Uttar Pradesh

Barabanki

CC/34/2015

Afsaana Bano - Complainant(s)

Versus

Sanjay Chaurasiya & Others - Opp.Party(s)

Brij Mohan Verma

09 Jun 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।

परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       02.05.2015

अंतिम सुनवाई की तिथि            24.05.2023

निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि  09.06.2023

परिवाद संख्याः 34/2015

अफसाना बानों पुत्री मो0 इदरीश नि0 ग्राम बरौली परगना देवां तहसील नवाबगंज जिला-बाराबंकी।

द्वारा-श्री बृजमोहन वर्मा, अधिवक्ता

 

बनाम

1. सेठ विशम्भरनाथ कालेज आफ हायर एजूकेशन जनपद-बाराबंकी।

2. अध्यक्ष, सेठ विशम्भरनाथ कालेज आफ हायर एजूकेशन बाराबंकी।

 3. प्रबंधक बैंक आफ इण्डिया सफेदाबाद बाराबंकी जनपद-बाराबंकी।

द्वारा-श्री भगवती प्रसाद, एडवोकेट

समक्षः-

माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष

माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य

माननीय डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

              विपक्षीगण की ओर से-कोई नहीं

द्वारा-संजय खरे, अध्यक्ष

निर्णय

            परिवादिनी ने यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्व अंतर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत विपक्षीजन से मु0 40,000/-जमा धनराशि, रू0 1,00,000/-शासन द्वारा निगत फीस व स्कालर शिप मु0 3,00,000/-क्षतिपूर्ति, मु0 50,000/-मानसिक क्षतिपूर्ति तथा मु0 10,000/-खर्चा मुकदमा कुल रू0 5,00,000/- जब तक परिवादिनी द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण न कर ले तब तक प्रतिवर्ष रू0 1,00,000/-शिक्षा प्राप्त न कर पाने के कारण दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।

            परिवादिनी ने परिवाद में मुख्य रूप से अभिकथन किया है कि परिवादिनी विपक्षीगण के कालेज में बी0 बी0 ए0 की छात्रा है। वह मुस्लिम जाति व अल्पसंख्यक समुदाय की पिछड़ी जाति के अंतर्गत आती है। परिवादिनी जब बी0 बी0 ए0 में प्रवेश हेतु विपक्षी संख्या-01 व 02 से मिली तब उन्होंने बताया कि प्रथम वर्ष बी0 बी0 ए0 में प्रवेश लेने पर रू0 40,000/-बतौर सिक्योरिटी एक सेमेस्टर की फीस जमा करनी पड़ेगी ओर अपना एकाउन्ट बैंक आफ इंडिया शाखा सफेदाबाद में खोलवाना पड़ेगा। प्रवेश के बाद शासन द्वारा आप बैंक खातें में जो फीस का पैसा जमा करोगें तथा स्कालर शिप आ जायेगी जिससे आपको पैसा नहीं देना पड़ेगा। स्कालरशिप से पैसा समायोजित कर लिया जायेगा। परिवादिनी ने रू0 40,000/-नकद फीस स्कूल में जमा कर दिये और बैंक आफ इंडिया शाखा सफेदाबाद में खाता सं0-750910110006020 रू0 1000/-जमा करके खोलवा लिया। परिवादिनी को बी0 बी0 ए0 प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। द्वितीय सेमेस्टर में प्रवेश हो गया तब विपक्षी सं0-01 व 02 ने परिवादिनी से रू0 40,000/-सेमेस्टर की फीस की माॅग की तब परिवादिनी के पिता विपक्षीजन के कार्यालय गये और कहा कि आप लोगों द्वारा ही बताया गया था कि शासन द्वारा भेजे गये धन से फीस अदा होती रहेगी। तब विपक्षी ने कहा कि बिना फीस जमा किये अगले सेमेस्टर की पढ़ाई संभव नहीं है। परिवादी के पिता ने किसी तरफ मांग कर रू0 40,000/-जमा कर दिये। दिनांक 26.09.2014 को परिवादिनी के पिता ने जिलाधिकारी को जांच हेतु प्रार्थना पत्र दिया जिस पर आरोप झूठा बताते हुये दिनांक 10.12.2014 को निक्षेपित कर दिया। पुनः दिनांक 11.02.2015 को जिलाधिकारी महोदय को प्रार्थना पत्र दिया परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। परिवादिनी ने दिनांक 11.02.2015 को एक रजिस्टर्ड नोटिस विपक्षीगण के विरूद्व भेजी तथा जमा धनराशि की माँग की तो विपक्षी ने अगले सेमेस्टर में न बैठने देने की धमकी दिया। नोटिस देने का आज तक न तो कोई जवाब दिया गया और न ही द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा में परिवादिनी को शामिल किया गया। जिसके कारण परिवादिनी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादिनी ने उक्त अनुतोष हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया है। परिवाद के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।

            परिवादिनी ने सूची से प्रथम व द्वितीय सेमेस्टर का मूल प्रवेश पत्र, दिनांक 10.00.2013 को रू0 20,000/-दिनांक 08.10.2013 को रू0 10,000/-, दिनांक 26.04.2014 को रू0 10,000/-जमा करने की रसीद, प्रार्थना पत्र दिनांक 26.09.2014, विधिक नोटिस, जिलाधिकारी को पत्र दिनांक 11.02.2015 की छाया प्रति दाखिल किया गया है।

            विपक्षी सं0-01, 02 ने जवाबदावा दाखिल नहीं किया है बल्कि दिनांक 16.02.2017 को एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है जिसमे कहा है कि प्रश्नगत प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार श्रीमान जी को प्राप्त नहीं है क्योंकि प्रकरण छात्र और अध्यापक/अध्यापन संस्था के बीच है। छात्र और अध्यापन संस्था उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते। छात्र और अध्यापन संस्था को उपभोक्ता की श्रेणी में रखकर परिवाद प्रस्तुत किया जाना नैसर्गिक न्याय, अधिनियम में उल्लिखित प्रावधानों तथा सम्मानीय उच्चतम न्यायालय माननीय उच्च न्यायालय द्वारा समय समय पर प्रतिपादित सिद्वान्तों के प्रतिकूल है। विपक्षी सं0-01 व 02 ने परिवाद को निरस्त किये जाने की याचना की है।

            विपक्षी संख्या-03 ने अपने जवाबदावा में परिवाद पत्र की धारा-1 लगायत 13 से इंकार करते हुये कहा है कि परिवादिनी की कोई नोटिस विपक्षी संख्या-03 को प्राप्त नहीं हुई है। बैंक आफ इंडिया सफेदाबाद शाखा बाराबंकी में अफसाना बानो पुत्री मो0 इदरीश निवासी बरौली के नाम खाता सं0-750910110006020 रू0 1000/-जमा करके खुला हुआ है। परिवाद में विपक्षी संख्या-03 को गलत पक्षकार बनाया गया है। परिवाद निरस्त किये जाने की याचना की गई है। 

              परिवादिनी ने लिखित बहस दाखिल किया है।

              परिवादिनी के अधिवक्ता की बहस सुनी गई तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।

            वर्तमान प्रकरण में परिवाद पत्र के साथ साक्षी पी0 डब्लू0-1 परिवादिनी स्वयं तथा पी0 डब्लू0-2 परिवादिनी के पिता के साक्ष्य शपथपत्र में कहे गये तथ्यों के अनुसार परिवादिनी ने विपक्षी संख्या-01 व 02 के निर्देशानुसार रू0 40,000/-बतौर सिक्योरिटी एक सेमेस्टर की फीस जमा की। बैंक आफ इंडिया सफेदाबाद में अपना खाता खुलवाया। विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा उस समय कहा गया था कि प्रवेश के बाद शासन द्वारा आपके खाते में जो फीस का पैसा जमा होगा और स्कालरशिप आयेगी जिससे आपको पैसा नहीं देना पड़ेगा, उसी मे आपके अगले सेमेस्टर की फीस समायोजित कर ली जायेगी और जो स्कालरशिप का पैसा बचेगा वह आपका होगा। परिवादिनी का कथन है कि उसने रू0 40,000/-फीस जमा की तथा विपक्षी संख्या-03 बैंक आफ इंडिया सफेदाबाद में रू0 1,000/-जमा करके खाता संख्या-750910110006020 खुलवा लिया और पासबुक प्राप्त कर लिया। परिवादिनी का कथन है कि उसने बी0 बी0ए0 प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा दी और उसे उत्तीर्ण की, अंकतालिका प्राप्त की उसके बाद द्वितीय सेमेस्टर में प्रवेश हो गया तब विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा परिवादिनी से द्वितीय सेमेस्टर की रू0 40,000/-फीस माँगी गई। तब परिवादिनी व उसके पिता ने विपक्षी संख्या-01 व 02 से कहा कि आपने कहा था कि शासन द्वारा जो धनराशि स्कालरशिप की आई है उसे परिवादिनी को दे दी जाये और फीस का जो पैसा आया हे वह फीस का पैसा फीस में ही समायोजित कर लिया जाये और जो पैसा कम ज्यादा होगा उसका हिसाब-किताब होता रहेगा। परन्तु विपक्षी संख्या-01 व 02 ने कहा कि बिना फीस जमा किये अगले सेमेस्टर की पढ़ाई नहीं होगी। परिवादिनी का कथन है कि वह गरीब छात्रा है, किसी तरह से मांग कर रू0 40,000/-जमा किया था। परिवादिनी के पिता ने दिनांक 26.09.2014 को प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी को जांच हेतु दिया जिसमे विपक्षी द्वारा झूठी जांच आख्या भेजकर दिनांक 10.11.2014 को जांच निक्षेपित करा दिया। परिवादिनी पक्ष का यह भी कथन है कि दिनांक 11.02.2015 को परिवादिनी द्वारा एक पंजीकृत नोटिस विपक्षी संख्या-01 व 02 को भेजी गई उसे भी गलत तथ्यों के आधार पर निस्तारित कर दिया गया। परिवादिनी का यह भी कथन है कि शासन द्वारा जो धनराशि स्कालरशिप की आई है उसे परिवादिनी को दिया जाय। फीस का पैसा जो आया है उसे फीस में समायोजित कर लिया जाय। विपक्षीगण ने आज तक कोई जवाब नहीं दिया और उसे द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल नहीं किया। परिवादिनी का यह भी कथन है कि शासन द्वारा उसके खातें में फीस तथा स्कालरशिप का रू01,00,000/-आया, उसका कोई हिसाब-किताब नहीं किया। द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा की अनुमति न दिये जाने के कारण परिवादिनी को नुकसान हुआ। परिवादिनी ने अपने द्वारा जमा फीस रू0 40,000/-, शासन द्वारा स्कालरशिप रू0 1,00,000/-, क्षतिपूर्ति तथा वाद व्यय दिलाया जाना तथा जब परिवादिनी द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण न कर ले तब तक प्रतिवर्ष रू0 1,00,000/-शिक्षा प्राप्त न कर पाने के कारण दिलाया जाय।

            परिवादिनी की ओर से अभिलेखीय साक्ष्य में बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष व बी0 बी0 द्वितीय वर्ष के एडमिट कार्ड की प्रति, बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष में प्रवेश के लिये विपक्षी संख्या-01 व 02 के विद्यालय में दी गई फीस रू0 40,000/-की रसीदें, जिलाधिकारी को जांच के लिये दिये गये प्रार्थना पत्र की प्रति, विपक्षी संख्या-01 व 02 विद्यालय के प्रबंधक व अध्यक्ष तथा जिला विद्यालय निरीक्षक को दी गई नोटिस की प्रति दाखिल की है। इसके अतिरिक्त परिवादिनी की ओर से जन सुविधा केन्द्र उ0 प्र0 के पोर्टल से जिलाधिकारी जनसुनवाई बाराबंकी की शिकायत संख्या-140246-00280 की आख्या की प्रति, परिवादिनी के विपक्षी संख्या-03 बैंक में खातें के पासबुक की छाया प्रति, बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष की परिवादिनी अफसानाबानो द्वारा परीक्षा में नेट से प्राप्त किये गये अंको के विवरण की प्रति कागज संख्या-13 प्रस्तुत की है।

            परिवादिनी की ओर से संदर्भित नजीर रजिस्ट्रार गुरू गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली बनाम श्री पी0 एल0 गिरधर माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग दिल्ली द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 31.01.2006 में प्रतिपादित सिद्वान्तों का सन्दर्भ लिया है।

            पत्रावली के अवलोकन से यह भी विदित है कि विपक्षी संख्या-01 व 02 ने उपस्थित होकर दिनांक 16.02.2017 को इस आशय का परिवाद निरस्त करने का प्रारम्भिक आपत्ति अंकित करते हुये प्रार्थना पत्र दिया है कि वर्तमान प्रकरण में सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता आयोग को नहीं है क्योंकि प्रस्तुत प्रकरण में छात्र और अध्यापक/अध्यापन संस्था के बीच है। छात्र और अध्यापन संस्था उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते है। विपक्षी संख्या-01 व 02 ने अपने इस प्रार्थना पत्र के समर्थन में निम्नलिखित नजीरों का सन्दर्भ लिया है:-

1. महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर  (2010) 11 एस सी सी 159

2. बुन्देलखंड विश्वविद्यालय बनाम जिला उपभोक्ता फोरम झांसी व अन्य (1998) 3 यू पी एल बी ई सी 1963 (माननीय  

    उच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 11.05.1998)

3. श्रीमती एन. तनेजा व अन्य बनाम कलकत्ता जिला फोरम एवं अन्य ए आई आर 1992 कलकत्ता 95

            विपक्षी संख्या-01 व 02 की प्रारम्भिक आपत्ति पर जिला आयोग द्वारा आदेश दिनांक 28.08.2018 में अंकित किया गया कि पोषणीयता पर सुनवाई पश्चात मामले में तथ्य व विधि का मिश्रित प्रश्न होने के कारण मेरिट पर एक साथ निस्तारित किये जाने का आदेश किया गया, क्योंकि इस प्रार्थना पत्र के निस्तारण तक परिवादी पक्ष का साक्ष्य आ चुका था।

                विपक्षी संख्या-03 बैंक ने अपने जवाबदावे में स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि परिवादिनी के खातें में आज तक कोई भी लेन लेन नहीं हुआ है और खाता खोलते समय जो रू0 1,000/-जमा किये गये थे उसके अतिरिक्त कोई धनराशि न तो जमा हुई है न निकाली गयी है।

              उभय पक्षों के अभिकथनों, मौखिक तथा अभिलेखीय साक्ष्य का अवलोकन किये जाने से स्पष्ट है कि परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि परिवादिनी द्वारा बी0 बी0ए0 प्रथम वर्ष में रू0 40,000/-फीस देकर विपक्षी संख्या-01 व 02 के विद्यालय में प्रवेश लिया गया और रू0 1,000/-से विपक्षी संख्या-03 बैंक आफ इंडिया सफेदाबाद शाखा में अपना खाता खुलवाया गया। विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा परिवादिनी को स्कालरशिप प्राप्त होने पर आगे फीस इत्यादि समायोजित करने की पुष्टि का कोई भी अभिलेखीय साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है। परिवादिनी के बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष के मूल एडमिट कार्ड में रोल नम्बर-101223 अंकित है और परिवादिनी द्वारा दूसरी बार सूची से प्रस्तुत प्रति अभिलेखों में अभिलेख संख्या-13 इसी रोल नम्बर से अफसानाबानो पुत्री मो0 इदरीश के बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष की परीक्षा में प्राप्त अंको की अंकतालिका की प्रति दाखिल है जिसमे परिवादिनी अफसाना बानो को अनुत्तीर्ण होना अंकित किया गया है। परिवादिनी के बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष में अनुत्तीर्ण होने के बिन्दु की पुष्टि परिवादिनी द्वारा ही द्वितीय सूची से दाखिल अभिलेख संख्या-18 जिलाधिकारी जनसुनवाई बाराबंकी के पोर्टल पर परिवादिनी के प्रार्थना पत्र पर कृत कार्यवाही के विवरण के अवलोकन से भी स्पष्ट है कि वर्ष 2013-14 में उक्त छात्रा को कोई भी धनराशि स्कालरशिप के मद में शासन द्वारा निर्गत नहीं की गई साथ ही परिवादिनी अफसाना बानों प्रथम सेमेस्टर में अनुत्तीर्ण है। अतः जिलाधिकारी द्वारा कराई गई जांच में भी परिवादिनी के बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष में अनुत्तीर्ण होने की पुष्टि होती है। यह स्पष्ट है कि यदि कोई विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हुआ है तो निश्चित रूप से उसे कोई भी स्कालरशिप देय नहीं हो सकती।

          परिवादिनी द्वारा दाखिल बैंक खाता विवरण की प्रति तथा विपक्षी संख्या-03 बैंक द्वारा अपने जवाबदावा में अंकित तथ्य से भी स्पष्ट है कि परिवादिनी के खातें में खाता खुलवाते समय रू0 1,000/-परिवादिनी द्वारा जमा करने के अतिरिक्त कोई अन्य धनराशि का लेन देन नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी को शासन द्वारा किसी भी मद की छात्रवृत्ति प्राप्त होने की पुष्टि नहीं होती है। ऐसी स्थिति में यदि परिवादिनी ने द्वितीय सेमेस्टर की फीस नहीं जमा की है और उसे विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा द्वितीय सेमेस्टर में अध्ययन व परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी गई है तो उसमे कोई अवैधानिकता नहीं है।

            परिवाद पत्र के तथ्यों तथा परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत दोनो सेमेस्टर के एडमिट कार्ड, फीस जमा करने की रसीद तथा प्रति अंक पत्र के अवलोकन से स्पष्ट है कि बी0 बी0 ए0 के प्रत्येक सेमेस्टर में फीस जमा होना, परीक्षा देना, परीक्षा में उत्तीर्ण होना आवश्यक है। सामान्यतः ऐसे प्रोफेशनल कोर्सेज की पढ़ाई में यदि किसी सेमेस्टर में किसी पेपर में विद्यार्थी अनुत्तीर्ण रहता है तो उसे अगले सेमेस्टर में प्रवेश तो दे दिया जाता है परन्तु अनुत्तीर्ण प्रश्न पत्र का बैक पेपर देकर पास होना अनिवार्य होता है। ऐसी स्थिति में यदि वर्तमान प्रकरण में परिवादिनी को प्रथम सेमेस्टर में अनुत्तीर्ण होने के बाद भी द्वितीय सेमेस्टर में प्रवेश के लिये एडमिट कार्ड जारी कर दिया गया तो इसके आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि परिवादिनी ने प्रथम सेमेस्टर उत्तीर्ण किया तब उसे द्वितीय सेमेस्टर का एडमिट कार्ड विद्यालय से जारी हुआ है।

            उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि परिवादिनी विपक्षी संख्या-01 व 02 के विद्यालय में बी0 बी0 ए0 प्रथम वर्ष के प्रथम सेमेस्टर में अनुत्तीर्ण हुई, उसको शासन से कोई छात्रवृत्ति नहीं स्वीकृत हुई और उसके द्वारा द्वितीय सेमेस्टर की फीस न जमा करने के कारण विपक्षी विद्यालय ने द्वितीय सेमेस्टर में पढ़ने और परीक्षा देने की अनुमति न देने में कोई त्रुटि नहीं की है। इस प्रकार परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद में माँगे गये अनुतोष के संबंध में परिवाद पत्र व साक्ष्य में बी0 बी0 ए0 की प्रथम वर्ष के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करना, शासन से स्कालरशिप आना, परिवादिनी को द्वितीय सेमेस्टर की फीस अदायगी के संबंध में स्कालरशिप से विपक्षी विद्यालय द्वारा समायोजन करना और परिवादिनी द्वारा द्वितीय सेमेस्टर की फीस देने की आवश्यकता न होने के तथ्य परिवादिनी के साक्ष्य से सिद्व नहीं होते है।

परिवादिनी की ओर से संदर्भित नजीर रजिस्ट्रार गुरू गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली बनाम श्री पी0 एल0 गिरधर (उपरोक्त)माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग दिल्ली के निर्णय के अवलोकन से विदित है कि उक्त प्रकरण में विद्यार्थी द्वारा केवल फीस जमा की गई थी और उसी के बाद उसको प्रवेश चंडीगढ़ के अन्य विद्यालय में मिल गया था। फीस जमा करने वाले प्रथम विद्यालय में वह किसी भी कक्षा में सम्मिलित नहीं हुई थी। केवल उसने अपनी जमा फीस वापस माँगी थी और उक्त मामले में माननीय राज्य आयोग ने फीस वापसी के आदेश इस आधार पर किये थे कि विद्यार्थी ने फीस जमा करने के बाद एक भी दिन शिक्षा प्राप्त नहीं की है।

परिवादिनी द्वारा संदर्भित उपरोक्त नजीर के विधिक सिद्वान्त वर्तमान प्रकरण में लागू नहीं होते है क्योंकि वर्तमान प्रकरण में परिवादिनी ने बी0 बी0 ए0 में प्रवेश लिया और एक सेमेस्टर फीस जमा करके प्रथम सेमेस्टर की शिक्षा प्राप्त की और परीक्षा में सम्मिलित भी हुई।

विपक्षी संख्या-01 व 02  की ओर से सन्दर्भित निम्नलिखित नजीरों का अवलोकन किया गया:-

1. महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर  (2010) 11 एस सी सी 159

2. बुन्देलखंड विश्वविद्यालय बनाम जिला उपभोक्ता फोरम झांसी व अन्य (1998) 3 यू पी एल बी ई सी 1963 (माननीय  

    उच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 11.05.1998)

3. श्रीमती एन. तनेजा व अन्य बनाम कलकत्ता जिला फोरम एवं अन्य ए आई आर 1992 कलकत्ता 95

महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है और शिक्षण संस्थायें शिक्षा प्रदान करने में विद्यार्थी को उपभोक्ता के रूप में कोई सेवाये (जैसा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में परिभाषित है) प्रदान नहीं करती है।

इन तीनो मामलों के निर्णयों में स्पष्ट रूप से विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के प्राविधान धारा-2(1)(ओ) सपठित धारा-2(सी) (।।।) तथा धारा-2 (डी) (।।) धारा-2 (जी) के संयुक्त विश्लेषण के आधार पर ‘‘शिक्षा‘‘ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के परिक्षेत्र में नहीं आती है और इससे सम्बन्धित विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के क्षेत्राधिकार में नहीं सुने जा सकते है।

उपरोक्त समस्त तथ्यों एवं विधि के विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि परिवादिनी अपना परिवाद सिद्व करने में असफल रही है। अतः परिवादिनी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।

आदेश

परिवाद संख्या-34/2015 निरस्त किया जाता है।

 

            (डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

                     सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

 

यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।

           (डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)

                    सदस्य                      सदस्य                अध्यक्ष

दिनांक 09.06.2023

 

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