Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/2673

Agra Development Authority - Complainant(s)

Versus

Santosh Kumar - Opp.Party(s)

Arvind Kumar

24 Jul 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/2673
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Agra Development Authority
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Santosh Kumar
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 24 Jul 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-2673/2012

 

(जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-५७/२०११ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१/१०/२०१२ के विरूद्ध)

 

आगरा डेवलपमेंट अथारिटी आगरा द्वारा वाईस चेयरमैन/सेक्रेटरी आगरा डेवलपमेंट अथारिटी जयपुर हाउस आगरा।

                                          .............. अपीलार्थी।

बनाम्

 

संतोष कुमार पुत्र स्‍व0 मुरारी लाल शर्मा ग्राम टिकैतपुरा पोस्‍ट वरेन्‍दा तहसील बाह जिला आगरा।

 

                                              ............... प्रत्‍यर्थी। 

समक्ष:-

१. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य।

२. मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    :- श्री अरविन्‍द कुमार द्वारा अधिकृत श्री

 उमेश कुमार श्रीवास्‍तव विद्वान

 अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित      :- श्री बृजेन्‍द्र चौधरी विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक : 15/09/2017

मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

आदेश

      प्रस्‍तुत अपील, जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-५७/२०११ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१/१०/२०१२ के विरूद्ध योजित की गयी है।    

      संक्षेप में विवाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने एक एमआईजी फ्लैट के आवंटन हेतु अपीलकर्ता के कार्यालय में दिनांक १५/०३/२००४ को आवेदन किया और प्रत्‍यर्थी को अपीलकर्ता की ताजनगरी की फेज प्रथम योजना में एमआईजी फ्लैट का आवंटन पहले आओ पहले पाओ के आधार पर कर दिया गया और प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्राधिकरण के कोष में रू0 १२८३४/- जमा भी कर दिए। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने भवन आवंटन होने के बाद ९० वर्ष का लीज रेंट तथा भवन की कीमत रू0 २३४०९५/-भी प्राधिकरण कोष में जमा कर दिए और आवंटित फ्लैट की रजिस्‍ट्री भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में दिनांक २०/१०/२००४ को निष्‍पादित होकर निबन्धित की गयी। उक्‍त लीजडीड की रजिस्‍ट्री पर रू0 ४१६००/- का स्‍टाम्‍प व रू0 ५०६०/-कोर्ट फीस भी जमा की गयी। उपरोक्‍त आवंटित मिनी एमआईजी फ्लैट सं0-२ का कब्‍जा लेने के लिए उसे एक परिपत्र दिनांक ३०/१०/२००४ को निर्गत किया गया कि वह उक्‍त पत्र के ३० दिन की अवधि के अन्‍तर्गत अधिशासी अभियन्‍ता (योजना) से संपर्क स्‍थापित करे और उसका कब्‍जा प्राप्‍त करे। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुसार उसने प्राधिकरण द्वारा निर्धारित प्रारूप पर कब्‍जा प्रमाण पत्र पर फोटो आदि लगाकर प्राधिकरण के कार्यालय में जमा कर दिए। प्रत्‍यथी/परिवादी के अनुसार स्‍थल पर केवल एक ही संपत्ति उपलब्‍ध थी और एक मात्र खाली भवन होने के बाद इच्‍छा शुल्‍क लिए जाने का कोई प्रश्‍न ही नहीं था क्‍योंकि इच्‍छा शुल्‍क की शर्त वहां लागू होती है जहां कई भवन हों और अपनी इच्‍छानुसार भवन का आवंटन करना हो किन्‍तु एक से अधिक भवन के लिए ५ प्रतिशत इच्‍छा शुल्‍क लेकर प्रत्‍यर्थी/परिवादी के साथ गैरकानूनी वसूली की गयी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने दिनांक २३/०२/२०१० को तत्‍कालीन उपाध्‍यक्ष से भी संपर्क स्‍थापित किया व इच्‍छा शुल्‍क नहीं लेने का प्रार्थना पत्र दिया जिस पर उपाध्‍यक्ष ने पत्रावली पर आदेश कर दिए किन्‍तु संबंधित कार्यालय द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी है और आदेश हवा में उड़ा दिए। परिवादी के अनुसार प्रश्‍नगत भवन का कब्‍जा आज तक नहीं मिला। प्राधिकरण के कर्मचारियों ने अपने किसी निजी व्‍यक्ति को उक्‍त्‍ भवन में स्‍थापित कर उसका जबरदस्‍ती कब्‍जा कर रखा है और प्रत्‍यर्थी/परिवादी दर-दर भटक रहा है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी के अनुसार वह अपना कब्‍जा प्राप्‍त नहीं कर सका तो एक परिवाद विद्वान जिला मंच आगरा के समक्ष प्रस्‍तुत किया।

      उक्‍त परिवाद का अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवाद किया गया । जिला मंच ने उभय पक्षों के द्वारा प्रस्‍तुत साक्ष्‍यों का परिशीलन करने के बाद प्रश्‍गनत आदेश पारित किया है-

      ‘’ परिवाद स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी को प्रश्‍नगत भवन का कब्‍जा अविलंब दे। परिवादी को प्रश्‍नगत भन के कब्‍जे के मद में मार्च २००९ से २००० (दो हजार रूपये) प्रतिमाह की दर से कब्‍जा दिए जाने की तिथि तक बतौर क्षतिपूर्ति विपक्षीगण अदा करे, साथ ही मानसिक, शारीरिक वेदना के मद में ५०००/- (पांच हजार रूपये) व वाद व्‍यय के रूप में २००० (दो हजार रूपया) भी अविलंब विपक्षीगण परिवादी को अदा करे। ‘’

      उक्‍त आदेश से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।          

      अपील के आधारों में कहा गया है कि विद्वान जिला मंच द्वारा पारित आदेश मनमाना एवं अवैधानिक है। अपील में कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने किराए के रूप में जो धनराशि मांगी है उसका कोई औचित्‍य नहीं है। ०५ प्रतिशत की अतिरिक्‍त धनराशि को वापस किए जाने का भी कोई औचित्‍य नहीं है। अपील में यह भी कहा गया है कि प्राधिकरण के पत्र दिनांक ३०/१०/२००४ के अनुसार परिवादी को ३० दिन के अन्‍दर आवंटित भवन का कब्‍जा लेने था किन्‍तु वह अधिशासी अभियन्‍ता योजना के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं हुआ और कब्‍जा नहीं लिया। प्रश्‍नगत संपत्ति की रजिस्‍ट्री प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में दिनांक २०/१०/२००४ को ही कर दी गयी है। अपील में यह भी कहा गया है कि कब्‍जा न लेने के कारण प्रत्‍यर्थी को २००/- महीना चौकीदाराना का शुल्‍क भी जमा करना चाहिए था। अपील में यह भी कहा गया है कि भूखण्‍ड/भवन हेतु पंजीकरण अनुबंध की शर्त सं0-३ए में यह स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि यदि आवंटी निर्धारित अवधि में कब्‍जा नहीं लेता है तो उसे २००/-रू0 प्रति माह चौकीदाराना का शुल्‍क देना होगा। विद्वान जिला मंच ने इन तथ्‍यों को नजरअंदाज करके त्रुटि की है।  

      अपील का प्रत्‍यर्थी की ओर से विरोध किया गया।

      सुनवाई के समय अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरविन्‍द कुमार द्वारा अधिकृत श्री उमेश कुमार श्रीवास्‍तव विद्वान अधिवक्‍ता उपस्थित हुए। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री बृजेन्‍द्र चौधरी उपस्थित हुए। पीठ द्वारा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया । उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्‍ताओं के तर्कों को सुना गया।  

      यह तथ्‍य निर्विवाद है कि एक मिनी एमआईजी फ्लैट प्रत्‍यर्थी को अपीलकर्ता द्वारा आवंटित किया गया था। फ्लैट की समस्‍त कीमत प्रत्‍यर्थी द्वारा अपीलकर्ता के कोष में जमा कर दी गयी थी। प्रश्‍नगत भवन की रजिस्‍ट्री भी अपीलकर्ता द्वारा प्रत्‍यर्थी के पक्ष में दिनांक २०/१०/२००४ को निबन्धित कर दी गयी थी। इस प्रकार मात्र विवाद यह है कि प्रश्‍नगत संपत्ति का भौतिक कब्‍जा नहीं मिला। अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क यह है कि प्रत्‍यर्थी को कब्‍जा लेने के लिए पत्र भेजा गया था किन्‍तु वह कब्‍जा लेने नहीं आया। इसमें अपीलकर्ता का कोई दोष नहीं है। चौकीदाराना के रूप में शुल्‍क जमा करना होगा। प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने कहा कि यदि प्रत्‍यर्थी ने आवंटित भवन की समस्‍त कीमत जमा कर दी है तब यह बात समझ से परे है कि वह भवन का कब्‍जा क्‍यों नहीं लेगा। उसे अपीलकर्ता के कर्मचारियों ने जानबूझकर कब्‍जा नहीं दिया क्‍योंकि प्रश्‍नगत भवन में उनके ही अनधिकृत व्‍यक्ति निवास कर रहे हैं और अनधिकृत रूप से काबिज हैं। वहां प्राधिकरण के कर्मचारी भवन पर अवैध आय वसूल कर रहे हैं और प्रत्‍यर्थी को इससे निरंतर क्षति हो रही है। प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने तर्क प्रस्‍तुत किया है कि विद्वान जिला मंच का निर्णय न्‍यायोचित है।

      उभय पक्षों को सुनने के बाद पीठ इस मत की है प्रत्‍यर्थी को अपीलकर्ता की ओर से कब्‍जा देने के लिए पत्र भेजा गया किन्‍तु प्रत्‍यर्थी को वास्‍तविक कब्‍जा नहीं दिया गया। यदि उससे चौकीदार का शुल्‍क वसूल करना था तो इस आशय का पत्र/नोटिस उसे भेजा जाना चाहिए था। पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्‍य उपलब्‍ध नहीं है जिससे यह विदित होता हो कि अपीलकर्ता ने प्रत्‍यर्थी को भवन का कब्‍जा देने का प्रयास किया है। सामान्‍यत: प्राधिकरण द्वारा कब्‍जा देने के संबंध में बार-बार नोटिस भेजा जाता है और कब्‍जा न लेने की स्थिति मे चौकीदाराना शुल्‍क वसूल किया जाता हैं। इस प्रकरण में एक भी पत्र अपीलकर्ता द्वारा प्रत्‍यर्थी को नहीं भेजा गया कि वह कब्‍जा प्राप्‍त करे अन्‍यथा उस पर रू0 २००/- प्रति माह की दर से चौकीदार का शुल्‍क वसूल किया जाएगा। इससे यही निष्‍कर्ष निकलता है कि अपने निजी विहित स्‍वार्थवश अपीलकर्ता के कर्मचारियों ने अनधिकृत रूप से प्रश्‍नगत भवन पर अपने किसी व्‍यक्ति का कब्‍जा करा रखा है और वह उससे अवैध वसूली कर रहे हैं। अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी को तत्‍काल प्रश्‍नगत भवन का कब्‍जा देना चाहिए। उस पर किसी प्रकार का चौकीदाराना शुल्‍क देय नहीं होगा। चूंकि प्रश्‍नगत आदेश के विरूद्ध प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने कोई अपील प्रस्‍तुत नहीं की है। अत: उक्‍त आदेश उसके विरूद्ध अंतिम हो चुका है। प्रत्‍यर्थी को ०५ प्रतिशत इच्‍छा शुल्‍क वापिसी का कोई प्रश्‍न नहीं है।  तदनुसार अपीलकर्ता की अपील में कोई बल नहीं है। अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

      अपील निरस्‍त की जाती है। जिला मंच प्रथम आगरा द्वारा परिवाद सं0-५७/२०११ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१/१०/२०१२ की पुष्टि की जाती है।  

उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

उभयपक्ष को इस आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार निर्गत की जाए।

 

  

 (राज कमल गुप्‍ता)                          (महेश चन्‍द)

  पीठासीन सदस्‍य                             सदस्‍य

सत्‍येन्‍द्र, कोर्ट-5

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.