सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-55/2015
(जिला उपभोक्ता फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-230/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.11.2014 के विरूद्ध)
1. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सीनियर सुप्रीटेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिस, सहारनपुर।
2. सीनियर पोस्ट मास्टर, हेड पोस्ट आफिस, सहारनपुर।
अपीलकर्तागण/विपक्षीगण
बनाम्
संदीप कुमार पुत्र श्री धर्म सिंह गौतम, निवासी-55/579, आदर्श नगर, पुरानी मण्डी, सहारनपुर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से : डा0 उदय वीर सिंह द्वारा अधिकृत अधिवक्ता
श्री कृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री ए0के0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 01.05.2019
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-230/2009 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.11.2014 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने सम्मिलित राज्य/प्रवर अधिनस्थ सेवा परीक्षा 2007 की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की तथा मुख्य परीक्षा में बैठने हेतु फार्म लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद द्वारा भेजा गया। परिवादी ने यह फार्म लोक सेवा आयोग, कार्यालय इलाहाबाद स्पीड पोस्ट के माध्यम से दिनांक 27.03.2009 को भेजा। इस फार्म की लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद में पहुंचने की अंतिम तिथि दिनांक 31.03.2009 थी, किन्तु यह फार्म दिनांक 01.04.2009 को वहां पहुंचा, जिसे उनके द्वारा परिवादी को वापस लौटा दिया गया। परिवादी को उक्त परीक्षा फार्म जमा करने के बावत इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करनी पड़ी, जिसमें परिवादी के लगभग 15 हजार रूपये खर्च हुए। अत: अपीलकर्तागण द्वारा सेवा में कमी अभिकथित करते हुए परिवाद जिला मंच के समक्ष क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया।
अपीलकर्तागण की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्तागण के कथनानुसार परिवादी द्वारा जो फार्म स्पीड पोस्ट के माध्यम से दिनांक 27.03.2009 को भेजा गया था, वह दिनांक 01.04.2009 को लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद पहुंचा दिया गया था। विभाग द्वारा सेवा में कमी नहीं की गयी है। अपीलकर्तागण का यह भी कथन है कि पोस्ट आफिस एक्ट की धारा-6 के अन्तर्गत डाक के वितरण में विलम्ब के लिए अपीलकर्तागण विभाग क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं है, जब तक यह प्रमाणित न हो कि अपीलकर्तागण के कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर विलम्ब किया गया अथवा धोखा किया गया हो। अपीलकर्तागण का यह कथन है कि विभागीय नियमों के अनुसार स्पीड पोस्ट बुक कराने की तिथि से एक माह की अवधि के अन्दर दायर की जा सकती है, अत: परिवाद कालबाधित है।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलकर्तागण को आदेशित किया है कि वह निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादी को मानसिक कष्ट व सेवा में कमी के मद में रू0 5,000/- एवं वाद व्यय के मद में रू0 2,000/- अदा करें।
इस निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता डा0 उदय वीर सिंह द्वारा अधिकृत अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय के तर्क सुने एवं अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट 1898 की धारा-6 के अन्तर्गत सरकार डाक के वितरण में हुए विलम्ब के लिए क्षतिपूर्ति की अदायगी के लिए उत्तरदायी नहीं मानी जा सकती है, जब तक कि यह प्रमाणित न हो कि यह विलम्ब धोखे से अथवा जानबूझकर किया गया। परिवाद के अभिकथनों में स्वंय परिवादी द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया है कि यह विलम्ब अपीलकर्तागण के कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर अथवा धोखे से किया गया।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि प्रस्तुत अपील 19 दिन विलम्ब से योजित की गयी है और विलम्ब का कोई उचित स्पष्टीकरण अपीलकर्तागण द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस सन्दर्भ में प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा चीफ पोस्ट मास्टर जनरल, उड़ीसा सर्कल व अन्य बनाम प्रताप चन्द्र परीदा II (2014) सीपीजे 433 (एनसी) के मामलें में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया।
अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु अपीलकर्तागण की ओर से श्री एस.एल. यादव, अधीक्षक रेलवे मेल सर्विस, एस.एच. डिवीजन, सहारनपुर द्वारा शपथपत्र प्रस्तुत किया गया तथा इस शपथपत्र के साथ संलग्नक-4 के रूप में अभिलेख भी प्रस्तुत किये गये। अपील 19 दिन विलम्ब से योजित की गयी है तथा विलम्ब का कारण स्पष्ट किया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत निर्णय जिला मंच ने इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट की धारा-6 के स्पष्ट प्रावधान की अनदेखी करते हुए पारित किया है। अत: अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किया जाता है।
इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट 1898 की धारा-6 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि :-
“ Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
परिवाद की फोटोप्रति अपील मेमों के साथ दाखिल की गयी है, जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि स्वंय परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में यह अभिकथित नहीं किया है कि प्रश्नगत ड्राफ्ट का वितरण अपीलकर्तागण के कर्मचारियों द्वारा कारित किसी धोखे के कारण अथवा जानबूझकर किया गया है और न ही इस संबंध में कोई साक्ष्य परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गयी है, किन्तु जिला मंच ने इस तथ्य पर ध्यान न देते हुए प्रश्नगत निर्णण पारित किया है। अत: हमारे विचार से प्रश्नगत निर्णय त्रुटिपूर्ण है, अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है तथा परिवाद निरस्त किया जाता है।
पक्षकारान को इस निर्णय एवं आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2