Shailendra Singh Tomar filed a consumer case on 07 Sep 2015 against Satyendra Paal Singh, Vastuvedik Colonizer & Devlopers Pvt. Ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/174/2011 and the judgment uploaded on 09 Sep 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)
परिवाद संख्या:- 174 /11
शेलेन्द्र सिंह तोमर पुत्र राजनारायण सिंह तोमर निवासी महालक्ष्मी एनक्लेव, फ्लेट नं. ए-2/702, बारां रोड, कोटा। -परिवादी
बनाम
सत्येन्द्र पाल सिंह पुत्र करतार सिंह जाति सिख निवासी फ्लेट सं. 1 व 2, टाॅप फ्लोर, श्री महालक्ष्मी अपार्टमेन्ट, छावनी, कोटा, डायरेक्टर, वास्तुवेदिक कोलनाईजर एण्ड डवलपर्स प्राईवेट लिमिटेड, पंजीकृत कार्यालय घोडे वाले बाबा की मजार के पास, एरोड्राम सर्किल, कोटा।
-विपक्षी
समक्ष:-
भगवान दास ः अध्यक्ष
हेमलता भार्गव ः सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01. श्री रामस्वरूप चैधरी, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से ।
02. विपक्षी के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही।
निर्णय दिनांक 07.09.2015
परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में सेवा दोष बताया है कि उसकी महालक्ष्मी एनक्लेव योजना में फ्लोर संख्या 7 पर एक फ्लेट संख्या ए-2/702 को खरीदने का इकरार दिनांक 13.12.06 को किया था। इकरार की शर्तो के अनुसार 25.08.08 तक कुल विक्रय राशि 13,25,000/- रूपये में से 12,00,000/- रूपये की अदायगी कर दी गई, शेष राशि 1,25,000/- रूपये की अदायगी कर रजिस्ट्री करवाने हेतु परिवादी हमेशा तैयार रहा, लेकिन विपक्षी द्वारा टाल-मटोल किया गया। इकरार की शर्तो का उल्लधंन करते हुये लगभग 15 माह बाद रजिस्ट्री करवाई व 16 माह बाद वास्तविक कब्जा दिया। ऐसी स्थिति में इकरार की शर्तो के अनुसार विपक्षी द्वारा 2 वर्ष के पश्चात की अवधि का प्राप्त की गई राशि पर बैंक दर से ब्याज अदा करना था, लेकिन बार-बार मांग करने पर भी अदायगी नहीं की गई। नियत समय पर कब्जा नहीं देने के कारण परिवादी को अन्यत्र किरये पर रहना पडा तथा जिस बैंक से ऋण लिया था उसे अकारण ब्याज देना पडा। विपक्षी को रजिस्टर्ड नोटिस प्रेषित किये गये इसके बावजूद भी अदायगी नहीं की गई, इससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप भी हुआ।
मंच की ओर से विपक्षी को प्रेषित नोटिस प्राप्त हो गया। विपक्षी की ओर से दिनांक 29.08.11 को अधिवक्ता श्री राजेश यादव द्वारा उपस्थिति दी गई, लेकिन पर्याप्त अवसर मिलने पर भी विपक्षी की ओर से कोई जवाब, साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई तथा उसकी ओर से दिनांक 29.10.13 को उपस्थिति भी नहीं दी गई, इसलिये उसके विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही के आदेश दिये गये ।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी को प्रस्तुत पत्र दिनांक 03.08.10 व 21.12.10, इकरारनामा, बैंक ऋण संबंधी दस्तावेज, विक्रय-पत्र ,कब्जा-पत्र, रजिस्टर्ड नोटिस दिनांक 30.04.11, पोस्टल रसीद आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की।
हमने परिवादी के अधिवकता की एक पक्षीय बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
विचार हेतु प्रश्न है कि क्या विपक्षी ने परिवादी को विक्रय किये जाने वाले फ्लेट की रजिस्ट्री इकरारनामा के अनुसार नियत समय पर नही कराकर एवं नियत समय पर कब्जा नहीं देकर सेवा-दोष किया है ?
परिवादी ने विपक्षी से हुये इकरार दिनांक 13.12.06 एवं विपक्षी द्वारा उसके पक्ष में पंजीबद्ध कराये गये विक्रय-पत्र दिनांक 23.03.10 की प्रति प्रस्तुत की है। पंजीकृत विक्रय-पत्र पर परिवादी के भी हस्ताक्षर है। इसमें परिवादी द्वारा विपक्षी को फ्लेट के पेटे समय-समय पर अदा की गई राशि का विवरण पृष्ठ सं. 7 पर अंकित है जिससे यह स्पष्ट होता है कि उसने दिनांक 23.08.08 के पश्चात से अन्त में विपक्षी को 1,25,000/- रूपये की राशि एस0बी0बी0जे0 के चैक सं. 124615 दिनांक 18.03.2010 के जरिये अदा की है तथा इसी में यह विवरण अंकित है कि कब्जा क्रेता को संभला दिया है।
जहाॅ तक इकरारनामा का प्रश्न है उसके पृष्ठ सं. 3 में वर्णित है कि परिवादी द्वारा अदा की गई एडवान्स पेटे राशि 2,05,000/- रूपये के अलावा शेष राशि 11,20,000/- रूपये वर्णित किस्तों के अनुसार अदा करनी होगी उसमें अंतिम भुगतान 1,25,000/- रूपये दो साल में प्राप्त कर विक्रेता, क्रेता के पक्ष में रजिस्ट्री करा देगा व कब्जा संभला देगा। इकरारनामा की पृष्ठ सं. 4 पर शर्त सं. 5 में यह भी अंकित है कि यदि 2 साल में विक्रेता फ्लेट का निर्माण नहीं करा पाता या कब्जा क्रेता को नही दे पाता तो जो भी अधिक समय लगेगा उसका बैंक ब्याज दर से दिये जाने को विक्रेता पाबंद होगा।
परिवादी यह केस लेकर आया है कि इकरार के अनुसार अंतिम बकाया राशि 1,25,000/- रूपये वह देने को हमेशा तैयार रहा है, लेकिन विपक्षी ने राशि नही ली और रजिस्ट्री नहीं कराई । हम पाते है कि इस तथ्य को सिद्ध करने में परिवादी पूरी तरह विफल रहा है। उसने ऐसा कोई दस्तावेजी प्रमाण पेश नहीं किया है कि इकरार के अनुसार अंतिम भुगतान राशि 1,25,000/- रूपये उसने विपक्षी को अदा करने का प्रयास किया था और विपक्षी ने वह राशि नहीं ली । उसने विपक्षी को इस बाबत् कोई लिखित नोटिस दिया हो ऐसा भी न तो केस है और ना ही साक्ष्य है। जबकि पंजीकृत विक्रय-पत्र से स्पष्ट है कि परिवादी ने विपक्षी को अंतिम भुगतान की राशि 1,25,000/- रूपये जर्ये चैक दिनांक 18.03.2010 को अदा की है तथा विपक्षी ने उसके पक्ष में दिनांक 23.03.10 को विक्रय-पत्र पंजीबद्ध करा दिया। इस प्रकार हम पाते है कि इकरारनामे की पालना करने में परिवादी स्वयं ही लापरवाह रहा है। वह विपक्षी का यह दोष सिद्ध नहीं कर सका कि इकरार की शर्तो के अनुसार उसे पूरी राशि का समय पर भुगतान कर देने के बावजूद रजिस्ट्री कराने या कब्जा देने में देरी की ।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते है कि परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद सारहीन होने से खारिज होने योग्य है।
आदेश
परिवादी शेलेन्द्र सिंह तोमर का परिवाद, विपक्षी के खिलाफ खारिज किया जाता है। खर्चा परिवाद, पक्षकारान अपना-अपना वहन करेगें।
(हेमलता भार्गव) (भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनंाक 07.09.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
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