Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 30/2011 Pankaj Mishra, (died) aged about 41 years son of late Chandra Kant Mishra Advocate, resident of 142, Mohalla Bhiu Purwanath, District Lakhimpur. Substitute Legal heir 1/1 Neelam Misra aged about 35 years W/O Late Sri Pankaj Misra 1/2 Himanshu Misra aged about 18 years 1/3 Gaurav Misra aged about 16 years 1/4 Harshita Misra aged about 11 years 1/5 Sagar Misra aged about 8 years All 1/2 to 1/5 children of Pankaj Misra All are resident Of H.no. 142, Mohalla Bhui Purwanath, District Lakhimpur. - Complainants
Versus - Sarkar Diagnostic C-1093 Sector-A Mahanagar, Lucknow-226006.
- Dr. Vineeta Dwivedi, M.D. Patholigist Sarkar Diagnostics C-1093 Sector-A Mahanagar, Lucknow-226006.
- Dr. Honey Chandra M.D. Pathologist, Sarkar Diagnostics C-1093, Sector A Mahanagar, Lucknow-226006.
- Dr. A. Ahsan, Asstt. D C P Lab Incharge, Sarkar Diagnostics C-1093 Sector-A Mahanagar, Lucknow-226006.
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता:-श्री नीरज कुमार श्रीवास्तव विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री प्रत्यूष त्रिपाठी दिनांक:-21.11.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 50 लाख रूपये इलाज में खर्च की गयी राशि की प्राप्ति के लिए तथा अंकन 25,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के लिए, जो विपक्षी की असावधानी एवं योग्य से कारित हुई है। सेवा में कमी एवं लापरवाही के लिए 25,00,000/-रू0 तथा पुन: अंकन 5,00,000/-रू0 अन्य प्रकीर्ण खर्च के मद में एवं 3,00,000/-रू0 मेडिकल खर्च के लिए एवं 25,000/-रू0 परिवाद व्यय के लिए प्रस्तुत किया गया।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि जुलाई 2009 में परिवादी को पेट की बीमारी का एहसास हुआ, इसके बाद दिनांक 01.08.2009 को डॉक्टर पुनीत मेहरोत्रा लखनऊ से सम्पर्क किया, जिनके द्वारा खून की जांच तथा एण्डोस्कोपी जांच की सलाह दी गयी। अलीगंज स्थित आधुनिक पैथोलॉजी पर जांच करायी गयी, जिसकी रिपोर्ट एनेक्जर सं0 1 एवं 2 है, इसी दिन सरकार डायग्नोस्टिक लैब में एक्सरे कराया गया, जिसकी रिपोर्ट एनेक्जर सं0 3 है। दिनांक 26.09.2009 तक परिवादी का इलाज डॉक्टर पुनीत मेहरोत्रा द्वारा किया गया, परंतु परिवादी के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ तब डॉक्टर द्वारा एचसीवी कराने के लिए दिनांक 26.09.2009 को कहा गया। इसी तिथि को आधुनिक पैथोलॉजी अलीगंज में एचसीवी चेक कराया गया, जिसकी रिपोर्ट एनेक्जर सं0 5 है। एचसीवी रिपोर्ट के अनुसार रिपोर्ट सकारात्मक थी तथा परिवादी का लीवर क्षतिग्रस्त बताया गया, परंतु इस रिपोर्ट की पुष्टि के लिए विपक्षी के लैब में दिनांक 30.09.2009 को पुन: एचसीवी चेक कराया गया, जो निगेटिव थी, जब परिवादी ने उनके समक्ष आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट प्रस्तुत की तब विपक्षी के निदेशक ने बताया कि उनकी रिपोर्ट पूर्णता सही है और आधुनिक पैथोलॉजी की रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण है तथा यह भी बताया कि परिवादी एचसीवी से ग्रसित नहीं है। यह रिपोर्ट एनेक्जर सं0 6 है। परिवादी विपक्षीगण के कर्मचारी तथा डॉक्टर के समझाने पर आश्वस्त हो गये कि वह एचसीवी से ग्रसित नहीं हैं, परंतु मई 2010 में परिवादी की दशा अत्यधिक खराब हो गयी, उसके मुख से खून आने लगा तब दिनांक 25.05.2010 को जिला अस्पताल लखीमपुर खीरी में भर्ती कराया गया। संबंधित दस्तावेज एनेक्जर सं0 7 है, वहां से दिनांक 26.05.2010 को खैराबाद ले जाया गया। इसके बाद दिनांक 27.05.2010 को लखनऊ ले जाया गया। निराला नगर अस्पताल मे डॉक्टर आर0पी0 सिंह ने परिवादी का इलाज प्रारंभ किया। दिनांक 27.05.2010 को कराये गये परीक्षण में पाया गया कि परिवादी एचसीवी से ग्रसित है। यह रिपोर्ट इन्दू स्कैन में तैयार करायी गयी, जो एनेक्जर सं0 9 है। इसके पश्चात आरएमएल महरोत्रा पैथोलॉजी में भी एचसीवी से ग्रसित पाया गया, यह रिपोर्ट एनेक्जर सं0 10 है। इस प्रकार परिवादी को सरकार डायग्नोस्टिक द्वारा धोखा दिया गया। लापरवाही से उसकी रिपोर्ट तैयार की गयी तथा पूर्व की रिपोर्ट दिखाने के बावजूद अपनी रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर विचार नहीं किया गया। परिवादी को बाद में पशुपति सिंघानिया रिसर्च इन्स्टीट्यूट फॉर लीवर नई दिल्ली में संदर्भित किया गया, जहां पर डॉक्टर जेसी विज ने परिवादी का इलाज प्रारंभ किया, यह दस्तावेज एनेक्जर सं0 14 है, इसके बाद परिवादी को एम्स में रेफर किया गया और वहां के क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी डिवीजनल में दिनांक 21.01.2011 तक परिवादी का इलाज हुआ, इसके बाद पुन: अल्ट्रासाउण्ड कराया गया, जिसकी रिपोर्ट एनेक्जर सं0 16 है। दिनांक 31.01.2011 को जी0आई0 इण्डोस्कोपी करायी गयी, जिसकी रिपोर्ट एनेक्जर सं0 17 एवं 18 है। परिवादी को प्रतिदिन 2b3MIV daily + Ribavarine 800 mg प्रतिदिन एक वर्ष तक उपभोग के लिए कहा गया, जिसका खर्च 12,000/-रू0 प्रतिदिन है, इस इलाज की पर्ची का दस्तावेज एनेक्जर सं0 19 है। इस प्रकार परिवादी ने अपने इलाज में अत्यधिक भारी राशि अदा की है। तदनुसार उपरोक्त वर्णित अनुतोष मांगते हुए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- दौरान वाद परिवादी की मृत्यु हो गयी। अत: उनके उत्तराधिकारियों को रिकार्ड पर प्रतिस्थापित किया गया और मृत्यु होने के कारण अंकन 54,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की मांग राशि में बढ़ोत्तरी की गयी।
- परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र तथा एनेक्जर सं0 1 लगायत 19 प्रस्तुत किये गये।
- आदेश पंजिका विवरण के अनुसार दिनांक 29.11.2013 को विपक्षी के अधिवक्ता श्री प्रत्यूष त्रिपाठी उपस्थित थे, परंतु उनका कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया, इसके पश्चात दिनांक 29.05.2014 को भी लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया। आयोग द्वारा दिनांक 13.10.2014 नियत की गयी। इस तिथि को भी लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया। दिनांक 13.08.2015 को लिखित कथन प्रस्तुत किया गया, जबकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 13 (क) के अनुसार लिखित कथन 30 दिन के अंदर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा 15 दिन की अवधि की बढ़ोत्तरी की जा सकती है। 30 दिन की अवधि की गणना शमन की सूचना के पश्चात की जायेगी। प्रस्तुत केस में जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है। प्रतिवादीगण के अधिवक्ता दिनांक 29.11.2013 को न्यायालय में उपस्थित थे। अत: उन्हें इस तिथि तक पूर्व सूचना प्राप्त हो चुकी थी। यदि यह माना जाए कि उन्हें उस तिथि की सूचना प्राप्त हुई है तब भी उनके द्वारा लिखित कथन समयावधि के अंतर्गत प्रस्तुत नहीं किया गया। अत: समयावधि से बाहर प्रस्तुत किया गया लिखित कथन विचार मे लेने योग्य नहीं है। अत: लिखित कथन के तथ्य पर कोई विवरण उपरोक्त कारण से या अंकन नहीं किया जा रहा है। इसी प्रकार लिखित कथन के समर्थन में प्रस्तुत की गयी विपक्षी के साक्ष्य का कोई उल्लेख नहीं किया जा रहा है।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ताओं की बहस सुनी तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया।
- परिवादी (मृतक) द्वारा उत्तराधिकारीगण के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि विपक्षीगण द्वारा जिस समय रिपोर्ट तैयार की गयी, उसी समय आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट दिखायी गयी थी, उस तथ्य की पुष्टि परिवादी (मृतक) द्वारा शपथ पत्र से की गयी है, जिसका कोई खण्डन पत्रावली पर मौजूद नही है, इसलिए विपक्षीगण का यह दायित्व बनता था कि वह अपनी रिपोर्ट की तुलना आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट से कर दे, जबकि विपक्षीगण द्वारा यह बहस की गयी है कि परिवादी ने स्वयं रिपोर्ट तैयार करायी थी और आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट उनके समक्ष प्रस्तुत नहीं की गयी थी। चूंकि विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत किया गया लिखित कथन तथा उसके समर्थन में प्रस्तुत की गयी साक्ष्य विचार में लेने योग्य नहीं है। अत: इस स्थिति में माना जा सकता है कि परिवादी द्वारा जो साक्ष्य प्रस्तुत की गयी उसका कोई खण्डन विपक्षीगण द्वारा नहीं किया गया। अत: यह तथ्य परिवादी साक्ष्य से साबित है। विपक्षी द्वारा जो रिपोर्ट तैयार की गयी, उसको देखने के पश्चात परिवादी ने आधुनिक पैथोलॉजी की रिपोर्ट को विपक्षीगण को अवगत कराया, जिसमे एचसीवी बीमारी को दर्शित किया गया था, जबकि विपक्षीगण की पैथोलॉजी में तैयार रिपोर्ट में एचसीवी नामक बीमारी मौजूद नहीं थी। परिवादी (मृतक) ने सशपथ साबित किया है कि आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट को देखने पर विपक्षीगण तथा उसके कर्मचारी द्वारा बताया गया कि यह रिपोर्ट गुणवत्तापूर्ण है तथा इसमें किसी प्रकार की त्रुटि नहीं है और आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण है, जबकि परिवादी (मृतक) को समझाया गया कि 2 भिन्न-भिन्न रिपोर्ट होने की स्थिति में स्वयं अपनी रिपोर्ट पर क्रास चेक किये जाने का दायित्व विपक्षीगण पर था, परंतु इस दायित्व का अनुपालन नहीं किया गया। अत: स्पष्ट है कि उनके द्वारा अपने दायित्व का उल्लंघन किया गया और तदनुसार परिवादी (मृतक) की प्रति सेवा में कमी की गयी।
- विपक्षीगण के विद्धान अधिवक्ता की ओर से यह बहस की गयी है कि परिवादी ने स्वैच्छा से अपना चेकअप कराया था। किसी भी डॉक्टर द्वारा इलाज का पर्चा संदर्भित नहीं था। यह सही है कि परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कथन नहीं किया कि किसी डॉक्टर की सलाह पर विपक्षी सं0 1 से पैथोलॉजी रिपोर्ट प्राप्त की थी। यह कार्य परिवादी ने स्वयं किया, परंतु स्वयं पैथोलॉजी रिपोर्ट प्राप्त करने पर भी विपक्षी का दायित्व समाप्त नहीं हो जाता। विशेषता उस स्थिति में जबकि आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट परिवादी द्वारा अवलोकन के लिए प्राप्त करायी गयी हो और दोनों रिपोर्ट में अंतर बताया गया हो। परिवादी द्वारा अन्य पैथोलॉजी संस्थान से रिपोर्ट तैयार की गयी, जो एनेक्जर सं0 8, 9 एवं 10 है। इन सबसे पुष्टि होती है कि आधुनिक पैथोलॉजी रिपोर्ट सही थी और परिवादी (मृतक) एचसीवी से ग्रसित मरीज था, परंतु इस मध्य विपक्षी द्वारा नकारात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी, जिसके कारण परिवादी (मृतक) का इलाज प्रभावित हुआ, यद्यपि यह नहीं कहा जा सकता कि इस नकारात्मक रिपोर्ट के कारण ही परिवादी की मृत्यु हुई है, इसलिए मृत्यु के मद में किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना संभव नहीं है, परंतु इस रिपोर्ट के आधार पर परिवादी का इलाज प्रभवित हुआ। अत: इस मद में परिवादी (मृतक) द्वारा उत्तराधिकारीगण केवल 10,00,000/-रू0 की सीमा तक की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, यद्यपि उनके द्वारा अंकन 50,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति की मांग की गयी है, परंतु चूंकि परिवादी एक गम्भीर से बीमारी से ग्रसित था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि सम्पूर्ण इलाज में खर्च होने वाली राशि का भुगतान विपक्षीगण द्वारा किया जाना चाहिए। विपक्षीगण केवल सीमित सीमा तक अपनी लापरवाही के लिए उत्तरदायी है, जो इस पीठ के मद में केवल 10,00,000/-रू0 की सीमा तक सुनिश्चित किये जाने योग्य है।
- अत: यह परिवाद केवल इस सीमा तक स्वीकार किये जाने योग्य है कि विपक्षीगण त्रुटिपूर्ण रिपोर्ट देने के कारण तथा इससे पूर्व तैयार की गयी रिपोर्ट के अवलोकन के पश्चात चेक न करने के कारण बरती गयी लापरवाही के लिए परिवादी (मृतक) द्वारा उत्तराधिकारीगण को अंकन 10,00,000/-रू0 बतौर क्षतिपूर्ति अदा करे, इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी अदा किया जाए तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 25,000/-रू0 भी अदा किये जाए।
आदेश परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0 1 को आदेशित किया जाता है कि वह गलत रिपोर्ट देने के कारण परिवादी (मृतक) द्वारा उत्तराधिकारीगण को अंकन 10,00,000/-रू0 03 माह के अंदर अदा करे तथा इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी अदा करे, यदि 03 माह के अंदर इस राशि का भुगतान नहीं किया जाता तब ब्याज की गणना 15 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से की जायेगी, चूंकि विपक्षी सं0 2 लगायत 4, विपक्षी सं0 1 के कर्मचारी हैं, अत: उन्हें व्यक्तिगत दायितव से उन्मोचित किया जाता है। परिवादी को परिवाद व्यय के रूप में अंकन 25,000/-रू0 भी विपक्षी सं0 1 द्वारा अदा किया जाए। उभय पक्ष वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |