राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-823/2015
( सुरक्षित )
( जिला फोरम, सम्भल द्वारा परिवाद संख्या-38/2014 में पारित आदेश दिनांकित 30-03-2015 के विरूद्ध )
Shriram General Insurance Company Limited, E-8, EPIP, RIICO, Industrial Area, Sitapura, Jaipur |Rejasthan| 302022 Branch Office 16, Chintal House, Station Road, Lucknwo through its Manager.
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Satyam S/o Narendra Singh R/o Mohalla Coat Sharki, Sambhal, District-Sambhal.
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
- माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय।
दिनांक :29-08-2016
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
वर्तमान अपील परिवाद संख्या-38/2014 सत्यम बनाम् श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, सम्भल द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 30-03-2015 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपरोक्त वाद के विपक्षी श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 की ओर से आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेश दिया है कि वह बीमा धनराशि 65,000/-रू0 मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दौरान
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मुकदमा ता वसूली तथा 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति व 1500/-रू0 वाद व्यय दो माह के अंदर परिवादी को अदा करें।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने मोटर साईकिल की कथित चोरी की सूचना 18 दिन बाद पुलिस में दर्ज करायी और चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को विलम्ब से दी है जो बीमा पालिसी की शर्तों का स्पष्टया उल्लंघन है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि परिवादी ने वास्तविक तथ्यों को छिपाकर गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है। कथित घटना के समय मोटर साईकिल का पंजीयन नहीं था और मोटर साईकिल मोटर वाहन अधिनियम के प्राविधान का उल्लंघन कर चलाई जा रही थी। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्न न्यायिक निर्णयों की नजीरें प्रस्तुत की हैं :-
- Oriental Insurance Co. Ltd. Versus Parvesh Chandra Chadha, Civil Appeal No. 6739 of 2010 में माननीय Superme Court द्वारा पारित निर्णय दिनांक 17-08-2010 है।
- Shiv Priya Versus Chola Mandalam M.S. General Insurance Co. Ltd reported in I (2016) CPJ 410 (NC)
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- Shriram General Insurance Co. Ltd Versus Anand Singh passed in Revision Petition no. 3269 of 2014 में माननीय NCDRC द्वारा पारित निर्णय दिनांक 23.04.2016)
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि उसकी मोटर साईकिल जो अपीलार्थी बीमा कम्पनी से बीमित थी दिनांक 06-07-2013 को उस समय चोरी हो गयी जब परिवादी उक्त मोटर साईकिल भारतीय स्टेट बैंक, कृषि विस्तार शाखा, सम्भल के बाहर खड़ी करके बैंक में काम करने चला गया था। प्रत्यर्थी द्वारा काफी खोजबीन की गयी किन्तु मोटर साईकिल नहीं मिली तो परिवादी ने उसी दिन घटना की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्पनी के कार्यालय को दी और एक प्रार्थना पत्र थाना कोतवाली सम्भल में प्रस्तुत किया, परन्तु पुलिस अधिकारियों ने उसका प्रार्थना पत्र रख लिया और कहा कि घटना की जॉंचोपरान्त ही रिपोर्ट दर्ज की जायेगी। काफी दौड़-भाग के बाद उच्च अधिकारियों के हस्तक्षेप से पुलिस ने पुन: दूसरा प्रार्थना पत्र लेकर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि दिनांक 06-07-2013 को अपीलार्थी को घटना की सूचना दिये जाने पर अपीलार्थी द्वारा कहा गया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ही अग्रिम कार्यवाही की जा सकती है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि यह कहना उचित नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने विलम्ब से पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी और अपीलार्थी बीमा कम्पनी को घटना की सूचना विलम्ब से दी है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा स्वीकार न किया जाना सेवा में कमी है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम ने स्वीकार कर कोई गलती नहीं की है।
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
आधार अपील के प्रस्तर-g में प्रश्नगत बीमा पालिसी की शर्त संख्या-1 अंकित की गयी है जिसका संगत अंश नीचे उद्धरित किया जा रहा है।
" Notice Shall be given in writing to the Company immediately upon the occurrence of any accidental loss or damage and in the event of any claim and thereafter the Insured shall give all such information and assistance as the Company shall require……………………………………………In case of theft or other criminal act which may be the subject of a claim under this policy the insured shall give immediate notice to the Police and co-operate with the company in securing the conviction of the offender.”
प्रश्नगत बीमा पालिसी की उपरोक्त शर्त संख्या-1 से स्पष्ट है कि चोरी की दशा में तुरन्त सूचना पुलिस को दिये जाने का प्राविधान है और बीमा कम्पनी को तुरन्त सूचना दिये जाने का उल्लेख नहीं है। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने बजाज एलाइंस जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड बनाम् अब्दुल अख्तार आदि 2016 (1) C.P.R-541 के वाद में बीमा पालिसी की समान शर्त पर विचार करते हुए यह मत व्यक्त किया है कि चोरी की दशा में तुरन्त पुलिस को ही सूचना दिया जाना वांछित है। बीमा कम्पनी को तुरन्त सूचना दिया जाना वांछित नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि घटना की सूचना पुलिस को तुरन्द दी गयी थी और प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया गया था लेकिन पुलिस ने प्रार्थना पत्र रख लिया और कहा कि जॉंचोपरान्त रिपोर्ट दर्ज की जायेगी। उसके बाद भी काफी भाग-दौड़ की गयी। तब उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप पर दिनांक 24-07-2013 को पुलिस ने दूसरा प्रार्थना पत्र लेकर रिपोर्ट दर्ज की है। पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में टालमटोल करना एक आम बात है क्योंकि अपराध पंजीकृत करके पुलिस अपराध का ग्राफ ऊँचा दिखाना नहीं चाहती है। अत: पुलिस की सामान्य कार्यप्रणाली को
दृष्टिगत रखते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने में हुए विलम्ब का प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बताया गया कारण युक्तिसंगत और विश्वसनीय प्रतीत होता है और इस संदर्भ में जिला फोरम ने परिवादी के कथन पर विश्वास करके कोई गलती नहीं की है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि घटना की तुरन्त सूचना परिवादी/प्रत्यर्थी ने संबंधित पुलिस थाने को दी है और यह न मानने हेतु उचित आधार नहीं है।
निर्विवादित रूप से पुलिस ने विवेचना करने के उपरान्त अंतिम रिपोर्ट प्रेषित की है जो मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार की जा चुकी है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर वर्तमान अपील के वाद के तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में अपीलार्थी बीमा कम्पनी को उसकी ओर से प्रस्तुत उपरोक्त नजीरों का लाभ नहीं दिया जा सकता है।
निर्विवाद रूप से मोटर साईकिल के बीमा के समय मोटर साईकिल पंजीकृत नहीं थी। चोरी की घटना के बाद मोटर साईकिल का पंजीयन प्रमाण पत्र जारी किया गया है परन्तु चोरी की घटना के समय मोटर साईकिल खडी थी। अत: यह कहना उचित नहीं है कि चोरी के समय मोटर साईकिल मोटर वाहन अधिनियम का उल्लंघन कर चलाई जा रही थी।
उपरोक्त विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम इस मत के हैं कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा स्वीकार न करने का जो कारण दर्शित किया है वह अनुचित एवं अबैधानिक है और सेवा में कमी है। जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर कोई गलती नहीं की है।
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जिला फोरम ने बीमित धनराशि पर ब्याज भी दिया है। अत: जिला फोरम ने जो 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति दिया है उसे अपास्त किया जाना उचित है।
अपील उपरोक्त प्रकार से आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा जो 5,000/-रू0 क्षतिपूर्ति दिया है उसे अपास्त किया जाता है। जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय व आदेश का शेष अंश यथावत रहेगा।
उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
( न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान ) ( बाल कुमारी )
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा