी की ओर से 2. श्री राजेन्द्र राजपुरोहित एडवोकेट - अप्रार्थी की ओर से
1. प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी ने श्री राज टैड्र्रस के नाम से अप्रार्थी के यहां एक खाता खुलवा रखा है। जिसके खाता संख्या 5109500668 है। प्रार्थी लगातार अपने खातें में लेन-देन करता चला आ रहा है। प्रार्थी ने उक्त खाते पर चैक बुक भी जारी करवा रखी हैं। प्रार्थी द्वारा उक्त खातेे में से दिनांक 15.04.2006 से 31.03.2008 तक बी.टी.सी. टेक्स मिनीमम बेलेन्स, आई.सी. चार्ज एवं अन्य नाम से पैसे काटे हैं जो प्रार्थी को सूचना दिये बगैर काटे गये हैं। प्रार्थी ने उक्त फर्म स्वय रोजगार हेतु कर रखी हैं। दिनांक 15.04.2006 से 31.03.2006 तक जो प्रार्थी के खाते में गलत रूप से राशि डी.आर. की गई उस राशि का विवरण इस प्रकार है। क्र.स. दिनांक विवरण राषि विशेष विवरण 1- 15-04-2006 BTC TAX 145 2- 27-04-2006 BTC TAX 100
3- 11-05-2006 BTC TAX 90
4- 20-05-2006 BTC TAX 130
5- 30-05-2006 Ic CHARGES 100
6- 29-07-2006 DEBIT FEES 250
7- 03-08-2006 DEBIT FEES 100
8- 05-08-2006 BTC TAX 100
9- 14-08-2006 DEBIT FEES 550
10- 17-08-2006 MICR 300
11- 30-09-2006 MINIMUM 750
12- 31-03-2007 MINIMUM 750
13- 12-06-2007 BTC TAX 150
14- 14-06-2007 BTC TAX 100
15- 30-06-2007 MINIMUM 750
16- 09-07-2007 IB COMM. 325
17- 23-07-2007 COMM. 70
18- 31-07-2007 BTC TAX 150
19- 30-09-2007 MINIMUM 750
20- 31-12-2007 MINIMUM 750
21- 31-03-2008 MINIMUM 369
उक्त तालिका से स्पष्ट है कि मिनिमम बेलेन्स के नाम से प्रार्थी के खाते में से 4120/- रूपयें, आई.सी. चार्ज के 1576/- रूपयें बी.टी.सी. टेक्स के 1065 / - रूपयें कुल 6750/ - रूपयें गलत रूप से डेबिट करके दिनांक 31.03.2008 को बेलेन्स काट दिया। 2. प्रार्थी के खातें में से बी.टी.सी. टेक्स आई.सी. चार्ज के गलत रूप से प्रार्थी के खाते में डी.आर. करके से पूर्व कोई नोटिस प्रार्थी को नही दिया। अप्रार्थी द्वारा उक्त राशि काटने का प्रार्थी को पता नही चलने दिया। अपने आप ही प्रार्थी के खाते से राशि काटते रहें। प्रार्थी ने दिनांक 11.02.2009 को एक प्रार्थना पत्र उक्त राशि गलत रूप से काटने के सम्बन्ध में अप्रार्थी को व्यक्तिगत राशि गलत रूप से काटने के सम्बन्ध में अप्रार्थी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर दिया था तथा दिनांक 15.04.2010 को एक प्रार्थना पत्र क्षैत्रीय प्रबन्धक हनुमानगढ़ को दिया था जिस पर अप्रार्थी द्वारा दिनांक 30.04.2010 को उक्त राशि वापस केडिट करने से इन्कार कर दिया तथा प्रार्थी के खाते में जो राशि गलत रूप से डी.आर. की गई थी वह वापस केडिट नही की गई । प्रार्थी ने उक्त समस्या के सम्बन्ध में एक परिवाद जिला मंच उपभोक्ता सरंक्षण चूरू के समक्ष पेश किया था जो दिनांक 09.04.2013 को पुन: परिवाद पेश करने की अनुमति के साथ विथड्रा किया गया था अविलम्ब परिवाद पुनः पेश किया जा रहा है । अप्रार्थी का दायित्व था कि वो प्रार्थी के खाते की किसी प्रकार की राशि डी.आर. करने से पूर्व प्रार्थी को सुचित करतेे तथा प्रार्थी द्वारा प्रार्थना पत्र देने पर गलत रूप से काटी गई राशि वापस प्रार्थी के खाते में केडिट करते । अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को सूचना दिये बिना तथा सुनवाई का अवसर दिये बिना उसके खाते में सें राशि डेबिट करना अप्रार्थी द्वारा दी जा रही सेवाओं में गम्भीर त्रुटी है तथा अस्वच्छ व्यापारिक गतिविध हैं। प्रार्थी द्वारा बार- बार निवेदन करने पर भी उक्त राशि प्रार्थी के खाते में वापस जमा नही करना प्राकृतिक न्याय के सिद्वान्तों विरूद्व है। इसलिए प्रार्थी ने उसके खाते में से डेबिट की गयी राशि 6,750 रूपये ब्याज सहित, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय दिलाने की मांग की है। 3. अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश कर बताया कि प्रार्थी ने मद में खाता संख्या 5109500668 अंकित किया है जो कि गलत है सही खाता संख्या 51095000668 है। बी.सी.टी.टी. ;ठंदापदह ब्ंेी ज्तंदेंबजपवद ज्ंगद्ध मिनिमम बैलेंस चार्ज, आर्ट.सी. चार्ज आदि नियमानुसार चार्ज किये गये है। प्रार्थी को इन चार्जों, टैक्स की जानकारी पूर्व से ही भली भांति रही है। प्रार्थी ने व्यवसायिक लाभ कमाने के उददेश्य के लिए उक्त फर्म कर रखी है तथा प्रार्थी ने चालू खाता व्यवसायिक उददेश्य के लिए खुलवा रखा है इसलिए भी प्रार्थी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत नहीं आता है। प्रार्थी का उक्त खाता एक व्यावसायिक चालू खाता ;ब्नततमदबज ।बबवनदजद्ध है। अतः परिवाद चलने योग्य नहीं है, खारिज किये जाने योग्य है, खारिज किया जावे। प्रार्थी ने परिवाद की मद संख्या 2 में क्र संख्या 5 में आई.सी. चार्ज 100 रूपये अंकित किये है जबकि अप्रार्थी ने दिनांक 30.05.2006 को 100 रूपये कोई चार्ज प्रार्थी से चार्ज नहीं किय ाहै बल्कि सही राशि 75 रूपये चार्ज की गई हैै। उक्त फर्म में खाते में कोई भी राशि गलत रूप से चार्ज नहीं की गई है। परिवाद पत्र के मद संख्या 2 के क्रम सं. 1,2,3,4,8,13,14,18 में लगाये गये चार्जेज अप्रार्थी ने नियमानुसार व कानून के मुताबिक ही लगाये है। केन्द्र सरकार द्वारा बचत खातों को छोड़कर शेष खातों के नगद आहरण पर 0.1 प्रतिशत टैक्स बी.सी.टी.टी. ;ठंदापदह ब्ंेी ज्तंदेंबजपवद ज्ंगद्ध निर्धारित किया गया। जो कि नियम व कानून के मुताबिक चार्ज कर केन्द्र सरकार को बी.सी.टी.टी. ;ठंदापदह ब्ंेी ज्तंदेंबजपवद ज्ंगद्ध अप्रार्थी बैंक द्वारा केन्द्र सरकार को भुगतान किया गया है। प्रार्थी को इसकी जानकारी भली-भांति रही है। इस टैक्स की चर्चा जन साधारण में समाचार-पत्र इत्यादि माध्यमों से होती रही है। उक्त टैक्स लागू होते ही अप्रार्थी बैंक के हाॅल में सहज पढ़े जाने वाले स्थान पर नोटिस बोर्ड पर भी हिन्दी व अंग्रेजी में इस बारे में सूचना प्रदर्शित की गई। प्रार्थी को इन चार्जेज की, इनके लागू होने की दर सहित जानकारी पूर्व से ही भली-भांति रही है। प्रार्थी फर्म कृषि उपज मण्डी, सुजानगढ़ के यहां पंजीकृत फर्म है जो कि प्रार्थी फर्म अपने खाते भी मिलाती है एवं बैलेंस शीट इत्यादि तैयार करती है जिसके लिए प्रार्थी फर्म बैंक स्टेटमेन्ट प्राप्त कर फर्म की लेखा पुस्तकों से बैंक के चालू खातों का रिकन्सीलेश (मिलान) किया जाता है। परिवाद की मद संख्या 2 के क्रम सं. 11,12, 15, 19, 20, 21 में लिए गये चार्जेज मिनिमम बैलंेस से कम शेष उक्त फर्म द्वारा अपने खाते में रखे जाने के कारण नियमानुसार लिये गए है। मद संख्या 2 के क्रम सं. 10 में वर्णित चार्ज चैक बुक के लिए चार्ज किया गया है जो कि नियमानुसार लिया गया है। इससे पूर्व भी उक्त फर्म से चालू खाते की चैक बुक पर नियमानुसार चार्जेज लिया जाता रहा है तथा उक्त फर्म चैक बुक्स अप्रार्थी से जारी करवाती रही है। 4. आगे जवाब दिया कि परिवाद पत्र की मद संख्या 2 के क्रम में 5 में वर्णित राशि 100 रूपये प्रार्थी ने गलत अंकित किये है अप्रार्थी ने इस मंद में केवल 75 रूपये ही चार्ज किये है। प्रार्थी फर्म ने चैक नम्बर 814299 समाशोधन हेतु जमा करवाया जो कि चैक अनादरित हो गया। इस कारण क्लीरिंग चैक रिर्टन चार्ज, चार्ज किया गया जो कि सही चार्ज किया गया है। उक्त परिवाद फर्म एक व्यवसायिक फर्म है जिसका चालू खाता सन् 2001 से भ पहले से अप्रार्थी के यहां है, प्रार्थी फर्म को भी यह अच्दी तरह पता है कि चैक रिर्टन होने पर बैंक चार्ज लेता हैं अप्रार्थी बैंक ने सभी चार्जेज प्रार्थी फर्म से नियमानुसार व सही तौर पर लिये गये है व लिये जाते है। सारा सिस्टम अप्रार्थी बैंक का कम्पयूटराईज्ड है। लेनदेन की प्रविष्टि कम्प्यूटर में दर्ज करते ही ओटोमेटिक रूप से कम्प्यूटर द्वारा चार्जेज चार्ज कर लिया जाता है, इसमें कमी, वृद्धि नहीं की जा सकती और न ही ऐसा किया जा सकता है कि चार्जे चार्ज ही न किये जावे। दिनांक 29.07.2006, 03.08.2006, 14.08.2006 को प्रार्थी फर्म को अन्य किसी पार्टी ने एस.बी.बी.जे. कृषि उपज मण्डी, नागौर शाखा से 1,00,000 40,000 2,20,000 रूपये ट्रान्सफर किये, इसी अन्य पार्टी ने नोन होम ब्रांच राशि ट्रान्सफर के चार्जेज भी नागौर में बैंक को क्रमशः 250, 100, 550 रूपये अदा किये। इस प्रकार प्रार्थी फर्म श्री राज ट्रेडर्स से कोई चार्ज परिवाद पत्र की मद संख्या 2 की क्रम सं. 6, 7, 9 के अन्तर्गत अप्रार्थी ने चार्ज नहीं किये है बल्कि अन्य किसी पार्टी ने नियमानुसार नोन होम ब्रांच ट्रान्सफर के लिये चार्ज अदा किये। परिवाद पत्र की मद संख्या 2 की क्रम संख्या 16 व 17 में वर्णित चार्जेज किसी अन्य पार्टी द्वारा मण्डोर रोड़, जोधपुर एस.बी.बी.जे. शाखा के जरिये फर्म श्री राज ट्रेडर्स के लिये चैक क्रमांक 976310 व 976290 एस.बी.बी.जे. बैंक के अलावा अन्य किसी बैंक का समाशोधन हेतु जमा करवाया गया, जिसके क्लीयरिंग चार्जेज नियमानुसार चार्ज किये गये है। अप्रार्थी बैंक की सेवा में कोई त्रुटि नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने की मांग की। 5. प्रार्थी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, खण्डन शपथ-पत्र, मंच के पूर्व आदेश की प्रति दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से पी.एस. पत्थरी का शपथ-पत्र, सर्कुलर दिनांक 24.05.2005, 01.04.2006 की प्रतियां दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। 6. पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है। 7. प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्येां को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने श्री राज ट्रेडर्स के नाम से अप्रार्थी के यहां एक खाता संख्या 5109500668 खुलवा रखा है जिस पर प्रार्थी लगातार लेन देन करता रहा है। अप्रार्थी ने प्रार्थी के उक्त खाते में से दिनांक 15.04.2006 से दिनांक 31.03.2008 तक बी.टी.सी. टेक्स मिनिमम बैलेंस, आई.सी. चार्ज व अन्य नाम से विधि विरूद्ध कटौतियां कर प्रार्थी के खाते में डेबिट कर दी। अप्रार्थी ने उक्त राशियां प्रार्थी के खाते में डेबिट करने से पूर्व प्रार्थी को कोई नोटिस नहीं दिया। प्रार्थी को उक्त तथ्य का ज्ञान होने पर प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां दिनांक 11.02.2009, 15.04.2010 को उक्त कटौतियां पुनः प्रार्थी के खाते में क्रेडिट करने हेतु दिये। परन्तु अप्रार्थी ने प्रार्थी के खाते से की गयी अवैध कटौतियांे को पुनः जमा करने से इन्कार कर दिया। अप्रार्थी का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष व अस्वच्छ व्यापारिक गतिविधि है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए यह तर्क दिया कि प्रार्थी के खाते से बी.सी.टी.टी. टेक्स, मिनिमम चार्ज, आई.सी. चार्ज आदि बैंक नियमानुसार डेबिट किये गये है। प्रार्थी को उपरोक्त सभी टेक्सों की जानकारी भली भांति थी क्येांकि प्रार्थी का खाता चालू खाता है जो कि एक व्यवसायिक उदेश्य के लिये खुलवा रखा है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी का परिवाद स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है क्योंकि प्रार्थी की फर्म एक पंजिकृत फर्म है जो प्रतिवर्ष अपने खातों का मिलान करती है, बैलेन्स शीट तैयार करती है। इसलिए प्रार्थी को उसके खाते से की गयी प्रत्येक वर्ष की कटौति के सम्बंध में भली भांति ज्ञान था। प्रार्थी ने वर्तमान परिवाद से पूर्व एक परिवाद अन्तिम कटौति दिनांक 31.03.2008 के ठीक दो वर्ष बाद दिनांक 09.10.2010 को किया था जो कि स्पष्ट रूप से मियाद बाहर था। प्रार्थी ने पूर्व वर्णित परिवाद विड्रा के आधार पर खारिज करवा लिया और यह परिवाद पुनः मियाद के बिन्दु को छिपाने के आशय से प्रस्तुत किया है। प्रार्थी ने अपने परिवाद की देरी हेतु कोई स्पष्टीकरण भी युक्तियुक्त व तर्क संगत नहीं दिया। इसलिए अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। 8. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी ने बी.सी.टी. टेक्स, मिनिमम बैलेन्स व आई.सी. चार्ज को चुनौती दी है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने बी.सी.टी. टेक्स के सम्बंध मंे यह तर्क दिया है कि उक्त टेक्स अप्रार्थी ने भारत सरकार के वित्त विभाग के सर्कुलर दिनांक 24.05.2005 के अनुसार कटौति की है। बहस के दौरान अप्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान उक्त सर्कुलर की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया। उक्त सर्कुलर में चरण संख्या 1 में बी.सी.टी. टेक्स चार्ज हेतु यह अंकित किया हुआ है कि ज्ीम ठंदापदह ब्ंेी ज्तंदेंबजपवद तममित जव । ंदक ठ ंइवअम ेींसस इम बींतहमक पद तमेचमबज व िमअमतल जंगंइसम इंदापदह जतंदेंबजपवद मदवितबमक पदजव वद वत ंजिमत जीम प्ेज क्ंल व िश्रनदमए 2005 ंज जीम तंजम व ि0ण्1: व िजीम अंसनम व िमअमतल ेनबी जंगंइसम इंदापदह जतंदेंबजपवदण् अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त सर्कुलर के आधार पर तर्क दिया कि उक्त सर्कुलर के अनुसार अप्रार्थी ने प्रार्थी के खाते से कटौति कर दी। चूंकि प्रार्थी का खाता व्यवसायिक खाता था इसलिए प्रार्थी को उक्त टैक्स के सर्कुलर सम्बंधित तथ्य का भली-भांति ज्ञान था। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त सर्कुलर के आधार पर तर्क दिया कि अप्रार्थी द्वारा बी.सी.टी. टेक्स उक्तानुसार काटा गया है। हम अप्रार्थी के उक्त तर्कों से सहमत है क्येांकि भारत सरकार के द्वारा जारी सभी प्रकार के सर्कुलर को मानने हेतु सभी उपभोक्ता बाध्य है यदि ऐसा सर्कुलर बैंक उपभोक्ताओं के विरूद्ध है तो उसको चूनौति केवल माननीय उच्च न्यायालय में ही दी जा सकती है। इसलिए प्रार्थी का यह तर्क मान्य नहीं है कि अप्रार्थी बैंक ने बी.सी.टी. टेक्स विधि विरूद्ध प्रार्थी के खाते में डेबिट किये हो। 9. अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपने जवाब व बहस में परिवाद की चरण संख्या 2 के क्रम संख्या 5, 6, 7, 9 , 16 व 17 की प्रविष्टियों के सम्बंध में यह तर्क दिया कि उक्त मदों में डेबिट की गयी राशियां प्रार्थी के खाते में अन्य पार्टीयों द्वारा जमा करवायी गयी राशियां या चैक अनादरण के रूप में वसुली गयी राशियां है जो विधि सम्मत है। हम अप्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्कों से सहमत है क्येांकि विधि अनुसार किसी भी व्यक्ति के खाते में चैक अनादरण के समय जो राशि खर्च होती है वह उसके खाते से ही कटौति होगी। जबकि चरण संख्या 6, 7 व 9 में वर्णित राशियां दिनांक 29.07.2006, 03.08.2006, 14.08.2006 की राशियां तो प्रार्थी के खाते से डेबिट ही नहीं की गयी। उक्त राशि किसी अन्य पार्टी के खाते से डेबिट की गयी है। अप्रार्थी द्वारा दिये गये बैंक स्टेटमेन्ट से स्पष्ट है कि उक्त राशियां विधि अनुसार व विधि सम्मत है। जिसके बारे में प्रार्थी को भली-भांति ज्ञान है क्योंकि प्रार्थी की फर्म पंजिकृत फर्म है जो व्यवसाय करती है। 10. प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में तर्क दिया कि अप्रार्थी ने प्रार्थी के खाते में मिनिमम बैलेन्स के रूप में करीब 4,120 रूपये की कटौति कर ली। उक्त कटौति करने से पूर्व अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी को नोटिस दिया जाना आज्ञापक था। परन्तु अप्रार्थी ने प्रार्थी को ऐसा कोई नोटिस नहीं दिया। अप्रार्थी का उक्त कृत्य सेवादोष है। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के समर्थन में इस मंच का ध्यान न्यायिक दृष्टान्त 2 सी.पी.जे. 2007 पेज 423, 2 सी.पी.जे. 2006 पेज 122, 2 सी.पी.जे. 2000 पेज 11 एस.सी. व 23 सी.पी.जे. 2006 पेज 01 एस.सी. की ओर दिलाया जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। 2 सी.पी.जे. 2007 पेज 423 में स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया बनाम एम.आर. सागरिक एण्ड अदर्स में माननीय राज्य आयोग हिमाचल ने यह मत दिया कि जनरल नोटिस, नोटिस बोर्ड पर चस्पा करना पर्याप्त नहीं है। प्रत्येक उपभोक्ता को व्यक्तिगत सूचना करना आवश्यक है। 2 सी.पी.जे. 2006 पेज 122 में सेन्ट्रल बैंक आॅफ इंण्डिया बनाम राजकुमार जैन माननीय राज्य आयोग नई दिल्ली ने यह अभिनिर्धारित किया कि बैंक के नियम व विनियम चैन्ज होेने पर बैंक को प्रत्येक उपभोक्ता के पास व्यक्ति सूचना भेजनी आवश्यक है। प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत अन्य न्यायिक दृष्टान्त वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से भिन्न होने के कारण चस्पा नहीं होते। प्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अप्रार्थी ने कटौति से पूर्व प्रार्थी को कोई सूचना नहीं दी। इसलिए प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किया जावे। 11. अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि प्रार्थी का परिवाद स्पष्ट रूप से मियाद बाहर है। प्रार्थी ने मिनिमम बैलेन्स के सम्बंध में जो आपत्ति की है वह वर्ष 2006, 2007 व 2008 का है। प्रार्थी के स्वंय के परिवाद की चरण संख्या 3 के प्रार्थना-पत्र को स्वीकार भी करे तो उक्तानुसार दिनांक 11.02.2006 से पूर्व की सभी कटौतियां मियाद बाहर है क्योंकि प्रार्थी को कटौतियों के सम्बंध में ज्ञान होने पर दो वर्ष के अन्दर-अन्दर विधि अनुसार परिवाद करना चाहिए था। जबकि प्रार्थी ने वर्तमान परिवाद से पूर्व परिवाद दिनांक 09.06.2010 को पेश किया था। जबकि प्रार्थी के खाते से अन्तिम कटौति दिनांक 31.03.2008 मिनिमम बैलेन्स के कारण की गयी थी। प्रार्थी ने अपने वर्तमान परिवाद व पूर्व परिवाद में मियाद के सम्बंध में कोई युक्तियुक्त व सन्तोष जनक तथ्य प्रकट नहीं किया। प्रार्थी ने अपने परिवाद व प्रार्थना-पत्र में यह तथ्य भी अंकित नहीं किया कि प्रार्थी को प्रथम बार उक्त कटौतियों का ज्ञान कब हुआ था। परिवाद की चरण संख्या 3 व मियाद प्रार्थना-पत्र में प्रार्थी ने दिनांक 11.02.2009 को कटौतियों के सम्बंध मंे प्रथम बार अप्रार्थी बैंक में प्रार्थना-पत्र देने का कथन किया है। हालांकि प्रार्थी ने वर्तमान प्रकरण में ऐसा कोई पत्र पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया। इसलिए प्रार्थी के उक्त तर्क विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते है। प्रार्थी ने अपने परिवाद में यह तर्क अंकित नहीं किया कि उसे प्रथम बार कटौति के सम्बंध में कब ज्ञान हुआ। इसलिए हम अप्रार्थी के इस तर्क से सहमत है कि प्रार्थी एक फर्म है जो प्रतिवर्ष अपनी बैलेन्सशीट तैयार करती है और अपने बैंक स्टेटमेन्ट के खातों का भी मिलान करती है। अप्रार्थी के उपरोक्त तर्कों अनुसार प्रार्थी को वर्ष 2006 की कटौति का ज्ञान मार्च 2006 में, वर्ष 2007 की कटौति का ज्ञान मार्च 2007 में, वर्ष 2008 की कटौति का ज्ञान मार्च 2008 में हो गया था। प्रार्थी ने मियाद के बिन्दु के तथ्य के सम्बंध में जो कारण दिया है वह सद्भाविक व युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता। धारा 24 ए के प्रावधान आज्ञापक प्रकृति के है। ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयेाग ने 4 सी.पी.जे. 2014 पेज 509 रिचर्ड राजासिंह बनाम फोर्ड मोटर कम्पनी प्रा. लि. के चरण संख्या 17 में दिया है। इसी प्रकार अप्रार्थी अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त 2 सी.पी.जे. 2009 पेेज 29 में माननीय उच्चतम न्यायाल ने यह मत दिया कि स्पउपजंजपवद ंेचमबज दवज बवदेपकमतमक इल ब्वदेनउमत थ्वतं ंसजीवनही ेचमबपपिब चसमं जव जीपे मििमबज जंाम इल इंदाण् इसलिए मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24 ए के अन्तर्गत मियाद बाहर है जो खारिज किये जाने योग्य है। अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकार प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर सदस्य सदस्या अध्यक्ष निर्णय आज दिनांक 26.03.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
सुभाष चन्द्र नसीम बानो षिव शंकर सदस्य सदस्या अध्यक्ष
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
[ Subash Chandra]
MEMBER
[ Nasim Bano]
MEMBER
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