Uttar Pradesh

StateCommission

A/2003/240

Union Of India - Complainant(s)

Versus

Satish Chandra Gautam - Opp.Party(s)

Mrs. P L Nigam

17 Mar 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2003/240
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Union Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Satish Chandra Gautam
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील सं0-२४०/२००३

 

(जिला फोरम (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-४५७/१९९७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक २१-११-२००२ के विरूद्ध)

 

१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सैक्रेटरी, मिनिस्‍ट्री आफ कम्‍युनिकेशन्‍स, नई दिल्‍ली।

२. सीनियर सुपरिण्‍टेण्‍डेण्‍ट आफ पोस्‍ट आफिसेज, लखनऊ डिवीजन, लखनऊ।

                                         .....................  अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।

बनाम्

सतीश चन्‍द्र गौतम पुत्र श्री विधि चन्‍द्र गौतम निवासी सी-१०, भीकमपुर कालोनी, पेपर मिल कालोनी, लखनऊ।

                                         ......................        प्रत्‍यर्थी/परिवादी।                                                              

समक्ष:-

१-  मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित    :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित  :- कोई नहीं।

 

दिनांक : ०८-०४-२०१५

 

मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

 

इस अपील की अन्तिम सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये थे परन्‍तु प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्‍य प्रकाश में आता है कि यह अपील पिछले १५ वर्ष से भी अधिक समय से निस्‍तारण हेतु सूचीबद्ध होती चली आ रही है अत: उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम सं० ६८ सन् १९८६) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्‍तर्गत निर्मित उत्‍तर प्रदेश उपभोक्‍ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य/अभिलेख के आधार पर इस अपील में न्‍यायोचित आदेश पारित किया जाय। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को  एकल रूप से सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेख/साक्ष्‍य का गहनता से परिशीलन किया गया।  

 

-२-

पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्‍य प्रकाश में आता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी सतीश चन्‍द्र गौतम ने न्‍यू हैदराबाद पोस्‍ट आफिस, लखनऊ से २०-१०-१९९५ के उपरान्‍त विभिन्‍न तिथियों में अपनी पत्‍नी श्रीमती साधना गौतम के नाम ५००/-, ५००/- रू० के ११ धनादेश भेजे थे परन्‍तु इन धनादेशों की प्राप्ति की रसीद (ए.डी) उसे वापस प्राप्‍त नहीं हुई। अत: अधीनस्‍थ फोरम के समक्ष उसे परिवाद सं0-४५७/१९९७ योजित करने की आवश्‍यकता पड़ गयी। अपीलार्थी डाक विभाग का कहना है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक १५-०४-१९९५ को भेजा गया ५००/- का धनादेश प्राप्‍तकर्ता को दिनांक २८-०४-१९९५ को प्राप्‍त कराया गया। इसी प्रकार ०६-०५-१९९५ को भेजा गया धनादेश २०-०५-१९९५ को, १४-०९-१९९५ को भेजा गया धनादेश २०-१०-१९९५ को, ११-१०-१९९५ को भेजा गया धनादेश २०-१०-१९९५ को, १४-११-१९९५ को भेजा गया धनादेश ०८-१०-१९९६ को, १४-१२-१९९५ को भेजा गया धनादेश ०३-०२-१९९६ को, १४-०१-१९९६ को भेजा गया धनादेश २९-०१-१९९६ को, १४-०३-१९९६ को भेजा गया धनादेश २७-०३-१९९६ को एवं दिनांक १२-०४-१९९६ को भेजा गया धनादेश २४-०४-१९९६ को प्राप्‍तकर्ता को प्राप्‍त करा दिया गया था। दिनांक १४-०५-१९९६ को भेजा गया धनादेश अदम तामील प्रत्‍यर्थी/परिवादी को लौटा दिया गया था। दिनांक १४-०२-१९९६ को भेजा गया धनादेश १६-०२-१९९६ को प्राप्‍तकर्ता को प्राप्‍त करा दिया गया था। उभय पक्ष को सुनने के उपरान्‍त अधीनस्‍थ फोरम द्वारा परिवाद को आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए परिवादी को २७५/- रू० मनीआर्डर फीस के अतिरिक्‍त ५००/- रू० मानसिक कष्‍ट एवं ५००/- रू० वाद व्‍यय हेतु अदा करने हेतु अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया गया। इसी आदेश से क्षुब्‍ध होकर डाक विभाग द्वारा प्रस्‍तुत अपील दाखिल की गयी है।

प्रत्‍यर्थी श्री सतीश चन्‍द्र गौतम की ओर से इस आशय की आपत्ति प्रस्‍तुत की गयी है कि इस प्रकरण में भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-४८ में दिये गये प्राविधान लागू नहीं होते हैं क्‍योंकि यह मामला ए.डी वापस न प्राप्‍त होने से सम्‍बन्धित है। यदि यह मान भी लिया जाये कि इस प्रकरण में धारा ४८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) में दिये गये प्राविधान लागू नहीं होते हैं तो उक्‍त परिस्थिति में नि:सन्‍देह धारा ६ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) में दिये गये प्राविधान लागू हो जायेंगे। उनका यह कहना है कि रसीद सं0-३४२९ से दिनांक १४-०५-१९९६ को भेजा गया धनादेश प्राप्‍तकर्ता को

 

-३-

प्राप्‍त नहीं कराया गया। यहॉं यह उल्‍लेखनीय है कि धनादेश जो रसीद सं0-३४२९ दिनांकित १४-०५-१९९६ से भेजे जाने की जो बात कही गयी है उसे प्रत्‍यर्थी/परिवादी को इस रिपोर्ट के साथ लौटा दिया गया है कि ‘’ प्राप्‍तकर्ता काफी समय से बाहर रहता है, अत: प्रेषक को वापस ‘’ । प्रत्‍यर्थी ने अधीनस्‍थ फोरम के समक्ष इस तथ्‍य को जानबूझकर‍ अथवा गैरजिम्‍मेदारी के कारण अथवा किसी दुरूभि संधि के लिए छिपाया है। इसके अतिरिक्‍त भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-४८ में निम्‍नवत् प्राविधान है कि -

48- Exemption from liability in respect of money orders. – No suit or other legal proceeding shall be instituted against [the Government] or any officer or the Post Office in respect of-

(a) anything done under any rules made by the [Central Government] under this Chapter; or

(b) the wrong payment of a money order caused by incorrect or incomplete information given by the remitter as to the name and address of the payee, provided that, as regards incomplete information; there was  reasonable justification for accepting the information as a sufficient description for the purpose of identifying the payee; or

(c) the payment of any money order being refused or delayed by, or on account of , any accidental neglect, omission or mistake, by, or on the part of, an officer of the Post Office, or for any other cause whatsoever, other than the fraud or wilful act or default of such officer; or

(d) any wrong payment of a money order after the expiration of one year from the date of the issue of the order; [or]

(e) any wrong payment or delay in payment of a money order beyond the limits of [India] by an officer of any Post Office, not being one established by the [Central Government].

     इसी अधिनियम की धारा ६ में यह प्राविधान दिया गया है कि –

      Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :

“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”

उपरोक्‍त प्राविधान तथा मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्‍टल

  

-४-

 डिपार्टमेण्‍ट IV (2007) CPJ 123 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्‍त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्‍थ फोरम द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। विद्वान फोरम द्वारा विधि विरूद्ध आदेश पारित किया गया है जो किसी भी दृष्टिकोण से पोषणीय नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्‍थ फोरम द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथ्‍य एवं विधि के विपरीत होने के कारण अपास्‍त होन तथा अपील स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

      प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। अधीनस्‍थ फोरम (द्वितीय), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-४५७/१९९७ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक २१-११-२००२ अपास्‍त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्‍यय-भार अपना-अपना स्‍वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

 

 

                                               (आलोक कुमार बोस)

                                                 पीठासीन सदस्‍य

 

 

                                                  (संजय कुमार)

                                                     सदस्‍य

 

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट-४.

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.