राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2142/2006
(जिला उपभोक्ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या 740/99 में पारित निर्णय दिनांक 29.07.2006 के विरूद्ध)
अंसल हाउसिंग एण्ड कांस्ट्रक्शन लि0 15 यूजीएफ, इंद्रप्रकाश , 21
बारा खंभा रोड न्यू दिल्ली द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
.......अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
1.श्री सरबजीत सिंह पुत्र स्व0 श्री राम लक्ष्मण सिंह निवासी एन.के.3-438,
एचआईजी डप्लेक्स इंदिरापुरम, गाजियाबाद।
2.बतरस जयको जीएफ 222, इंन्द्रप्रकाश 21 बारा खंभा रोड न्यू दिल्ली।
.....प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 01.08.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या 740/99 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 29.07.2006 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी परिवादी ने अपीलकर्ता के यहां शापिंग काम्पलेक्स राजनगर शिवम मार्केट में दुकान क्रय करने हेतु रू. 55000/- पंजीकरण धनराशि जमा कराई। उसको दुकान एस-48 शिवम काम्पलेक्स में आवंटित की गई। परिवादी को बताया गया कि 2 वर्ष के अंदर पूर्ण विकसित दुकान परिवादी को दे दिया जाएगा। अपीलकर्ता के निर्देशानुसार परिवादी ने दि. 13.03.93 से 19.10.94 बताई गई धनराशि
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जमा कराई। परिवादी ने दुकान का कब्जा देने हेतु निरंतर अपीलकर्ता से कहा, किंतु अपीलकर्ता ने कब्जे के बारे में कुछ नहीं कहा, जबकि संपूर्ण राशि 1994 में ले ली गई थी। 1998 में अपीलकर्ता ने बताया कि उपरोक्त दुकान का कब्जा नहीं दिया जा सकता है तथा दुकान कम्पलीट नहीं है। परिवादी ने दूसरी दुकान देने के लिए कहा, किंतु अपीलकर्ता ने अन्य दुकान नहीं दी तब परिवादी ने 17.02.99 को विपक्षी को एक पत्र दिया कि परिवादी को उसकी जमा धनराशि मय ब्याज वापस कर दिया जाए। दि. 29.04.99 को एक कवरिंग लेटर के साथ रू. 55000/- मूल राशि वापस कर दी गई, ब्याज नहीं दिया गया, अत: ब्याज की धनराशि के भुगतान हेतु परिवाद योजित किया गया।
अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्ता ने परिवादी द्वारा दुकान बुक कराया जाना स्वीकार किया। अपीलकर्ता के कथनानुसार उक्त यूनिट का मूल्य बुकिंग के समय रू. 75000/- था, कोई निश्चित अवधि नहीं बताई गई थी। ब्याज की धनराशि देने का प्रश्न इस कारण उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि परिवादी द्वारा स्वयं धनराशि की मांग की गई थी। वादी ने रू. 55000/- जमा कराए थे। उक्त योजना का विकास कार्य जीडीए से विवाद उत्पन्न हो जाने के कारण नहीं हो सका, इसलिए परिवादी को कब्जा देने में समय लगा। अपीलकर्ता का यह भी कथन है कि परिवादी का यह कहना गलत है कि विकास कार्य पूर्ण नहीं है। वादी ने दि. 17.02.99 को धनराशि की मांग की, जो उसको लौटा दी गई। जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा दावा स्वीकार करते हुए अपीलकर्ता को वादी द्वारा जमा धनराशि पर जमा की तिथि से 30.04.99 तक 18 प्रतिशत ब्याज देने हेतु निर्देशित किया है कि यह धनराशि निर्णय
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की तिथि से 2 माह के अंदर अदा की जाए तथा उक्त अवधि में धनराशि पर भुगतान नहीं किया जाता तो अपीलकर्ता 1999 तक जो ब्याज आएगा उस पर भी 18 प्रतिशत ब्याज देय तिथि तक परिवादी को अदा करेगा। इसके अलावा वादी विपक्षी से रू. 2000/- मानसिक क्षति व रू. 1100/- वाद व्यय पाने का अधिकारी भी माना जाए। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई है।
हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया के तर्क सुने। प्रत्यर्थी परिवादी पर नोटिस की तामीला आदेश दि. 18.10.2019 द्वारा पर्याप्त मानी गई। प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बुकिंग के समय परिवादी को आवंटित दुकान का मूल्य रू. 75000/- था। परिवादी द्वारा विभिन्न किश्तों में कुल रू. 55000/- की अदायगी अपीलकर्ता को की गई। परिवादी ने अपने पत्र दिनांक 17.02.99 द्वारा जमा की गई धनराशि की वापसी मांगी। तदनुसार अपीलकर्ता ने अपने पत्र संख्या 30.04.99 द्वारा परिवादी द्वारा कुल जमा धनराशि रू. 55000/- पूर्ण संतुष्टि में परिवादी को बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से भेजी, जिसे परिवादी द्वारा बिना किसी विरोध के प्राप्त किया गया। धनराशि प्राप्त करने के लगभग 5 माह बाद परिवाद योजित किया गया। इस तथ्य पर ध्यान न देते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत दुकान का कब्जा 2 वर्ष के अंदर प्राप्त कराया जाना निर्धारित नहीं था। कब्जा प्राप्त कराने की कोई निश्चित समयावधि निर्धारित नहीं थी। इस संबंध में परिवादी द्वारा कोई साक्ष्य
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जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई कि कब्जा 2 वर्ष के अंदर दिया जाना निर्धारित था। अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच द्वारा इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया कि प्रतिवाद पत्र में अपीलकर्ता द्वारा यह स्पष्ट रूप से अभिकथित किया गया है कि परिवादी ने स्वयं जमा की गई धनराशि वापस लेने की मांग की थी। अपीलकर्ता दुकान का कब्जा देने के लिए तैयार हैं, किंतु परिवादी द्वारा पूर्ण धनराशि जमा करके कब्जा प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि स्वयं प्रत्यर्थी परिवादी की प्रार्थना पर परिवादी द्वारा जमा की गई पूर्ण धनराशि परिवादी को वापस की गई है। इस संबंध में कोई साक्ष्य परिवादी द्वारा प्रस्तुत नहीं की गई कि प्रश्नगत दुकान का कब्जा प्राप्त करने की क्या अवधि निर्धारित की गई थी। यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी की मांग के अनुसार परिवादी द्वारा जमा की गई रू. 55000/- की धनराशि परिवादी को वापस की गई। यह धनराशि निर्विवाद रूप से परिवादी द्वारा प्राप्त की गई, परिवादी द्वारा तत्काल ब्याज के संबंध में कोई आपत्ति नहीं की गई, बल्कि धनराशि प्राप्त किए जाने के 5 माह बाद परिवाद योजित किया गया। अत: प्राप्त की गई धनराशि पूर्ण संतुष्टि में स्वीकार की जा सकती है। तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से अपीलकर्ता द्वारा सेवा में त्रुटि किया जाना प्रमाणित नहीं है। जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए निर्णय दिया है। प्रश्नगत निर्णय अपास्त किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दि. 29.07.2006 निरस्त किया जाता है तथा परिवाद भी निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2,
कोर्ट-2