राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1707/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रतापगढ़ द्वारा परिवाद संख्या 573/2013 में पारित आदेश दिनांक 25.07.2016 के विरूद्ध)
1. Purvanchal Vidyut Vitran Nigam
Ltd. (UPPCL) through its Executive
Engineer, EDD II, Pratapgarh.
2. Purvanchal Vidyut Vitran Nigam
Ltd. (UPPCL) through its
Chairman, Shakti Bhawan, Ashok
Marg, Lucknow. ....................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
1. Sandeep K. Dwivedi, S/O Surya
Prakash Dwivedi, R/O Sandwa
Duban, Post Sahabganj, Pargana,
Sadar, Tehsil Lalganj, District
Pratapgarh.
2. Sarita Devi, W/O Sandeep K.
Dwivedi, R/O Sandwa Duban, Post
Sahabganj, Pargana, Sadar, Tehsil
Lalganj, District Pratapgarh.
3. Saurabh Ranjan, 7 yrs., S/O
Sandeep K. Dwivedi, R/O Sandwa
Duban, Post Sahabganj, Pargana,
Sadar, Tehsil Lalganj, District
Pratapgarh. (Minor) ................प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अशोक मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 18.04.2017
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मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-573/2013 सन्दीप कुमार द्विवेदी आदि बनाम पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, प्रतापगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 25.07.2016 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षीगण पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व एक अन्य की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया है कि वह तीन माह की अवधि में क्षतिपूर्ति की धनराशि 12,32,440/-रू0 परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 08.10.2013 से अदायगी की तिथि तक 07 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अदा करें। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी आदेशित किया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा अदा की गयी धनराशि 1,00,000/-रू0 उपरोक्त क्षतिपूर्ति की धनराशि में समयोजित की जाएगी। जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह भी आदेशित किया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा अदा की गयी धनराशि की वसूली का अधिकार घटना के लिए उत्तरदायी श्री नवरत्न राम अवर अभियन्ता एवं श्री पवन कुमार सिंह संविदाकर्मी से विभागीय कार्यवाही के माध्यम से प्राप्त होगा।
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अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक मेहरोत्रा और प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी उपस्थित आए हैं।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद प्रत्यर्थी/परिवादीगण सन्दीप कुमार द्विवेदी, सरिता देवी और सौरभ रंजन की ओर से धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस कथन के साथ प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 सन्दीप कुमार द्विवेदी के पिता सूर्य प्रकाश द्विवेदी के आवासीय मकान में उनके नाम से विद्युत कनेक्शन संख्या-993567 है और आवासीय मकान के पास से ही घरेलू उपयोग की 440 वोल्टेज विद्युत प्रवाहित लाइन विद्युत खम्भे से गई है, जिसके ऊपर ही अपीलार्थी/विपक्षीगण के विभाग द्वारा 11000 हाई वोल्टेज विद्युत प्रवाहित विद्युत लाइन खम्भे से खींचकर ले जायी गई थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि दिनांक 20.11.2011 को लगभग 10 बजे दिन में प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 सन्दीप कुमार द्विवेदी LL.B IInd Semester परीक्षा की तैयारी अपने आवास पर कर रहा था। इस बीच अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा 11000 हाई वोल्टेज विद्युत प्रवाहित विद्युत लाइन का तार खिंचाव व कसावट की कमी के कारण टूटकर नीचे 440 वोल्टेज
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घरेलू विद्युत प्रवाहित तार की लाइन पर गिर पड़ा, जिससे 11000 वोल्टेज और 440 वोल्टेज के विद्युत लाइन का तार प्रत्यर्थी/परिवादीगण के आवास पर गिर गया, जिससे उनके घर में आग लग गयी और प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 झुलस गया। अविलम्ब प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 सन्दीप कुमार द्विवेदी को जिला अस्पताल ले जाया गया, जहॉं से उसे इलाहाबाद रेफर किया गया। वह इलाहाबाद में पार्वती नर्सिंग होम में दिनांक 22.11.2011 से 15.12.2011 तक भर्ती रहा और उसके इलाज में 2,50,000/-रू0 खर्च हुआ, परन्तु अथक प्रयास के बावजूद भी उसका दोनों हाथ काटना पड़ा और वह शतप्रतिशत अपाहिज हो गया। दौरान इलाज उसे मानसिक पीड़ा और वेदना भी हुई। अत: प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत कर कुल 19,08,660/-रू0 प्रतिकर की मांग की है। प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-2 सरिता देवी प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 सन्दीप कुमार द्विवेदी की पत्नी हैं और प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-3 सौरभ रंजन प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 सन्दीप कुमार द्विवेदी का अवयस्क पुत्र है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 के पिता के नाम से विद्युत कनेक्शन है, जिसमें विद्युत 440 वोल्टेज विद्युत लाइन से प्रवाहित होती रही है और उसी खम्भे से 11000 हाई वोल्टेज की विद्युत लाइन भी खींचकर ले जायी गई थी।
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लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि हाई वोल्टेज करेण्ट की चपेट में प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 आता तो जिन्दा नहीं बचता।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि 1,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को दी गयी है। अब वह और कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है।
उभय पक्ष की ओर से जिला फोरम के समक्ष अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। तदोपरान्त जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उनकी ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र पर विचार करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है और परिवाद उपरोक्त प्रकार से स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षीगण को 12,32,440/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादीगण को अदा करने हेतु आदेशित किया है तथा यह भी आदेशित किया है कि पूर्व में अदा की गयी धनराशि 1,00,000/-रू0 इस क्षतिपूर्ति की धनराशि में समायोजित की जाएगी।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लि0 ने विद्युत निगम के सर्कुलर के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 की अपंगता
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शतप्रतिशत मानते हुए अधिकतम 1,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति अदा कर दी है। अत: अब प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 और कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है और अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रतिकर की अधिकतम धनराशि अदा कर दी है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम ने जो प्रतिकर की धनराशि निर्धारित करने में मोटर वाहन अधिनियम के द्वितीय अनुसूची का सहारा लिया है, वह अनुचित और अवैधानिक है।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है और प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 की स्थाई अपंगता को देखते हुए जिला फोरम ने जो प्रतिकर की धनराशि निर्धारित की है, वह उचित और युक्तसंगत है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
हमने उभय पक्ष के तर्क के प्रकाश में जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश की समीक्षा की है।
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह उल्लेख किया है कि विपक्षी द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि विद्युत विभाग द्वारा 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति दी गयी है, जो विभागीय जांच आख्या के आधार पर है। जिला फोरम ने आक्षेपित
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निर्णय और आदेश में यह भी उल्लिखित किया है कि उपनिदेशक विद्युत सुरक्षा का पत्र 6/9 व प्रपत्र संख्या 4,6/10-11 स्वीकार किए जाने योग्य है एवं विश्वसनीय है। प्रपत्र 4 में दुर्घटना की तारीख, समय, स्थान व दुर्घटना घटित होने के कारण भी वर्णित हैं, जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि दिनांक 20.11.2011 को 10 बजे दिन में एच.टी. लाइन का एक तार ट्रांसफार्मर के निकट इंसुलेटर के पास से टूटकर नीचे स्थित एल.टी. लाइन के चालक तार पर गिर गया। इस कारण एल.टी. लाइन में उच्च विभव की विद्युत धारा प्रवाहित होने लगी। फलस्वरूप द्विवेदी के घर की विद्युत लाइन में उच्च वोल्टेज की विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण विद्युत तार जलने लगे और जलते हुए तार के सम्पर्क में आकर संदीप कुमार की आघातक दुर्घटना घटित हुई तथा इलाज के दौरान संदीप के दोनों हाथ काटने पड़े। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय में यह भी उल्लिखित किया है कि उपरोक्त रिपोर्ट में यह भी उल्लिखित है कि पर्यवेक्षण/अनुरक्षण स्टाफ इस दुर्घटना के लिए उत्तरदायी प्रतीत होता है।
मेमो अपील की धारा-5 में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 की प्रश्नगत दुर्घटना के कारण अपंगता शतप्रतिशत माना है और यह माना है कि इस आधार पर उसने 1,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को अदा कर दी है। अत: अब प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 और कोई क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। इस प्रकार मेमो अपील एवं उभय पक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरान्त यह स्पष्ट है कि यह बात
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निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को 11000 वोल्टेज विद्युत तार टूटकर 440 वोल्टेज की विद्युत लाइन पर गिरने के कारण हुई दुर्घटना में जलने से चोट आई है, जिससे वह शतप्रतिशत अपंगता का शिकार हुआ है, जिसके लिए अपीलार्थी/विपक्षीगण ने उसे 1,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति अदा की है। अब मात्र विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को अदा करने के पश्चात् अपीलार्थी/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादीगण को कोई और क्षतिपूर्ति अदा करने हेतु उत्तरदायी नहीं हैं और जिला फोरम ने जो क्षतिपूर्ति की धनराशि अदा करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया है, वह अनुचित और विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने हमारा ध्यान उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लि0 के कार्यालय ज्ञापन संख्या-2400 औ0स0/2008-19 (125) ए0एस0/2001 दिनांक: 19 जून, 2008 की ओर आकर्षित किया है, जो निम्न है:-
'' उ0प्र0 पावर कारपोरेशन लिमिटेड के त्रुटिपूर्ण विद्युतीय अधिष्ठापन के सम्पर्क में आने से बाहरी व्यक्तियों की घातक एवम् साधारण दुर्घटना से हुई अपंगता पर अनुग्रह धनराशि अनुमन्य किये जाने सम्बन्धी कार्यालय ज्ञाप संख्या-1780-औस0सं0-17/पाकालि/2006-19(125)ए0एस0/2001, दिनांक 19.04.06 में निम्नवत् संशोधन तत्काल प्रभाव से लिये जाते हैं:-
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(क) वर्तमान में घातक मानव विद्युत दुर्घटना के फलस्वरूप अनुमन्य देय अनुग्रह धनराशि रू0 50,000/-(रूपया पचास हजार) के स्थान पर रू0 1,00,000/- (रूपया एक लाख) प्रति व्यक्ति होगी।
(ख) बाहरी व्यक्ति/व्यक्तियों की साधारण दुर्घटना में हुई पूर्ण अपंगता की स्थिति में वर्तमान में अनुमन्य क्षतिपूर्ति रू0 50,000/-(रूपये पचास हजार) से बढ़ाकर रू0 1,00,000/-(रूपये एक लाख) प्रति व्यक्ति तथा आंशिक अपंगता की स्थिति में रू0 1,00,000/-(रू0 एक लाख) की धनराशि को अर्जन क्षमता में चिकित्सीय प्रमाण पत्र के आधार पर हुए प्रतिशत हृास के अनुसार गणना कर अनुपाति अनुग्रह धनराशि अनुमन्य की जायेगी जिसकी अधिकतम सीमा रू0 एक लाख होगी।
(ग) पशुओं की घातक दुर्घटना हेतु अनुमन्य अनुग्रह धनराशि रू0 5000/-(रूपये पॉंच हजार) अनुमन्य की जायेगी।''
उ0प्र0 पावर कारपोरेशन लि0 के उपरोक्त कार्यालय ज्ञापन से यह स्पष्ट है कि यह ज्ञापन त्रुटिपूर्ण विद्युतीय अधिष्ठापन के सम्पर्क में आने से बाहरी व्यक्तियों की घातक एवम् साधारण दुर्घटना से हुई अपंगता पर अनुग्रह धनराशि अनुमन्य करता है, परन्तु उभय पक्ष के अभिकथन से यह स्पष्ट है कि यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 के पिता के नाम विद्युत कनेक्शन रहा है और यह दुर्घटना उसी विद्युत कनेक्शन वाले आवास की लाइन में घटित हुई है। उपरोक्त विवरण से यह भी स्पष्ट है कि विद्युत विभाग की जांच से यह स्थापित हुआ है कि
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यह दुर्घटना निगम की विद्युत लाइन जो नियमों के अनुसार अनुरक्षित नहीं थी, के कारण घटित हुई है। अत: यह मानने हेतु उचित और युक्तसंगत आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1, अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता रहा है और विद्युत आपूर्ति के सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा सेवा में लापरवाही की गयी है। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अपने उपभोक्ता की सेवा में कमी की है, जिसके लिए उनके विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिवाद ग्राह्य है और अपीलार्थी/विपक्षीगण को विद्युत निगम के उपरोक्त कार्यालय ज्ञापन का लाभ वर्तमान वाद के तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में नहीं मिल सकता है क्योंकि उक्त ज्ञापन बाहरी व्यक्तियों के सम्बन्ध में है, उपभोक्ता के सम्बन्ध में नहीं।
अपील संख्या-2867/2012 डाक्टर बलराम प्रसाद बनाम डाक्टर कुनाल साहा निर्णय तिथि दिनांक 24.10.2013 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निम्न मत व्यक्त किया है:-
“…………The multiplier method was provided for convenience and speedy disposal of no fault motor accident cases. Therefore, obviously, a “no fault” motor vehicle accident should not be compared with the case of death from medical negligence under any condition. The aforesaid approach in adopting the multiplier method to determine the just compensation would be damaging for society for the reason that the
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rules for using the multiplier method to the notional income of only Rs.15,000/- per year would be taken as a multiplicand. In case, the victim has no income then a multiplier of 18 is the highest multiplier used under the provision of Sections 163 A of the Motor Vehiclels act read with the Second Schedule. Therefore, if a child, housewife or other non-working person fall victim to reckless medical treatment by wayward doctors, the maximum pecuniary damages that the unfortunate victim may collect would be only Rs.1.8 lakh. It is stated in view of the aforesaid reasons that in today’s India, Hospitals, Nursing Homes and doctors make lakhs and crores of rupees on a regular basis. Under such scenario, allowing the multiplier method to be used to determine compensation in medical negligence cases would not have any deterrent effect on them for their medical negligence but in contrast, this would encourage more incidents of medical negligence in India bringing even greater danger for the society at large.”
उपरोक्त वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मोटर वाहन अधिनियम की द्वितीय अनुसूची के अधिकतम गुणांक 18 को
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स्वीकार न करते हुए मृतक की आयु के आधार पर वाद के तथ्यों एवं परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में 30 का गुणांक लगाया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1, 22 वर्ष का युवा व्यक्ति रहा है और LL.B भाग 2 का विद्यार्थी था। प्रश्नगत दुर्घटना में जलने के कारण आई चोटों के फलस्वरूप उसका दोनों ही हाथ काटना पड़ा है, जिससे वह स्थाई रूप से शतप्रतिशत अपंगता का शिकार हुआ है और उसका सम्पूर्ण जीवन अंधकारमय हो गया है। अत: जिला फोरम ने जो मोटर वाहन अधिनियम की द्वितीय अनुसूची के अनुसार 18 का गुणांक लगाकर क्षतिपूर्ति निर्धारित किया है वह कम है, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने आक्षेपित निर्णय के विरूद्ध अपील नहीं की है। अत: जिला फोरम के निर्णय में मोटर वाहन अधिनियम की द्वितीय अनुसूची का सहारा क्षतिपूर्ति के निर्धारण में लिए जाने के कारण कोई हस्तक्षेप उचित नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद धारा-24 क उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत निर्धारित समय-सीमा के अन्दर प्रस्तुत किया है। परिवाद कालबाधित नहीं है।
सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को आई स्थाई अपंगता के परिणामस्वरूप जो 12,32,440/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि निर्धारित की है, वह अनुचित, आधार रहित और अवैधानिक नहीं कही जा सकती है। हमारी राय में जिला फोरम द्वारा निर्धारित क्षतिपूर्ति की धनराशि में आयोग द्वारा किसी हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
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उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत वर्तमान अपील बल रहित है और सव्यय निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील 10,000/-रू0 (दस हजार रूपया मात्र) वाद व्यय सहित निरस्त की जाती है। वाद व्यय की यह धनराशि अपीलार्थी/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादीगण को अदा करेंगे।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि ब्याज सहित जिला फोरम को विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1