Rajasthan

Jalor

C.P.A 58/2014

GHAVAARAM - Complainant(s)

Versus

SANJIVANI CRIDET COPRATIV SOCIETY - Opp.Party(s)

NAVEEN KUMAR

18 Feb 2015

ORDER

न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर

पीठासीन अधिकारी

अध्यक्ष:-  श्री  दीनदयाल प्रजापत,

सदस्यः-   श्री केशरसिंह राठौड

सदस्याः-  श्रीमती मंजू राठौड,

 

1.भंवरलाल पुत्र कपूराजी, जाति माली, उम्र- 50वर्ष, निवासी- भीनमाल, तह0 भीनमाल, जि0 जालोर           

    प्रार्थी।

                बनाम    

1.शाखा प्रबन्धक,

यूनाईटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी लि0, मानपुरा वन वे रोड,जालोर, तह0 व जिला- जालोर।   

...अप्रार्थी।

                                सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 129/2013

परिवाद पेश करने की  दिनांक:-10-09-2013

अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता  संरक्षण  अधिनियम ।

उपस्थित:-

1.            श्री जगदीश गोदारा,  अधिवक्ता प्रार्थी।

2.            श्री  तिलोक चन्द मेहता, अधिवक्ता अप्रार्थी।

                            निर्णय     दिनांक:  09-02-2015

1.                संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी की वाहन मोटरसाईकिल नम्बर  8084 का बीमा अप्रार्थी के पास दिनांक 21-01-2012 से दिनांक 20-01-2013 तक बीमा पाॅलिसी संख्या-141104/31/11/01/000004584 के जरिये करवाया हुआ था। तथा प्रार्थी दिनांक 26-03-2012 को अपनी उक्त मोटर साईकिल एस0बी0बी0जे0 बैंक शाखा भीनमाल के बाहर खडी कर कार्य से बैंक के अन्दर गया, तथा बैंक का कार्य करके बाहर आया, तो प्रार्थी की मोटर साईकिल गायब थी, जो कोई अज्ञात चोर चुराकर ले गया था, जिसकी रिपोर्ट प्रार्थी ने दिनांक 27-03-2012 को पुलिस थाना भीनमाल में दी , जिसे सी0आर0 नम्बर 98  दिनांक 01-04-2012 को दर्ज किया गया, तथा प्रार्थी की वाहन चोरी होने के बाद प्रार्थी ने अप्रार्थी के कार्यालय में जाकर सम्पर्क किया, तो उन्होनंें बताया कि घटना की रिपोर्ट दर्ज कराई जावे। एवं आर0सी0 व इन्श्योरेन्स के मूल कागजात व घटना की रिपोर्ट हमारे कार्यालय में प्रस्तुत कराये जाने का कहा, जिस पर प्रार्थी ने दावा फार्म मय कागजात अप्रार्थी के कार्यालय में जमा करवा दिये। तथा अप्रार्थी ने दिनांक 04-02-2013 को पत्र भेजकर उक्त दस्तावेज मांगे गये थे, जो प्रार्थी ने दस्तावेज दिनांक 23-02-2013 को जमा करवा दिये। तथा दिनांक 21-03-2013 को  अप्रार्थी ने प्रार्थी को पत्र जारी कर क्लेम दावा यह कहते हूए निरस्त कर दिया, कि वाहन चोरी की सूचना देरी से दी गई हैं। जिस कारण क्लेम दिया जाना उचित नही हैं। तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी के दावा खारीजी की सूचना से असंतुष्ट होकर यह परिवाद अप्रार्थी के विरूद्व वाहन की राशि रूपयै 33,925/- व मानसिक , आर्थिक क्षति तथा परिवाद व्यय के रूपयै 5,000/- दिलाये जाने हेतु यह परिवाद जिला मंच के समक्ष पेश किया हैं।

 

2.                      प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थी को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया। अप्रार्थी की ओर से अधिवक्ता श्री तिलोकचन्द ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थी ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थी के द्वारा अपनी मोटर साईकिल  चोरी होना बताया हैं, जिसके समर्थन में प्रार्थी ने दिनांक 01-04-2012  की प्रथम सूचना रिपोर्ट अप्रार्थी को उपलब्ध करवाई हैं। तथा प्रार्थी की मोटर साईकिल दिनांक 26-03-2012 को चोरी होना बताया हैं, तथा प्रार्थी की मोटर साईकिल बीमित होना विवाद नहीं हैं। तथा प्रार्थी ने बीमा पाॅलिसी में मोटरसाईकिल की कीमत रूपयै 28,000/- होना डिक्लेयर किया हैं, तथा प्रार्थी की मोटर साईकिल  चोरी होने की सूचना बीमा कम्पनी को दिनांक 16-04-2012 को प्राप्त हुई, जो काफी देरीना हैं, जबकि बीमा पाॅलिसी की शर्त के अनुसार वाहन चोरी की सूचना शीघ्र देनी होती हैं, जिस पर बीमा कम्पनी शीघ्र जाॅंच करवा सके। तथा प्रार्थी को पत्र देकर सूचना देरीना देने का कारण  स्पष्ट  करने को कहा गया, जिसका प्रार्थी ने नकारात्मक जवाब दिया, जो संतोषप्रद नहीं था, और बीमा कम्पनी के द्वारा देरीना सूचना के आधार पर प्रार्थी की दावा पत्रावली निरस्त की गई हैं। जिसकी सूचना प्रार्थी को पत्र दिनांक 21-03-2013 के जरिये दी जा चुकी हैं तथा अप्रार्थी के द्वारा प्रार्थी का दावा क्लेम जाॅंच कर माईण्ड एप्लाई कर निरस्त किया हैं जो सेवा में त्रुटि का मामला नहीं होने से प्रार्थी का परिवाद मैन्टेनेबल नहीं हैं। तथा प्रार्थी का परिवाद जिला मंच के समक्ष पोषणीय नहीं हैं। इसप्रकार अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का जवाब पेश कर, परिवाद मय खर्चा खारीज किये जाने का निवेदन किया है।

 

3.           हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने का पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिस पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक  हैें:-

 

1.    क्या प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ?             प्रार्थी

 

2.   क्या अप्रार्थी ने  प्रार्थी की बीमित  वाहन चोरी होने पर भी

      क्षतिपूर्ति बीमा राशि नहीं देकर क्लेम दावा खारीज करने में

      गलती एवं कमी कारित की हैं ?

                                                        प्रार्थी

3. अनुतोष क्या होगा ?      

 

प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-

 

       क्या प्रार्थी, अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं ?           प्रार्थी

  

        उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने बीमा पाॅलिसी संख्या-141104/31/11/01/000004584 की प्रति पेश की हैं, जो अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी के नाम प्रार्थी की वाहन मोटर साईकिल नम्बर 16 8084 को प्रिमियम राशि रूपयै 936/- प्रार्थी से प्राप्त कर वाहन की जोखिम राशि रूपयै  28,000/- हेतु दिनांक 21-01-2012 से दिनांक 20-01-2013 तक की समयावधि हेतु  जारी की गई होना लिखा हैं। तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने अपने जवाब परिवाद में प्रार्थी की अप्रार्थी के यहंा उक्त बीमा पाॅलिसी से मोटर साईकिल बीमित होना स्वीकार किया हैं। इसप्रकार प्रार्थी एवं अप्रार्थी के मध्य ग्राहक- उपभोक्ता बीमाकर्ता एवं बीमाधारक  का सीधा सम्बन्ध स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 डी  के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद  बिन्दु  प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

 

द्वितीय विवाद बिन्दु:- 

 

     क्या अप्रार्थी ने  प्रार्थी की बीमित  वाहन चोरी होने पर भी

      क्षतिपूर्ति बीमा राशि नहीं देकर क्लेम दावा खारीज करने में

      गलती एवं कमी कारित की हैं ?

                                                        प्रार्थी 

 

              उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं।  जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी  ने परिवाद पत्र  एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि दिनांक 26-03-2012 को प्रार्थी की बीमित वाहन मोटर साईकिल एस0बी0बी0जे0 बैंक भीनमाल के बाहर खडी करने पर चोरी हो गयी। जिसकी रिपोर्ट दिनांक  27-03-2012 को पुलिस थाना भीनमाल में दी गई लेकिन पुलिस ने दिनांक 01-04-2012 को एफ0आई0आर0 दर्ज की। तथा गाडी चोरी होने के बाद प्रार्थी ने अप्रार्थी के कार्यालय से सम्पर्क किया, तो उन्होनें घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने एवं वाहन के मूल कागजात रिपोर्ट के साथ कार्यालय में प्रस्तुत करने का कहा था। प्रार्थी ने उक्त कथनो के सत्यापन हेतु एफ0आई0आर0 नम्बर 98/2012 पुलिस थाना भीनमाल में दर्ज की प्रति पेश की हैं। जो पुलिस थाना ने दिनांक 01-04-2012 को दर्ज किया हैं, लेकिन एफ0आई0आर0 में प्रार्थी ने स्पष्ट रूप से लिखा हैं कि  कल दिनांक 26-03-2012 को दोपहर में .....................अज्ञात चोर चुराकर ले गया  तथा प्रार्थी ने परिवाद में भी दिनांक 27-03-2014 को चोरी की रिपोर्ट पुलिस को देना लिखा हैं, जो रिपोर्ट मे अंकित शब्दो  से प्रार्थी द्वारा वाहन चोरी की सूचना पुलिस को दिनांक 27-03-2012 को देना प्रमाणित हैं। तथा एफ0आई0आर0 में काॅलम संख्या- 8 में  शिकायत/सूचना देने वाले द्वारा, सूचना देने में देरी का कारण   छव क्मसंल  लिखा हैं यानि चोरी की सूचना देने में देरी नहीं होना माना हैं। तथा अप्रार्थी ने प्रार्थी के उक्त परिवाद एवं साक्ष्य कथनो के खण्डन में प्रार्थी के मोटर साईकिल  चोरी होने की सूचना बीमा कम्पनी को दिंनाक 16-04-2012 को प्राप्त होना काफी देरीना हैं, जो बीमा पाॅलिसी की शर्त का उल्लघंन है, तथा अप्रार्थी ने प्रार्थी से देरीना होने की लिखित पत्र जारी कर सूचना मांगी थी, जो नकारात्मक जवाब दिया, जो संतोषप्रद नहीं था, जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी की ओर से भगवती ओटो ऐजेन्सी के लैटर पैड पर वाहन चोरी होने की सूचना देने का पत्र दिनांक 26-03-2012 की प्रति पेश की हैं, जो अप्रार्थी को दिं0 16-04-2012 की प्राप्त होने की सील लगी हैं, तथा पत्र क्रमांक-481 दिनांक 08-08-2012 की प्रति पेश की हैं, जिसमें अप्रार्थी ने वाहन से सम्बन्धित दस्तावेज एवं वाहन चोरी की सूचना का कारण व वाहन चोरी की सूचना डी0टी0ओ0 जालोर को देकर उनको प्रतिलिपि भेजने को कहा हैं, जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने डी0टी0ओ0 को लिखे पत्र दिनांक 10-08-2012 व 24-08-2012 पुलिस थाना को लिखा पत्र दिनांक 01-08-2012 व 24-08-2012 को लिखे पत्रो की प्रति पेश की हैं, तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी को लिखे पत्र दिनांक 23-02-2013 की प्रति पेश की हैं, जिसमें प्रार्थी ने अप्रार्थी के पत्र क्रमांक- 969 दिनांक 04-02-2013 का प्रत्युत्तर लिखा हैं, जिसमें दावा फार्म , एफ0आई0आर0, चाबी, नम्बर प्लेट, एवं वाहन चोरी की सूचना में देरी का कारण, पुलिस ने मार्च महिना होने से एफ0आई0आर0 दिनांक 27-03-2012 को दर्ज न कर नये वित्तीय वर्ष 01-04-2013 में दर्ज करना बताया हैं, लेकिन अप्रार्थी के पत्र क्रमांक-969 दिनंाक 04-02-2013 की प्रति न तो प्रार्थी ने पेश की हैं, तथा न ही अप्रार्थी ने पेश की हैं। जबकि अप्रार्थी ने क्लेम खारीज का पत्र दिनांक 21-03-2012  को प्रार्थी को जारी किया, उसमें पत्र क्रमाक- 969 दिनांक 04-02-2013 की सूचना नकारात्मक होना मानकर एवं चोरी की सूचना देरी से देने एवं पाॅलिसी की शर्तो का उल्लघंन होने से दावा निरस्त करना लिखा हैंे। जबकि प्रार्थी ने पत्र दिनांक 23-02-2012 मंे वर्णितानुसार अप्रार्थी को वाहन चोरी की सूचना में देरी होने का कारण बताया गया हैं। इसप्रकार अप्रार्थी , प्रार्थी के परिवाद एवं साक्ष्य का खण्डन करने में असफल रहा हैं।  तथा अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने न्यायिक दृष्टान्त माननीय राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली  छण्ब्ण्क्ण्त्ण्ब्ण्  के निर्णय क्ण्छण्श्रण् 2015 ख्ब्ण्ब्ण्,  पेज नम्बर-7 पर  त्मअपेपवद च्मजपजपवद  छवण्  3049/2014 मे पारित निर्णय एवं त्मअपेपवद च्मजपजपवद  छवण्  4028/2012, भ्नांउ ेपदही  अध्े न्ण्प्ण्प्ण् ब्व्ण् स्ज्क् ण् में पारित निर्णय दिनांक 22-11-2013 तथा त्मअपेपवद च्मजपजपवद  छवण्  3719/2011, ैपतंर  ज्ञींद अध्े डंीपदकतं थ्पदंदबम स्जक मे पारित निर्णय दिनांक 03-07-2012 की प्रतियां पेश की हैं। हमने माननीय राष्ट्रीय  आयोग  के उक्त निर्णयों का ससम्मान अध्ययन किया, जिसमें वाहन चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को क्रमशः 98 दिन, 18 महिने एवं 252 दिन देरीना देने के कारण स्पष्ट होने पर पारित हूए हैं। जो हस्तगत प्रकरण के तथ्यों से पूर्णतया मेल नहीं खाते हैं, तथा विषय वस्तु एवं तथ्य भी भिन्न-भिन्न हैं। लेकिन हस्तगत प्रकरण में वाहन चोरी की सूचना  प्रार्थी ने एफ0आई0आर0 दर्ज होने से पूर्व ही देने के कथन किये हैं, तथा सूचना की प्रति पेश की हैं, तथा अप्रार्थी स्वंय 21 वे दिन चोरी की सूचना प्राप्त हो जाना स्वीकार किया हैं, तथा अप्रार्थी ने प्रार्थी को लिखे पत्र क्रमांक- 481 दिनांक 08-08-2012  में प्रार्थी का दावा संख्या- 20/2012 लिखा हैं, जिसे दर्ज करने की तिथी अंकित नहीं की हैं, तथा पत्र दिनांक 20-03-2013 में प्रार्थी का दावा क्रमंाक-1411043112 ब 1000 19001 लिखा हैं। जिसमंे भी अप्रार्थी ने दावा दर्ज की तिथी अंकित नहीं की हैं। इसप्रकार प्रार्थी ने  अप्रार्थी को वाहन चोरी की सूचना देरी से दी जाना माने जाने योग्य नहीं हैं, तथा अप्रार्थी ने वाहन चोरी की सूचना सम्बन्धित पुलिस थाना में दी हैं, तथा अप्रार्थी को भी दी हैं। फिर भी अप्रार्थी ने प्रार्थी का क्लेम दावा खारीज कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं कमी कारित की हैं जो सिद्व एवं प्रमाणित हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।

 

तृतीय विवाद बिन्दु- 

 

                                 अनुतोष क्या होगा ?         

 

       जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दओं का निस्तारण प्रार्थी के पक्ष  में हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थी से प्राप्त करने का अधिकारी हैं या उसे दिलाई जा सकती हैं। जिसके  सम्बन्ध में प्रार्थी ने अपने चोरी हूए बीमित वाहन की आर0सी0 एवं बीमा पाॅलिसी की प्रति पेश की हैं।  वाहन रजिस्ट्रेशन के अनुसार प्रार्थी  का वाहन वर्ष 2009 का निर्मित माॅडल था तथा बीमा पाॅलिसी के अनुसार वाहन की कीमत दिनांक 21-01-2012 को रूपयै 28,000/- मानकर पाॅलिसी जारी की गई हैं, अतः प्रार्थी वाहन की कीमत रूपयै 28,000/- प्राप्त करने का अधिकारी माना जाता हैं तथा अप्रार्थी ने प्रार्थी का क्लेम दावा खारीज कर सेवा दोष कारित किया, जिससे प्रार्थी को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक क्षति कारित हुई , जिसके पेटे  रूपयै 3000/-, एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अप्रार्थी से दिलाये जाना उचित प्रतीत होता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं।

 

आदेश

 

                     अतः प्रार्थी भवंरलाल का परिवाद विरूद्व अप्रार्थी, यूनाईटेड इण्डिया इन्श्योरेन्स कम्पनी, जालोर, के विरूद्व स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि निर्णय की तिथी से 30 दिन के भीतर-भीतर अप्रार्थी, प्रार्थी को बीमित वाहन चोरी होने की क्षति, वाहन की कीमत रूपयै  28,000/-  अक्षरे अठ्ठाईस  हजार रूपयै  एवं मानसिक व शारीरिक क्षति वेदना के रूपयै 3,000/- अक्षरे तीन हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/-  अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र  अदा करे। तथा निर्णय की पालना 30 दिन में नहीं होने पर प्रार्थी उक्त आदेशित रकम पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी 10-09-2013 से तारीख अदायगी तक 9 प्रतिशत वार्षिकी दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी होगा।

 

                निर्णय व आदेश आज दिनांक 09-02-2015 को विवृत मंच में  लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

    मंजू राठौड               केशरसिंह राठौड                दीनदयाल प्रजापत

     सदस्या                         सदस्य                                  अध्यक्ष

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