राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-431/2019
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, कासगंज द्वारा परिवाद संख्या 39/2018 में पारित आदेश दिनांक 08.02.2019 के विरूद्ध)
Executive Engineer, Dakchhinanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd., Vidyut Vitran Khand, Kasganj.
..................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
Saroj Kumari, wife of Sri Dwijendra Kumar Sahu (D.K. Sahu), resident of Mohalla Mohaan Railway Danda Sahawar Gate, Kasganj, District Kasganj.
...................प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री टी0एच0 नकवी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 25.02.2020
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-39/2018 श्रीमती सरोज कुमारी बनाम अधिशासी अभियन्ता दक्षिणांचल वि0 वितरण खण्ड कासगंज में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कासगंज द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 08.02.2019 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय व आदेश के द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''प्रस्तुत वाद वादिया सव्यय स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी द्वारा वादिया घरेलू कनेक्शन सं. 4817/052827 के सदर्भ मे किया गया
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निर्धारण मु. 26481/-रूपया निरस्त करते हुए विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह पूर्व की भाति बिल व्यापारिक से घरेलू विधा के अनुरूप संशोधित करके बिल निर्गत करे उसी के साथ मानसिक आर्थिक व शारीरिक क्षति व वाद व्यय के लिए 3000/-रुपया (तीन हजार रुपया) अदा किया जाना सुनिश्चित करे।''
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री टी0एच0 नकवी उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर विद्युत विभाग द्वारा किये गये असेसमेन्ट (निर्धारण) को चुनौती दिया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 5466/2012 (arising out of SLP No. 35906 of 2011), यू0पी0 पावर कारपोरेशन लि0 व अन्य बनाम अनीस अहमद में पारित निर्णय दिनांक 01.07.2013 में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय अधिकार रहित एवं विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्युत
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विभाग द्वारा परिवर्तन दल की गलत चेकिेंग दिखाकर गलत ढंग से असेसमेन्ट (निर्धारण) किया गया है। अत: परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 5466/2012 (arising out of SLP No. 35906 of 2011), यू0पी0 पावर कारपोरेशन लि0 व अन्य बनाम अनीस अहमद में पारित निर्णय दिनांक 01.07.2013 में प्रतिपादित सिद्धान्त वर्तमान वाद के तथ्यों पर लागू नहीं होता है। जिला फोरम का निर्णय अधिकार युक्त एवं विधिसम्मत है। उसमें किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र की धारा-5 में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने कहा है कि विपक्षी के अधिकारीगण व कर्मचारीगण द्वारा परिवादिनी का तरह तरह से उत्पीड़न किया जा रहा है इसी दुर्भावना से दिनांक 21.08.2017 को विपक्षी विभाग ने परिवादिनी के मकान पर परिवर्तन दलों का आना दर्शाकर गलत नोटिस जारी किया जाना दर्शाया है, जबकि परिवादिनी के मकान पर न तो कोई चेकिंग हुई है और न उसे कोई नोटिस दी गयी है। परिवादिनी ने विपक्षी के पत्र दिनांक 26.10.2017 का उत्तर दिनांक 01.11.2017 को रजिस्ट्री डाक द्वारा दिया है, जिसमें अभिकथित किया गया है कि उसे विपक्षी के कार्यालय द्वारा कथित पत्रांक 5877 दिनांक 05.09.2017 कभी प्राप्त नहीं हुआ है और न उसे कथित पत्र का कोई उत्तर देने का अवसर प्रदान किया गया है। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने निम्न अनुतोष चाहा है:-
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अ- यह कि परिवादिनी का परिवाद पत्र विपक्षी के विरूद्ध सव्यय स्वीकार किया जाकर विपक्षी को आदेशित किया जावे कि वह परिवादिनी के घरेलू विद्युत कनेक्शन संख्या 4817/052827 के संबंध में किए गये निर्धारण मुवलिग 26481/-रूपये को समाप्त कर वसूल न करें तथा पूर्व की भाति स्वीकृत भार दो किलो वाट को व्यापारिक से घरेलू विधा के अनुरूप बिल को संशोधित करते हुए बिल निर्गत करें। तथा क्षतिपूर्ति के रूप में 20,000 रूपये परिवादिनी को विपक्षी से दिलाया जावे।
ब- यह कि अन्य अनुतोष जो राय अदालत में वहक परिवादिनी व खिलाफ विपक्षी हो वह भी सादिर फरमाई जावे।
परिवाद पत्र में याचित अनुतोष एवं परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद अपीलार्थी/विपक्षी के विद्युत विभाग द्वारा किये गये असेसमेन्ट (निर्धारण) से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत किया है। अत: माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0 5466/2012 (arising out of SLP No. 35906 of 2011), यू0पी0 पावर कारपोरेशन लि0 व अन्य बनाम अनीस अहमद में पारित निर्णय दिनांक 01.07.2013 में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को यदि कोई शिकायत निर्धारण आदेश से है तो वह विधि के अनुसार सक्षम अधिकारी के समक्ष अपनी आपत्ति या अपील प्रस्तुत कर सकती है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है।
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अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अधिकार रहित एवं विधि विरूद्ध है। अत: अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए परिवाद प्रत्यर्थी/परिवादिनी को इस छूट के साथ निरस्त किया जाता है कि वह विधि के अनुसार प्रश्नगत निर्धारण आदेश के विरूद्ध आपत्ति अथवा अपील विद्युत अधिनियम के अन्तर्गत सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थी की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि 1500/-रू0 अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1