राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-1137/2017
डा0 नगेन्द्र सिंह, (एम0बी0बी0एस0, डी0सी0एच0, एम0आई0ए0बी0) (बाल रोग विशेषज्ञ), संजीवनी हास्पिटल
बनाम
संजीव कुमार, पुत्र श्री हरपाल सिंह व एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल एवं
सुश्री पलक सहाय गुप्ता,
विद्वान अधिवक्तागण।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 24.09.2024
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, शामली द्वारा परिवाद संख्या-328/2003 श्री संजीव कुमार व एक अन्य बनाम डा0 नगेन्द्र सिंह (एम0बी0बी0एस0, डी0सी0एच0, एम0आई0ए0बी0, बाल रोग विशेषज्ञ) संजीवनी हास्पिटल में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.05.2017 के विरूद्ध योजित की गयी है। प्रस्तुत अपील विगत लगभग 07 वर्ष से लम्बित है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्तागण श्री विकास अग्रवाल एवं सुश्री पलक सहाय गुप्ता तथा प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार मिश्रा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी के
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आठ माह के पुत्र नीरज कुमार का जन्म दिनांक 07.02.2003 को डा0 कविता के यहॉं हुआ था, जिनके निर्देश पर बच्चे को विपक्षी चिकित्सक के यहॉं ओक्सीमीटर लैब में रखने के लिए दिनांक 07.02.2003 को भर्ती कराया गया क्योंकि बच्चे का जन्म एक माह पूर्व, आठ माह में हो गया था। विपक्षी चिकित्सक के यहॉं बच्चा चिल्लाता रहा, परन्तु विपक्षी चिकित्सक द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसके कारण परिवादी के पुत्र नीरज के पैर व हाथ की अंगुलियां जलकर नष्ट हो गयी।
विपक्षी चिकित्सक द्वारा दिनांक 10.03.2003 को बच्चे को कलावती नर्सिंग होम, दिल्ली ले जाने को कहा गया। परिवादी अपने पुत्र को सर्वोदय नर्सिंग होम, गाजियाबाद ले गया, जहॉं पर डा0 अशोक भुवालका (एम0बी0बी0एस0, एम0डी0, बाल रोग विशेषज्ञ) के यहॉं दिनांक 10.03.2003 को भर्ती किया गया, जिनके द्वारा बताया गया कि गलत तरीके से सिकायी के कारण बच्चे के पैर व हाथ की अंगुलियां जल गई, जिसके कारण उनमें सेपटीसीमिया हो गया।
विपक्षी चिकित्सक की लापरवाही व ईलाज में कमी के कारण परिवादी का पुत्र नीरज स्थायी रूप से विकलांग हो गया। अत: क्षुब्ध होकर परिवादीगण द्वारा विपक्षी चिकित्सक के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी चिकित्सक की ओर से मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी का पुत्र नीरज समय से पूर्व पैदा हुआ था एवं उसकी मां को तीन दिन तक हुए स्राव के कारण नीरज को सेपटीसीमिया हो गया, जिसके कारण परिवादी के पुत्र नीरज के दायें हाथ व पैर की अंगुलियों में गैंगरीन हो गया, जिसके कारण नीरज की अंगुलियां सूख कर काली हो गयी, जो कि जली हुई प्रतीत होती है।
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विपक्षी द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि जन्म के समय लगभग 50 प्रतिशत मामलों में गैंगरीन हो सकता है, यदि बच्चा सांस न ले पाए, रक्त की सप्लाई कम हो, जन्म के समय सांस की परेशानी या चोट के कारण गैंगरीन हो सकता है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि विपक्षी चिकित्सक ने ऐसा कोई पर्चा या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह तथ्य सिद्ध हो सके कि परिवादी के पुत्र नीरज को जब अस्पताल में लाया गया तब उसके शरीर पर कोई चोट, सेपटीसीमिया या गैंगरीन के कोई लक्षण थे। इसके अतिरिक्त सर्वोदय अस्पताल, गाजियाबाद द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश के अनुपालन में परिवादी के पुत्र नीरज के इलाज से सम्बन्धित जो कागजात प्रस्तुत किए गए, उनमें किसी में भी परिवादी के पुत्र नीरज के शरीर में सेपटीसीमिया के लक्षण अंकित नहीं थे, केवल हाथ व पैर की अंगुलियों में गैंगरीन व रंग बदलने के लक्षण थे, जिसके संबंध में जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष डा0 अशोक भुवालका ने अपने साक्ष्य में कहा है कि यह सम्भव है कि बच्चे के पैर की अंगुली जो काली पड़ी वह ट्रे रखकर रूम हीटर से सिकाई के कारण जल सकती है। उक्त साक्ष्य से भी यह स्पष्ट होता है कि मरीज नीरज की अंगुलियां जो गैंगरीन के कारण नष्ट हुई, वह अस्पताल में सिकाई में लापरवाही होने के कारण अथवा चिकित्सीय लापरवाही होने के कारण हुआ है, जिसके कारण परिवादी के पुत्र नीरज के पैर व हाथ की अंगुलियां जलकर नष्ट हो गयी। यदि यह क्षति ओक्सीमीटर के कारण भी हुई तो इसमें सम्बन्धित चिकित्सक अथवा अस्पताल का दोष है एवं चिकित्सीय लापरवाही परिलक्षित होती है। अत: इस पीठ का मत है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उचित प्रकार से निष्कर्ष दिया गया है कि विपक्षी चिकित्सक की लापरवाही के कारण परिवादी के पुत्र नीरज के दायें हाथ व पैर की अंगुलियां हीटर की सिकाई के कारण
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जली, जो विपक्षी चिकित्सक की सेवा में कमी है।
तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद निर्णीत करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया है:-
''परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। दवाईयां आदि में रू 12,818/-, इस धनराशि के अतिरिक्त शारिरिक व मानसिक कष्ट रू 10,000/- एवं स्थायी विकलांगता के मद में रू 30,000/- कुल रू 52,818/- (बावन हजार आठ सौ अठारह मात्र) का भुगतान मय 8 प्रतिशत सलाना ब्याज दिनांक 10.02.2003 से भुगतान की तिथि तक देय धनराशि का भुगतान विपक्षी डा0 नगेन्दर सिंह द्वारा किया जायेगा। विपक्षी डा0 नगेन्द्र सिंह के द्वारा आज दिनांक से 30 मासिक दिवस में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शामली में परिवादीगण को भुगतान के लिये सम्पूर्ण धनराशि जमा कर दिया जायेगा। चूक होने पर देय धन राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक अतिरिक्त दण्डात्मक ब्याज आज दिनांक से 30 मासिक दिवस के बाद से भुगतान की तिथि तक भी विपक्षी डा0 नगेन्द्र सिंह के द्वारा अतिरिक्त देय होगा। परिवाद कालावधी के पश्चात दाखिल दफ्तर हो।''
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया, परन्तु हमारे विचार से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो समयावधि में आदेशित/देय धनराशि का भुगतान न करने पर आदेशित/देय धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की देयता निर्धारित की गयी है, उसे न्यायहित में 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज
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किया जाना उचित है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग, शामली द्वारा परिवाद संख्या-328/2003 श्री संजीव कुमार व एक अन्य बनाम डा0 नगेन्द्र सिंह (एम0बी0बी0एस0, डी0सी0एच0, एम0आई0ए0बी0, बाल रोग विशेषज्ञ) संजीवनी हास्पिटल में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.05.2017 को संशोधित करते हुए आदेशित/देय धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की देयता निर्धारित की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग का शेष आदेश यथावत् रहेगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1