Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/67/2017

KUMARI JAYANTI SHUKLA - Complainant(s)

Versus

SARSWATI DENTAL COLLEGE - Opp.Party(s)

VISHNU KUMAR

14 Jun 2022

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/67/2017
( Date of Filing : 31 Jan 2017 )
 
1. KUMARI JAYANTI SHUKLA
VILL & POST GHURONA THANA BACHRAWA
RAIBARELI
...........Complainant(s)
Versus
1. SARSWATI DENTAL COLLEGE
TIWARIGANJ FAIZABAD ROAD POST OFFICE JUGOR
LUCKNOW
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya PRESIDENT
 HON'BLE MS. sonia Singh MEMBER
  Ashok Kumar Singh MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 14 Jun 2022
Final Order / Judgement

     जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।

            परिवाद संख्‍या:-   67/2017                                             उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्‍यक्ष।

                    श्री अशोक कुमार सिंहसदस्‍य।

         श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्‍य।             

परिवाद प्रस्‍तुत करने की तारीख:-31.01.2017

परिवाद के निर्णय की तारीख:-14.06.2022

कुमारी जयन्‍ती शुक्‍ला पुत्री श्री चन्‍द्र प्रकाश शुक्‍ला, निवासी-ग्राम व पोस्‍ट घुरौना, थाना बछरांवा, जिला रायबरेली।                       .............परिवादिनी।                                                                

                          

बनाम

चेयरमैन, सरस्‍वती डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, तिवारीगंज फैजाबाद रोड, पोस्‍ट आफिस जुगौर, लखनऊ।                                  ............विपक्षी।

                                                

आदेश द्वारा-श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्‍य।

 

                               निर्णय

1.   परिवादिनी ने प्रस्‍तुत परिवाद अन्‍तर्गत धारा 12 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत विपक्षी से मानसिक व शारीरिक क्षति हेतु 2,00,000.00 रूपये, चिकित्‍सीय लापरवाही हेतु 1,00,000.00 रूपये, विधि व्‍यवसाय में हुई क्षति 1,00,000.00 रूपये, चेहरे की बनावट खराब करने के कारण हुई क्षति जिससे विवाह में बाधा हो रही है, हेतु 1,00,000.00 रूपये, अधिवक्‍ता फीस 50,000.00 रूपये एवं वाद व्‍यय हेतु 50,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्‍तुत किया है।

2.   संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी विधि व्‍यवसाय का कार्य करती है। परिवादिनी अपने दॉंतो में समस्‍या के कारण दिनॉंक 24.08.2009 को विपक्षी के पास चिकित्‍सीय सलाह हेतु गयी व विपक्षी द्वारा पंजीकरण धनराशि प्राप्‍त करने के बाद कुछ चिकित्‍सीय परीक्षण के उपरान्‍त बताया गया कि मसूढ़ो में तकलीफ है इलाज काफी दिन चलेगा। परिवादिनी दिनाँक 24.08.2009 से 29.09.2012 तक लगभग 37 बार विपक्षी के यहॉं इलाज हेतु गयी। दिनॉंक 24.08.2009 को परिवादिनी को चिकित्‍सीय उपचार हेतु विपक्षी के अस्‍पताल के अन्‍य विभाग Department of Aurto Dentist  रेफर कर उपचार शुरू किया गया व दातों की बाइडिंग कर दी गयी। बाइडिंग के पश्‍चात 03 मई 2011 तक दॉतों से संबंधित समस्‍यायें बनी रही क्‍योंकि विपक्षी द्वारा सही उपचार नहीं किया गया।

3.   परिवादिनी द्वारा डॉ0 पूनम व डॉ0 विजेता की सलाह पर पुन: रेफर कर अन्‍य Department of Oral Surgery  में दिनॉंक 26.11.2011 को उपचार हेतु भेज दिया गया व उपरोक्‍त विभाग में 26.11.2011 को दो दांत निकाले गये पुन: दिनॉंक 30.11.2011 को दो दांत निकाले गये उसके बाद पुन: Department of Oral Surgery  के डॉ0 अभिषेक सिंह से इलाज हेतु भेज दिया गया।

4.  परिवादिनी द्वारा दिनॉंक 16.02.2012 को डॉ0 अभिषेक सिंह द्वारा चिपके ब्रेक्‍ट प्‍वाइन्‍ट दॉतों को निकालने मं गंभीर चिकित्‍सीय लापरवाही विपक्षी द्वारा की गयी जिससे परिवादी का एक सही दॉत भी टूट गया, जिससे भयंकर पीड़ा हुई कि वह अचेत हो गयी । डॉ अभिषेक द्वारा लापरवाही करते हुए सही पूरी दॉत को बगल के दॉत से चिपकाकर रोक दिया गया। उपरोक्‍त पीड़ा को देखते हुए डॉ0 अभिषेक ने परिवादी को Department of perodentics  में रेफर कर दिया।

5.   विपक्षी डॉ0 आशीष माथुर द्वारा बताया गया कि चिकित्‍सीय लापरवाही व जल्‍दबाजी के कारण परिवादिनी को यह पीड़ा हुई है। यह भी बताया गया कि जो चार दॉत निकाले गये वो निकालने की आवश्‍यकता नहीं थी। परिवादिनी कुछ भी खाने पीने में अस्‍मर्थ हो गयी। परिवादिनी द्वारा उपरोक्‍त प्रकरण की शिकायत मानवाधिकार आयोग में की गयी जहॉं एक चिकित्‍सीय बोर्ड द्वारा विशेषज्ञ आख्‍या मॉंगी गयी जिसमें चिकित्‍सीय लापरवाही पाया जाना सिद्ध होता है।

6.   विपक्षी द्वारा अपना उत्‍तर पत्र प्रस्‍तुत करते हुए परिवाद पत्र के कथनों को मुख्‍यत: अस्‍वीकार करते हुए अवगत कराया गया है कि उनकी सरस्‍वती डेन्‍टल कालेज एक प्रधान संस्‍था है जो सामाजिक जिम्‍मेदारियों का निवर्हन करते हुए मामूली फीस लेकर कार्य करती है और परिवादिनी स्‍वयं उनके यहॉं इलाज के लिये आयी थी। उनका कथन है कि परिवादिनी का आर्थोडेन्टिस विभाग द्वारा गहन परीक्षण किया गया और परिवादिनी को प्रक्रियात्‍मक पहलू बताकर उनको भला बुरा समझाते हुए परिवादिनी की सहमति अ पर चिकित्‍सीय इलाज प्रदान किया गया। परन्‍तु परिवादिनी ने डॉक्‍टर की मौखिक हाईजीन की सलाह को ध्‍यान नहीं दिया और कई बार समय पर उपस्थित नहीं हुई और दिनॉंक 20.07.2010 से 20.10.2010 तक एवं 18.06.2011 से 26.11.2011 तक डॉक्‍टर को बिना बताये अनुपस्थित रहीं।

7.   विपक्षी का कथन है कि परिवादिनी ने अपनी सनक और शौक के आधार पर इलाज कराया और वह लापरवाह रही और केवल निहित स्‍वार्थ एवं संस्‍था पर दबाव बनाने के लिये परिवाद दाखिल किया है। विपक्षी का यह भी कथन है कि परिवादिनी का इलाज मानक मानदण्‍ड, निर्धारित विनिर्देश के आधार पर डॉक्‍टरों के विवेकपूर्ण निर्णय के आधार पर किया गया और उनकी शिकायत झूठी, आधारहीन और मनगढ़न्‍त है जो संस्‍था पर अपने परोक्ष अभिप्राय से वित्‍तीय लाभ अर्जित करने के उद्देश्‍य से किया है जो निरस्‍त होने योग्‍य है।

8.   पत्रावली का परिशीलन किया गया। पत्रावली में उपलब्‍ध तथ्‍यों, साक्ष्‍यों तथा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्‍ताओं के तर्कों को सुना गया जिससे प्रतीत होता है कि परिवादिनी विपक्षी के पास मसूढ़ों में तकलीफ के इलाज हेतु गयी जहॉं इलाज काफी दिनों तक चला। परिवादिनी को उपचार हेतु Aurto Dentist  विभाग को सौपा गया और उनके दातों की बाइडिंग कर दी गयी परन्‍तु समस्‍यायें बनी रहीं। उक्‍त के उपरान्‍त परिवादिनी को Oral Surgery  विभाग को रेफर किया गया, जहॉं उनके चार दातों को निकाल दिया गया जिसके बाद Aurto Dentist  विभाग में डॉ0 अभिषेक सिंह के पास इलाज हेतु भेजा गया जिसके बाद परिवादिनी के एक सही दॉंत भी टूट गये जिसकी वजह से पीड़ा के कारण सही पूरी दॉत को बगल के दॉत से चिपकाकर रोक दिया गया और परिादिनी की पीड़ा के कारण उसे perodentics विभाग में रेफर कर दिया गया। वहॉं डॉ0 आशीष माथुर ने बताया कि चिकित्‍सीय लापरवाही व जल्‍दबाजी के कारण परिवादिनी को पीड़ा हुई और जो चार दॉंत निकाले गये उसकी आवश्‍यकता नहीं थी। उक्‍त की वजह से परिवादिनी को अत्‍यधिक पीड़ा व कष्‍ट हुआ।

9.   परिवादिनी द्वारा उपरोक्‍त प्रकरण की शिकायत मानवाधिकार आयोग में की गयी जिस पर एक चिकित्‍सीय बोर्ड द्वारा विशेषज्ञ आख्‍या मॉंगी गयी, जिसकी रिपोर्ट परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद के साथ संलग्‍न की गयी है। उक्‍त रिपोर्ट में विपक्षी के डिपार्टमेंट आफ आर्थो के इलाज में गंभीर लापरवाही बरतने जिससे परिवादिनी का मुँह खराब होने से अपूणर्नीय क्षति की रिपोर्ट प्रेषित की गयी है।

10.  विपक्षी द्वारा अपने उत्‍तर पत्र तथा शपथ पत्र के माध्‍यम से प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों में उल्‍लेख किया है कि परिवादिनी स्‍वयं स्‍वेच्‍छा से उनके यहॉं इलाज कराने आयी थी तदोपरान्‍त Aurto Dentist  विभाग द्वारा गहनता से परीक्षण कर इलाज किया गया। विपक्षी द्वारा परिवादिनी को डॉक्‍टर की सलाह को न मानने तथा लम्‍बे समय तक अनुपस्थित रहने का आरोप लगाया है और निहित स्‍वार्थ एवं संस्‍थापर पर दबाव बनाने के लिये परिवाद दाखिल करने का उल्‍लेख किया है तथा परिवादिनी की शिकायत झूठी , आधारहीन और मनगढ़न्‍त तथा वित्‍तीय लाभ अर्जित करने हेतु दाखिल किया जाना माना है।

11.  परिवादिनी द्वारा शपथ पत्र पर साक्ष्‍य प्रस्‍तुत कर सभी साक्ष्‍य जिसे डॉक्‍टर की रिपोर्ट, उपचार संबंधी कागजात, दॉतों की फोटो, रसीद तथा विशेषज्ञ एवं चिकित्‍सा   बोर्ड की रिपोर्ट संलग्‍न किया है। परिवादिनी द्वारा अपने शपथ पत्र में निवेदन किया गया है कि गलत फोरम/कोर्ट में वाद दायर करने से परिवादिनी का विधिक अधिकार खत्‍म नहीं हो जाता है और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित विभिन्‍न निर्णयों में इस सिद्धान्‍त से संबंधित आदेश पारित किया है।

12.  उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्‍ताओं के तर्को को सुना गया। परिवादिनी तथा उनके अधिवक्‍ता द्वारा अपने परिवाद तथा साक्ष्‍यों पर तर्क प्रस्‍तुत किया तथा बल दिया कि परिवादिनी के साथ गंभीर चिकित्‍सीय लापरवाही की गयी है जिसके कारण चेहरे की बनावट बदल गयी जिसके कारण परिवादिनी का विवाह नहीं हो पा रहा है तथा गलत इलाज के कारण अपने विधि व्‍यवसाय करने में अक्षम रही और साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करके चिकित्‍सीय विशेषज्ञों की रिपोर्ट का उल्‍लेख किया जिसमें विपक्षी के आर्थो विभाग को दोषी ठहराया गया है।

13.  विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा सर्वप्रथम अपने दिये गये उत्‍तर पत्र तथा शपथ पत्र द्वारा संलग्‍न साक्ष्‍यों के इतर यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि इस आयोग को इस परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है क्‍योंकि यह परिवाद “ काल बाधित” है क्‍योंकि इस आयोग को Cause of action से 02 वर्ष के अन्‍दर के परिवादों को ही सुनने का अधिकार है। विपक्षी के अधिवक्‍ता द्वारा माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग के ‘’O.K. Gaur Vs Choithram Hospital And Research Centre H.P. के निर्णय का उद्धरण प्रस्‍तुत किया है जिसमें उल्‍लेख निम्‍न प्रकार है-As a matter of law, the consumer forum must deal with the complaint on merits only if the complaint has been filed within two years from the date of accrual of cause of reasons recorded in writing.” इसी आदेश में यह भी उल्‍लेख है ‘’ Present appeal is not maintainable, as the complaint was barred by limitation and even on merits appellant has no case.

14.  इसी प्रकार विपक्षी के द्वारा माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग द्वारा Bonda Kasi Annapurna Vs The Branch Manager, Bajaj Allianz Ins. Co. Ltd. एवं The Branch Manager Axis Bank, Chinamiram, में पारित आदेश की कापी संलग्‍न है जिसके उद्धरण में उल्‍लेख है कि-Complainant has nowhere stated in the application that she was not residing with her earning son; even thaen, no reasonable explanation has been given for condonation of inordinate delay of 1163 days. Merely because complainant was from rural background, inordinate delay of more than 1100 days cannot be condoned. Not only this, as per this application, documents were sent to Counsel in Delhi in the last week of July, 2013; even then appellant did not come to Delhi in time for filing appeal and appeal was filed in March, 2014. Thus, it becomes clear that there is no explanation at all for condonation of inordinate delay of 1163 days.

14.  माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग द्वारा आगे कहा है कि-It is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that the special period of limitation has been prescribed under the Consumer Protection Act, 1986, for filing appeals and revisions in Consumer matters and the object of expeditious adjudication of the Consumer disputes will get defeated, if  this Court was to entertain highly belated petitions filed against the oreers of the Consumer Fora.

          Thus, it becomes clear that there is no reasonable explanation at all for condonation of inordinate delay of 1163 days. In such circumstances, application for condonation of delay is dismissed. As application for condonation of delay has been dismissed, appeal being barred by limitation is also liable to be dismissed.

15.  विपक्षी द्वारा माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय का Bharat Barrel & Drum Mfg. Co. Ltd. & ANR. Vs Respondent Employees State Insurance Corporation के केस में दिनॉंक 23.09.1971 को पारित आदेश की कापी संलग्‍न किया है जिसमें उल्‍लेख है कि-Mere reading of Section 3 of the Act shows that it is mandatory and absolute in nature. It enjoins upon the courts to dismiss any suit instituted, appeal preferred application made, after the prescribed period of limitation, although limitations has not been set up as a defense. Courts have no discretion or inherent powers to condone the delay if the suit is filed beyond the prescribed period of limitation. Rather a duty is cast on the court to dismiss the suit appeal or application, it the same is barred by limitation, unless the matter is covered by sections 4 to 24 of the Act.

16.  विपक्षी द्वारा माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के Raghwendra Sharan Singh Vs Ram Prasanna Singh (Dead) by Lrs की कापी प्रस्‍तुत कर उल्‍लेख किया है कि माननीय न्‍यायालय ने Period of  Limitation से बाधित वाद निरस्‍त होने योग्‍य होते हैं। विपक्षी द्वारा उपरोक्‍त समस्‍त उद्धरण प्रस्‍तुत कर उनके अधिवक्‍ता द्वारा अधिकतम जोर और बल लिमिटेशन के मुद्दे पर दिया है, और बहस में तर्क प्रस्‍तुत किया है कि यह परिवाद इस आयोग/फोरम के क्षेत्राधिकार से बाहर है।

17.  अत: इन विभिन्‍न नजीरों तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों के दृष्टिगत सर्वप्रथम इस तथ्‍य का परीक्षण किया जाना आवश्‍यक है कि क्‍या यह परिवाद काल बाधित है तथा लिमिटेशन लॉ के अन्‍तर्गत पोषणीय है अथवा नहीं। यहॉं इस तथ्‍य पर प्रकाश डालना सार्थक होगा कि विपक्षी को अपने समस्‍त उद्धरण को संलग्‍न कर परिवाद के प्रारम्‍भ में ही लिमिटेशन लॉ के अन्‍तर्गत परिवाद काल बाधित होने का मुद्दा प्रस्‍तुत/उठाया जाना चाहिए था, परन्‍तु विपक्षी के उत्‍तर पत्र, साक्ष्‍यों एवं प्रस्‍तुत शपथ पत्र में कहीं भी इसका उल्‍लेख नहीं किया गया। इस प्रकरण को After Thonght के रूप में बहस के दौरान उनके अधिवक्‍ता द्वारा प्रस्‍तुत किया गया है, जो एक “ विलम्बित आधार” प्रतीत होता है फिर भी चॅूंकि विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा पुरजोर तरीके से विभिन्‍न नजीरों के साथ लिमिटेशन बार पर तर्क प्रस्‍तुत किया गया है इसलिये इसका परीक्षण किया जाना आवश्‍यक है। परिवादिनी के अधिवक्‍ता द्वारा इसका पुरजोर विरोध किया तथा माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के National Insurance Company Vs Hindustan Safety Class Works Ltd.  एवं Kanoria Chemicals & Industries Ltd. में पारित आदेश की प्रतिलिपि प्रस्‍तुत कर तर्क प्रस्‍तुत किया कि माननीय न्‍यायालय द्वारा अपने आदेश में निम्‍न आदेश पारित किया है-Provision of Limitation in the Act cannot bestrictly construed to disadvantage consumer in a case where supplier of goods or services itself is instrumental in causing  a delay in settlement of consumers claim. परिवादिनी ने अधिकार हनन के दृष्टिगत उसे संरक्षित करने के उद्देश्‍य से सर्वप्रथम वह उत्‍तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में वाद प्रस्‍तुत किया। उत्‍तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग द्वारा परिवादिनी के अधिकारों के हनन के दृष्टिगत चिकित्‍सीय बोर्ड गठित कर विशेषज्ञ की आख्‍या मॉंगी गयी। परिवादिनी के अधिवक्‍ता का तर्क है चिकित्‍सीय बोर्ड के निर्णय में विपक्षी के स्‍तर पर चिकित्‍सीय लापरवाही विपक्षी द्वारा कारित होना माना गया है। इसके अतिरिक्‍त दॉंतों के इलाज में खिलवाड़ व गड़बड़ी के कारण परिवादिनी अत्‍यधिक कष्‍ट और पीड़ा में रही और विधिक कार्य नहीं कर पायी। परिवादिनी का यह भी तर्क है कि गलत फोरम/कोर्ट में वाद दायर करने से उसका विधिक अधिकार खत्‍म नहीं हो जाता है और माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित विभिन्‍न निर्णयों में इस सिद्धान्‍त के संदर्भ में आदेश पारित किया है।

18.  अत: उभयपक्षों के तर्कों और उनके द्वारा प्रस्‍तुत दृष्‍टांत और उद्धरणों एवं आधार तथा साक्ष्‍यों के अवलोकन से यह परिवाद लिमिटेशन लॉ के अन्‍तर्गत कालबाधित नहीं पाया जाता है तथा इस परिवाद को सुनने तथा इस पर निर्णय पारित करना न्‍यायोचित प्रतीत होता है।

19.  जहॉं तक परिवाद के योग्‍यता का प्रश्‍न है तो पत्रावली में उपलब्‍ध तथ्‍यों एवं साक्ष्‍यों के परिशीलन से प्रतीत होता है कि परिवादिनी के साथ विपक्षी द्वारा चिकित्‍सीय लापरवाही की गयी और दॉतों को जल्‍दबाजी में उखाड़ देने के कारण परिवादिनी को अत्‍यधिक पीड़ा हुई और वह गंभीर कष्‍ट में रही। विपक्षी के दो विभागों में भी एक मत नहीं पाया गया और जल्‍दबाजी और चिकित्‍सीय त्रुटि पायी गयी। परिवादिनी जब अपनी फरियाद लेकर उत्‍तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग गयी तो मा0 मानवाधिकार आयोग द्वारा चिकित्‍सीय बोर्ड गठित कर विशेषज्ञ से रिपोर्ट मॉंगी गयी। उक्‍त विशेषज्ञ की रिपोर्ट जो सी0एम0ओ0 लखनऊ द्वारा प्रेषित की गयी है में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख किया है कि उपरोक्‍त प्रकरण में यह बात साफ है कि परिवादिनी के इलाज में हास्‍पीटल के डिपार्टमेंट आफ आर्थो द्वारा इलाज में गंभीर लापरवाही बरती गयी है जिस कारण परिवादिनी का पूरा मुँह खराब है जिससे परिवादिनी बहुत निराश एवं हताश है एवं उसे अपूर्णनीय क्षति हुई है। अत: जिम्‍मेदार लोगों को निर्देश देने का कष्‍ट करें। चिकित्‍सा बोर्ड ने सभी तथ्‍यों तथा सभी पक्षों के तर्कों का परीक्षण करते हुए उपरोक्‍त निर्णय लिया है जिससे स्‍पष्‍ट रूप से सरस्‍वती डेन्‍टल कालेज के संबंधित डॉक्‍टर को जिम्‍मेदार मानते हुए उन्‍हें दोषी ठहराया है।

20.  परिवादिनी के द्वारा मेडिकल नेग्‍लीजेन्‍स के मामले में उद्धरण प्रस्‍तुत किया है जिसमें माननीय राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग द्वारा वितेन्‍द्र कुमार साही बनाम डॉ0 के0एस0 वर्मा में डॉक्‍टर के स्‍तर पर स्‍पष्‍ट रूप से मेडिकल नेग्‍लीजेंस का मामला पाया है और आदेश पारित किया है कि In absence of any record to that effect, this commission is of the view that reasonable care and skill ought to be exercised as per the parlance of normal medical practices has ot been exercised herein-Patient was not even advised to come for a review as can be seen from the prescription-Negligence on behalf of treating doctor in exercising due care and caution post operatively, proved Patient is entitled to a reasonable compensation of Rs 1,00,000 with interest@ 9% P.A.  इसी प्रकार परिवादिनी द्वारा माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा Seela Hirba Naik Gaunekar: Apollo Hospitals Ltd Vs. Apollo Hospitals Ltd & Anr: Sheela Hirba Naik Gaunekar  में 05 अक्‍टूबर 2016 को पारित आदेश में अपोलो हास्पिटल के डाक्‍टर को गंभीर अनियमितता पाये जाते हुए, मेडिकल नेग्‍लीजेंस के केस में माननीय नेशनल कन्‍ज्‍यूमर कमीशन जिसने भी मेडिकल नेग्‍लीजेंस का केस पाया था उसमें मेडिकल नेग्‍लीजेंस की गंभीरता को अत्‍यधिक उच्‍च परिमाण का मानते हुए क्षतिपूर्ति एवं ब्‍याज में अत्‍यधिक बढ़ाते हुए दो लाख से 50 लाख किया और ब्‍याज को 06 प्रतिशत से बढ़ा कर 09 प्रतिशत ब्‍याज पीडि़त को प्रदान किया और डाक्‍टर को दोषी ठहराया है। इस निर्णय से स्‍पष्‍ट है कि न्‍यायिक दृष्टि से मेडिकल नेग्‍लीजेंस को अत्‍यधिक गंभीर मानते हुए अधिकतम दण्‍ड पारित किया गया है।

21.  विपक्षी द्वारा परिवादिनी के कुछ समय तक अनुपस्थित रहना, डाक्‍टर की सलाह को सही ढंग से न मानने को आधार मानकर तर्क प्रस्‍तुत किया कि परिवादिनी का इलाज मानक मानदण्‍ड, निर्धारित विनिर्देश के आधार पर इलाज करना बहुत ही कमजोर तथा आप्रसंगिक व बेतुका प्रतीत होता है जो केवल अपनी कमी पर पर्दा डालने का प्रयास प्रतीत होता है। एक महिला का चेहरा उसके व्‍यक्तित्‍व व सौन्‍दर्य/सुन्‍दरता का आधार होता है और दॉतों से उसके मुख को स्‍वरूप मिलता है।  यदि दॉंतों को निकाल दिया जाता है तो महिला का फेस डिस्‍मेंन्‍टल का स्‍वरूप धारण कर लेता है और जिसके फलस्‍वरूप उसका हताश, निराश और अवसादग्रस्‍त होना स्‍वाभाविक होता है जो महिला के लिये उच्‍चतम परिमाण का कष्‍ट और पीड़ा है। यह मामला स्‍पष्‍ट रूप से मेडिकल नेग्‍लीजेंस का केस है जिसके कारण महिला को अत्‍यधिक कष्‍ट और पीड़ा हुई तथा उसके मुख के स्‍वरूप तथा उसके सौन्‍दर्य/सुन्‍दरता को नष्‍ट कर देता है जो महिला की हताशा, निराशा तथा मनोवैज्ञानिक दबाव का कारण बनता है। डॉक्‍टर तथा अस्‍पतालों पर व्‍यक्ति के जीवन तथा उसके व्‍यक्तित्‍व का दारोमदार रहता है और यदि इसी लापरवाही से इलाज किया जायेगा तो मरीजों में मनोवैज्ञानिक भय उत्‍पन्‍न हो जायेगा और वे डॉक्‍टर एवं अस्‍पताल में इलाज से डरेगें और भयभीत रहेंगें।

22.  उपरोक्‍त सभी तथ्‍यों के विस्‍तृत परिशीलन तथा परीक्षण से स्‍पष्‍ट है कि परिवादिनी को अत्‍यधिक मानसिक कष्‍ट और पीड़ा और मनोवैज्ञानिक दबाव तथा दर्द देने में सरस्‍वती डेन्‍टल कालेज दोषी है जिसके फलस्‍वरूप परिवादिनी को भारी क्षतिपूर्ति का हकदार बनाता है। क्षतिपूर्ति का परिणाम भी माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त आदेश के दृष्टिगत अधिक होना चाहिए ताकि यह उद्धहरण बने और डाक्‍टर्स के लिये सबक हो ताकि वे किसी महिला के पर्सनली तथा व्‍यक्तित्‍व से खिलवाड़ न करें और सभी इलाज  में गंभीर सतर्कता बरते ताकि मरीज के मन में विश्‍वास उत्‍पन्‍न हो और नि:संकोच इलाज कराने का वातावरण उत्‍पन्‍न हो।

23.  अत: परिवादिनी को मानसिक व शारीरिक क्षति चिकित्‍सीय लापरवाही, उसके विधि व्‍यवसाय पर घात लगाने तथा उसके चेहरे की बनावट खराब कर उसके व्‍यक्तित्‍व को अपार नुकसान पहुँचाने के कारण क्षतिपूर्ति एवं वाद व्‍यय दिलाया जाना न्‍यायोचित प्रतीत होता है, अत: परिवादिनी का परिवाद स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

                          आदेश

     परिवादिनी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को मा‍नसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति एवं विधि व्‍यावसाय में हुए नुकसान तथा वाद व्‍यय आदि के लिये मुबलिग 5,00,000.00 (पॉंच लाख रूपया मात्र) वाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ निर्णय के 45 दिन के अन्‍दर अदा करें। यदि उपरोक्‍त आदेश का अनुपालन निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी भुगतेय होगा।

 

 

   (सोनिया सिंह)     (अशोक कुमार सिंह )            (नीलकंठ सहाय)

          सदस्‍य              सदस्‍य                  अध्‍यक्ष

                            जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                             लखनऊ।   

आज यह आदेश/निर्णय हस्‍ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।

                                   

   (सोनिया सिंह)     (अशोक कुमार सिंह)               (नीलकंठ सहाय)

         सदस्‍य              सदस्‍य                   अध्‍यक्ष

                            जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                              लखनऊ।

दिनॉंक-14.06.2022

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MS. sonia Singh]
MEMBER
 
 
[ Ashok Kumar Singh]
MEMBER
 

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