Uttar Pradesh

StateCommission

R/1998/87

Circulatiion Manager Sahara India - Complainant(s)

Versus

Sanjay Kumar Tiwari - Opp.Party(s)

05 Nov 2014

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. R/1998/87
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Circulatiion Manager Sahara India
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. Sanjay Kumar Tiwari
Sonabhadra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

पुनरीक्षण संख्‍या-87/1998

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, सोनभद्र द्वारा इजराय वाद संख्‍या- 310/1998 में पारित आदेश दिनांक 26-04-1998 के विरूद्ध)        

1-सरकुलेशन मैनेजर, राष्‍ट्रीय सहारा, सहारा इंडिया, टावर्स, 7 कपूरथला काम्‍पलेक्‍स, अलीगंज, लखनउ।

2-श्री राजीव सिंह, व्‍यूरो चीफ, राष्‍ट्रीय सहारा, काशी निकेतन, वाराणसी।

3- श्री सुब्रतो राय, 7 कपूरथला काम्‍पलेक्‍स, अलीगंज,  लखनऊ।

                                        ..पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण              

  बनाम

श्री संजय कुमार तिवारी, पुत्र श्री राम करन तिवारी, निवासी-टाऊन एण्‍ड पी.एस. दुद्धी, जिला- सोनभद्र(उ0प्र0)          ..प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1-माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

2-माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री अश्विनी पारासर विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित  :  कोई नहीं।

दिनांक- 15-07-2015

माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य, द्वारा उदघोषित

निर्णय

     पुनरीक्षणकर्ता ने यह पुनरीक्षण जिला उपभोक्‍ता फोरम, सोनभद्र द्वारा इजराय वाद संख्‍या- 310/1998 में पारित आदेश दिनांक 26-04-1998 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की है।

    जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा दिनांक 26-04-1998 को यह आदेश पारित किया गया है कि उभय पक्ष को विस्‍तार में सुना गया तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया। निर्णीत राशि 8,000-00 रूपये व उस पर अप्रैल 1993 से 10 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्‍याज तथा 1000-00 रूपये क्षतिपूर्ति जो कि दिनांक 31-12-1997 को परिवाद सं0-1199/1997 में पारित निर्णय के द्वारा दिलवायी गई, का भुगतान विपक्षीगण ने नहीं किया। एक बेदम रिब्‍यू  पेटीशन योजित की, जिसने शिकायतकर्ता के केस को ही सीचिंत किया और खुद विपक्षीगण के कथन का धूल धूसरित किया है। उस रिब्‍यू

(2)

का ओम स्‍वाहा आज ही किया गया है। यज्ञ में आहूति देकर विपक्षीगण के रिब्‍यूकर्ता के रूप में उभरे पैरोकार पलायित हो गये। इस दफा 27 उपभोक्‍ता अधिनियम के प्रार्थना पत्र का कोई जबाब उनके पास नहीं है। शिकायत की पोषणीयता ताथ्यिक स्थिति से स्‍पष्‍ट है। प्रश्‍न मात्र इतना अवशेष है कि दंडादेश क्‍या पारित किया जाय। रकम शिकायतकर्ता की 8000-00 रूपये की है, उस पर सूद ऊपर से है और क्षतिपूर्ति 1000-00 रूपये की सर्वोपरि है। रकम अच्‍छी खासी है। सहारा राष्‍ट्रीय के लिए इस रकम का भुगतान करना असम्‍भव नहीं है। वह तो तमाम जमीन लखनऊ के आस पास और अन्‍यत्र भी खरीद फरोख्‍त कर रहा है। शिकायतकर्ता संजय कुमार तिवारी की हैसियर उसके समक्ष सुदामा से बढ़कर नहीं है। निर्धन विप्र को तंग और परेशान करना न्‍यायोचित नहीं प्रतीत होता है। विपक्षीगण को इसके लिए दंड मिलना ही चाहिए। लेकिन दंड के साथ जुर्माना भी उन्‍हें भरना चाहिए। फोरम की राय में शिकायतकर्ता को विपक्षीगण से 500-00 रूपये दिलाना उचित होगा। शिकायतकर्ता उस रकम को पाने का हकदार है। विपक्षीगण फोरम की राय में एक माह सजा के दण्‍ड के भी पात्र है। शिकायत उपरोक्‍त के अनुसार  निर्णीत की जाती है। वारण्‍ट तद्नसार निर्गत किया जाय। इसकी वापसी 31-05-1998 तक सुनिश्चित की जाय।

     इस सम्‍बन्‍ध में पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अश्विनी पारासर को सुना गया। विपक्षी को नोटिस दिनांक 10-01-2011 को भेजा गया था, लेकिन कोई उपस्थित नहीं आया। निगरानी के आधार का भी अवलोकन किया गया।

     निगरानी के आधार में कहा गया है कि परिवादी का केस एक पक्षीय निगरानीकर्ता के विरूद्ध पारित किया गया है और कोई नोटिस परिवाद का उन्‍हें प्राप्‍त नहीं हुआ। परिवादी से एक पक्षीय आदेश की जानकारी होने पर

(3)

निगरानीकर्ता ने रिकाल का प्रार्थना पत्र जिला उपभोक्‍ता फोरम में दिया। रिकाल प्रार्थना पत्र के सम्‍बन्‍ध में आदेश दिनांकित 26-04-1998 को पारित किया गया और जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उसे रिब्‍यू प्रार्थना पत्र समझकर रिजेक्‍ट कर दिया और उसी तिथि 26-04-1998 को ही जिला उपभोक्‍ता फोरम ने धारा-27 उपभोक्‍ता संरक्षण एक्‍ट के अर्न्‍तगत बिना सुनवाई का मौका दिये हुए और निगरानीकर्ता को साक्ष्‍य का मौका दिये वगैर उनको सजा दिया गया है और मनमाने तरीके से एक महीने की सजा और 500-00 रूपये जुर्माना लगा दिया। सजा करने से पहले उनको सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। जिला उपभोक्‍ता फोरम ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर आदेश पारित किया है। उपभोक्‍ता फोरम में यह उपभोक्‍ता का मामला नहीं था और परिवादी द्वारा जो सिक्‍योरिटी रकम जमा किया गया था, उसे निगरानीकर्तागण पहले ही वापस कर चुके थे। निगरानीकर्तागण दिनांक 26-04-1998 के आदेश तक फोरम में पैरवी कर रहे थे और जिला उपभोक्‍ता फोरम का यह निष्‍कर्ष गलत है कि निगरानीकर्तागण जिला उपभोक्‍ता फोरम के आदेश का पालन नहीं कर रहें है। जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा इस पर विचार नहीं किया गया कि परिवाद एक पक्षीय रूपये तय हुआ है। निगरानी में कहा गया है कि दिनांक 26-04-1998 को समाप्‍त किया जाय और सजा को समाप्‍त किया और जो अलग से जुर्माना लगाया गया है, उसे भी समाप्‍त किया जाय।

     निगरानीकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा निम्‍न विधि व्‍यवस्‍था दाखिल की गई:-

  1. Iv (2013) CPJ 46 (U P) उत्‍तर प्रदेश स्‍टेट कन्‍ज्‍यूमर डिस्‍प्‍यूटस रेडरसल कमीशन लखनऊ गाजियाबाद डेव्‍लपमेंट अथारिटी बनाम

 

(4)

श्रीपाल दीक्षित प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि:-

      Consumer Protection Act, 1986 – Section 27- Criminal Procedure Code,1973—Section 190—Summary Trial—Procedure  when convicted—Consumer For a first of all have to take cognizance of offence against person who have committed offence under section 27 of CP Act, as per provisions of Section 190, Cr. P.C. being empowered as Judicial Magistrate under  Section 27 (2) C.P. Act—Presence of the person who may be called accused shall be procured  before Consumer Fora thereby invoking provision of Chapter VI, Cr.P.C. pertaining to processes to compel appearance if required – District Forum not complied with provisions of section 27, Consumer Protection Act correctly nor provided to be  applied to convict any defaulter under Consumer Protectiion Act committing offence wherein all offences under Consumer Protection Act have to be tried summarily by Disst. Forum-Conviction Set aside.

(2) 2007 (3) सी.पी.आर. 29 (एनसी) द रीजनल डायरेक्‍टर, नेशनल सेविंग, कोकटा बनाम दीनेन्‍द्र नरायन राय दाखिल किया, जिसमें प्रतिपादित किया गया है कि:-

     Consumer Protectiion Act, 1986-Sectiion 21 (b),2(1)(d)(ii)-Revision against appellate order upholding decision of District Forum that a Commission agent is a Consumer-Respondent, a

(5)

commission agent for PFF Scheme of petitioner-Complaint filed for dispute on non-payment of commission-Entertained by For a below – Revision against-Applicability of Section 230 of Contract Act, 1872-Which arose for consideration in Go Go Garments Case (1998) 3 SCC 247) – Whether applicable? (No, in view of Kusum Gupta’s case decided by National Commission)-Revision allowed-Complaint dismissed.

(3) । (1993) सी.पी.जे. 454 राजस्‍थान स्‍टेट कन्‍ज्‍यूमर डिस्‍प्‍यूट रेडरसल कमीशन  जयपुर। डिस्ट्रिक टेलीकाम इंजीनियर बनाम डिस्ट्रिक फोरम एवं अन्‍य दाखिल किया, जिसमें प्रतिपादित किया गया है कि:-

  1. Consumer Protection Act, 1986-Section 2(1)(o)-“Consumer”’ – “Public Telephone’s” – Complainant applied for being appointed as agent for Long Distance Public Telephone – Agreement entered into – Not appointed as agent – Security deposit returned with interest – Complaint filed claiming compensation and istallation of L.D.P.T. – District Forum allowed complaint – Hence appeal – Whether complainant is a consumer ?-No.

      Held; The complainant is not a consumer within the meaning of sectioin 2 (1)(d) of the Act.

     इस प्रकार से हम यह पाते हैं कि जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा दिनांक 26-04-1998 को ही अपीलकर्ता का रिकाल प्रार्थना पत्र खारिज किया और उसी तिथि को ही 26-04-1998 को निगरानीकर्ता को बिना सुने ही एक

(6)

माह के सजा के दण्‍ड से तथा 500-00 रूपये अर्थदण्‍ड से दण्डित कर दिया और परिवादी/प्रत्‍यर्थी को निर्धन विप्र सुदामा बताया और निगरानीकर्तागण को धनाढ़य बताया और यह भी कहा कि राष्‍ट्रीय सहारा के पास तमाम जमीन लखनऊ व उत्‍तरप्रदेश में खरीद फरोख्‍ता के हैं और शिकायतकर्ता संजय कुमार तिवारी की हैसियत उनके समक्ष सुदामा से बढ़कर नहीं है। निर्धन विप्र को तंग और परेशान करना न्‍यायोचित प्रतीत नहीं होता। विपक्षीगण को इसके लिए दण्‍ड मिलना ही चाहिए। इस प्रकार से दिनांक 26-04-1998 को ही निगरानीकर्ता के रिकाल प्रार्थनापत्र को खारिज करना और उसी तिथि 26-04-1998 को बिना सुनवाई किये हुए निगरानीकर्ता को सजा देने से पहले सुनवाई का मौका नहीं दिया गया है। केस के तथ्‍यों परिस्थितियों एवं उपरोक्‍त रूलिंग को देखते हुए एवं पुनरीक्षणकर्ता को बिना व्‍यक्तिगत रूप से सुनवाई का मौका दिये हुए इस प्रकार का जो सजा का आदेश पारित किया गया है, वह विधि विरूद्ध है और समाप्‍त किये जाने योग्‍य है और निगरानीकर्ता की निगरानी स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

     निगरानीकर्तागण की निगरानी स्‍वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्‍ता फोरम, सोनभद्र द्वारा इजराय वाद संख्‍या- 310/1998 में पारित आदेश दिनांक 26-04-1998 को निरस्‍त किया जाता है।

     उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वयं वहन करें।

 

 (राम चरन चौधरी)                      ( राज कमल गुप्‍ता )

  पीठासीन सदस्‍य                            सदस्‍य

आर.सी. वर्मा, आशु.

कोर्ट नं0-5

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.