राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२१५/२००५
(जिला मंच(द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-६५४/२००२ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०२-११-२००४ के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सैक्रेटरी मिनिस्ट्री आफ पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ, नई दिल्ली।
२. सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।
.............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
सैयद गुलाम जीलानी पुत्र श्री अब्दुल सत्तार निवासी सुजानपुरा रोड, म0नं0 ५९६/१, सुजानपुरा, आलमबाग, लखनऊ।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डॉ0 उदय वीर सिंह विद्वान अधिवक्ता द्वारा
अधिकृत अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री निशान्त शुक्ला विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- २६-०४-२०१८.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच(द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-६५४/२००२ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०२-११-२००४ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने २०-०२-२००० को ६००/- रू० मा मोहम्मद जौहर अली द्वारा ‘’ कोहिनूर टेलर ‘’ गॉंव व पोस्ट बेन बेलिया जनपद भोजपुर (बिहार) को मनी आर्डर भेजा था। मनी आर्डर गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँचा जबकि परिवादी ने पोस्ट आफिस में अनेकों बार सम्पर्क किया किन्तु कोई सन्तोषजनक हल नहीं निकला तब अन्त में परिवादी ने कानूनी नोटिस वरिष्ठ पोस्ट आफिसेज लखनऊ मण्डल, लखनऊ को दिनांक १८-०४-२००२ को भेजा जिसमें स्पष्ट तौर पर लिख कि ब्याज सहित तुरन्त पैसा वापस कराया जाय किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: परिवाद जिला मंच में योजित किया गया।
अपीलार्थीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
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अपीलार्थीगण के कथनानुसार मनी आर्डर की बुकिंग तिथि २०-०२-२००० न होकर १४-०२-२००० थी। उक्त मनी आर्डर का भुगतान पुनरीक्षणकर्ता को दिनांक २४-०२-२००० को करा दिया गया किन्तु परिवादी द्वारा यह सूचित किया गया कि मनी आर्डर का भुगतान प्राप्तकर्ता को नहीं कराया गया है, प्रत्यर्थी/परिवादी को मनी आर्डर की धनराशि वापस कर दी गई।
विद्वान जिला मंच ने मनी आर्डर की धनराशि अत्यन्त विलम्ब से परिवादी को प्राप्त कराए जाने के कारण सेवा में त्रुटि मानते हुए परिवादी का परिवाद स्वीकार किया तथा अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि वे एक माह के अन्दर परिवादी को मनी आर्डर की धनराशि पर दिनांक २० फरवरी, २००० से दिनांक ०५-११-२००२ तक ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज तथा २००/- रू० वाद व्यय अदा करें। अनुपालन न करने पर उपरोक्त समस्त धनराशि पर अनुपालन न करने की तिथि से १२ प्रतिशत वार्षिक ब्याज देय होगा।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदय वीर सिंह द्वारा अधिकृत श्री कृष्ण पाठक एडवोकेट तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री निशान्त शुक्ला के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने मनी आर्डर का वितरण न होने के कारण इस सन्दर्भ में डाक विभाग में कोई शिकायत नहीं की और सीधे परिवाद जिला मंच में योजित कर दिया। परिवादी द्वारा परिवाद योजित किए जाने के उपरान्त विभाग द्वारा प्रकरण की जांच कराई गई तथा वरिष्ठ अधीक्षक पोस्ट आफिस, लखनऊ से आख्या प्राप्त की गई जिसके अनुसार सम्बन्धित पोस्टमेन द्वारा यह सूचित किया गया कि भुगतान प्राप्तकर्ता को करा दिया गया। यह आख्या जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की गई। परिवादी द्वारा यह सूचित किया गया कि मनी आर्डर की धनराशि प्राप्तकर्ता को प्राप्त नहीं कराई गई। क्योंकि प्रकरण वर्ष २००० से सम्बन्धित था और परिवाद वर्ष २००२ में योजित किया
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गया, अत: प्रकरण से सम्बन्धित अभिलेख विभाग में उपलब्ध नहीं थे। सम्बन्धित पोस्टमेन द्वारा यह लिखित कथन प्रस्तुत किया गया था कि उसे ठीक से याद नहीं है कि भुगतान उसने प्राप्तकर्ता को प्राप्त कराया अथवा किसी और को प्राप्त कराया। इस तथ्य की पुष्टि पेड वाउचर के अवलोकन से ही हो सकती थी कि वस्तुत: प्रश्नगत मनी आर्डर की धनराशि किसे प्राप्त कराई गई किन्तु प्राप्तकर्ता द्वारा प्रश्नगत मनी आर्डर की धनराशि प्राप्त करने से इन्कार किया गया। क्योंकि नियमानुसार मनी आर्डर की धनराशि प्राप्तकर्ता को ही प्राप्त कराई जानी चाहिए अथवा प्राप्तकर्ता द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति को, ऐसी परिस्थिति में सम्बन्धित पोस्टमेन द्वारा ६००/- रू० राजकीय खाते में दिनांक १०-१०-२००२ को जांच के निष्कर्ष के अधीन जमा किए गये तथा प्रश्नगत मनी आर्डर से सम्बन्धित ६००/- रू० की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त करा दी गई।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच ने भारतीय डक अधिनियम की धारा-४८ पर ध्यान न देते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है जिसके अनुसार मनी आर्डर के वितरण में विलम्ब के लिए अपीलार्थी के विरूद्ध कोई परिवाद योजित नहीं किया जा सकता। इस सन्दर्भ में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा टीका राम खनल बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट, IV (2007) CPJ 123 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने मनी आर्डर के वितरण में विलम्ब की स्थिति में भारतीय डाक अधिनियम की धारा-४८ के आलोक में परिवाद पोषणीय होना नहीं माना।
भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-४८ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
48- Exemption from liability in respect of money orders. – No suit or other legal proceeding shall be instituted against [the Government] or any officer or the Post Office in respect of-
(a) anything done under any rules made by the [Central Government] under this Chapter; or
(b) the wrong payment of a money order caused by incorrect or incomplete information given by the remitter as to the name and address of the payee, provided that, as regards incomplete information; there was reasonable
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justification for accepting the information as a sufficient description for the purpose of identifying the payee; or
(c) the payment of any money order being refused or delayed by, or on account of , any accidental neglect, omission or mistake, by, or on the part of, an officer of the Post Office, or for any other cause whatsoever, other than the fraud or
wilful act or default of such officer; or
(d) any wrong payment of a money order after the expiration of one year from the date of the issue of the order; [or]
(e) any wrong payment or delay in payment of a money order beyond the limits of [India] by an officer of any Post Office, not being one established by the [Central Government].
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी को मनी आर्डर से सम्बन्धित धनराशि ६००/- रू० की अदायगी अपीलार्थी द्वारा निर्विवाद रूप से की जा चुकी है। भारतीय डाक अधिनियम की उपरोक्त धारा-४८ के आलोक में हमारे विचार से परिवाद जिला मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। विद्वान जिला मंच ने उपरोक्त विधिक स्थिति पर ध्यान न देते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, जो अपास्त किए जाने योग्य है। अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच(द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-६५४/२००२ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०२-११-२००४ अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-३.