जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, जशपुर (छ0ग0)
प्रकरण क्रमांक :-CC/07/2015
प्रस्तुति दिनांक :- 14/05/2015
मो. फिरोज, पिता मो शमशेर,
उम्र 50 वर्ष जाति मुसलमान,
नि.ग्राम-मिलाइडांगर,
तह. पत्थलगांव,
जिला-जशपुर (छ.ग.) ..................परिवादी /आवेदक
( विरूद्ध )
संजय कुमार पाण्डेय आ. श्री केशव प्रसाद पाण्डेय
निवासी ग्राम-राममंदिर ब्रम्हपारा,
अंबिकापुर जिला-सरगुजा(छ.ग.). .........विरोधी पक्षकार/अनावेदक
///आदेश///
( आज दिनांक 23/07/2016 को पारित)
1. परिवादी/आवेदक ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक के विरूद्ध सेवा में कमी करने के आधार पर क्रय के अधीन परिवादी द्वारा संदाय रकम 3,79,000/-रू. एवं वाहन मेंटनेंस में व्यय रकम 1,37,650/-रू., कुल 5,16,650/-रू. मय नौ प्रतिशत माहवारी ब्याज के दर से, मानसिक क्षतिपूर्ति 2,00,000/-रू., दिनांक 01.05.2014 को वाहन खड़े रहने से हो रही नुकसानी के लिए प्रतिमाह 20,000/-रू. की दर से क्षतिपूर्ति दिलाए जाने हेतु दिनांक 14.05.2015 को प्रस्तुत किया है।
2. प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है किः-
1. अनावेदक के स्वामित्व की वाहन ट्रक जिसका पंजीयन क्रमांक सी.जी.15 ए/8129 है आवेदक को विक्रय हेतु अनुबंध पत्र दिनांक 05.07.2013 को निष्पादित कर रू. 8,71,000/-रू. में विक्रय हेतु सहमत हुए थे तथा बतौर अग्रिम राशि 1,21,000/-रू. परिवादी से अनावेदक ने प्राप्त किया था। अनुबंध के निष्पादन पश्चात वाहन का आधिपत्य दस्तावेजों के साथ परिवादी को सौंप दिया गया है।
2. परिवादी ने 7 अक्टूबर 2013 को 20,000/-रू, दिनांक 24.01.2014 को 11,000/-रू. व दिनांक 29.01.2014 को 11,000/-रू. तथा 16.04.2014 को 1,000/-रू. दिनांक 17.04.2014 को 1,45,,000/-रू. अनावेदक को भुगतान किया था।
3. अनावेदक ने परिवादी को दिए अपने वाहन को 14 मई 2014 में परिवादी से अपने आधिपत्य में ले लिया।
4. परिवादी ने अनावेदक को रजिस्टर्ड अधिवक्ता नोटिस प्रेषित किया था।
3. अ. परिवाद के निराकरण के लिए आवश्यक तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी/आवेदक ने अनावेदक के स्वामित्व के वाहन ट्रक पंजीयन क्रमांक सी.जी.15 ए/8129 को विक्रय हेतु दिनांक 05.07.2013 को अनुबंध पत्र का निष्पादन कर रू. 8,71,000/-रू. में विक्रय हेतु सहमति प्रदान करते हुए उपरोक्त प्रतिफलार्थ बतौर अग्रिम राशि 1,21,000/-रू. परिवादी से प्राप्त किया और उक्त वाहन मय दस्तावेज के आधिपत्य परिवादी को सौंप दिया, जिसका उपयोग एवं उपभोग परिवादी के द्वारा किया जाने लगा। उक्त वाहन के एन.ओ.सी. के लिए अनावेदक ने आवेदक से दिनांक 07.10.2013 को 20,000/-रू., दिनांक 24.01.2014 को 11,000/-रू. व दिनांक 29.01.2014 को 11,000/-रू. प्राप्त किया। उपरोक्त राशि जमा करने के पश्चात परिवादी के द्वारा अनावेदक से निवेदन किया गया की अनावेदक एन.ओ.सी. कार्यवाही कराकर नाम ट्रांसफर करा दे। अनावेदक द्वारा आश्वासन दिये जाने पर दिनांक 16.04.2014 को 1,000/-रू. एवं दिनांक 17.04.2014 को 1,45,000/-रू. परिवादी द्वारा अनावेदक के खाते में जमा किया गया, किंतु अनावेदक द्वारा न तो नाम ट्रांसफर किया गया और न ही एन.ओ.सी. प्रदान किया गया। उक्त राशि के अतिरिक्त अनावेदक को 50,000/-रू. की राशि नगद एवं अनावेदक के कहने पर 20,000/-रू. पत्थलगांव के वेदु महाराज नामक व्यक्ति के माध्यम से दिया गया था साथ 3 ब्लैंक चेक क्रमशः फिरोज, नुरेशा बेगम और शमशाद हुसैन के नाम का अनावेदक को बतौर गारंटी प्रदाय किया गया ।
ब. अनावेदक के द्वारा परिवादी को शेष रकम जल्द से जल्द अदा किये जाने पर ही नाम ट्रांसफर करने की बात कही गयी जिस पर परिवादी ने समय की मांग की और दिनांक 01.05.2014 को तय हुई की दिनांक 10.05.2014 को शेष राशि की अदायगी पश्चात नाम ट्रांसफर किया जायेगा, तब तक उक्त वाहन बाबा महाराज पत्थलगांव के फार्म हाउस में खड़ा रहेगा, जबकि परिवादी द्वारा उक्त वाहन थाना में खड़ा रखने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर अनावेदक राजी नहीं हुआ। परिवादी उक्त राशि की व्यवस्था कर दिनांक 08.05.2014 को फोन में राशि व्यवस्था हो जाने की खबर दी तब अनावेदक के द्वारा दिनांक 12.05.2014 को उक्त कार्य हेतु तिथि का निर्धारण किया गया, किंतु अचानक अनावेदक ने असलम नामक व्यक्ति के माध्यम से उक्त वाहन को फार्म हाउस से परिवादी को बिना बताए लॉक तोड़कर ले गया। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 26.07.2014 को रजिस्टर्ड नोटिस प्रेषित कर कुल 5,16,650/-रू. हर्जाने एवं नौ प्रतिशत माहवारी ब्याज के दर से परिवादी को वापस कर देने अथवा उक्त वाहन उसी स्थिति में वापस करने का अवसर दिया गया था, किंतु अनावेदक द्वारा पालन नहीं किया गया। इस प्रकार अनावेदक द्वारा सेवा में कमी किए जाने से परिवादी को आर्थिक, मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा। अतः परिवादी/आवेदक ने यह परिवाद प्रस्तुत कर अनावेदक से क्रय के अधीन परिवादी द्वारा संदाय रकम 3,79,000/-रू. एवं वाहन मेंटनेंस में व्यय रकम 1,37,650.00/-रू., कुल 5,16,650,00/-रू. मय नौ प्रतिशत माहवारी ब्याज के दर से, मानसिक क्षतिपूर्ति 2,00,000/-रू., दिनांक 01.05.2014 को वाहन खड़े रहने से हो रही नुकसानी के लिए प्रतिमाह 20,000/-रू. की दर से क्षतिपूर्ति दिलाए जाने की प्रार्थना किया है।
4. अ. अनावेदक ने स्वीकृत तथ्य को छोड़ शेष तथ्यों से इंकार करते हुए कथन किया है कि आवेदक द्वारा अनावेदक के स्वामित्व के ट्रक पंजीयन क्रमांक सी.जी.15 ए/8129 अनुबंध पत्र दिनांक 06.07.2013 में उल्लेखित शर्तों के अनुसार विक्रय राशि 8,71,000/-रू. में क्रय किये जाने का दिनांक 02.07.2013 को अम्बिकापुर में सौदा किया जाकर 11,000/-रू. नगद दिया और सादे कागज में लिखा पढ़ी कर उभय पक्ष हस्ताक्षर किये एवं दिनांक 06.07.2013 को स्टाम्प में अनुबंध प्रपत्र निष्पादन के समय 1,10,000/-रू. अदायगी उपरान्त कुल अग्रिम राशि बतौर 1,21,000/-रू. अनावेदक को भुगतान किया गया था तथा शेष रकम 7,50,000/-रू. फायनेंस कंपनी के माध्यम से अथवा स्वयं आगामी एक माह के अंदर भुगतान किया जाना था। फायनेंस नहीं होने की स्थिति में यदि रकम का भुगतान आवेदक द्वारा नहीं किया जाता है तो अनुबंध पत्र समाप्त समझा जावेगा और वाहन बिना किसी राशि
भुगतान किये विक्रेता को वापस हो जावेगा। उक्त शर्त का परिवादी के द्वारा उल्लंघन करते हुए शेष रकम 7,50,000/-रू. किसी भी माध्यम से या स्वतः आवेदक द्वारा अनावेदक को अथवा वाहन फाईनेंस कंपनी को भुगतान नहीं कर रहा था बल्कि वाहन का फिटनेस एवं टैक्स रसीद प्राप्ति हेतु वेदू महाराज के माध्यम से अक्टुबर 2013 में 20,000/-रू एवं दिनांक 24.01.2014 को खाते में 11,000/-रू. तथा 16.04.2014 को 1,000/-रू. प्राप्त कर टैक्स जमा किया गया था, परंतु पूर्ण रकम आवेदक द्वारा भुगतान नहीं किया गया और न ही भुगतान करने का मंशा रखता था।
ब. चूंकि आवेदक व्यवसायिक उपयोग के लिए वाहन क्रय किया था और शर्तों को भंग आवेदक द्वारा किया गया है। ऐसी स्थिति में आवेदक द्वारा प्रस्तुत परिवाद चलने योग्य नहीं है। चूंकि वाहन अनावेदक के नाम से था इस कारण वाहन का टैक्स जमा करने रकम अनावेदक को प्रदान किया जाता था। समय पर टैक्स नहीं पटने के कारण फिटनेश नहीं बन पा रहा था इस कारण फाईन सहित टैक्स का भुगतान अनावेदक द्वारा किया गया। तत्पश्चात् फिटनेश प्राप्त कर एवं टैक्स की रसीद भी आवेदक को अनावेदक द्वारा दे दी गई थी। अनावेदक द्वारा एन.ओ.सी. की मूल प्रति भी आवेदक को प्रदान कर दी गयी थी। इसके पश्चात् भी आवेदक वाहन का रिफायनेंस नहीं करा पाया और शेष रकम का भुगतान नहीं कर पाया। दिनांक 01.05.2014 को ग्राम पत्थलगांव में आवेदक से शेष रकम की मांग किया किंतु आवेदक शेष रकम देने में असमर्थता व्यक्त किया। तत्पश्चात थाने प्रांगण में श्री वेदु महाराज तथा 10-15 व्यक्तियों के मध्य आवेदक द्वारा यह आश्वासन दिया कि 10 दिनों के अंदर शेष रकम का भुगतान कर दूंगा यदि 10 दिनों के अंदर रकम का भुगतान नहीं किया तो अनावेदक अपने वाहन को दस्तावेज सहित वापस ले जावेगा। समय सीमा समाप्त होने पर जब आवेदक ने अनावेदक को रकम अदा नहीं किया तब अनावेदक दिनांक 14.05.2014 को आवेदक से शेष रकम लेने अथवा वाहन वापसी हेतु पत्थलगांव गया परंतु आवेदक शेष रकम भुगतान नहीं कर सका और टाल-मटोल करने लगा।
स.तत्पश्चात उक्त 10-15 व्यक्ति के समक्ष आवेदक एवं अनावेदक की बैठक हुई और आवेदक वाहन वापस करने हेतु राजी हो गया और उसकी सहमति से वाहन जिसका इंजन ऑयल लिकेज हो रहा था, एवं बॉडी क्षतिग्रस्त था, सामान ढोने हेतु सक्षम नहीं था उस वाहन को पत्थलगांव में अपने आधिपत्य में लेकर वापस अपने ग्राम अम्बिकापुर आ गया, जिसकी सूचना उक्त तिथि को श्रीमान् चौकी प्रभारी महोदय मणीपुर अम्बिकापुर को देकर पावती प्राप्त की गयी है। आवेदक 10 माह तक अनावेदक के वाहन का व्यवसायिक उपयोग कर 40 से 50 हजार रूपये महीने आय अर्जित किया है। अनावेदक जिसे अपनी पुत्री का विवाह करना था और कर्ज से दबा हुआ था, जिस कारण उसे उक्त वाहन विक्रय करना पड़ा । चूंकि आवेदक द्वारा शेष रकम का भुगतान समय पर नहीं किया गया । इस कारण अनावेदक अपनी पुत्री का विवाह नहीं कर पाया और वह कर्ज के बोझ से और दब गया इस सबका जिम्मेदार आवेदक है। आवेदक द्वारा अनावेदक को प्रताड़ित करने, तंग एवं परेशान करने के उद्देश्य से बिना किसी आधारों के परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जो सव्यय निरस्त किए जाने योग्य है। पक्षकारों के मध्य अनुबंध पत्र का निष्पादन अम्बिकापुर जिला सरगुजा छ.ग. में हुआ था। उक्त विवाद विशुद्ध रूप से अनुबंध पर आधारित है, फलस्वरूप परिवाद की सुनवाई की अधिकारिता माननीय जिला अनुतोष मंच के समक्ष उत्पन्न होना अमान्य है। अतः आवेदक द्वारा प्रस्तुत परिवाद आधारहीन एवं क्षेत्राधिकार बाह्य होने के कारण सव्यय निरस्त किये जाने का निवेदन किया है।
5. परिवाद पर उभय पक्ष अधिवक्ता को ृविस्तार से सुना गया। अभिलेखगत सामग्री का परिशीलन किया गया है ।
6. विचारणीय प्रश्न यह है कि :-
1. क्या परिवादी/आवेदक, अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार का उपभोक्ता है ?
2. क्या अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार के विरूद्ध प्रस्तुत यह परिवाद इस जिला फोरम की सुनवाई क्षेत्राधिकार में है ?
3. क्या अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार ने परिवादी के विरूद्ध सेवा में कमी किया है।
4. क्या अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार के विरूद्ध प्रस्तुत यह परिवाद स्वीकार करने योग्य है ?
निष्कर्ष के आधार
विचारणीय प्रश्न क्रमांक 1 का सकारण निष्कर्ष :-
7. परिवादी ने परिवाद के समर्थन में अपना शपथ पत्र एवं सूची अनुसार दस्तावेज वाहन विक्रय हेतु अनुबंध पत्र दिनांक 6.07.2013 दस्तावेज क्रमांक-1 एवं 2,परिवादी द्वारा थाना प्रभारी पत्थलगांव को रिपोर्ट दर्ज करने का आवेदन दिनांक 13.05.2014 दस्तावेज क्रमांक-3, स्टेटमेंट दिनांक 29.04.2014 दस्तावेज क्रमांक-4, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का जमा पर्ची दिनांक 29.01.2014, 24.01.2014, 07.10.2013 दस्तावेज क्रमांक-5, वाहन का पंजीयन प्रमाण पत्र दिनांक 05.11.2011 दस्तावेज क्रमांक-6, वाहन का बीमा पॉलिसी प्रपत्र दस्तावेज क्रमांक-7 एवं 8, फिटनेस सर्टिफिकेट एवं मोटरयान कर की रसीद दस्तावेज क्रमांक-9, माल यान अनुज्ञा पत्र दस्तावेज क्रमांक-10, मॉ काली बाडी बिल्डर का रसीद की मूल प्रति दिनांक 15.02.2014 दस्तावेज क्रमांक-11, सीमरन मोटर की रसीद दिनांक 13,09,2013 की मूल प्रति दस्तावेज क्रमांक-12, बिकास मोटर की स्टेटमेंटरसीद की मूल प्रति दिनांक 22,04,2014 दस्तावेज क्रमांक-13, समसाद आलम द्वारा दिया रसीद की मूल प्रति दिनांक 22.04.2014 दस्तावेज क्रमांक-14, परिवादी का अपंगता प्रमाणपत्र दिनांक 21.15.2013 दस्तावेज क्रमांक-15की फोटोपति प्रस्तुत किया है।
8. अनावेदक बीमा कंपनी ने जवाब के समर्थन में अपना शपथ पत्र तथा वेद प्रकाश मिश्रा उर्फ वेदू महराज का शपथ पत्र एवं सूची अनुसार दस्तावेज उभय पक्ष के मध्य हुये लिखित सौदे का प्रपत्र दिनांक 02.07.2013 की मूल प्रति दस्तावेज क्रमांक 1, वाहन का नाम ट्रांसफर हेतु प्रारूप 30 की मूल प्रति दस्तावेज क्रमांक-2, फार्म-29 दो प्रति की मूल प्रति दस्तावेज क्रमांक 3 एवं 4,शपथ पत्र का हस्ताक्षरित कोरा फार्म दो प्रति की मूल प्रति दस्तावेज क्रमांक 5 एवं 6, थाना अम्बिकापुर अंतर्गत चौकी मणिपुर में दी गई लिखित सूचना की मूल पावती दिनांक 14.05.2014 दस्तावेज क्रमांक 7, प्रस्तुत किया है।
9. अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार ने तर्क किया है कि उसके स्वामित्व की वाहन को परिवादी ने व्यवसायिक प्रयोजन के लिए क्रय कर 8-10 माह उसका उपयोग किया है, से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में परिभाषित उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता, फलस्वरूप उसके विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद पोषणीय नहीं है, जबकि परिवादी की ओर से तर्क किया गया है कि आवेदक के स्वामित्व की वाहन क्रमांक सी.जी.15 ए/8129 का अनुबंध पत्र दिनांक 05.06.2013 के अनुसार परिवादी ने अग्रिम राशि 1,21,000/-रू. दिया था। वाहन क्रय करने का अनुबंध हुआ था, से परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता है, फलस्वरूप उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अंतर्गत प्रस्तुत यह परिवाद पोषणीय है।
10. परिवाद का मुख्य आधार वाहन विक्रय करने का अनुबंध पत्र दिनांक 05.07.2013 होना परिवादी ने बताया है। अनुबंध पत्र के तहत परिवादी ने अनावेदक को 1,21,000/-रू. अदा किया था तथा परिवादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक 5 द्वारा 07.10.2013 को 20,000/-रू, दिनांक 24.01.2014 को 11,000/-रू. व दिनांक 29.01.2014 को 11,000/-रू. तथा दस्तावेज क्रमांक 4 द्वारा 16.04.2014 को 1,000/-रू. एवं 17.04.2014 को 1,21,000/-रू. परिवादी ने अनावेदक को भुगतान किया था। इस प्रकार वाहन विक्रय के संबंध में पक्षकार द्वारा उल्लेखित अनुबंध के तहत परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता होना पाया जाता है। इस प्रकार अनावेदक के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद में परिवादी द्वारा परिवाद के तथ्यों तथा प्रस्तुत दस्तावेजी प्रमाणां से परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता होना हम पाते हैं, तद्नुसार विचारणीय प्रश्न क्रमांक 1 का निष्कर्ष ’’प्रमाणित होना’’ में देते हैं।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक 2 का सकारण निष्कर्ष :-
11. अनावेदक ने वाहन विक्रय का अनुबंध पत्र दस्तावेज क्रमांक 1 अम्बिकापुर जिला सरगुजा में निष्पादित होना, अनुबंध पर आधारित परिवाद को सुनवाई क्षेत्राधिकार इस जिला फोरम को नहीं होना वस्तुतः जिला सरगुजा के अंतर्गत होना व्यक्त कर परिवाद निरस्त करने की प्रार्थना किया है, जबकि परिवादी ने दस्तावेज क्रमांक 1 अनुबंध पत्र अनुसार वाहन विक्रय करने का सौदा हुआ था। अनावेदक ने वाहन को पत्थलगांव जिला जशपुर के बेदू महराज के फार्म हाउस में खड़ा किया वहॉं से अनावेदक ने बिना उसकी जानकारी, सहमति के वाहन को ले गया, से परिवाद का वादकारण पत्थलगांव जिला जशपुर में उत्पन्न होने से जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम जशपुर के स्थानीय क्षेत्राधिकार में वादकारण उत्पन्न होने से प्रस्तुत परिवाद पोषणीय होना बताया है।
12. पक्षकारों द्वारा किए अभिकथन, प्रस्तुत शपथ पत्र एवं दस्तावेजी प्रमाण से यह स्पष्ट है कि दस्तावेज क्रमांक 1 अनुबंध पत्र दिनांक 05.07.2013 के तहत परिवादी द्वारा क्रय किए गए वाहन को बाबा महाराज के फार्म हाउस प्रेम नगर पत्थलगांव में खर्ड़ी थी, उसे अनावेदक ले गया की सूचना दस्तावेज क्रमांक 3 द्वारा परिवादी ने दिया है। अनावेदक द्वारा पुलिस चौकी मणीपुर अम्बिकापुर जिला सरगुजा को दिए सूचना से तथा वेदू महाराज के शपथ पत्र से भी उक्त तथ्यों की पुष्टि होती है। इस प्रकार परिवादी का वादकारण अंशतः पत्थलगांव जिला जशुपर के स्थानीय क्षेत्राधिकार अंतर्गत उत्पन्न होना स्पष्ट हुआ है, फलस्वरूप उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 11 (2)(ग) अनुसार जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम जशपुर की अधिकारिता के स्थानीय परिसीमाओं के भीतर वादकारण उत्पन्न हुआ है। फलस्वरूप जिला उपभोक्ता फोरम जशुपर को परिवाद की सुनवाई क्षेत्राधिकार प्राप्त है, हम पाते हैं, तद्नुसार विचारणीय प्रश्न क्रमांक 2 का निष्कर्ष ’’हॉं’’ में देते हैं।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक 3 एवं 4 का सकारण निष्कर्ष :-
13. परिवादी ने अनावेदक से अनुबंध पत्र (वाहन विक्रय हेतु दिनांक 05.07.2013/06.07.2013 दस्तावेज क्रमांक 1) के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है, जिसमें अनावेदक के विरूद्ध वाहन क्रय के अधीन परिवादी द्वारा संदाय रकम 3,79,000/-रू. एवं वाहन मेंटनेंस में व्यय रकम 1,37,650.00/-रू., कुल 5,16,650,00/-रू. मय नौ प्रतिशत ब्याज सहित वापस दिलाए जाने एवं आर्थिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति 2,00,000/-रू. तथा दिनांक 01.05.2014 से वाहन खड़े रहने के पश्चात राशि अदायगी दिनांक तक वाहन चलाने के अभाव में हो रही नुकसानी के लिए प्रतिमाह 20,000/-रू. की दर से क्षतिपूर्ति दिलाए जाने की प्रार्थना किया है।
14. अनावेदक ने भी उसके स्वामित्व की वाहन को अनुबंध पत्र दिनांक 06.07.2013 दस्तावेज क्रमांक 1 के आधार पर परिवदी ने मुख्य विवाद किया जाना बताया है। उक्त वाहन का विक्रय पक्षकारों के मध्य लिखा-पढ़ी दिनांक 02.07.2013 को सर्वप्रथम होना बताते हुए अनावेदक ने अपना दस्तावेज क्रमांक 1 प्रस्तुत किया है। अनावेदक के दस्तावेज क्रमांक 1 तथा परिवादी के दस्तावेज क्रमांक 1 से वाहन को कुल 8,71,000/-रू. में विक्रय करने के संबंध में पक्षकारों ने अनुबंध किया था स्पष्ट हुआ है।
15. जब विक्रय संव्यवहार का आधार अनुबंध पत्र है तथा अनुबंध पत्र में उल्लेखित शर्तों को पक्षकारों ने पालन कर लिया है इस तथ्य पर विचार करें तो अनुबंध पत्र की शर्त अनुसार वाहन का विक्रय 8,71,000/-रू. में होना जिसमें से 1,21,000/-रू. परिवादी ने अनावेदक को नगद दिया शेष राशि अनावेदक को परिवादी द्वारा फायनेंस कंपनी से या व्यक्तिगत रूप से दिया था का प्रमाण होना चाहिए। परिवाद पत्र अनुसार परिवादी ने कुल 3,79,000/-रू. अनावेदक को भुगतान किया है, जिससे परिवादी ने प्रस्तुत अनुबंध पत्र दिनांक 05.07.2013 दस्तावेज क्रमांक 1 का पूर्णतः पालन कर दिया है की स्थिति को दस्तावेजी प्रमाणों द्वारा प्रमाणित नहीं किया है, कि उसने अनावेदक को कुल 8,71,000/-रू.का भुगतान कर दिया है। इस तरह परिवादी ने अनुबंध पत्र दस्तावेज क्रमांक 1 का पालन कर दिया है अभिलेखगत सामग्री में परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों से स्थापित, प्रमाणित नहीं हुआ है।
16. परिवादी ने अनुबंध पत्र अनुसार वाहन आधिपत्य में लेने के उपरांत वाहन का मरम्मत कराया जाना जिसके खर्च के संबंध में दस्तावेज क्रमांक 11,12,13 एवं 14 प्रस्तुत किया है, उक्त दस्तावेजों में लिखित तथ्यां से वाहन क्रमांक सी.जी. 15 ए/8129 जिसका चेचिस नंबर, इंजन नंबर जो अनुबंध पत्र दस्तावेज क्रमांक 1 में उल्लेखित है से ही संबंधित है स्पष्ट नहीं हो रहा है।
17. अनावेदक ने जवाब में उल्लेखित किया है कि परिवादी द्वारा वाहन का 8-10 माह उपयोग कर प्रतिमाह 40-50 हजार रूपये आय अर्जित करता था, लगभग 4-5 लाख रूपये आय अर्जित किया है, उक्त तथ्य को प्रमाणित करने के लिए भी साक्ष्य की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार परिवादी द्वारा वाहन के शेष रकम का संपूर्ण भुगतान नहीं करने के कारण अनावेदक अपने पुत्री का विवाह नहीं कर पाया तथा परिवादी पत्थलगांव में अनावेदक तथा अन्य लोगों के समक्ष हुए समझौता अनुसार नियत समय दिनांक 10.05.2014 शेष रकम देने के लिए तैयार था अनावेदक ने गृह प्रवेश और अपने साले की एक्सीडेंट हो जाने का बहाना कर पेमेंट दिनांक 12.05.2014 कर दिया और उसके पूर्व ही वाहन को बिना उसकी जानकारी के ले गया बतलाया है, जिससे संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता वाद के संबंध में होना स्पष्ट हो रहा है। संबंधित सारवान साक्ष्य अभिलेख पर नहीं है।
18. उपरोक्त अनुसार अनावेदक के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद में परिवादी ने अनुबंध पत्र (वाहन विक्रय का) दिनांक 05.07.2013 का पालन कर दिया तथा अनावेदक द्वारा अनुबंध के शर्तों को भंग कर सेवा में कमी किए जाने का या अनुचित व्यापारिक व्यवहार होना की स्थिति प्रमाणित नहीं हुई है, फलस्वरूप आवेदक द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अंतर्गत अनावेदक के विरूद्ध सेवा में कमी होने के आधार पर प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करने योग्य होना हम नहीं पाते हैं, तद्नुसार विचारणीय प्रश्न क्रमांक 3 एवं 4 का निष्कर्ष ’’प्रमाणित नहीं’’ में देते हैं। परिवादी अनुबंध पत्र अनुसार दिये राशि बाबत् नियमानुसार कार्यवाही करने स्वतंत्र होगा।
19. उपरोक्त अनुसार पक्षकारों के अभिवचन, प्रस्तुत दस्तावेजी, प्रमाणों, किए तर्क से अनुबंध पत्र दस्तावेज क्रमांक 1 एवं अन्य प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर परिवाद स्वीकार करने योग्य नहीं होना हम पाते हैं, फलस्वरूप परिवाद निरस्त करते हैं ।
20. प्रकरण के तथ्य तथा परिस्थिति से उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(श्रीमती अनामिका नन्दे) (संजय कुमार सोनी) (बी0पी0पाण्डेय)
सदस्या सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रति. जिला उपभोक्ता विवाद प्रति. जिला उपभोक्ता विवाद प्रति.
फोरम जशपुर (छ0ग0) फोरम जशपुर ़(छ.ग.) फोरम जापुर (छ0ग0)