Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/678

Union Of India - Complainant(s)

Versus

Santosh Kumar Sahu - Opp.Party(s)

Dr U V Singh

20 Sep 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/678
( Date of Filing : 04 Apr 2012 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Santosh Kumar Sahu
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 20 Sep 2018
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-678/2012

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, हमीरपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 21/2007 में पारित निर्णय दिनांक 29.02.12 के विरूद्ध)

1.यूनियन आफ इंडिया, डिपार्टमेन्‍ट आफ पोस्‍ट एण्‍ड टेलीग्राफ द्वारा

सुपरिटेन्‍डेन्‍ट, हेड पोस्‍ट आफिस, हमीरपुर।

2.सुपरिटेन्‍डेन्‍ट, हेड पोस्‍ट आफिस, हमीरपुर।     .......अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम्

संतोष कुमार साहू पुत्र स्‍व0 शंकर लाल साहू निवासी मोहल्‍ला रेमडी,

परगना, तहसील सिटी एण्‍ड डिस्ट्रिक हमीरपुर।           .......प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री यू0वी0 सिंह के सहयोगी श्री श्रीकृष्‍ण,

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित  : कोई नहीं।

दिनांक 02.11.2018

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

     प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम हमीरपुर द्वारा परिवाद संख्‍या 21/2007 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दि. 29.02.2012 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है। जिला मंच द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

     ‘’ परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण परिवादी को 30 दिवस के अंदर दस हजार एक सौ रूपये(10,100.00) क्षतिपूर्ति के रूप में तथा एक हजार रूपये,1000.00) वाद व्‍यय के रूप में अदा करेंगे। संभावित नौकरी के पद में उचित क्षतिपूर्ति की याचना अस्‍वीकार की जाती है।‘’

     संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी ने उ0प्र0 सरकार के राज्‍य संपत्ति विभाग में सहायक स्‍टोर कीपर के पद हेतु आवेदन पत्र आवश्‍यक कागजात सहित लिफाफे में बंद करके स्‍पीड पोस्‍ट के माध्‍यम से भेजे जाने हेतु

-2-

दि. 29.09.2006 को हमीरपुर के डाकघर में प्रस्‍तुत किया और निर्धारित शुल्‍क 25 रूपये अदा की थी, जिसकी रसीद संख्‍या 925432678 है। आवेदन पत्र पहुंचने की अतिम तिथि 06.10.2006 थी, लेकिन डाक विभाग द्वारा लिफाफा दि. 06.10.2006 तक राज्‍य संपत्ति विभाग को नहीं पहुंचाया, जिससे परिवादी को परीक्षा में सम्मिलित नहीं किया गया। विपक्षी के पोस्‍टमैन ने दि. 12.03.2007 को उक्‍त संदर्भित पत्र परिवादी को वापस किया। परिवादी के अनुसार विपक्षी के कर्मचारियों ने उक्‍त पत्र समय से वितरित न करने में लापरवाही की है,‍ जिसके कारण परिवादी परीक्षा में सम्मिलित होने से वंचित रह गया।

     विपक्षी संख्‍या 1 व 2 ने जिला मंच के समक्ष अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत करके परिवाद का प्रतिवाद किया और यह अभिकथन किया कि परिवादी ने जिस दिन रजिस्‍ट्री पत्र दिया विपक्षी ने उसे कानपुर सेन्‍ट्रल भेज दिया। उनके द्वारा यह भी कथन किया गया है कि परिवादी को जब एकनालेजमेन्ट प्राप्‍त नहीं हुआ तो उसे सजग रहना चाहिए था और समय से शिकायत करना चाहिए था। यदि समय से शिकायत होती तो उसका उपचार खोजा जाता। विपक्षी डाक विभाग के अनुसार परिवादी स्‍वयं लापरवाह रहा है। जो स्‍पीड पोस्‍ट लिफाफा दि. 12.03.2007 को वापस प्राप्‍त हुआ है उस पर राज्‍य संपत्ति विभाग ने देरी का कोई कारण अंकित नहीं किया गया है।

पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों एवं साक्ष्‍यों का भलीभांति परिशीलन किया गया। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।

अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में यह अभिकथन किया है कि जिला मंच का निर्णय धारा 6 इंडियन पोस्‍ट आफिस एक्‍ट 1898 एवं पोस्‍ट आफिस

 

-3-

गाइड पार्ट 1 के क्‍लाज 84 के दृष्टिगत जिला मंच का निर्णय अवैधानिक है। परिवादी ने अपने परिवाद में धारा 6 इंडियन पोस्‍ट आफिस एक्‍ट में वर्णित Willful Act or Fraud संबंधी आरोप नहीं लगाए हैं। अपीलार्थी द्वारा लिफाफे को आरएमएस/कानपुर सेन्‍ट्रल को डिलेवरी हेतु भेज दिया गया था। उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है।

     अपीलार्थी ने अपने कथन के समर्थन में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत मैनेजर, स्‍पीड पोस्‍ट एवं अन्‍य बनाम भंवर लाल गोरा 4(2017) सीपीजे 10(एनसी) प्रस्‍तुत कर उस पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है।  

     यह तथ्‍य निर्विवाद है कि परिवादी ने अपना आवेदन पत्र लिफाफे में रखकर स्‍पीड पोस्‍ट के माध्‍यम से दि. 29.09.2006 को भेजा। लिफाफे पर बड़े-बड़े अक्षरों में राज्‍य संपत्ति विभाग लखनऊ लिखा हुआ था और उसमें यह भी अंकित था कि सहायक स्‍टोर कीपर पद हेतु आवेदन पत्र। सामान्‍यत: स्‍पीड पोस्‍ट 3 या 4 दिन में पहुंच जाना चाहिए था, परन्‍तु यह लिफाफा राज्‍य संपत्ति विभाग को प्राप्‍त नहीं कराया गया। अपीलार्थी ने यह तर्क दिया कि उनके द्वारा लिफाफे को आर.एम.एस. कानपुर सेन्‍ट्रल को भेज दिया गया था, अत: उनके द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गई है। प्रथमत: डाक विभाग एक सर्विस विभाग है जिसका कार्य है कि रजिस्‍टर, स्‍पीड पोस्‍ट आदि डाक को समय से उनके गंतव्‍य तक पहुंचाए। स्‍पीड पोस्‍ट में डाक विभाग द्वारा डाक समय से पहुंचाने हेतु धनराशि भी अधिक ली जाती है। किसी बेरोजगार व्‍यक्ति के लिए इस प्रकार के आवदेन पत्र अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण होते हैं, अत: डाक विभाग को ऐसी डाक के प्रेषण में कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए। परिवादी ने जो लिफाफा भेजा उसमें बड़े-बड़े अक्षरों में राज्‍य संपत्ति विभाग लिखा है और सहायक स्‍टोर कीपर पद हेतु आवेदन पत्र बड़े अक्षरों में लिखा गया था। डाक

 

-4-

विभाग द्वारा केवल यह कह देने से कि उनके द्वारा दि. 29.09.2006 को ही उसे कानपुर सेन्‍ट्रल आर.एम.एस. को भेज दिया गया था, उनका उत्‍तरदायित्‍व समाप्‍त नहीं होता है। डाक विभाग का यह कहना कि लापरवाही उनकी न होकर परिवादी की स्‍वयं की है, क्‍योंकि परिवादी को जब एकनालेजमेन्‍ट प्राप्‍त नहीं हुआ तो उसे सजग रहना चाहिए और समय से शिकायत करना चाहिए था, यदि समय से शिकायत होती तो उसका उपचार खोजा जाता, अत्‍यंत हास्‍यास्‍पद है। यदि स्‍पीड पोस्‍ट समय पर ‘ डिलेवर ‘ नहीं हुई या देर से पहुंचा तो इस संबंध में डाक विभाग को स्‍वयं जांच करनी चाहिए थी कि स्‍पीड पोस्‍ट समय से क्‍यों नहीं पहुंचा, इस संबंध में डाक विभाग द्वारा कोई अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्‍तुत नहीं की गई है। यह तथ्‍य भी विचारणीय है कि दि. 29.09.2006 को स्‍पीड पोस्‍ट भेजा गया था और यह लिफाफा वापस परिवादी को दि. 12.03.2007 को प्राप्‍त हुआ। इस प्रकार 5 महीने से अधिक के समय के बाद लिफाफा वापस किया गया, ऐसा क्‍यों, इसका भी कोई कारण डाक विभाग द्वारा प्रस्‍तुत नहीं किया गया न ही उस पर कोई टिप्‍पणी अंकित की गई है। सामान्‍यत: जब कोई डाक किसी कारणवश से भेजने वोले के पास वापस की जाती है तो कोई न कोई टिप्‍पणी डाक विभाग अवश्‍य अंकित करता है। डाक विभाग इंडियन पोस्‍ट आफिस एक्‍ट 1898 की धारा 6 के प्रावधान का लाभ जानबूझकर की गई लापरवाही के लिए नहीं ले सकता है। पीठ जिला मंच के इस तर्क से सहमत है कि उक्‍त प्रावधान का लाभ सद्भावना में की गई त्रुटि के लिए ही दिया जा सकता है। प्रस्‍तुत मामले में कोई सदभावना दर्शित नहीं की गई है। डाक विभाग का इस प्रकरण में स्‍पीड पोस्‍ट के लिफाफे का समय से न पहुंचना तथा लगभग 5 महीने के बाद बिना किसी टिप्‍पणी के डाक को

 

 

-5-

परिवादी को वापस करना स्‍पष्‍ट रूप से सेवा में कमी और Willful Act के अंतर्गत आता है। जिला मंच ने साक्ष्‍यों की विस्‍तृत विवेचना करते हुए अपना निर्णय दिया है, हम जिला मंच के निर्णय एवं आदेश से सहमत हैं। जिला मंच का निर्णय/आदेश पुष्‍ट किए जाने योग्‍य है। तदनुसार प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

                             आदेश

     प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है तथा जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 29.02.2012 की पुष्टि की जाती है।

     उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय-व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

     निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

 

        (राज कमल गुप्‍ता)                              (महेश चन्‍द )

         पीठासीन सदस्‍य                                 सदस्‍य

राकेश, पी0ए0-2

      कोर्ट-3 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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