Uttar Pradesh

StateCommission

A/2003/403

Dr Manoj Sharma - Complainant(s)

Versus

Satish Chandra Sharma - Opp.Party(s)

Manish Mehrotra

21 Feb 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2003/403
( Date of Filing : 17 Feb 2003 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Dr Manoj Sharma
Mahamaya Nagar
...........Appellant(s)
Versus
1. Satish Chandra Sharma
Mahamaya Nagar
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 21 Feb 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-403/2003

Dr. Manoj Sharma, Aman Children Hospital,

Versus

Shri Satish Chandra, S/O Shri Vishan Swaroop Sharma, R/O Om Prakash Ka Makan Chain Gali, Halwai Khana, Hathras,

समक्ष:-                                                            

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

उपस्थिति:-

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री मनीष मेहरोत्रा, विद्धान अधिवक्‍ता

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री सुशील कुमार शर्मा, विद्धान अधिवक्‍ता

दिनांक :21.02.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.        परिवाद संख्‍या-391/1996, सतीश चन्‍द्र शर्मा बनाम डॉ0 मनोज शर्मा में विद्वान जिला आयोग, महामाया नगर द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 05.02.2003 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्के को सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

2.        परिवाद के तथ्‍य के अनुसार दिनांक 16.03.1995 को परिवादी के 2 वर्षीय पुत्र सागर की तबियत खराब होने पर दिनांक 17.03.1995 को डॉक्‍टर मनोज शर्मा दिखाया, जहां विपक्षी द्वारा बच्‍चे को भर्ती कर लिया गया। रात में तबियत खराब होने पर विपक्षी डॉक्‍टर को बुलवाया गया जो क्‍लीनिक के ऊपर रहते हैं, परंतु वह नहीं आए। दिन में 2,000/-रू0 जमा कराने के बावजूद रात में अतिरिक्‍त फीस मांगी गयी और नाईट फीस के नाम पर 300/-रू0 और ले लिए गये। विपक्षी डॉक्‍टर ने बच्‍चे की रीढ़ की हड्डी का पानी स्‍वयं निकाला, जबकि वह सर्जन नहीं था। रीढ़ की हड्डी का पानी गलत तरीके से निकाला गया, जिसके कारण बच्‍चे की हालत खराब हो गयी और चलना फिरना बन्‍द हो गया तथा दौरे पड़ने लगे और दिनांक 23.03.1995 को 350/-रू0 के इंजेक्‍शन लगाने के बाद बच्‍चे को आगरा के लिए रेफर कर दिया गया। बच्‍चे का आगरा तथा दिल्‍ली में इलाज कराया गया, लेकिन बच्‍चा अपने पैरों में खड़ा होने में असमर्थ था। रेफर करते समय इलाज के दस्‍तावेज नहीं दिये गये, जिसके कारण इलाज के दौरान दी गयी दवाइयों की जानकारी नहीं हो पायी। परिवादी इलाज के दौरान तथा अन्‍य खर्चों के रूप में 70,000/-रू0 खर्च कर लिये गये। विपक्षी की लापरवाही के कारण बच्‍चा हमेशा के लिए अपंग हो गया। अस्‍पताल मे आवश्‍यक उपकरण भी मौजूद नहीं थे।

3.         विपक्षी का कथन है कि वर्ष 1982 मे एम0बी0बी0एस0 की डिग्री प्राप्‍त की है। रात्रि के समय 75 रू0 इमरजेंसी फीस लगती है। परिवादी जब अपने बच्‍चे को उसे अस्‍पताल लेकर आये तब बताया गया था कि 7 दिन से बुखार और बच्‍चा बेहोश होना, बच्‍चे को मैनिनजाइटिस नामक बीमारी थी, जिसका इलाज प्रारंभ किया गया। परिवादी को बता दिया गया था कि 72 घण्‍टे जीवन को खतरा है। बच्‍चे का सही इलाज किया गया, परंतु बच्‍चे की स्थिति अत्‍यधिक जटिल थी। उसे तेज बुखार था तथा झटके आ रहे थे। बच्‍चे को सुबह 5 बजे देखा गया था। रात में ड्यूटी में भी तीन कम्‍पाउण्‍डर रहते थे। इस तथ्‍य को स्‍वीकार किया गया कि बच्‍चे की रीढ़ की हड्डी से पानी निकाला गया था तथा जांच करायी गयी थी, जो इलाज के लिए आवश्‍यक थी। रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने के बाद बच्‍चे की हालत अधिक खराब नहीं हुई। रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने के लिए सर्जन की आवश्‍यकता नहीं है। अगर गलत जगह इंजेक्‍शन लगाया जाता तब पानी की जगह खून निकलता। बच्‍चे को केट स्‍कैनिंग के लिए दिनांक 22.03.1995 को पत्र देकर भेजा गया था, लेकिन केट स्‍कैनिंग कराने के बाद वापस नहीं दिखाया गया। इलाज के समस्‍त कागज उपलब्‍ध कराये गये थे। परिवादी के बच्‍चे मैनिनजाइटिस (दिमागी बुखार) नामक बीमारी थी, जिसका इलाज फीजिशियन द्वारा ही किया जाता है।

4.           दोनों पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि रीढ़ की हड्डी से लापरवाही से पानी निकालने के कारण बच्‍चे के पैर में अपंगता कारित हुई है। तदनुसार अंकन 4,50,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया गया, साथ ही नियत अवधि में भुगतान न करने पर 09 प्रतिशत ब्‍याज अदा करने का भी आदेश पारित किया गया।

5.            इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गयी है जिला उपभोक्‍ता मंच ने तथ्‍य एवं साक्ष्‍य के विपरीत निर्णय पारित किया है, परंतु इस तथ्‍य पर विचार नहीं किया कि रीढ़ की हड्डी से पानी निकालना मरीज के इलाज के लिए आवश्‍यक था और जिसे निकालने के लिए अपीलार्थी सक्षम डॉक्‍टर था।

6.          एसएन मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डॉक्‍टर माथुर की रिपोर्ट को भी विचार में नहीं लिया तथा डॉक्‍टर राकेश भाटिया के साक्ष्‍य को विचार में नहीं लिया। इस तथ्‍य पर भी विचार नहीं किया कि गंभीर स्थिति में मरीज बालक को अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। यह निष्‍कर्ष विधिविरूद्ध है कि केवल रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने के कारण बच्‍चे के पैर में अपंगता कारित हुई है।

7.         अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा अपील के ज्ञापन में वर्णित तथ्‍यों के अनुसार ही अपने तर्क प्रस्‍तुत किये जबकि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्‍ता द्वारा परिवाद में वर्णित तथ्‍य के अनुसार अपने तर्क प्रस्‍तुत किया है।

8.        अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का प्रथम तर्क यह है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग के पत्र द्वारा बच्‍चे को पुन: देखने के लिए भेजा गया था, परंतु बच्‍चे को पुन: डॉक्‍टर पी0पी0 माथुर को नहीं दिखाया गया, परंतु इस पत्र के लिखने का तत्‍समय इलाज के दौरान कारित लापरवाही का कोई संबंध नहीं है। इस पत्र के माध्‍यम से बच्‍चे को पुन: दिखाने का उद्देश्‍य केवल बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य की स्थिति को जानना है। इस पत्र के आधार पर लापरवाही के संबंध में दिया गया निष्‍कर्ष प्रभावित नहीं है।

9.          अपीलार्थी की ओर से यह भी बहस की गयी है कि दस्‍तावेज सं0 20 पर पैथोलॉजिकल परीक्षण रिपोर्ट है। रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने के कारण आरबीसी कम होने का कोई उल्‍लेख नहीं है, इसलिए माना जाना चाहिए कि रीढ़ की हड्डी से पानी निकालते समय कोई लापरवाही नहीं बरती गयी, परंतु इस रिपोट को केवल सकारात्‍मक बिन्‍दु के लिए विचार में लिया जा सकता है, जिनके संबंध में रिपोर्ट में उल्‍लेख किया गया है न कि किसी नकारात्‍मक तथ्‍य के संबंध में। अत: लापरवाही के बिन्‍दु पर दिये गये निष्‍कर्ष में इस रिपोर्ट का भी कोई प्रभाव नहीं है।

10.         जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा दिये गये निष्‍कर्ष को इस आयोग द्वारा केवल इस स्थिति में परिवर्तित किया जा सकता है जब यह साबित हो कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने पत्रावली पर मौजूद साक्ष्‍य के विपरीत अपना निर्णय पारित किया है। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने डॉक्‍टर माथुर की रिपोर्ट को अपने निर्णय में विचार में लिया है, जिसमें यह उल्‍लेख है कि मैनिनजाइटिस में रीढ़ की हड्डी से पानी की जांच आवश्‍यक है। रीढ़ की हड्डी का पानी कोई भी बाल रोग विशेषज्ञ तथा एनिस्थिसिस्‍ट तथा मेडिसन का विशेषज्ञ निकाल सकता है। इसके लिए सर्जन की आवश्‍यकता नहीं है। कभी-कभी जटिलता होने से इंकार नहीं किया जा सकता। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा आगे व्‍याख्‍या की गयी है कि रीढ़ की हड्डी से पानी निकालते समय आवश्‍यक औपचारिकताओं को पूरा नहीं किया गया है। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय में रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने की प्रक्रिया का उल्‍लेख मेडिकल साइंस के आधार पर किया है। डॉक्‍टर भाटिया ने अपने शपथ पत्र में केवल यह कथन किया है कि रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने के लिए सर्जन होना आवश्‍यक नहीं है, जैसा कि डॉक्‍टर माथुर द्वारा भी अपने पत्र में अंकित किया गया है, परंतु चूंकि रीढ़ की हड्डी से पानी निकालना अत्‍यधिक खतरनाक हो सकता है, इसलिए रीढ़ की हड्डी से पानी निकालने के लिए मेडिकल साइंस में प्रदत्‍त प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए क्‍योंकि रीढ़ की हड्डी से पानी निकालते समय यदि प्रक्रिया दुरूस्‍त नहीं है तब पैरालिसिस होना संभव है। प्रस्‍तुत केस में भी यही स्थिति विकसित हुई। रीढ़ की हड्डी से पानी निकालते समय लापरवाही बरतने का परिणाम भी पैरालिसिस होना है, इसलिए जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्‍तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्‍य है।   

आदेश

           अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।

          उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

 आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

         

(सुधा उपाध्‍याय)(सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

 

      संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3

  

 

 

 

 

         

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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