राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-३९/२००९
१. अमित शुक्ल,
२. सुमित शुक्ल
पुत्रगण स्व0 श्री जय नरायन शुक्ल निवासीगण मोह0 गोकुलपुरी, गढ़ी रोड, शहर व तहसील लखीमपुर, जिला खीरी (उ0प्र0)।
............. परिवादीगण।
बनाम
संजय गॉंधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, रायबरेली रोड, लखनऊ द्वारा निदेशक।
............ विपक्षी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री एस0के0 श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री प्रवीन कुमार विद्वान अधिवक्ता के सहयोगी
श्री सरोज कुमार वर्मा।
दिनांक :- ११-१०-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद चिकित्सीय लापरवाही अभिकथित करते हुए क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं, परिवादीगण के कथनानुसार उनके पिता श्री जय नरायन शुक्ल (जिसे आगे ‘’ मरीज ‘’ से सम्बोधित किया जायेगा) को हृदय से सम्बन्धित बीमारी थी, उन्हें जिला चिकित्सालय, खीरी के चिकित्साधिकारी द्वारा इलाज हेतु संजय गॉंधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ (जिसे आगे ‘’ संस्थान ‘’ से सम्बोधित किया जायेगा) को सन्दर्भित किया गया था। परिवादीगण अपने पिता को संस्थान में इलाज हेतु ले आये। दिनांक २८-०९-१९९८ को उन्हें भर्ती किया गया तथा निदान हेतु चिकित्सीय परीक्षण प्रारम्भ किया गया। चिकित्सीय परीक्षणोपरान्त मरीज रूटिन कैटेगरी में बताया गया तथा उसे दवाऐं प्रेस्क्राइब करते हुए सामान्य स्थिति में मानते हुए दिनांक ०१-१०-२००८ को डिस्चार्ज किया गया। परिवादीगण ने संस्थान में
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उपचार हेतु अपेक्षित धनराशि ५५,१००/- रू० जमा कर दिया था जिसमें से ४४,५६१.३५ रू० दिनांक ०१-१०-२००८ को डिस्चार्ज के बाद वापस कर दिया गया। परिवादीगण को बताया गया कि मरीज की धमनियों में जमाव है जिसका इलाज सी0ए0बी0जी0 (Coronary Artery Bypass Grafting) ऑपरेशन द्वारा ही सम्भव है। मरीज को संस्थान के चिकित्सकों द्वारा दी गई दवाओं से आराम न होने के कारण उसे दिनांक १३-१०-२००८ को पुन: संस्थान में दिखाया गया जिस पर दिनांक १४-१०-२००८ को मरीज को सी0वी0टी0एस0 वार्ड में भर्ती किया गया तथा अपेक्षित धनराशि जमा करायी गयी। मरीज का सी0ए0बी0जी0 ऑपरेशन दिनांक १५-१०-२००८ को किया गया तथा मरीज की हालत ठीक बताई गई। मरीज की हालत गम्भीर से गम्भीरतम होती चली गई किन्तु चिकित्सकों द्वारा लगातार यह बताया जाता रहा कि हालत ठीक है तथा स्वास्थ्य में सुधार है। दिनांक २७-१०-२००८ को मरीज का निधन हो गया। मृत्यु का कारण मरीज के फैंफड़ों में अत्यधिक संक्रमण बताया गया। परिवादीगण के कथनानुसार मरीज की स्थिति का आंकलन किए बगैर उसे रूटिन कैटेगरी में मान लिया गया, मरीज को हृदय रोग के इलाज के लिए भर्ती किया गया। इलाज के मध्य घोर लापरवाही के कारण मरीज के फैंफड़ों में इन्फेक्शन हो गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई जबकि मरीज को कभी फैंफड़ों की या संक्रमण की बीमारी नहीं थी।
परिवादीगण के कथनानुसार मरीज को ऑपरेशन के बाद आई0सी0यू0 में बैड नं0-६ पर रखा गया। दिनांक २४-१०-२००८ को बैड सं0-६ के ऊपर की सीलिंग मरीज पर गिर गई। वार्ड इन्चार्ज डॉक्टर ने बताया कि छत के अन्दर कई बन्दर घुस आये जिनके द्वारा सीलिंग गिरायी गई। मरीज की हालत संस्थान की ओर से दिनांक २६-१०-२००८ तक ठीक बताई जाती रही किन्तु दिनांक २७-१०-२००८ को प्रात: ७.२० बजे परिवादीगण को सूचित किया गया कि मरीज के फैंफड़ों में अत्यधिक संक्रमण के कारण उसकी मृत्यु हो गई। परिवादीगण ने प्रस्तुत परिवाद के माध्यम से निम्नलिखित अनुतोष चाहा है :-
विपक्षी से ५०.०० लाख रू० उनके पिता की मृत्यु के कारण क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाए जायें। ०५.०० लाख रू० बाबत् चिकित्सा व्यय सुश्रूषा, मानसिक व शारीरिक क्षति आदि के लिए दिलाए जायें। वाद व्यय के रूप में १०,०००/- रू० दिलाए जायें। परिवाद
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योजित किए जाने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक १८ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाया जाय।
विपक्षी संस्थान के कथनानुसार परिवादीगण ने बिना किसी साक्ष्य के तथ्यहीन आधारों पर परिवाद योजित किया है। परिवादीगण के पिता(मरीज) दिनांक २८-०९-२००८ को संस्थान में भर्ती हुए। जांच के उपरान्त कोरोनरी आर्टरी में जमाव का रोग पाया गया किन्तु क्योंकि मरीज को अन्स्टेबिल एन्जाइना नहीं था, अत: दिनांक ०१-१०-२००८ को डिस्चार्ज कर दिया गया एवं सी0ए0बी0जी0 कराने की सलाह दी गई। दिनांक ०२-१०-२००८ को मरीज के रिश्तेदारों ने पुन: सम्पर्क किया, अत: उन्हें रक्त जमा कराने तथा धन की व्यवस्था करने एवं ऑपरेशन से पूर्व कुछ जांचें कराने की सलाह दी गई। दिनांक १४-१०-२००८ को अस्पताल में विस्तर उपलब्ध होने पर मरीज को सी0वी0टी0एस0 वार्ड में भर्ती किया गया। दिनांक १५-१०-२००८ को मरीज को अनस्टेबिल एन्जाइना होने पर उसे सी0वी0टी0एस0 विभाग के आई0सी0यू0 कक्ष में स्थानान्तरित किया गया। मरीज को तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता थी। अत: ऑपरेशन से पूर्व जांचें कराई गईं। तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता होने के कारण कुछ जांचें बाहर से भी कराए जाने की राय दी गई। दिनांक १५-१०-२००८ को ऑपरेशन डॉ0 शान्तनु पाण्डेय द्वारा किया गया। मरीज का सफलतापूर्वक सी0ए0बी0जी0 किया गया किन्तु दुर्भाग्यवश दिनांक २७-१०-२००८ को मरीज की मृत्यु फैंफड़ों में संक्रमण के कारण हो गई। विपक्षी का यह भी कथन है कि उपलब्ध संसाधनों के अन्तर्गत संस्थान के चिकित्सकों द्वारा मरीज की समुचित चिकित्सा अपने भरसक प्रयासों से की गई। कोई लापरवाही बरती नहीं गई, किन्तु दिनांक २७-१०-२००८ को दुर्भाग्यवश मरीज की मृत्यु हो गई।
परिवादीगण की ओर से अपने कथन के समर्थन में सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत संस्थान द्वारा उपलब्ध कराए गये ५२ प्रपत्रों की फोटोप्रति दाखिल की गई हैं, जैसे :-
१. जिला चिकित्सालय खीरी द्वारा मरीज श्री जे0एन0 शुक्ल को इलाज हेतु संस्थान को सन्दर्भित करने हेतु जारी किए गये पर्चा की फोटोप्रति।
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२. दिनांक २८-०९-२००८ को संस्थान में मरीज के भर्ती किए जाने के सन्दर्भ में जारी प्रवेश पत्र की फोटोप्रति।
३. संस्थान में मरीज के एन्जियोग्राफी किए जाने से सम्बन्धित पर्चा की फोटोप्रति।
४. प्रपत्र की फोटोप्रति जिसमें सी0वी0टी0एस0 विभागाध्यक्ष डॉ0 एस0के0 अग्रवाल द्वारा मरीज को रूटिन कैटेगरी का माना गया। इसी पर्चे में दिनांक ०२-१०-२००८ को डॉ0 एस0के0 अग्रवाल ने मरीज को सी0ए0बी0जी0 ऑपरेशन हेतु स्वीकृति दी।
५. परिवादीगण द्वारा दिनांक ३०-०९-२००८ को संस्थान में मरीज की एन्जियोग्राफी की सी0डी0 रिपोर्ट मांगे जाने पर संस्थान द्वारा प्रस्तुत की गई आख्या की फोटोप्रति जिसके द्वारा यह सूचित किया गया कि सी0डी0 राइटर दिनांक १६-०४-२००८ को खराब हो गया। एन्जियोग्राफी के बदले वी0सी0आर0 कैसेट प्राप्त कराई गई।
६. प्रपत्र सं0-६ व ७ मरीज की संस्थान के बाहर से कराई गई जांच आख्याओं की फोटोप्रतियॉं।
७. परिवादीगण द्वारा संस्थान में जमा कराए गये रक्त से सम्बन्धित जारी प्रपत्र की फोटोप्रति।
८. संस्थान के बाहर दिनांक १३-१०-२००८ को कैलाश लॉज में रूकने के सन्दर्भ में कैलाश लॉज द्वारा जारी की गई रसीद की फोटोप्रति।
९. दिनांक १४-१०-२००८ को सी0वी0टी0एस0-बी वार्ड में मरीज की भर्ती किए जाने के सन्दर्भ में जारी प्रपत्र की फोटोप्रति।
१०. संस्थान द्वारा मरीज के ऑपरेशन रिकार्ड की फोटोप्रति।
११. कागज सं0-१२, १३, १४ एवं १५ मरीज के इलाज के विवरण की फोटोप्रतियॉं।
१२. कागज सं0-१६ लगायत २५ मरीज के एकाउण्ट स्टेटमेण्ट की फोटोप्रतियॉं।
१३. कागज सं0-२६ व २७ मरीज के इलाज सम्बन्धी प्रपत्रों की फोटोप्रतियॉं।
१४. कागज सं0-२८ डेथ समरी की फोटोप्रति।
१५. कागज सं0-२९ मृत्यु प्रमाण पत्र की फोटोप्रति।
१६. कागज सं0-३० डेथ समरी की फोटोप्रति।
१७. कागज सं0-०१-१०-२००८ को जारी डिस्चार्ज समरी की फोटोप्रति।
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१८. कागज सं0-३२ संस्थान में एडमीशन एवं वहॉं से डिस्चार्ज फार्म की फोटोप्रति।
१९. कागज सं0-३३ श्री कैथ आर्डर से सम्बन्धित फार्म की फोटोप्रति।
२०. कागज सं0-३४ एन्जियोग्राफी कराने से पूर्व भराया गया सहमति पत्र की फोटोप्रति।
२१. कागज सं0-३५ व ३६ रिक्त जांच पत्रक की फोटोप्रतियॉं।
उपरोक्त के अतिरिक्त संस्थान द्वारा उपलब्ध कराए गये अन्य प्रपत्रों की फोटोप्रतियॉं। इनके अतिरिक्त परिवाद के अभिकथनों की पुष्टि हेतु परिवादी अमित शुक्ल का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी की ओर से संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ0 आर0के0 शर्मा का शपथ पत्र तथा डॉ0 पी0के0 सिंह सी0एम0एस0 का शपथ पत्र दाखिल किया गया है।
परिवादी श्री अमित शुक्ल द्वारा प्रत्युत्तर शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त साक्षी श्री रमेश मिश्रा, श्री सन्तोष कुमार पाण्डेय एवं श्री रविन्द्र सिंह के शपथ पत्र भी प्रस्तुत किए गये हैं। परिवादीगण ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत संस्थान के जन सूचना अधिकारी को प्रेषित प्रार्थना पत्र की फोटोप्रति एवं संस्थान द्वारा उपलब्ध करायी गई सूचनाओं की फोटाप्रति भी दाखिल की हैं।
हमने परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0के0 श्रीवास्तव के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रवीन कुमार द्वारा मौखिक तर्क हेतु कई स्थगन प्राप्त किए गए किन्तु मौखिक तर्क हेतु वह उपस्थित नहीं हुए। उनके सहयोगी श्री सरोज कुमार वर्मा तर्क प्रस्तुत करने हेतु उपस्थित हुए। श्री वर्मा द्वारा पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर परिवाद का निस्तारण किए जाने का अनुरोध किया गया। उभय पक्ष की ओर से लिखित तर्क भी दाखिल किया गया है।
परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादीगण के पिता स्व0 जे0एन0 शुक्ल हृदय रोगी थे। जिला चिकित्सालय खीरी द्वारा इलाज हेतु विपक्षी संस्थान को सन्दर्भित किया गया था। तदोपरान्त परिवादीगण अपने पिता को लेकर संस्थान आये जिन्हें दिनांक २८-०९-२००८ को भर्ती किया गया किन्तु मरीज को रूटिन श्रेणी का मानते हुए दिनांक ०१-१०-२००८ को डिस्चार्ज कर दिया गया।
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पुन: दिनांक १४-१०-२००८ को सी0ए0बी0जी0 ऑपरेशन हेतु भर्ती कराया गया जबकि परिवादीगण ने संस्थान के चिकित्सक डॉ0 एस0के0 अग्रवाल की राय के अनुसार बताई गई जांचें दिनांक ०२-१०-२००८ को करा ली थीं तथा रक्त भी संस्थान में जमा कराया जा चुका था। मरीज की हालत गम्भीर होने एवं पर्याप्त समय होने के बाबजूद मरीज की तत्काल चिकित्सा नहीं की गई। यदि मरीज को तत्काल यथोचित उपचार उपलब्ध कराया गया होता तो मरीज बच सकता था।
इस सन्दर्भ में विपक्षी के अभिकथनों से यह विदित होता है कि दिनांक २८-०९-२००८ को मरीज को संस्थान में भर्ती किया गया तथा जांचें की गईं। जांच में मरीज की धमनियों में जमाव पाया गया। उसे सी0ए0बी0जी0 की सलाह दी गई। मरीज को अनस्टेबिल एन्जाइना न होने के कारण उसे दिनांक ०१-१०-२००८ को डिस्चार्ज कर दिया गया। विपक्षी का यह भी कथन है कि विपक्षी संस्थान एक राजकीय अस्पताल है जिसमें सुविधाऐं सीमित है तथा मरीजों की संख्या अत्यधिक है। सी0वी0टी0एस0 सहित अन्य सभी विभागों में सर्जरी हेतु अनेक मरीज प्रतीक्षारत रहते हैं। दिनांक १४-१०-२००८ को मरीज के पुन: संस्थान में आने पर बैड की उपलब्धता के अनुसार उन्हें चिकित्सा हेतु भर्ती किया गया। उल्लेखनीय है कि परिवादीगण यह कथन नहीं है कि दिनांक ०१-१०-२००८ को संस्थान से डिस्चार्ज किए जाने के बाद दिनांक १४-१०-२००८ को संस्थान में पुन: भर्ती किए जाने तक मरीज की स्थिति चिन्ताजनक रही। विपक्षी संस्थान निर्विवाद रूप से विशेषज्ञों युक्त एक प्रतिष्ठित चिकित्सालय है। सामान्य रूप से अधिकांश मरीज गम्भीर स्थिति में इस संस्थान में भर्ती होते हैं, कुछ मरीजों की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक भी होती है जिन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। चिकित्सक मरीज की स्थिति के अनुसार प्राथमिकता निर्धारित करते हैं। सम्बन्धित चिकित्सक द्वारा प्राथमिकता निर्धारित करने का यह निष्कर्ष सम्भव है, सदैव सही नहीं भी हो किन्तु प्राथमिकता निर्धारित करने के चिकित्सक के निष्कर्ष के आधार पर स्वत: चिकित्सक की लापरवाही नहीं मानी जा सकती, जब तक कि यह प्रमाण न हो के सम्बन्धित चिकित्सक ने मरीज की स्थिति चिन्ताजनक होने के बाबजूद उसे यथोचित इलाज प्रदान नहीं किया। परिवादीगण ने परिवाद के अभिकथनों में किसी चिकित्सक की दुर्भावना अभिकथित नहीं
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की है और न ही ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत की है।
ऐसी परिस्थिति में दिनांक ०१-१०-२००८ को मरीज का डिस्चार्ज किया जाना सेवामें त्रुटि नहीं माना जा सकता।
परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि मरीज का ऑपरेशन किसी अज्ञात, अकुशल एवं अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा करवाया गया। इस सन्दर्भ में परिवादीगण का यह कथन है कि यद्यपि विपक्षी ने मरीज का ऑपरेशन डॉ0 शान्तनु पाण्डेय द्वारा किया जाना बताया है किन्तु परिवादीगण के कथनानुसार डॉ0 शान्तनु पाण्डेय दिनांक १५-१०-२००८ से १६-१०-२००८ तक संस्थान में दिखाई नहीं दिए और न ही परिवादीगण का कभी उनसे सम्पर्क हुआ। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत परिवादी सं0-२ को संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचनाओं से सम्बन्धित अभिलेख परिवादीगण ने दाखिल किए हैं। अभिलेख सं0-११ (ऑपरेशन रिकार्ड) में ऑपरेशन की तिथि १६-१०-२००८ दर्शित है जबकि बैड हैड टिकट अभिलेख सं0-१२ एवं एनेस्थीसियोलॉजी विभाग द्वारा ऑपरेशन के सन्दर्भ में तैयार किए गये विवरण में ऑपरेशन की तिथि १५-१०-२००८ दर्शित हैं। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि ऑपरेशन रिकार्ड अभिलेख सं0-११ में किया गया ऑपरेशन सी0ए0बी0जी0 (कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग) दर्शित है किन्तु डेथ समरी कागज सं0-३० में ऑपरेशन की तिथि १६१०-२००८ तथा ऑपरेशन का नाम पेरीकार्डिक्टॉमी दर्शित है। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि सी0वी0टी0एस0 वार्ड द्वारा मरीज के उपचार के सम्बन्ध में अनुरक्षित अभिलेख, अभिलेख सं0-१३ में मरीज का ६३ किलोग्राम दर्शित है जबकि एनेस्थीसियोलॉजी विभाग द्वारा मरीज के ऑपरेशन के सम्बन्ध तैयार किए गये विवरण में मरीज का भार ८० किलोग्राम दर्शित है। स्वभाविक रूप से मरीज को ८० किलोग्राम भार के हिसाब से एनेस्थीसिया दिया गया होगा। अधिक एनेस्थीसिया की मात्रा भी मरीज के लिए घातक हो सकती है।
परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस तथ्य की ओर भी हमारा ध्यान
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आकृष्ट कराया गया कि संस्थान द्वारा उपलब्ध कराए गये अभिलेखों में मृत्यु की तिथि के सन्दर्भ में भी विसंगति है। कुछ अभिलेखों में मृत्यु की तिथि २७-१०-२००८ अंकित है जबकि कुछ अभिलेखों में यह तिथि २६-१०-२००८ दर्शित है।
जहॉं तक ऑपरेशन की तिथि तथा ऑपरेशन की प्रकृति का प्रश्न है विपक्षी की ओर से डॉ0 आर0के0 शर्मा द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र एवं डॉ0 पी0के0 सिंह द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रों में ऑपरेशन की तिथि १५-१०-२००८ बताई गई तथा ऑपरेशन डॉ0 शान्तनु पाण्डेय द्वारा किया जाना बताया गया है तथा ऑपरेशन की प्रकृति सी0ए0बी0जी0 बताई गई है। स्वयं परिवादीगण ने भी परिवाद की धारा-६ में ऑपरेशन की तिथि १५-१०-२००८ होना स्वीकार किया है तथा परिवाद की धारा-८ में निधन दिनांक २७-१०-२००८ को होना स्वीकार किया है। इस प्रकार अस्पताल द्वारा अनुरक्षित अभिलेखों में ऑपरेशन की तिथि एवं मृत्यु की तिथि की विसंगति विशेष महत्व की नहीं मानी जा सकती।
जहॉं तक ऑपरेशन की प्रकृति का प्रश्न है ऑपरेशन रिकार्ड अभिलेख सं0-११ में सम्पादित ऑपरेशन सी0ए0बी0जी0 बताया गया है। विपक्षी की ओर से विपक्षी संस्थान के निदेशक डॉ0 आर0के0 शर्मा एवं सी0एम0एस0 डॉ0 पी0के0 सिंह द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रों में भी ऑपरेशन सी0ए0बी0जी0 बताया गया है तथा यह ऑपरेशन विशेषज्ञ डॉ0 शान्तनु पाण्डेय द्वारा किया जाना बताया गया है तथा ऑपरेशन रिकार्ड में भी ऑपरेशन डॉ0 शान्तनु पाण्डेय द्वारा किया जाना दर्शित है जबकि परिवादीगण ने मात्र अनुमान के आधार पर यह ऑपरेशन किसी अज्ञात, अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा किया जाना बताया है। ऑपरेशन रिकार्ड की पृविष्टियों तथा विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किए गये शपथ पत्रों में इस सन्दर्भ में उल्लिखित अभिकथनों पर बिना किसी तर्कसंगत आधार के अविश्वास करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता।
जहॉं तक मरीज को आवश्यकता से अधिक एनेस्थीसिया दिए जाने का प्रश्न है यह भी परिवादीगण ने मात्र अनुमान के आधार पर अभिकथित किया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि ऑपरेशन दिनांक १५-१०-२००८ को सम्पादित किया गया जबकि निर्विवाद रूप से मरीज दिनांक २७-१०-२००८ तक जीवित रहा। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि ऑपरेशन के बाद मरीज होश में भी रहा और उसे समय - समय पर दवाऐं दी जाती
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रहीं। यदि वास्तव में आवश्यकता से अधिक एनेस्थीसिया ऑपरेशन के समय मरीज को दिया गया होता तो उसका दुष्परिणाम ऑपरेशन के समय ही होता।
क्रिमिनल अपील सं0 - ११९१-११९४ सन् २००५ मलय कुमार गांगुली बनाम डॉं0 सुकुमार मुखर्जी व अन्य एवं सिविल अपील सं0-१७२७ सन् २००७ डॉ0 कुनाल साह बनाम डॉ0 सुकुमार मुखर्जी व अन्य के मामले में निर्णय दिनांक ०७-०८-२००९ द्वारा मा0 उच्चतम न्यायालय ने चिकित्सीय लापरवाही को सिद्ध करने हेतु निम्नलिखित तथ्य प्रतिपादित किया है :-
(i) No guarantee is given by any doctor or surgeon that the patient would be cured.
(ii) The doctor, however, must undertake a fair, reasonable and competent degree of skill, which may not be the highest skill.
(iii) Adoption of one of the modes of treatment, if there are many, and treating the patient with due care and caution would not constitute any negligence.
(iv) Failure to act in accordance with the standard, reasonable, competent medical means at the time would not constitute a negligence. Howevr, a medical practitioner must exercise the reasonable degree of care and skill and knowledge which he possesses. Failure to use due skill in diagnosis with the result that wrong treatment is given would be negligence.
(v) In a complicated case, the court would be slow in contributing negligence on the part of the doctor, if he is performing his duties to be best of his ability.
जहॉं तक प्रस्तुत मामले का प्रश्न है, परिवादीगण का यह कथन नहीं है कि डॉ0 शान्तनु पाण्डेय को सी0ए0बी0जी0 ऑपरेशन करने की योग्यता प्राप्त नहीं थी। परिवादीगण द्वारा ऐसी किसी विशेषज्ञ की साक्ष्य अथवा ऐसा कोई चिकित्सीय साहित्य
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भी प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह प्रमाणित हो कि मरीज का किया गया उपचार चिकित्सीय मानकों के अनुरूप नहीं था। ऐसी परिस्िथति में हमारे विचार से मरीज की चिकित्सा में लापरवाही किया जाना प्रमाणित नहीं माना जा सकता।
परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि मरीज को ऑपरेशन के बाद आई0सी0यू0 में बैड सं0-६ पर रखा गया था तथा दिनांक २४-१०-२००८ को समय करीब ०९.०० बजे परिवादीगण जब अपने मरीज का हाल जानने गये तो देखा कि छत की सीलिंग मरीज के ऊपर गिरी पड़ी थी तथा जगह-जगह उखड़ी हुई थी और चढ़ाई जा रही दवाओं की बोतलें गिरी हुई पड़ी थीं तथा वेण्टीलेटर भी पूरी तरह कार्य नहीं कर रहा था। परिवादी सं0-२ ने जब वार्ड इन्चार्ज डॉक्टर से पूछा कि यह कैसे हुआ तब बताया गया कि छत की सीलिंग के अन्दर कई बन्दर घुस आये जिनके द्वारा यह सीलिंग गिराई गई। दिनांक २५-१०-२००८ को संस्थान के डायरेक्टर द्वारा कर्मचारियों को बुलाकर सीलिंग को ठीक कराया गया। सीलिंग परिवादीगण के मरीज के ऊपर गिरने से मरीज की हालत और गम्भीर हो गई।
उल्लेखनीय है कि परिवादीगण के इस अभिकथन को विपक्षी से स्पष्ट रूप से इन्कार नहीं किया है। विपक्षी की ओर से डॉ0 आर0के0 शर्मा निदेशक द्वारा प्रस्तुत किए गये शपथ पत्र एवं डॉ0 पी0के0 सिंह द्वारा प्रस्तुत किए गये शपथ पत्रों में भी परिवादी के इस सन्दर्भ में किए गये अभिकथनों को स्पष्ट रूप से इन्कार नहीं किया गया है। परिवादीगण ने पेशेण्ट एकाउण्ट स्टेटमेण्ट की फोटोप्रति कागज सं0-१९ लगायत २५ दाखिल किए हैं, जिसमें इस अवधि के मध्य मरीज की, की गई जांच, उपचार का विवरण उल्लिखित है जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि दिनांक २४-१०-२००८ को छोड़कर दिनांक १६-१०-२००८ से २५-१०-२००८ तक मरीज का एक्स-रे चैस्ट बैड किया गया तथा अन्य जांचें की गई किन्तु दिनांक २४-१०-२००८ को मरीज की कोई जांच नहीं की गई। ऐसी परिस्थिति में इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि वार्ड की सीलिंग मरीज के ऊपर गिरने के कारण उत्पन्न अव्यवस्था के कारण ही उपचार/जांच नहीं की जा सकी। यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादीगण ने दिनांक २४-१०-२००८ को
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मरीज के ऊपर सीलिंग गिरने के तथ्य को प्रमाणित करने हेतु श्री रमेश मिश्रा, श्री सन्तोष कुमार पाण्डेय एवं श्री रविन्द्र सिंह नाम के व्यक्तियों का शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया है। श्री रमेश मिश्रा ने दिनांक २४-१०-२००८ को मरीज श्री जय नरायन शुक्ला को देखने जाना बताया है जबकि श्री सन्तोष कुमार पाण्डेय ने अपने रिश्तेदार श्री सूर्यमुखी पाण्डेय को देखने जाना बताया है। श्री रविन्द्र सिंह ने अपनी पत्नी श्रीमती शारदा के इलाज के सन्दर्भ में दिनांक २०-१०-२००८ से २७-१०-२००८ तक संस्थान में अपनी उपस्थिति बताई है। परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत इन शपथ पत्रों के साथ मरीजों की सूची भी दाखिल की गई है जिसमें क्रम सं0-२५ पर श्रीमती शारदा देवी का नाम उल्लिखित है तथा यह भी उल्लिखित है कि श्री शारदा देवी आई0सी0यू0 में दिनांक २०-१०-२००८ से २५-१०-२००८ तक थीं। श्री सूर्यमुखी पाण्डेय का नाम क्रम सं0-२७ पर दर्शित है। आई0सी0यू0 में उनका दिनांक २१-१०-२००८ से ०६-११-२००८ तक रखा जाना दर्शित है। ऐसी परिस्थिति में परिवादीगण का यह कथन कि दिनांक २४-१०-२००८ को सी0वी0टी0एस0 वार्ड के आई0सी0यू0 की सीलिंग रात्रि करीब ०९.०० बजे मरीज के ऊपर गिर पड़ी थी हमारे विचार से विश्वास किए जाने योग्य है।
प्रत्येक अस्पताल से यह अपेक्षित होता है कि भर्ती किए गये मरीजों की पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जाय। विपक्षी संस्थान जो प्रदेश का एक प्रतिष्ठित संस्थान है, में रोगी के ऊपर वार्ड की सीलिंग गिर जाना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है एवं संस्थान प्रशासन की अकर्मण्यता एवं लापरवाही का द्योतक है। इस घटना के लिए संस्थान प्रशासन ने खेद भी प्रकट न करके अपनी संवेदनहीनता का परिचय दिया है। विशिष्ट साक्ष्य के अभाव में यद्यपि यह नहीं माना जा सकता कि वास्तव में वार्ड की सीलिंग गिर जाने के कारण ही मरीज की मृत्यु हो गई किन्तु नि:सन्देह मरीज की गम्भीर स्थिति सीलिंग के गिरने से प्रतिकूल रूप से प्रभावित अवश्य हुई होगी। ऐसी परिस्थिति में मरीज की पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करने में विपक्षी संस्थान द्वारा लापरवाही की गई और इस सन्दर्भ में परिवादीगण क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकारी हैं। हमारे विचार से मरीज की पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित न करने के कारण परिवादीगण को
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मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में ५०,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति दिलाया जाना न्यायसंगत होगा। तद्नुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संस्थान को निर्देशित किया जाता है कि परिवादीगण को ५०,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति निर्णय की प्रतिलिपि प्राप्त होने की तिथि के एक माह के अन्दर अदा किया जाना सुनिश्चित करे। इसके अतिरिक्त बतौर परिवाद व्यय ५,०००/- रू० भी विपक्षी द्वारा परिवादीगण को अदा किया जाय। निर्धारित अवधि में उपरोक्त धनराशि अदा न किए जाने की स्थिति में सम्पूर्ण धनराशि पर निर्णय की तिथि से सम्पूर्ण अदायगी तक ०९ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देय होगा।
उभय पक्ष इस परिवाद का व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.