/जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोशण फोरम,जांजगीर चांपा छ0ग0/
प्रकरण क्रमांक सी.सी./2012/16
प्रस्तुति दिनांक 13/04/2012
गीता प्रसाद चैबे,
उम्र लगभग 41 वर्ष, आ.स्व.श्री मनहरण लाल चैबे,
जाति ब्राह्मण निवासी लिंकरोड
पुराना चंदनिया पारा,
वार्ड नं. 16,जांजगीर
जिला जांजगीर चांपा छ0ग0 ......आवेदक/परिवादी
// विरूद्ध//
1. संचालक,
सत्या आटो मोबाईल्स,
कोरबा अधिकृत नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड,
जिला कोरबा छ0ग0
2. मंडल प्रबंधक,
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड,
मंडल कार्यालय, बी-1 टाह काम्पलेक्स
रिंगरोड नंबर 1,प्रियदर्शिनी नगर,
बिलासपुर जिला बिलासपुर छ0ग0 ........अनावेदकगण/विरोधी पक्षकारगण
/// आदेश///
(आज दिनांक 20/02/2015 को पारित)
1. आवेदक गीता प्रसाद चैबे ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदकगण के विरूद्ध बीमा दावे को अस्वीकार कर सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदकगण से वाहन मरम्मत व्यय की राशि 93,833/-रू. को ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक एक वाहन मारूति ओमनी क्रमांक सी.जी.10 ई. 0246 कोरबा में अनावेदक क्रमांक 1 के पास से क्रय किया था और वही उसे अनावेदक क्रमांक 2 के पास दिनांक 18.03.2011 से दिनांक 17.03.2012 तक की अवधि के लिए बीमित कराया था। बीमित अवधि में दिनांक 06.04.2011 को उक्त वाहन पारिवारिक शादी के कार्य से जाने के दौरान थाना नवागढ के अंतर्गत नेगुरडीह मोड़ के पास दुर्घटना होने से क्षतिग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना आवेदक द्वारा अनावेदकगण को दी गई और उनके निर्देश पर वाहन का अनावेदक क्रमांक 1 के वर्कशाॅप में मरम्मत कराकर 93,833/-रू.का भुगतान किया गया और बिल सहित क्षति भुगतान हेतु दावा अनावेदक बीमा कंपनी के कार्यालय में पेश किया गया, जिसे बीमा कंपनी द्वारा दिनांक 28.02.2012 को थाना में दर्ज कराई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर पाॅलिसी शर्तो के उल्लंघन में वाहन का व्यवसायिक उपयोग होना अभिकथित करते हुए निरस्त कर दिया गया । फलस्वरूप उसने यह परिवाद पेश करना बताया है और अनावेदकगण से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है।
3. अनावेदक क्रमांक 1 सूचना पत्र तामिली उपरांत भी मामले में अनुपस्थित रहा, तथा कोई जवाबदावा दाखिल नहीं किया गया है।
4. अनावेदक क्रमांक 2 जवाब पेश कर घटना दिनांक को वाहन अपने यहां बीमित होना तो स्वीकार किया, किंतु परिवाद का विरोध इस आधार पर किया कि आवेदक का प्रश्नाधीन वाहन प्राइवेट वाहन है, किंतु उसे आवेदक द्वारा घटना दिनांक को किराये पर चलाया जा रहा था। अतः पाॅलिसी शर्तो का उल्लंघन होने के कारण आवेदक कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं । उक्त आधार पर उसने आवेदक के परिवाद को निरस्त किये जाने का निवेदन किया है ।
5. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया।
6. देखना यह है कि क्या अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा आवेदक का बीमा दावा अस्वीकार कर सेवा में कमी की गई ?
सकारण निष्कर्ष
7. दिनांक 06.04.2011 को आवेदक का प्रश्नाधीन वाहन दुर्घटना में क्षतिग्रस्त होने तथा उक्त दिवस वाहन का अनावेदक बीमा कंपनी के यहां बीमित होने का तथ्य मामले में विवादित नहीं है । इसके अलावा यह भी विवादित नहीं है कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा आवेदक का दावा दिनांक 28.02.2012 को निरस्त कर दिया गया ।
8. आवेदक का कथन है कि घटना दिनांक प्रश्नाधीन वाहन को उसने अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ विवाह संबंधी चर्चा के लिए भेजा था, जो रास्ते में थाना नवागढ के अंतर्गत नेगुरडीह मोड़ के पास दुर्घटना होने से क्षतिग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना उसके द्वारा अनावेदकगण को देते हुए उनके निर्देश के तहत वाहन का मरम्मत कराया गया और बिल क्षतिपूर्ति भुगतान हेतु अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष पेश किया गया, किंतु उसने उसे दिनांक 28.02.2012 को प्रथम सूचना रिपोर्ट का हवाला देते हुए व्यवसायिक उपयोग के आधार पर निरस्त कर दिया, जबकि दुर्घटना परिवार के सदस्यों द्वारा प्राइवेट वाहन के रूप में उपयोग किये जाने के दौरान घटित हुई थी ।
9.इसके विपरीत अनावेदक बीमा कंपनी का कथन है कि आवेदक का वाहन घटना दिनांक को प्राइवेट वाहन के रूप में पंजीकृत एवं बीमाकृत था, किंतु उसके द्वारा वाहन किराये पर दिया गया और इसी दौरान दुर्घटना घटित हुई । फलस्वरूप वाहन का व्यवसायिक उपयोग होने के कारण आवेदक कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। इस संबंध में अनावेदक बीमा कंपनी दुर्घटना उपरांत ओंकार प्रसाद द्वारा थाना में दर्ज कराई गई रिपोर्ट को आधार लिया है।
10.इस संबंध में विवाद नहीं किया जा सकता कि बीमा पाॅलिसी एक संविदा होती है, जिसमें दोनों पक्षों की जिम्मेदारी होती है, जहां बीमाकर्ता पाॅलिसी से रिस्क कव्हर करता है, वहीं बीमित व्यक्ति को भी उसकी शर्तो से बाहर क्लेम करने का कोई अधिकार नहीं बनता और उसे पाॅलिसी की स्पष्ट बताई गई निबंधनों का पालन करना होता है । इसमें संदेह नहीं कि पाॅलिसी की शर्त भंग करने की दशा में बीमा कंपनी को अधिकार बनता है कि वह बीमा दावे को इंकार कर दे, तथापि इस संबंध में यह भी सुनिश्चित स्थिति है कि पाॅलिसी शर्तो के उल्लंघन को सिद्ध करने की जवाबदारी बीमा कंपनी की होती है । अतः उसे ही यह साबित करना होता है कि बीमाधारक द्वारा पाॅलिसी शर्तो का उल्लंघन किया गया ।
11. प्रश्नगत मामले में अनावेदक बीमा कंपनी यद्यपि दुर्घटना के संबंध में दर्ज कराई गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह आधार लिया है कि आवेदक द्वारा घटना दिनांक को प्रश्नाधीन वाहन का उपयोग पाॅलिसी शर्तो के विपरीत व्यवसायिक वाहन के रूप में किया जा रहा था, जबकि उक्त वाहन प्राइवेट वाहन के रूप में पंजीकृत एवं बीमाकृत थी, किंतु इस बात को प्रकट करने के लिए अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा न तो तथाकथित पुलिस रिपोर्ट की काॅपी मामले में पेश की गई है और न ही इस संबंध में सर्वेयर की रिपोर्ट की काॅपी संलग्न की गई है । ऐसी स्थिति में अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा लिया गया यह आधार युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता, जिसका कहना है कि आवेदक द्वारा घटना दिनांक को प्राइवेट वाहन का उपयोग व्यवसायिक रूप में किया जा रहा था ।
12. उपरोक्त विवेचन के प्रकाश में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा बिना किसी युक्तियुक्त आधार के आवेदक का दावा अस्वीकार कर सेवा में कमी की गई है अतः हम आवेदक के पक्ष में अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध निम्न आदेश पारित करते हैं :-
अ. अनावेदक बीमा कंपनी, आवेदक को आदेश दिनांक से एक माह के भीतर वाहन मरम्मत व्यय की राशि 93,833/-रू. (तिरानबे हजार आठ सौ तैतीस रू.) अदा करेगा तथा इसमें चूक की दशा में वह उक्त रकम पर ताअदायगी 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करेगा।
ब. अनावेदक बीमा कंपनी, आवेदक को क्षतिपूर्ति के रूप में 5,000/.रु0 (पांच हजार रूपये) की राशि भी अदा करेगा।
स. अनावेदक बीमा कंपनी, आवेदक को वादव्यय के रूप में 1,000/.रु0 (एकहजार रूपये) की राशि भी अदा करेगा।
आदेश पारित
(अशोक कुमार पाठक) (श्रीमती शशि राठौर) (मणिशंकर गौरहा)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य