KAMRAJ BAGHEL filed a consumer case on 25 Mar 2013 against SATPUDA NARMADA GRAMID BANK in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/12/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -12-2013 प्रस्तुति दिनांक-03.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
कामरान सिंह बघेल, आत्मज श्री भुवन
सिंह बघेल, निवासी-ग्राम लूघरवाड़ा,
तहसील व जिला सिवनी (म0प्र0)।..................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
सतपुडा नर्मदा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक,
द्वारा-षाखा प्रबंधक, सतपुडा नर्मदा
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सिवनी, गिरजाकुण्ड
सिवनी (म0प्र0)।.................................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 25/03/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक बैंक से प्राप्त किये गये ऋण के खाते की नकल दिलाये जाने एवं खाते में देय ब्याज माफ किये जाने तथा हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने अनावेदक बैंक से दिनांक-09.07.1999 को 50,000-रूपये ऋण लिया था, जिसका सी.सी.खाता नंबर-12 है। यह भी विवादित नहीं कि-दिनांक-27.12.2010 के नोटिस के द्वारा, अनावेदक ने परिवादी से उसके 57,759-रूपये व उस-पर ब्याज बकाया होना दर्षाते हुये, राषि की मांग किया।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादी उक्त ऋण खाते में तयषुदा अनुसार राषि की किष्तें पटाने का प्रयास करता रहा, पर परिसिथतियोंवष कभी-कभी किष्तों का भुगतान षेश भी रहा, पर वह बकाया राषि देने सहमत रहा है, जो कि- वर्श- 2010 के अंत तक कुल 45,730-रूपये की राषि ऋण पेटे परिवादी द्वारा किष्तों में जमा की गर्इ हैं और षेश राषि अदायगी हेतु वह तैयार रहा, पर दिसम्बर-2010 में उसे नोटिस देकर अनावेदक ने अदेय सिथति में न्यायालयीन कार्यवाही करने की धमकी दिया, इस संबंध में परिवादी ने जवाब के मार्फत ऋण खाते की नकल की मांग किया व बकाया किष्त की स्पश्ट जानकारी चाही, ताकि परिवादी एकमुष्त राषि अदा कर सके, फिर भी उसे हिसाब और खाते की नकल नहीं दी गर्इ और पुन: पंजीकृत-डाक से सूचना-पत्र परिवादी को प्रेशित कर दिया गया, इस तरह राषि जमा करने में सहयोग नहीं किया जा रहा है और खाते की नकल की मांग को अनदेखा किया जा रहा है।
(4) अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-अनावेदक द्वारा अपने ग्राहकों से समानता का व्यवहार किया जाता है, आवेदक को षासकीय योजनाओं के तहत ऋण प्रदान किया गया था, जिसकी परिवादी ने समय-अनुसार किष्तों का भुगतान नहीं किया, परिवादी को समय-समय पर मौखिक व लिखित में स्टेटमेन्ट आफ अकाउण्ट के माध्यम से जानकारी भी दी जाती रही है, जो कि-परिवादी ने कभी भी एकमुष्त राषि अदा करने हेतु अपनी मुस्तैदी प्रदर्षित नहीं किया है और अनावष्यक रूप से लाभार्जन की नीयत से तथाकथित कार्यवाही उसके द्वारा की गर्इ है, जो कि-वाद-कारण दिनांक-05.11.2012 को कभी उत्पन्न नहीं हुआ और इस फोरम को परिवाद श्रवण की अधिकारिता नहीं है, जो कि-परिवादी को उसके ऋण खाते की लिखित में जानकारी दी जा चुकी है और भलीभांति रूप से उक्त की जानकारी होने के बावजूद, झूठे आधारों पर परिवाद पेष किया है।
(5) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में है और
उसका परिवाद संधारणीय है?
(ब) क्या अनावेदक ने परिवादी के प्रति-सेवा में
कमी किया है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6) परिवादी ने ऋण किस प्रयोजन के लिए लिया था और जीवकोपार्जन के उसके पास क्या-क्या साधन हैं, ऐसा कोर्इ उल्लेख परिवाद में किया नहीं गया है, जो कि-स्वयं परिवादी की ओर से अनावेदक को भेजे कहे गये नोटिस की पेष प्रति प्रदर्ष सी-2 में ही परिवादी ने यह वर्णित किया है कि-वह मूलत: कृशक है, जबकि परिवादी को प्राप्त अनावेदक के नोटिस प्रदर्ष सी-5 से और परिवादी द्वारा ऋण की राषि का किष्तों में भुगतान किये जाने की रसीदें प्रदर्ष सी-10 से सी-65 तक की पेष की हैं, उनमें खातेदार का नाम जितेन्द्र किराना स्टोर्स दर्षाया गया है और अनावेदक की ओर से पेष उक्त ऋण खाता की नकल प्रदर्ष आर-1, कैष क्रेडिट लेजर की प्रति प्रदर्ष आर-2, आर-3, कैष क्रेडिट एग्रीमेन्ट की प्रति प्रदर्ष आर-5 से यह सिथति स्पश्ट है कि-किराना सामग्री के चिल्लहर विक्रेता की फर्म, जितेन्द्र किराना स्टोर्स, जिसका परिवादी संचालक है, उक्त फर्म के द्वारा यह ऋण प्राप्त किया गया, जबकि-परिवादी ने यह परिवाद, उक्त फर्म की ओर से पेष नहीं किया है और इस तथ्य को परिवाद में छिपाया है कि- ऋण, बैंक के द्वारा, उक्त फर्म को किराना व्यवसाय हेतु दिया गया, जिसका परिवादी प्रोप्ररार्इटर है।
(7) तो जब यह सिथति परिवादी के ही दस्तावेजों से ही स्पश्ट है कि-परिवादी मूलत: कृशक है और उसकी कृशि भूमियां कितनी हैं, उनसे कितनी आय होती है, ऐसे कोर्इ तथ्य परिवादी-पक्ष के द्वारा दर्षाये नहीं गये, परिवादी के स्वामित्व की उक्त किराना व्यवसाय करने वाली फर्म का वार्शिक टर्नओवर कितना है, किराना व्यवसाय से कितनी आमदनी होती है, इस संबंध में भी परिवादी-पक्ष मौन है और यह स्पश्ट है कि-कथित ऋण, किराना व्यवसाय के वाणिजियक प्रयोजन हेतु प्राप्त किया गया ऋण रहा है, ऐसे में उक्त ऋण मात्र जीवकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के लिए लिया गया ऋण रहा होना परिवादी-पक्ष स्थापित नहीं कर सका है, इसलिए परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में होना नहीं दर्षा सका है। फलत: यह निश्कर्शित किया जाता है कि-परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं, इसलिए उसका परिवाद संधारणीय नहीं है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(8) स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-10 से सी-65 तक के जमा रसीदों से यह सिथति स्पश्ट है कि-वर्श-1999 से लेकर वर्श-2010 तक के 11 वर्शों में परिवादी की ओर से प्रत्येक वर्श के कुछ महिनों में ही किष्तों की राषि अनियमित-रूप से अदा की जाती रहीं और उक्त 10-11 वर्शों में भी परिवादी द्वारा, मात्र 45,730-रूपये ही कुल अदा किया जाना परिवाद में कहा गया है, जबकि-प्रदर्ष आर-2 के कैष क्रेडिट लेजर से स्पश्ट है कि-ऋण पर ब्याज की दर 14.5 प्रतिषत रही है। स्पश्ट है कि-बैंक के द्वारा समय-समय पर परिवादी पर देय बकाया राषि की मांग के नोटिस परिवादी को भेजे जाते रहे हैं, जो कि-परिवादी की ओर से ऐसे प्राप्त नोटिसों में-से मात्र दिनांक-11.06.2012 का नोटिस प्रदर्ष सी-1 और फिर दिनांक-27.10.2012 का प्राप्त नोटिस प्रदर्ष सी-3 पेष कर, कोर्इ ताजा वाद-कारण दर्षाने का प्रयास किया है, तो ऋण वितरण के 10 वर्श पष्चात, प्रदर्ष सी-1 और सी-3 के नोटिसों के जरिये, अनावेदक द्वारा, जो 57,000-रूपये से अधिक की बकाया राषि दर्षाकर मांग किया, वह प्रथमदृश्टया ही कोर्इ अनुचित मांग होना संभव नहीं है और परिवादी का यह आचरण भी स्पश्ट है कि-वर्श-2010 के पष्चात उसने ऋण खाते में कोर्इ किष्त का भुगतान अगले दो वर्शों तक नहीं किया और इसके पष्चात जनवरी-2013 में यह परिवाद ऋण खाते की नकल न मिलने का आधार बनाकर पेष कर दिया गया।
(9) परिवादी की ओर से, अनावेदक को जरिये अधिवक्ता भेजे गये कहे जा रहे पत्रनोटिस का जवाब दिनांक-02.08.2011 प्रदर्ष सी- 4 से ही यह दर्षित है कि-अनावेदक-पक्ष की ओर से लोकअदालत में भी संभवत: प्रीलेटीगेसन के रूप में आवेदन पेष किया था और दिनांक- 29.01.2011 को पक्षकारों का संपर्क भी हुआ, तो भी परिवादी बकाया मूल्य व पूरे ब्याज की राषि अदा करने सहमत नहीं था और उसमें गोलमोल कर ब्याज में छूट पाना चाहता था, इसलिए राषि का स्पश्ट उल्लेख न कर, सी-4 के नोटिस में उचित राषि अदा करने के लिए सहमत रहे होने का उल्लेख किया जाता रहा और पुन: अनावेदक बैंक का नोटिस आने पर, पुन: प्रदर्ष सी-2 के रूप में ऐसा ही गोलमोल जवाब, उचित राषि भुगतान के लिए सहमत होने का दर्षाया जाता रहा, जबकि-यह स्पश्ट रहा है कि-ऋण प्राप्त किये 12-13 वर्श गुजर जाने पर भी परिवादी-पक्ष के द्वारा अभी-तक मूल ऋण की राषि 50,000- रूपये भी पूरी भुगतान नहीं की गर्इ, न ही उक्त 12 वर्श के ब्याज के मद में कोर्इ भुगतान हुआ, यहां तक कि-अनावेदक-पक्ष की ओर से परिवाद के जवाब के साथ ही ऋण खाता स्टेटमेन्ट की पूरी प्रति पेष कर दी गर्इ, परिवादी-पक्ष को भी उपलब्ध करा दी गर्इ, फिर भी उसकी ओर से कोर्इ भुगतान, ऋण राषि का किया नहीं गया।
(10) स्पश्ट है कि-परिवादी, अनावेदक बैंक से प्राप्त ऋण राषि की अदायगी बाबद व्यतिक्रमी व्यकित है और उसके द्वारा अभी-तक मूल ऋण की राषि ही अदा नहीं की गर्इ, 12 वर्श तक कोर्इ ब्याज अदा नहीं किया गया, पिछले 2 वर्श से ऋण राषि का कोर्इ भुगतान नहीं किया गया और ऋण वसूली की कार्यवाही से बचने के लिए समय गुजारने हेतु परिवादी के द्वारा ऐसी कार्यवाहियां की जा रही हैं, तो अनावेदक के द्वारा, परिवादी के प्रति कोर्इ सेवा में कमी किया जाना प्रतीत नहीं होता, लेकिन परिवादी क्योंकि उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं, इसलिए इस संबंध में कोर्इ निश्कर्श दिया जाना अनावष्यक पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(11) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्श के आधार पर, यह परिवाद संधारणीय न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
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