Uttar Pradesh

StateCommission

A/1809/2015

Mahindra & Mahindra Financial Service Ltd. - Complainant(s)

Versus

Sazid Ahmad - Opp.Party(s)

Gopal Ji Srivastava

15 Nov 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1809/2015
(Arisen out of Order Dated 30/07/2015 in Case No. C/126/2009 of District Azamgarh)
 
1. Mahindra & Mahindra Financial Service Ltd.
Azamgarh
...........Appellant(s)
Versus
1. Sazid Ahmad
Azamgarh
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 15 Nov 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-1809/2015

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, आजमगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या 126/2009 में पारित आदेश दिनांक 30.07.2015 के विरूद्ध)

Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd.

Mahindra Tower, Faizabad Road, Lucknow, On behalf of

Branch Manager Mahindra & Mahindra Financial Services

Ltd. Branch Office Haribans pur Azamgarh.                                                     

                               .................अपीलार्थी/विपक्षीगण

बनाम

Sazid Ahmed S/o Sri Bhasir Ahmad R/o Mohallay Aarajibagh, post Brahm Nagar, Tehsil Sadar, District Azamgarh.                        .................प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री अदील अहमद,                

                                    विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 01.01.2018

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-126/2009 साजिद अहमद बनाम महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेंस सर्विस लि‍0 व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, आजमगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.07.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

''परिवाद सं. 126/2009 विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार  किया

 

-2-

जाता है। और उन्‍हें आदेश दिया जाता है कि वे आदेश की तिथि से एक माह के अन्‍दर परिवादी को रू0 1,15114/-रूपये (एक लाख पन्‍द्रह हजार एक सौ चौदह रूपये) परिवाद प्रस्‍तुति की ति‍थि से वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक 9% वार्षिक ब्‍याज के साथ, तथा 20000/-रूपये (बीस हजार रूपये) क्षतिपूर्ति के तौर पर अदा करे। नियत अवधि में पालन न किए जाने पर क्षतिपूर्ति की राशि पर भी एक माह की अवधि के अवसान से 9% वार्षिक ब्‍याज पर्याय होगा। परिवाद व्‍यय के लिए कोई आदेश नही।''

जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी  महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेंसियल सर्विसेज लि0 ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री अदील अहमद उपस्थित आए हैं। प्रत्‍यर्थी पर नोटिस का तामीला पर्याप्‍त माना गया है फिर भी प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुनकर और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन कर अपील का निस्‍तारण किया जा रहा है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने वर्ष 2008 में अपीलार्थी/विपक्षीगण से एक महिन्‍द्रा अल्‍फा टैम्‍पो तीन पहिया  वाहन  क्रय  करने  हेतु

 

 

-3-

हायर परचेज एग्रीमेन्‍ट के अन्‍तर्गत 50,000/-रू0 का ऋण लिया था और 108000/-रू0 नगद भुगतान किया था।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि माह नवम्‍बर 2008 में उसने उपरोक्‍त महिन्‍द्रा अल्‍फा टैम्‍पो क्रय किया और उसका पंजीयन परिवहन विभाग में कराया। साथ ही उसका बीमा भी कराया, जो दिनांक 17.11.2009 तक वैध था।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने टैम्‍पो खरीदते समय उससे सादे कागजात व फार्मों पर हस्‍ताक्षर कराया था। अत: उसे ब्‍याज आदि एवं किस्‍तों का सही ज्ञान नहीं है।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने किस्‍तों का भुगतान समय से करना प्रारम्‍भ किया। बीच में दुर्घटना में वह घायल हो गया। इस बीच अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा भेजे गए अज्ञात गुण्‍डे जबरदस्‍ती बलपूर्वक उसके टैम्‍पो को उसके आवास से उठा ले गए, जिसकी शिकायत उसने अधिकारियों के समक्ष की, जो विचाराधीन है।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसे ऋण राशि की किस्‍तों का भुगतान तीन वर्षों में करना था। एक वर्ष भी व्‍यतीत नहीं हुआ कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा टैम्‍पो को बलपूर्वक खींच लिया गया है।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण के कृत्‍य के विरूद्ध उसने उन्‍हें लिखित  सूचना

 

 

-4-

दिया और अपने टैम्‍पो की मांग की तथा समस्‍त बकाया किस्‍त को एकमुश्‍त भुगतान करने का आग्रह किया। फिर भी उन्‍होंने उसे टैम्‍पो वापस नहीं किया। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत किया है और कहा है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है। उसने अनुबन्‍ध की शर्तों को पढ़कर उस पर हस्‍ताक्षर किया था। अनुबन्‍ध के अनुसार उसने 70,000/-रू0 ऋण लिया था और अन्‍य चार्ज के साथ कुल 78,575/-रू0 ऋण दिया गया था, जिसका भुगतान 7114/-रू0 की मासिक किस्‍त में 12 माह में                 दिनांक 26.11.2008 से दिनांक 25.09.2009 तक होना था।

लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने ऋण लेते समय केवल एक किस्‍त अग्रिम किस्‍त के तौर पर जमा किया था। उसके पश्‍चात् उसने कोई किस्‍त कभी जमा नहीं किया। उससे मौखिक और लिखित रूप से मांग की गयी फिर भी उसने कोई धनराशि जमा नहीं किया। इस प्रकार दाण्डिक ब्‍याज व अन्‍य ब्‍याज के साथ उसके जिम्‍मा 118375/-रू0 बकाया हो गया था।

लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि किस्‍तों की अदायगी न करने की दशा में प्रत्‍यर्थी/परिवादी                    दिनांक 24.02.2009 को स्‍वयं वाहन के साथ उनके कार्यालय पर आया और ऋण राशि अदा करने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए लिखित प्रार्थना पत्र के  साथ  वाहन  अपीलार्थी/विपक्षीगण  के

 

-5-

सुपुर्द कर दिया। इस पर अपीलार्थी/विपक्षीगण ने उसे बताया कि एक माह के अन्‍दर वह बकाया ऋण जमा कर दे तो अपना वाहन वापस प्राप्‍त कर सकता है, परन्‍तु उसने पैसा जमा नहीं किया। अत: नियमानुसार वैलुअर से वाहन का मूल्‍यांकन करा कर अधिकतम कीमत 1,15,000/-रू0 में वाहन को नीलाम कर दिया गया और प्राप्‍त धनराशि को प्रत्‍यर्थी/परिवादी के ऋण खाते में समायोजित कर दिया गया। फिर भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते में 3375/-रू0 अवशेष है, जिसे अपीलार्थी/विपक्षीगण पाने के अधिकारी हैं।  

जिला फोरम ने  उभय  पक्ष  के  अभिकथन  एवं  उपलब्‍ध   साक्ष्‍यों पर  विचार  करने  के  उपरान्‍त  यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने वाहन को जबरन कब्‍जे में लेकर उसे कम मूल्‍य पर विक्रय कर सेवा में त्रु‍टि किया है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए उपरोक्‍त प्रकार से निर्णय और आदेश पारित किया है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के जिम्‍मा अपीलार्थी/विपक्षीगण की ऋण धनराशि अवशेष है। अत: प्रश्‍नगत वाहन की नीलामी से प्राप्‍त धनराशि जिला फोरम ने जो प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ब्‍याज सहित वापस करने हेतु आदेशित किया है, वह विधि विरूद्ध और अनुचित है।

 

-6-

अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने ऋण की किस्‍तों का भुगतान नहीं किया है और स्‍वयं प्रश्‍नगत टैम्‍पो को अपीलार्थी/विपक्षीगण को समर्पित किया है। उसके बाद अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ऋण धनराशि जमा कर टैम्‍पो वापस करने का समय दिया है फिर भी उसने ऋण धनराशि जमा नहीं किया है। तब नियमानुसार वैलुअर से वैलुएशन कराने के पश्‍चात् अपीलार्थी/विपक्षीगण ने वाहन को 1,15,000/-रू0 में नीलाम किया है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। जिला फोरम ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद स्‍वीकार कर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है, वह निरस्‍त किया जाना आवश्‍यक           है।

मैंने अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क पर विचार किया है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत परिवाद पत्र के कथन से यह स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण से प्रश्‍नगत वाहन क्रय करने हेतु ऋण हायर परचेज एग्रीमेन्‍ट के अन्‍तर्गत लिया है। परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्‍पष्‍ट होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने ऋण के भुगतान में               चूक की है और ऋण धनराशि अदा नहीं की है। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण, जो फाइनेंसर हैं,  ने  ऋण  की  किस्‍तों  का

 

-7-

भुगतान न होने पर जो प्रश्‍नगत वाहन को कब्‍जे में लिया है, उसे अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों से कदापि यह साबित नहीं होता है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण (फाइनेंसर) ने वाहन जबरदस्‍ती बलपूर्वक कब्‍जे में लिया है। जिला फोरम ने वाहन प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वापस किए जाने का आदेश भी नहीं पारित किया है। जिला फोरम ने मात्र वाहन की नीलामी से प्राप्‍त धनराशि को प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वापस किए जाने का आदेश दिया है। साथ ही इस धनराशि पर ब्‍याज और 20,000/-रू0 क्षतिपूर्ति भी दिलायी है। जिला फोरम ने इस तथ्‍य पर विचार ही नहीं किया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के जिम्‍मा अपीलार्थी/विपक्षीगण की ऋण धनराशि अवशेष है। अपीलार्थी/विपक्षीगण के ऋण की धनराशि जो प्रत्‍यर्थी/परिवादी के जिम्‍मा अवशेष है उसमें प्रश्‍नगत वाहन की नीलामी से प्राप्‍त धनराशि का समायोजन किए बिना नीलामी से प्राप्‍त सम्‍पूर्ण धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वापस किए जाने का आदेश दिया जाना और अपीलार्थी/विपक्षीगण के अवशेष ऋण के भुगतान के सम्‍बन्‍ध में प्रत्‍यर्थी/परिवादी को कोई आदेश न दिया जाना पूर्णतया विधि विरूद्ध और अनुचित है।

जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रस्‍तुत लिखित कथन में कहा गया है कि वाहन की नीलामी से प्राप्‍त धनराशि 1,15,000/-रू0 प्रत्‍यर्थी/परिवादी के जिम्‍मा ऋण की अवशेष धनराशि में समायोजित  किए  जाने  पर  प्रत्‍यर्थी/परिवादी

 

-8-

के जिम्‍मा ऋण की धनराशि 3375/-रू0 अवशेष है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अपील के साथ वाहन के मूल्‍य से सम्‍बन्धित अभिलेख प्रस्‍तुत किया है, जो अपील के पृष्‍ठ संख्‍या-43 पर संलग्‍न है। इसमें वाहन का मूल्‍य 1,57,900/-रू0 अंकित है। वाहन दिनांक 26.11.2008 को क्रय किया गया है और अपीलार्थी/विपक्षीगण के लिखित कथन के अनुसार                   दिनांक 24.02.2009 को वाहन उनकी अभिरक्षा में आया है। इस प्रकार यह स्‍पष्‍ट है कि वाहन क्रय किए जाने के तीन महीने बाद ही अपीलार्थी/विपक्षीगण ने वाहन कब्‍जे में लिया है और उसकी नीलामी की है। ऐसी स्थिति में 1,15,000/-रू0 में वाहन नीलाम किए जाने पर यह मानने हेतु उचित आधार है कि वाहन को वास्‍तविक मूल्‍य से कम मूल्‍य पर नीलाम किया गया है।

उल्‍लेखनीय है कि 1,57,900/-रू0 वाहन का मूल्‍य है। वाहन का पंजीयन व बीमा भी कराया गया है। अत: वाहन 1,15,000/-रू0 में नीलाम किया जाना यह दर्शाता है कि वाहन वास्‍तविक मूल्‍य से कम मूल्‍य पर अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा बेचा गया है। उल्‍लेखनीय है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने यह दर्शित नहीं किया है कि वाहन की सार्वजनिक नीलामी की गयी है और नीलामी की सूचना समाचार पत्रों में प्रसारित की गयी है तथा नीलामी में सामान्‍य जन को आमंत्रित करते हुए वाहन की नीलामी पब्लिक आक्‍सन के द्वारा की गयी है। अत: सम्‍पर्ण तथ्‍यों, साक्ष्‍यों व परिस्थितियों पर विचार करते हुए मैं इस मत का हूँ कि जिला  फोरम  ने  जो  यह

 

-9-

निष्‍कर्ष निकाला है कि वाहन की नीलामी वास्‍तविक मूल्‍य से कम मूल्‍य पर की गयी है, वह उचित और युक्‍तसंगत है और जिला फोरम के इस निष्‍कर्ष में हस्‍तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। वास्‍तविक मूल्‍य से कम मूल्‍य पर वाहन की नीलामी करना निश्चित रूप से सेवा में कमी है।

नया वाहन शोरूम से लेने पर उसकी बिक्री पुन: कुछ महीने बाद करने पर निश्चित रूप से उसकी कीमत उसके शोरूम प्राइस से कम होगी। अत: उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण तथ्‍यों एवं परिस्थि‍तियों पर विचार करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हूँ कि वाहन का मूल्‍य 1,40,000/-रू0 निर्धारित किया जाना उचित है और इस धनराशि से प्रत्‍यर्थी/परिवादी के ऋण की अवशेष धनराशि 1,18,375/-रू0 घटाकर शेष धनराशि 21,625/-रू0 प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षीगण से वापस दिलाया जाना उचित है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को इस धनराशि पर परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अदायगी की ति‍थि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज दिया जाना भी उचित है। चूँकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ब्‍याज दिया जा रहा है। अत: जिला फोरम ने जो 20,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षीगण से दिलाया है, उसे अपास्‍त किया जाना उचित है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश संशोधित करते  हुए  अपीलार्थी/विपक्षीगण,  जो

 

-10-

फाइनेंसर हैं, को आदेशित किया जाता है कि वे प्रत्‍यर्थी/परिवादी को 21,625/-रू0 परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज सहित अदा करे। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय का शेष अंश अपास्‍त किया जाता है और जिला फोरम का निर्णय उपरोक्‍त प्रकार से संशोधित किया जाता है।

अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

 

 

 

   

 (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)

                          अध्‍यक्ष

जितेन्‍द्र आशु0                        

कोर्ट नं0-1            

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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