सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-2099/2010
(जिला उपभोक्ता फोरम, गोण्डा द्वारा परिवाद संख्या-152/2008 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.05.2009 के विरूद्ध)
1. अध्यक्ष जिला पंचायत गोण्डा।
2. अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत गोण्डा।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
संतोष कुमार तिवारी पुत्र श्री दामोदर प्रसाद तिवारी, निवासी ग्राम व पोस्ट बेलसर/बरसडा तहसील तरबगंज, जिला गोण्डा।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री संदीप कुमार पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 04.12.2017
मा0 श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, परिवाद संख्या-152/2008, संतोष कुमार तिवारी बनाम अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत व अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोण्डा द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.05.2009 से क्षुब्ध होकर विपक्षीगण/अपीलार्थीगण की ओर से योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा निम्नवत् आदेश पारित किया गया है :-
'' यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध 35000.00/- की धनराशि पर दिसम्बर 2000 से 28.5.2008 व उसके बाद की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के लिए एवम् 5000.00/- क्षतिपूर्ति व वाद व्यय स्वरूप स्वीकार किया जाता है। यह धनराशि विपक्षीगण एक माह के अन्दर उपलब्ध कराये। ''
प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि विपक्षीगण ने बहराईच रोड स्थित जिला पंचायत कालोनी के लिए दुकान आंवटन हेतु समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित कराया, जिसके अनुसार दुकान आवंटन हेतु रू0 35,000/- की धनराशि जिला पंचायत कोष में जमा करायी थी। इस पर परिवादी ने दिसम्बर 2000 में रू0 35000/- जमा करके रसीद प्राप्त की, किन्तु सभी शर्तें पूरी करने के बावजूद भी परिवादी को दुकान आवंटित नहीं की गयी और न ही जमा धनराशि मय ब्याज वापस की गयी। इससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने मा0 उच्च न्यायालय में रिट संख्या-8050/M/B/2005 संतोष कुमार तिवारी बनाम जिला पंचायत दायर की। उक्त रिट में मा0 उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 04.01.2006 द्वारा याची के प्रार्थना पत्र पर विचार करने का आदेश दिया, किन्तु विपक्षीगण द्वारा परिवादी के आवंटन प्रार्थना पत्र पर कोई भी विचार नहीं किया गया। मा0 उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 04.01.2006 का अपीलार्थी द्वारा अनुपालन न करने पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने मा0 उच्च न्यायालय में अपीलार्थी के विरूद्ध एक अवमानना याचिका संख्या-2339 वर्ष 2006 दायर की, जिससे बचने के लिये अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी/परिवादी को अपने पत्रांक दिनांक 04.02.2008 तथा 06.02.2008 के माध्यम से दुकान की मूल रकम वापिस कर दी, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 28.05.2008 को प्रोटेस्ट के साथ प्राप्त किया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण को एक रजिस्टर्ड नोटिस ब्याज के भुगतान हेतु भेजा गया, जिसका कोई उत्तर नहीं दिया गया और न ही ब्याज व खर्च की अदायगी की गयी, जिससे क्षुब्ध होकर प्रश्नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष योजित किया गया।
विपक्षीगण को जिला फोरम द्वारा भेजा गया नोटिस वापस प्राप्त नहीं हुआ, इसलिए विपक्षीगण पर नोटिस की तामील पर्याप्त मानते हुए उसके विरूद्ध परिवाद एकपक्षीय सुना गया और उपरोक्त प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनंकित 15.05.2009 पारित किया गया।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संदीप कुमार पाण्डेय उपस्थित हुए। विद्वान अधिवक्ता प्रत्यर्थी को विस्तार से सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश तथा उपलब्ध अभिलेखों का गम्भीरता से परिशीलन किया गया।
प्रस्तुत अपील, 08 माह के विलम्ब से दाखिल की गई है। विलम्ब के संबंध में अपीलार्थी द्वारा विलम्ब क्षमा प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र के साथ प्रस्तुत किया गया है। विलम्ब का दोष क्षमा किये जाने के लिये पर्याप्त स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया है। अत: अपील योजित किये जाने में हुए विलम्ब को क्षमा किया जाता है।
उपरोक्त आक्षेपित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर वर्तमान अपील योजित की गई है। अपीलार्थी ने अपील में यह आधार प्रस्तुत किया है कि वर्ष 2000 में बहराईच रोड कालोनी गोण्डा में दुकान की भूमि के लिए आवंटन के सम्बन्ध में इच्छुक व्यक्तियों से आवेदन मांगे गये थे, जिस पर परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा रू0 35,000/- की धनराशि दुकान आवंटन हेतु जमा की गयी थी। अपीलार्थीगण द्वारा दिनांक 17.11.2005 को दैनिक समाचार पत्र स्वतंत्र भारत में विज्ञापन प्रकाशित कराया गया था कि जिन व्यक्तियों ने जिला पंचायत गोण्डा में बहराईच रोड कालोनी में दुकान की भूमि हेतु आवंटन के लिए धनराशि जमा की है और जिन्हें दुकान का आवंटन नहीं हुआ है, वह अपनी जमा धनराशि कार्यालय में आकर 15 दिन के भीतर प्राप्त कर लें। परिवादी/प्रत्यर्थी को भी जमा धनराशि रू0 35,000/- का भुगतान दिनांक 06.02.2008 को रजिस्टर्ड डाक द्वारा कर दिया गया था, जिसे परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 28.05.2008 को प्राप्त कर लिया है, किन्तु इस तथ्य को परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा छिपाया गया है कि जिला पंचायत गोण्डा द्वारा दिनांक 17.11.2005 को प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार जिन व्यक्तियों का आवंटन नहीं हुआ है, उनको उनकी जमा धनराशि वर्ष 2005 में ही वापस कर दी गयी थी। इस प्रकार परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा प्रश्नगत परिवाद तीन वर्ष बाद योजित किया गया है। जिला फोरम का निर्णय एवं आदेश सही एवं उचित नहीं है, निरस्त होने योग्य है।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील आधार का विरोध करते हुए यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत अपील विलम्ब से योजित की गयी है, अत: विलम्ब के आधार पर ही अपील निरस्त होने योग्य है।
पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिससे यह विदित होता है कि अपीलार्थी द्वारा वर्ष 2000 में बहराईच रोड कालोनी, गोण्डा में दुकान के आवंटन के संबंध में आवेदन पत्र मांगे गये थे। प्रत्यर्थी/परिवादी ने भी दुकान के आवंटन हेतु आवेदन किया था और अपीलार्थी के कार्यालय में रू0 35,000/- की धनराशि जमा की थी। अपीलार्थी के कार्यालय द्वारा दिनांक 17.11.2005 को दैनिक समाचार स्वतंत्र भारत में यह सूचना प्रकाशित करायी गयी कि जिन व्यक्तियों को जिला पंचायत गोण्डा में बहराईच रोड कालोनी में दुकान आवंटित नहीं हुई है, वह व्यक्ति 15 दिन में कार्यालय आकर अपनी जमा धनराशि रसीद दिखाकर वापस प्राप्त कर लें। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा भी अपनी जमा धनराशि दिनांक 28.05.2008 को प्राप्त कर ली गयी। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी एवं प्रत्यर्थी/परिवादी के बीच उपभोक्ता का संबंध समाप्त हो गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने यह किसी साक्ष्य से साबित नहीं किया है कि जमा धनराशि विरोध के साथ दिनांक 28.05.2008 को प्राप्त की गयी है। ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त जमा धनराशि दिनांक 28.05.2008 को विरोध के साथ प्राप्त की है। अपीलार्थी का यह तर्क कि जिन व्यक्तियों को दुकान की भूमि आवंटित नहीं हुई, उनको उनका पैसा वापस कर दिया गया है और प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपनी जमा धनराशि प्राप्त करने के बाद प्रश्नगत परिवाद दाखिल किया गया है। अपीलार्थी की कोई सेवा में कमी नहीं है। अपीलार्थी का यह तर्क स्वीकार किये जाने योग्य है, क्योंकि अपीलार्थी/विपक्षी एक राजकीय कर्मचारी है और वह सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करता है। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा नियमानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की जमा धनराशि वापस की जा चुकी है। इस प्रकार उपभोक्ता एवं सेवादाता का कोई संबंध स्थापित नहीं है। किसी साक्ष्य से यह साबित नहीं होता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा रू0 35,000/- की धनराशि विरोध के साथ प्राप्त की गयी है। परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा रू0 35,000/- की धनराशि प्राप्त कर लेने के बाद अब कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं होता है। अत: अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, गोण्डा द्वारा परिवाद संख्या-152/2008, संतोष कुमार तिवारी बनाम अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.05.2009 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद निरस्त किया जाता है।
पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
पक्षकारान को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(संजय कुमार) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-4