राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
निष्पादनवाद सं0- 45/2016
(मौखिक)
S.K. Seth Membar of the Kalyan Apatments Owners Welfare Association, Kalyan Apatments, Sector-24 Indira Nagar, Lucknow.
……… Decree Holder
Versus
M/s Sandeep Developers, Naval Kishore road, Hazratganj, Lucknow-226001, through its Partners Sri Krishana agarwal S/o Late Sri Ram ji
………. Debtor
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
डिक्रीदार की ओर से उपस्थित : श्री अनिल कुमार मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
निर्णीत ऋणी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 17.05.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
डिक्रीदार के विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा और निर्णीत ऋणी मेसर्स संदीप डेवलपर्स के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल उपस्थित आये। उभयपक्ष को डिक्रीदार एस0के0 सेठ द्वारा प्रस्तुत इजरा प्रार्थना पत्र पर सुना गया।
डिक्रीदार एस0के0 सेठ ने वर्तमान प्रार्थना पत्र में परिवाद सं0- 28/2007 कल्याण अपार्टमेंट्स ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम मेसर्स संदीप डेवलपर्स नवल किशोर रोड हजरतगंज, लखनऊ में आयोग द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 23.01.2012 के निष्पादन हेतु प्रस्तुत किया है। डिक्रीदार के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि आयोग ने अपने इस निर्णय के पृष्ठ 14 पर यह उल्लेख किया है कि यदि कुछ फ्लैट ओनर्स अवशेष धनराशि जमा करने में असफल रहते हैं तो उनसे न केवल अवशेष धनराशि जमा करायी जायेगी, बल्कि 10 प्रतिशत की युक्ति संगत दर से ब्याज भी लिया जायेगा।
आवेदक ने वर्तमान प्रार्थना पत्र आयोग के निर्णय के उपरोक्त उल्लेख के निष्पादन हेतु ही प्रस्तुत किया है।
निर्णीत ऋणी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि आयोग ने परिवाद सव्यय निरस्त किया है और आयोग द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा अपील भी खारिज कर दी गई है तथा राज्य आयोग द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 23.01.2012 के अनुपालन हेतु निर्णीत ऋणी संदीप डेवलपर्स ने इजरा प्रार्थना पत्र 07/2016 आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है जिसके अनुपालन में हर्जा की धनराशि 3,000/-रू0 उसे उपरोक्त परिवाद के परिवादी द्वारा अदा कर दी गई है।
निर्णीत ऋणी संदीप डेवलपर्स के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि न तो डिक्रीदार एस0के0 सेठ उपरोक्त परिवाद सं0- 28/2007 कल्याण अपार्टमेंट्स ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम मेसर्स संदीप डेवलपर्स में पक्षकार हैं और न ही आयोग ने अपने निर्णय में कोई आदेश विपक्षी संदीप डेवलपर्स के विरूद्ध पारित किया है। अत: डिक्रीदार द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र ग्राह्य नहीं है और निरस्त किये जाने योग्य है।
डिक्रीदार के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क किया कि उपरोक्त परिवाद सं0- 28/2007 कल्याण अपार्टमेंट्स ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से प्रस्तुत किया गया था जिसका डिक्रीदार भी सदस्य है। अत: उक्त परिवाद के निर्णय का लाभ पाने का वह अधिकारी है और उसकी ओर से प्रस्तुत प्रार्थना पत्र ग्राह्य है।
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है। राज्य आयोग ने उपरोक्त परिवाद सं0- 28/2007 कल्याण अपार्टमेंट्स ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम संदीप डेवलपर्स के निर्णय में पृष्ठ 14 पर निम्न ऑब्जरवेशन अंकित किया है:-
“Since it was a condition recited in the agreement deeds, the flat owners were under an obligation to pay the same and if a few flat owners failed to do so they would be required not only to clear their dues but also pay interest at a reasonable rate of 10% per annum.”
परन्तु राज्य आयोग ने अन्तिम रूप से परिवाद सव्यय निरस्त कर दिया है। आयोग द्वारा पारित अन्तिम आदेश का ही निष्पादन किया जाना सम्भव है, चूंकि आयोग ने अपने निर्णय के पृष्ठ 14 में किये गये उपरोक्त उल्लेख के आधार पर कोई आदेश पारित नहीं किया है। अत: उसका निष्पादन व अनुपालन कराया जाना इस स्तर पर विधि सम्मत नहीं है।
यदि राज्य आयोग के निर्णय के उपरोक्त उल्लेख से डिक्रीदार को कोई लाभ मिलता है तो वह विधि के अनुसार अन्य कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र है। उपरोक्त विवेचना के आधार पर वर्तमान इजरा प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह आशु.
कोर्ट नं0-1