(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 2497 /2014
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-975/2009 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-10-2014 के विरूद्ध)
Uttar pradesh Power Corporation Limited Through Executive Engineer Electricity Distribution District-Bahraich.
.....अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
Sri. Sanat Kumar Verma Son of Sri Sawli Prasad Verma Resident of Village Jagarnathpur, Post hara Bashari, Tehsil Nanpara, District Bahraich.
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री संतोष कुमार मिश्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 29-11-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-975/2009 Sri. Sanat Kumar Verma, बनाम् Managing Director, Madhyanchal Electric Distribution Corporation Ltd. व दो अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 27-10-2014 के विरूद्ध
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यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश अंग्रेजी में पारित किया है :-
“The complaint is partly allowed. The Ops are Jointly and severally directed to pay Rs. 7,77,600/- with 6% interest from the date of filing of complaint till the final payment is made to the complainant.
The Ops are also directed to pay Rs. 3000/- as the expenses incurred in the treatment, Rs.50,000/- as compensation for mental and physical trauma and Rs. 3000/- as cost of the litigation. The compliance of the order is to be made within a month.”
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी Uttar pradesh Power Corporation Limited Through Executive Engineer Electricity Distribution District-Bahraich. की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री संतोष कुमार मिश्रा उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री गोपाल जी श्रीवास्तव का देहान्त हो चुका है उसके बाद प्रत्यर्थी को नोटिस भेजी गयी है कि वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो अथवा अपना नया अधिवक्ता नियुक्त करें, फिर भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है अत: प्रत्यर्थी की अनुपस्थिति में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को सुनकर अपील का निस्तारण किया जा रहा है।
मैंने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
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अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम, प्रथम, लखनऊ के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रसतुत किया है कि वह दिनाक 26-06-2004 को 11 बजे दिन में अपने गॉव Kantohala जिला बहराइच में रिश्तेदार को देखने साईकिल से जा रहा था और जब वह Donadara Saifen के करीब पहुँचा तो 11 हजार वोल्टेज लाईन का विद्युत तार जमीन पर नंगा गिरा पड़ा था जिससे परिवादी बुरी तरह से जल गया और उसे गंभीर चोटें आईं। उसे सरकारी अस्पताल, बहराइच में 2.00 बजे दिन में दिनांक 26-06-2004 को भर्ती किया गया। उसके बाद उसे मेडिकल कालेज लखनऊ दिनांक 28-06-2004 को रिफर किया गया। उसका जीवन बचाने के लिए उसके दोनों हाथ कंधे से काट दिये गये। उसके पैर भी बुरी तरह से जलकर क्षतिग्रस्त हो गये जिससे परिवादी शप-प्रतिशत अपंग हो गया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि इलेक्ट्रिक पोल का तार परिवाद के विपक्षीगण अर्थात Managing Director Madhyanchal Electric Distribution Corporation Ltd., Executive Engineer Distribution Division, U.P.P Corporation, By. General Manager, Electricity Distribution Division, U.P.P. corporation की लापरवाही के कारण तार टूटकर गिरा है जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी की यह दुर्घटना हुई है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद अपीलार्थी/विपक्षी उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लि0 के कर्मचारीगण अर्थात Managing Director Madhyanchal Electric Distribution Corporation Ltd., Executive Engineer Distribution Division, U.P.P Corporation, और Dy. General Manager, Electricity Distribution Division, U.P.P. corporation के विरूद्ध प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है :-
- That O.P.No.1 to 3 may Kindly be directed to pay Rs. 18.5 Lacs to the complainant as narrated in para No.14.
-
- That Rs. 5000/- may Kindly be given to complainant by O.P.No.1 to 3 as legal Expenses.
- That if any more relief is considered reasonable by the Hon’ble Court it may also be passed in favour of complainant.
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी है की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है और परिवाद में कथित विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता विवाद नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। अपीलार्थी/विपक्षीगण की लापरवाही से यह दुर्घटना घटित नहीं हुई है फिर भी विद्युत विभाग के नियम के अनुसार जांच की गयी है और रू0 20,000/- क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान की गयी है जिसे उसने चेक नम्बर-771276 दिनांकित 09-11-2008 के द्वारा प्राप्त की किया है। अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत लिखित कथन में कहा गया है कि जिला फोरम को परिवाद ग्रहण करने का भौमिक क्षेत्राधिकार भी नहीं है। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवाद कालबाधित है1
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि परिवादी की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला फोरम, लखनऊ को प्राप्त है और परिवाद समय-सीमा के अंदर है1 अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद पत्र में कथित दुर्घटना उपभोक्ता विवाद नहीं है। परिवाद पत्र में परिवादी ने यह नहीं कहा है कि वह अपीलार्थी/विपक्षी के विद्युत विभाग का उपभोक्ता है और उसके नाम विद्युत कनेक्शन है जिसको विद्युत आपूर्ति करने वाली लाईन से यह दुर्घटना घटित हुई है।
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अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट है कि कथित दुर्घटना अपीलार्थी के घर से दूर 11 हजार वोल्टेज के तार की विद्युत लाईन टूटकर गिरने से घटित हुई है। जिसके संबंध में परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अधिकार रहित है और विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि 11 हजार वोल्टेज का विद्युत तार अपीलार्थी/विपक्षी के विद्युत विभाग की लापरवाही से टूटकर गिरा है यह कहना उचित नहीं है। ऐसा आकस्मिक रूप से हुआ है। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है अत: अपील स्वीकार कर जिला फोरम का निर्णय निरस्त किया जाना आवश्यक है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि जिला फोरम, लखनऊ को परिवाद ग्रहण करने का भौमिक अधिकार भी नहीं रहा है।
मैंने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है और परिवाद में कथित विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता विवाद नहीं है। परन्तु जिला फोरम ने अपने निर्णय में इस बिन्दु पर विचार कर कोई निष्कर्ष अंकित किये बिना आक्षेपित निर्णय पारित किया है। क्या प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी का उपभोक्ता है और परिवाद में कथित विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता विवाद है यह बिन्दु परिवाद की उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ग्राह्यता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है परन्तु इस बिन्दु पर जिला फोरम ने विचार नहीं किया है। अत: जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है और कायम रहने योग्य नहीं है।
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उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय अपास्त किया जाता है तथा पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश से प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला फोरम उभयपक्ष को साक्ष्य व सुनवाई का अवसर देकर अपीलार्थी/विपक्षी के लिखित कथन में अभिकथित समस्त बिन्दुओं पर विचार कर पुन: विधि के अनुसार निर्णय व आदेश पारित करे।
उभयपक्ष दिनांक 13-01-2020 को जिला फोरम के समक्ष उपस्थित हों।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु, कोर्ट नं0-1