राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1114/2013
(जिला उपभोक्ता फोरम, कोर्ट नं0-1 गाजियाबाद द्धारा परिवाद सं0-229/2010 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.02.2013 के विरूद्ध)
The Tata AIG General Insurance Company Limited, 1st Floor, Lotus Tower, Community Centre, New Friends Colony, New Delhi, through its Zonal Claims Manager.
........... Appellant/ Opp. Party
Versus
Smt. Santosh, W/o Late Sri Brajesh, R/o 10768, First Floor, Panchsheel Garden, New Shahdara Delhi.
Presently R/o Village Dhudhrala, Tehsil Hapur, District Ghaziabad.
……..…. Respondent/ Complainant
समक्ष :-
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य
मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री निशांत शुक्ला के सहयोगी
श्री आर0के0 मिश्रा
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री अदील अहमद
दिनांक : 21.12.2017
मा0 श्री रामचरन चौधरी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
मौजूदा अपील जिला उपभोक्ता फोरम, कोर्ट नं0-1 गाजियाबाद द्धारा परिवाद सं0-229/2010 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 07.02.2013 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
"विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को बीमा धनराशि की राशि 150,000.00 रूपये का भुगतान करे तथा इस धनराशि पर उसके पति की मृत्यु की तिथि 25.7.2007 से कुल भुगतान के बीच 06, प्रतिशत की दर से ब्याज अदा करें। परिवादनी को पहुंचाई गई मानसिक कष्ट की प्रतिपूर्ति के रूप में 3000.00 रू0 (तीन हजार रूपये) तथा वाद व्यय के रूप में 2000.00 रूपये (दो हजार रूपये) का भुगतान करें।”
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संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी ने प्रतिवादी टाटा ए0आई0जी0 जनरल इंश्योरें से कम्पनी लिमिटेड से अपने परिवार का बीमा महारक्षा पर्सनल इंजरी पालिसी के अन्तर्गत कराया था, जिसकी अवधि में ही 25/26 जुलाई, 2007 की रात परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गई जिसका क्लेम प्रतिवादी बीमा कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत किया गया। परिवादनी ने क्लेम के साथ सभी दस्तावेज जैसे कि एफ0आई0आर0, पोस्टमार्टम, मृत्यु प्रमाण पत्र प्रतिवादी के कार्यालय में जमा किए लेकिन दो साल आठ महीने बीतने के बाद भी प्रतिवादीगण ने बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया है, इस प्रकार प्रतिवादी ने सेवाओ में कमी की है, अत: परिवादिनी बीमित धनराशि मय ब्याज तथा क्षतिपूर्ति का अनुतोष दिलाये जाने हेतु जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष अपना परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी की ओर से अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और यह कथन किया गया है कि परिवाद गलत तथ्यों के आधार पर लाया गया है एवं पालिसी के सामान्य प्रावधान संख्या-10 के अनुसार दुर्घटना होने के 30 दिन की अवधि में बीमा कम्पनी को सभी दस्तावेज दिए जाने चाहिए थे, जो कि परिवादिनी द्वारा नहीं किया गया है एवं यह भी कहा गया है कि परिवादिनी से मृतक ब्रजेश की विसरा रिपोर्ट मॉगी गई थी, वह भी परिवादनी ने नहीं दिया है और यह भी कहा गया कि परिवादिनी ने अपने पुत्र दीपक चडढा एवं अन्य पुत्र पुत्रियों को पक्षकार नहीं बनाया है।
इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता फोरम के प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांकित 07.02.2013 तथा आधार अपील का अवलोकन किया गया एवं अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री निशांत शुक्ला के सहयोगी श्री आर0के0 मिश्रा तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अदील अहमद उपस्थित आये। उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन किया गया है।
मौजूदा केस में जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा यह पाया गया है कि बीमा कम्पनी ने क्लेम का निस्तारण नहीं किया एवं वादोत्तर में बीमा कम्पनी ने लिखा कि उन्होंने परिवादिनी से मृतक ब्रजेश की बिसरा रिपोर्ट मांगी, जिसे परिवादिनी ने उन्हें उपलब्ध नहीं कराया। इस मामले में परिवादिनी द्वारा
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दाखिल कागजातों से स्पष्ट है कि हापुड़ बस स्टैण्ड पर बीमित की मृत्यु हुई थी, जिसकी रिपोर्ट पुलिस की जी0डी0 में दर्ज है एवं मृतक का पोस्टमार्टम भी हुआ था एवं इस रिपोर्ट में यह उल्लेख है कि मृतक की मृत्यु एक दिन पहले हुई थी, डॉक्टर मृत्यु का कारण नहीं जान सके,इसलिए उन्होंने विसरासुरक्षित रखवाया, प्रश्न यह है कि विसरा की रिपोर्ट लेकर बीमा कम्पनी क्या करती। बीमा कम्पनी ने वादोत्तर में ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया है कि बीमित की मृत्यु स्वाभाविक हुई हो अगर स्वाभाविक मृत्यु हुई होती तो पुलिस द्वारा उसका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया होता और न ही इसे जी0डी0 में इन्द्राज किया गया होता। मामले के तथ्य एव परिस्थितियों में बीमा कम्पनी ने क्लेम का निस्तारण आज तक न करके सेवाओ में कमी की है तथा अनुचित व्यापार किया है।
इस केस में आधार अपील का अवलोकन किया गया, जिसमें ऐसा कोई आधार नहीं लिया गया है, जिससे यह साबित हो सके कि अपीलार्थी को कम धनराशि दिलायी गई हो। केस के तथ्यों व परिस्थितियों को देखते हुए हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह सारे साक्ष्यों व अभिलेखों का विस्तृत वर्णत करते हुए पारित किया गया है, जो कि विधि सम्मत और तर्क पूर्ण है, इसलिए प्रतिकर में बढोत्तरी की कोई गुनजाइश नहीं है। तद्नुसार अपीलार्थी की अपील खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
अपीलार्थी की अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेगें।
(रामचरन चौधरी) (बाल कुमारी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-5