सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 500/2015
(जिला उपभोक्ता आयोग, द्धितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या- 678/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 02-12-2014 के विरूद्ध)
Future General India Life Insurance Company Limited, Ratan Square, 4th Floor, Vidhan Sabha Marg, Lucknow Through Branch Manager.
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
- Sarvesh Kumar Shukla S/o Sri Uma Shankar Shukla R/o 572/8 Guru Nagar, Almbagh, Lucknow-226005
- Ranjana Shukla W/o Sarvesh Kumar Shukla R/o 572/8 Guru Nagar, Almbagh, Lucknow-226005
प्रत्यर्थी/परिवादीगण
- Vcare Multitrade Pvt. Ltd. A-8, Sindu Nagar (Krishna Nagar) Lucknow-226003 Through Officer In-Charge.
प्रोफार्मा/प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री प्रतीक सक्सेना
प्रत्यर्थी 1 व 2 की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री अर्जुन कौशल
दिनांक: 04-10-2021
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 678 सन् 2013 सर्वेश कुमार शुक्ला व अन्य बनाम फ्यूचर जनरली इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, द्धितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 02-12-2014 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक दावा इस आशय का प्रस्तुत किया कि अपीलार्थी ने उनको लालच देकर बीमा पालिसी खरीदने के लिए प्रेरित किया और बताया कि उन्हें प्रारम्भिक प्रीमियम 30,000/-रू० अदा करना पड़ेगा शेष धनराशि किस्तों में अदा करनी थी। अपीलार्थी ने कई लोगों को धोखा देकर पालिसी खरीदवाया और फिर कार्यालय बन्द करके चला गया। परिवाद में अपीलार्थी बीमा कम्पनी को नोटिस जारी की गयी और उसने अपना विस्तृत उत्तर प्रस्तुत किया। अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विरूद्ध सेवा में कोई कमी का मामला नहीं बनता है। दिनांक 02-12-2014 को विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निर्णय घोषित किया है। प्रश्नगत निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है। अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी ही स्वच्छ हाथों से नहीं आया है। विद्वान जिला आयोग ने 30,000/-रू० प्रीमियम मय 09 प्रतिशत ब्याज के साथ देने का आदेश पारित किया है जो गलत है। विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष गलत है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी का एजेण्ट है इसलिए अपीलार्थी बीमा कम्पनी उसके लिए उत्तरदायी है। विद्वान जिला आयोग ने एजेण्ट की गलती नहीं माना है। अपीलार्थी ने स्पष्ट रूप से पालिसी की शर्तों को बताया था। सारा दोष प्रोफार्मा प्रत्यर्थी के विरूद्ध लगाया गया है किन्तु जिला आयोग ने अपीलार्थी बीमा कम्पनी को दोषी माना है। प्रत्यर्थीगण पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं और उनसे यह अपेक्षा की जाती है उन्होंने बीमा पालिसी की शर्तों को ध्यानपूर्वक देखा होगा।
प्रोफार्मा प्रत्यर्थी यहॉं से भाग चुका है और उनका पता नहीं लग रहा है। तब भी विद्वान जिला आयोग ने अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विरूद्ध निर्णय पारित किया है जो गलत है। विद्वान जिला आयोग ने पक्षकारों के अभिकथन
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के विपरीत निर्णय पारित किया है। अत: निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय और आदेश अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रतीक सक्सेना एवं प्रत्यर्थी संख्या-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता श्री अर्जुन कौशल को सुना और पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी संख्या-3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
हमने विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-12-2014 का अवलोकन किया ।
विद्वान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
" परिवादीगण का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से छ: सप्ताह के अन्दर परिवादीगण को 30,000/-रू० मय ब्याज दौरान वाद व आइंदा बशरह 9 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादीगण को मानसिक क्लेश हेतु 10,000/-रू० (दस हजार रूपये) तथा रू0 5000/-(पॉच हजार) वाद व्यय अदा करेंगे, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अन्दर परिवादीगण को यह धनराशि अदा नहीं करते हैं तो विपक्षी को समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायगी तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।"
इस आदेश में विपक्षी संख्या-1 फ्यूचर जनरली इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है। परिवादी ने परिवाद फ्यूचर जनरली इण्डिया लाइफ इंश्योरेंश कम्पनी लि0 द्वारा शाखा प्रबन्धक एवं वीकेयर मल्टीट्रेड प्रा०लि० द्वारा शाखा प्रबन्धक के विरूद्ध प्रस्तुत किया है।
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परिवादी का कथन है कि- विपक्षी संख्या-1 इंश्योरेंश कम्पनी है और विपक्षी संख्या-2 उसका अभिकर्ता है। विपक्षीगण ने परिवादी को बीमा लेने के लिए मजबूर किया और कहा कि उसे केवल एक प्रीमियम रू० 30,000/- का अदा करना है। चार वर्ष बाद वह धनराशि रू0 60,000/- होकर उसे वापस मिल जाएगी। इसके साथ ही दुर्घटना का भी लाभ दिया जाएगा। परिवादीगण को केवल 30,000/-रू० का प्रीमियम अदा करना था। शेष किस्तें विपक्षी संख्या-2 को अदा की जानी थी। चार वर्ष बाद रू0 60,000/- मनी बैक पालिसी के रूप में परिवादीगण को प्राप्त होना था। यह पालिसी 15 वर्षों तक चलनी थी। इसकी पुष्टि के लिए अभिलेख 2 तथा 3 ए दाखिल किये गये हैं। विपक्षी संख्या-2 के द्वारा मनी बैक पालिसी के अन्तर्गत मिलने वाली पालिसी अदा नहीं की गयी बल्कि विपक्षी संख्या-2 अपना बोरी बिस्तर उठाकर कहीं गायब हो गया । उसके विरूद्ध निवेशकों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवायी चॅूकि विपक्षी संख्या-2 वर्तमान समय में नहीं है इसलिए अब जो भी वाद कारण परिवादीगण को उत्पन्न हुआ है वह विपक्षी संख्या-1 के विरूद्ध है।
विपक्षी संख्या– 1 ने यह अभिकथित किया है कि प्रस्तुत परिवाद 2 (1) (डी) (।।) के प्रावधानों से बाधित है क्योंकि प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है उसने धन कमाने के उद्देश्य से पालिसी लिया था। विपक्षी संख्या-1 का विपक्षी संख्या-2 से कोई वास्ता व सरोकार नहीं है। परिवादीगण के द्वारा जो तथ्य परिवाद में अभिकथित किये गये हैं वह सच्चाई से परे हैं। परिवादीगण का परिवाद धारा 24 ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों से बाधित है। परिवादीगण ने रेगुलेशन 6 (2) (IRDA) 2002 का लाभ नहीं लिया है। यदि उसे पालिसी नहीं चलानी थी तो उसे 15 दिन के अन्दर
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विपक्षी संख्या-1 अथवा 2 को बता देना चाहिए था कि वह आगे पालिसी नहीं चलाना चाहता है।
यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी संख्या-1 इंश्योरेंश कम्पनी लि0 है और प्रत्यर्थी संख्या-2 उसका अभिकर्ता है। विपक्षीगण ने लालच दिखाकर परिवादी को बीमा पालिसी लेने के लिए बाध्य किया है। स्पष्ट है कि बीमा कम्पनी की ओर से बीमा पालिसी लेने के लिए लुभावने सपने दिखाकर बीमा पालिसी बेचने का कार्य अभिकर्ता का होता है। यहॉं पर विपक्षी अभिकर्ता ने परिवादी को आकृर्षित कर लुभावने सपने दिखाकर पालिसी दिया है और इसके लिए विपक्षी अभिकर्ता को बीमा कम्पनी द्वारा अच्छा कमीशन भी दिया गया है। विद्वान जिला आयोग ने यह निर्णय दिया है कि परिवाद कालबाधित नहीं है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। परिवादी द्वारा बताया गया है कि उसे मात्र 30,000/-रू० जमा करना था और पालिसी 15 वर्ष के लिए है शेष धनराशि विपक्षी को अदा करना है और चार वर्ष के बाद परिवादी को मनी बैक पालिसी के अन्तर्गत 60,000/-रू० मिलना था। यह ठगी का स्पष्ट मामला है और इसलिए इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी पंजीकृत करायी गयी है। परिवादी ने 30,000/-रू० जमा किया है। जब एजेण्ट अपने मालिक की ओर से सारा काम कर रहा था और उसने रूपये जमा कराए तब विपक्षी का उत्तरदायित्व था कि वह इस सम्बन्ध में अद्यतन जानकारी उसे उपलब्ध कराता। अब जबकि मुख्य अभियुक्त भाग चुका है तब अपीलार्थी बीमा कम्पनी इसके लिए उत्तरदायी है। यह कतई विश्वनीय नहीं है कि विपक्षी का इस मिली भगत में कोई हाथ न हो और बिना प्रलोभन के वह बीमा कम्पनी के एजेण्ट के रूप में कार्य करता हो। यह भी स्पष्ट नहीं है कि 30,000/-रू० किस माध्यम से जमा कराए गये हैं। अभिलेखों में समाचार पत्र की कतरन भी लगायी गयी है
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जिसमें लिखा है जल्द अमीर बनने के लालच में फंस गये निवेशक। यह मामला प्रत्यक्ष रूप से विपक्षी द्वारा प्रलोभन देकर बीमा कराए जाने के सम्बन्ध में है और परिवादी, विपक्षीगण के प्रलोभन के लालच में आकर ही बीमा कराने हेतु तैयार हुआ है। अब बीमा कम्पनी अपने उत्तदायित्व से बच नहीं सकती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा इस सम्बन्ध में दिया गया निर्णय विधि सम्मत है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अत: वर्तमान अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। विद्वान जिला आयोग के निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
वाद व्यय पक्षकारों पर।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
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निर्णय आज दिनांक- 04-10-2021 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
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कृष्णा–आशु0 कोर्ट-2