Uttar Pradesh

StateCommission

A/933/2015

Uppcl - Complainant(s)

Versus

Satyanarain singh - Opp.Party(s)

Isar Husain

02 Jan 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/933/2015
(Arisen out of Order Dated 24/04/2015 in Case No. C/170/2010 of District Gorakhpur)
 
1. Uppcl
Gorakhpur
...........Appellant(s)
Versus
1. Satyanarain singh
Gorakhpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vijai Varma PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 02 Jan 2018
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-933/2015

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 170/2010 में पारित निर्णय दिनांक 24.04.2015 के विरूद्ध)

1. चीफ इंजीनियर, प्रबंधक, यूपीएसईबी अब यूपीपीसीएल, मोहद्दीपुर

गोरखपुर।

2. असिस्‍टेन्‍ट इंजीनियर यूपीएसईबी डिवीजन 3 अब यूपीपीसीएल

आफिस मोहद्दीपुर, गोरखपुर।                     .........अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम्

सत्‍य नारायण सिंह पुत्र स्‍व0 श्री प्रभु नाथ सिंह निवासी महादेव झारखंडी

आवास विकास कालोनी ईडबल्‍यूएस एच.न0 588, कुड़ाघाट, तप्‍पा हवेली

परगना, हवेली तहसील, सदर जिला गोरखपुर।              ......प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     :श्री सत्‍य नारायण सिंह, स्‍वयं

दिनांक 06.02.2018

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      यह अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 170/2010 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दि. 24.04.2015 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है। जिला मंच ने निम्‍न आदेश पारित किया है:-

      '' परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण परिवादी से प्रतिमाह 80 यूनिट के अनुसार बकाया धनराशि विद्युत विच्‍छेदन के दिनांक तक प्राप्‍त करने के अधिकारी है। यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि इस धनराशि में कोई सरचार्ज की धनराशि देय नहीं होगी और सरचार्ज विपक्षीगण परिवादी से प्राप्‍त करने के अधिकारी नहीं होंगे। दौरान मुकदमा परिवादी ने दि. 1.10.14 को जो धनराशि जमा की है, वह धनराशि विपक्षीगण समायोजित करे और शेष धनराशि का नया डिमाण्‍ड मंच के समक्ष निर्णय व आदेश के दिनांक से 2 माह की अवधि के अंतर्गत प्रस्‍तुत करे। नियत अवधि के अंतर्गत डिमाण्‍ड नोटिस प्रस्‍तुत किए जाने पर परिवादी 3 माह की अवधि के अंतर्गत समस्‍त धनराशि परिवादी जमा कर देता है तत्‍पश्‍चात 15 दिन की अवधि के अंतर्गत उसका

 

-2-

कनेक्‍शन चालू कर दिया जाए। परिपालन आख्‍या विपक्षी विभाग द्वारा प्रस्‍तुत न करने पर निष्‍पादन प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत करने पर मंच उचित आदेश पारित करेंगे।''

      संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी  के पास एक घरेलू विद्युत संयोजन है जिसका कनेक्‍शन संख्‍या 2821/064809 है। परिवादी के अनुसार वर्ष 1996 में विपक्षीगण द्वारा एक बिल रू. 1076/- का भेजा गया, जिसका भुगतान परिवादी द्वारा किया गया। तदोपरांत वर्ष 1999 में रू. 3500/- का बिल भेजा गया जिसका भी भुगतान परिवादी द्वारा दि. 20.09.99 में किया गया। परिवादी के अनुसार अक्‍टूबर 1999 में जो बिल उसको भेजा गया वह उपभोग की गई विद्युत बिल से काफी अधिक था। परिवाद दायर करने की तिथि तक 124 माह का विद्युत उपभोग का बिल बकाया था जो 1.90 रूपये की दर से रू. 17848/- होता है वह जमा करने को तैयार है, परन्‍तु विपक्षीगण उसके द्वारा गणना किए गए धनराशि को लेने को तैयार नहीं है और रू. 45755/- बकाया दिखलाकर वसूली करना चाहते हैं।

      विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा जिला मंच के समक्ष अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत किया और यह अभिकथन किया कि वादी के बिल में 100 प्रतिशत सरचार्ज की छूट देते हुए अक्‍टूबर 1999 से फरवरी 2010 तक 80 यूनिट प्रतिमाह की दर से बिल बनाया गया, जिसकी धनराशि रू. 48806/- होती है, परन्‍तु ओ.टी.एस. समाधान योजना के अंतर्गत पंजीकरण धनराशि जमा करने के पश्‍चात भी परिवादी ने कोई भुगतान नहीं किया, इसलिए परिवादी को सरचार्ज में कोई छूट नहीं दी गई एवं परिवादी का कुल बिल रू. 92548/- हो गया है। परिवादी पर माह अक्‍टूबर 2014 तक कुल रू. 147447/- बकाया है। परिवादी ने पिछले 16 वर्षों से बिल जमा नहीं किया है।

पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुना तथा प्रत्‍यर्थी श्री सत्‍य नरायन सिंह को व्‍यक्तिगत रूप से सुना। पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों एवं साक्ष्‍यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।

      अपीलार्थी का कथन है कि जिला मंच का निर्णय अवैधानिक, मनमाना तथा त्रुटिपूर्ण है। परिवादी का विद्युत कनेक्‍शन दि. 17.10.93 से लगातार चल रहा है और उसके द्वारा नियमित रूप से विद्युत का उपभोग किया जा रहा है। परिवादी के स्‍वयं के कथनानुसार उसके

 

 

-3-

द्वारा 124 महीने तक कोई बिल का भुगतान नहीं किया। दि. 17.10.99 से फरवरी 2010 तक अपीलार्थी द्वारा 80 यूनिट प्रतिमाह के उपभोग के आधार पर बिल बनाया गया था जो कि समस्‍त ऐसे उपभोक्‍ताओं से चार्ज किया जाता है जिनके यहां मीटर नहीं है और उसी आधार पर फरवरी 2010 तक रू. 48806/- का बिल भेजा गया था जिसके विलम्‍ब शुल्‍क पर सरचार्ज के रूप में शत-प्रतिशत छूट दी गई थी। अपीलार्थी ने समाधान योजना के अंतर्गत रू. 1000/- पंजीकरण शुल्‍क जमा कराया, लेकिन बिल की धनराशि नहीं जमा की, जबकि वह लगातार विद्युत का उपभोग कर रहा है। चूंकि परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने एकमुश्‍त समाधान योजना का लाभ नहीं लिया, अत: वह सरचार्ज देने के लिए उत्‍तरदायी है। परिवादी पर फरवरी 2010 तक कुल बिल रू. 92548/- होता है। अपीलार्थी विद्युत कंपनी विद्युत अधिनियम के अंतर्गत इलेक्ट्रिकसिटी रेगुलेटरी कमीशन द्वारा निर्धारित टैरिफ के अनुसार ही सभी उपभोक्‍ताओं से बिल वसूलती।

      परिवादी/प्रत्‍यर्थी द्वारा बहस के दौरान यह कहा गया कि जिला मंच का निर्णय विधिसम्‍मत है। अपीलार्थी का यह कहना गलत है कि ओ.टी.एस. योजना का लाभ परिवादी द्वारा नहीं उठाया गया। परिवादी ने ओ.टी.एस. प्रपत्र भरा था और एक प्रार्थना पत्र इस आशय का दिया था कि उसके विद्युत बिल का हिसाब-किताब करके सही राशि दी जाए, परन्‍तु उसे कोई हिसाब-किताब नहीं दिया गया।

      यह तथ्‍य निर्विवाद है कि दि. 17.10.93 से परिवादी के पास विद्युत कनेक्‍शन है और वह लगातार इसका उपभोग कर रहा है। परिवादी ने अपने पत्र दि. 05.04.10 जो कि उसके द्वारा सहायक अभियंता राज्‍य विद्युत परिषद को लिखा गया, में स्‍वयं अंकन किया है कि उसके द्वारा प्रथम भुगतान दि. 26.06.96 को, दूसरा 29.08.96 को और तीसरा 20.12.99 को रू. 3500/- का किया गया। परिवादी के इस पत्र से स्‍वयं स्‍पष्‍ट है कि वह विद्युत उपभोग नियमित कर रहा है, लेकिन नियमित रूप से भुगतान नहीं कर रहा था। पहला भुगतान कनेक्‍शन प्राप्‍त होने के लगभग 2 वर्ष 8 माह बाद किया गया है। परिवादी के पत्र से यह भी स्‍पष्‍ट है कि आखिरी बिल उसके द्वारा दि. 20.12.99 को जमा किया गया और उसके पश्‍चात उसने परिवाद दायर होने तक कोई बिल का भुगतान नहीं किया। विद्युत विभाग द्वारा जब एकमुश्‍त समाधान योजना चलाई गई तो इस संबंध में विभाग ने परिवादी को दि. 05.08.11 को एक पत्र भेजा, जिसमें ओ.टी.एस. योजना के बारे में जानकारी दी गई

 

-4-

थी, उसके पश्‍चात परिवादी ने अपना पंजीकरण रू. 1000/- की धनराशि जमा करवाया, परन्‍तु देय बिल का भुगतान नहीं किया। परिवादी अपनी गणना के अनुसार बिल जमा करना

चाहता है उसके द्वारा दि. 24.03.14 को एक पत्र इस आशय का लिखा गया कि 20 माह के 3200 यूनिट का बिल 1400 यूनिट 1.90 पैसे से व 1800 यूनिट का 3 रूपये से बनाया गया है। 2 रेट होने का कारण उसे समझ नहीं आता है, जैसाकि साक्ष्‍यों से स्‍पष्‍ट है कि ओ.टी.एस. योजना की सूचना विभाग ने दि. 05.08.11 को दी थी और एकमुश्‍त समाधान योजना एक निश्चित अवधि के लिए होती है जिसमें सरचार्ज आदि माफ करने का प्रावधान किया जाता है। यह बाकीदार उपभोक्‍ताओं के हित में होता है, परन्‍तु जब अंतिम तिथि समाप्‍त हो जाती है तो सरचार्ज माफ करने का अधिकार अपीलार्थी को नहीं रह जाता है। विद्युत कंपनी विद्युत नियामक आयोग द्वारा निर्धारित रेट के अनुसार विद्युत मूल्‍य लेते हैं। परिवादी ने दि. 20.12.99 के पश्‍चात दि. 01.10.2014 को रू. 50000/- की धनराशि जमा की और इस प्रकार लगभग 14 वर्षों तक उसके द्वारा कोई विद्युत मूल्‍य का भुगतान नहीं किया गया, जो यह दर्शाता है कि वह येन-केन-प्रकारेण विद्युत मूल्‍य विलंबित रखना चाहता है। विद्युत कंपनियां सार्वजनिक उपक्रम हैं जो विद्युत आपूर्ति कर महत्‍वपूर्ण सेवाएं देती हैं, परन्‍तु इस उपक्रम को सही तरीके से चलाने के लिए उपभोक्‍ताओं द्वारा नियमित बिल जमा करना आवश्‍यक है, अन्‍यथा अन्‍य ईमानदार उपभोक्‍ताओं को कठिनाई होती है। परिवादी ने ओ.टी.एस. योजना का लाभ नहीं उठाया, इसके लिए वह स्‍वयं जिम्‍मेदार है। पंजीकरण करने के पश्‍चात उसको बिल का नियमानुसार भुगतान करना चाहिए था जो उसके द्वारा नहीं किया गया है, अत: अब इतने वर्षों के बाद वह पुरानी ओ.टी.एस. योजना का लाभ नहीं ले सकता है। विद्युत मूल्‍य व सरचार्ज आदि विद्युत नियामक आयोग की अनुमति से लगाए जाते हैं उनमें परिवर्तन करने का अधिकार उपभोक्‍ता अदालतों को नहीं हैं।   

      उपरोक्‍त विवेचना के दृष्टिगत अपील में बल है, जिला मंच का निर्णय त्रुटिपूर्ण है और निरस्‍त किए जाने योग्‍य है। तदनुसार अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 24.04.15 निरस्‍त किया जाता है तथा परिवाद भी निरस्‍त किया जाता है।

      उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

 

-5-

      निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

     

 

          (विजय वर्मा)                               (राज कमल गुप्‍ता)

         पीठासीन सदस्‍य                                   सदस्‍य

राकेश, आशुलिपिक

      कोर्ट-2 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vijai Varma]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

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