जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम कोरबा (छ0ग0)
प्रकरण क्रमांकः- CC/13/74
प्रस्तुति दिनांकः-08/10/2013
समक्षः- छबिलाल पटेल, अध्यक्ष
श्रीमती अंजू गबेल, सदस्य
श्री राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, सदस्य
01. श्रीमती राजू देवी सूर्यवंशी ,
पति श्री नगजीराम सूर्यवंशी , उम्र-लगभग 60 वर्ष,
02. नगजीराम सूर्यवंशी ,
पिता स्व.श्री बगदीराम सूर्यवंशी , उम्र-61 वर्ष,
दोनो निवासी-292/1/बी, बाल्को नगर, कोरबा
तह0 व जिला-कोरबा (छ0ग0).............................................आवेदकगण/परिवादीगण
विरूद्ध
01. संभागीय रेल प्रबंधक,
पश्चिम रेल्वे, संभाग-बड़ौदरा,
संभागीय रेल कार्यालय-बड़ौदरा
तहसील व जिला-बड़ौदरा (गुजरात)
02. संभागीय रेल्वे प्रबंधक,
सेन्ट्रल रेल्वे, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल,
मुंबई (महाराष्ट्र)...........................................................अनावेदकगण/विरोधीपक्षकारगण
आवेदकगण द्वारा श्री महेन्द्र तिवारी अधिवक्ता।
अनावेदक क्रमांक 01 द्वारा श्री अशीश वर्मा अधिवक्ता।
अनावेदक क्रमांक 02 अनुपस्थित, एकपक्षीय।
आदेश
(आज दिनांक 18/02/2015 को पारित)
01. परिवादी/आवेदकगण के द्वारा रेल्वे यात्रा के दौरान आरक्षित डिब्बे से उनके सामानों की चोरी हो जाने पर उसकी राशि 4,08,128/-रू0 को वापस न देकर अनावेदकगण के द्वारा सेवा में कमी किये जाने के आधार पर उक्त राशि सहित आर्थिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति की राशि 1,00,000/-रू0 तथा वाद व्यय एवं ब्याज की राशि दिलाये जाने हेतु, यह परिवाद-पत्र धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत प्रस्तुत किया गया है।
02. यह स्वीकृत तथ्य है कि आवेदकगण दिनांक 16/07/2013 को ट्रेन नंबर 12449 गोवा संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से माडगांव से रतलाम जाने के लिए दस्तावेज क्रमांक ए-1ए एवं ए-1बी आरक्षित टिकट के माध्यम से ए.सी.-2 के ए-1 डिब्बे में बर्थ क्रमांक 01 एवं 03 से यात्रा कर रहे थे, शेष बातें विवादित है।
03. परिवादी/आवेदकगण का परिवाद-पत्र संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदकगण दिनांक 06/07/2013 को कोरबा से सी.एम.सी. चिकित्सालय वेल्लूर (तमिलनाडु) अनावेदक क्रमांक 02 के घुटने की इलाज के लिए गये थे। उक्त इलाज के पश्चात् चिकित्सक से अनुमति प्राप्त कर आवेदकगण गोवा चले गये और वहीं से अपने पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए रतलाम जाना था, इसलिए गोवा से दिनांक 16/07/2013 को ट्रेन नंबर 12449 गोवा संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से रतलाम जाने के लिए निकले। आवेदकगण के लिए उस ट्रेन के ए.सी.- 2 के कोच ए-1 बर्थ क्रमांक 1 एवं 3 आरक्षित था, उनका पीएनआर नंबर 811-3528325 एवं 831-3528398 था। आवेदकगण उक्त यात्रा के दौरान पनवेल स्टेश न में भोजन करने के बाद लगभग 11.30 बजे रात्रि में अपने-अपने बर्थ में सो गये, उस समय उनके सामान सही हालत में थे। आवेदिका क्रमांक 01 अपने पास सोने-चॉंदी के जेवर एक छोटे से पर्स में बंदकर उस पर्स को तथा अपने पति आवेदक क्रमांक 02 के मनीपर्स जिसमें नगद 20,000/-रू0 थे उसे हेण्डपर्स में रखकर अपने सिरहाने में रख ली थी। उसके बाद दूसरे दिन दिनांक 17/07/2013 को सुबह करीब 5.30 बजे आवेदकगण सोकर उठे तब देखे कि आवेदिका क्रमांक 01 के सिरहाने पर रखा हेण्डपर्स नहीं था, उक्त पर्स के काफी तलाश करने पर भी नहीं मिलने पर उसके चोरी हो जाने का पता चला। उस समय उक्त आरक्षित डिब्बे का ए.सी. अटेन्डेंट वहीं पर बर्थ नंबर-5 में सो रहा था, तथा ए.सी. कंडक्टर एवं टी.सी., ए.सी.-1 कोच में सो रहे थे, आवेदकगणों ने उन्हें भी अपने हेण्डपर्स चोरी होने की सूचना दी। उस समय ट्रेन सूरत (गुजरात) स्टेश न से गुजर रही थी। आवेदकगण को टी.सी. ने कहा कि बड़ौदरा स्टेश न आने पर रेल्वे थाने में जाकर शि कायत कर दें। आवेदकगण ने बड़ौदरा स्टेश न में रेल्वे थाना में जाकर अपने सामानों के चोरी होने की सूचना दी उस समय उन्हें उक्त थाने में 4 घंटे तक बिठाकर रखा गया, उक्त थाने में उनके बताये अनुसार उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। आवेदक क्रमांक 02 के द्वारा रेल्वे थाने में कई बार निवेदन करने पर भी हिन्दी में बतायी गयी सूचना को गुजराती भाषा में अपने मन से दर्ज कर लिया गया, कीमती जेवरो के वजन भी कम लिखे लिये गये और 2,37,700/-रू0 कीमती जेवर एवं नगदी चोरी होने की शि कायत लिखी गयी। आवेदिका क्रमांक 01 के हेण्डपर्स से परिवाद-पत्र में दर्शित कंडिका-04 में दर्षाये अनुसार सोने के मंगलसूत्र, चूडि़याँ, अंगूठी, चैन तथा चांदी की अंगूठी मोती लगा हुआ एवं 20,000/-रू0 नगद इस प्रकार कुल 4,08,128/-रू0 की चोरी हो गयी थी। आवेदकगण, अनावेदकगण के रेल्वे के आरक्षित डिब्बे में यात्रा कर रहे थे, इसलिए वहां से सामानों की चोरी हो जाने का उत्तरदायी अनावेदकगण का है। इस प्रकार अनावेदकगण ने सेवा में कमी की है। आवेदकगण ने अपनी यात्रा कोरबा रेल्वे स्टेश न से की है और उन्हें वापस कोरबा ही आना था। इसलिए समयावधि के अंदर यह परिवाद-पत्र अनावेदकगण के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है, उन्हें चोरी गये सामानों की कीमत 408128/-रू0 तथा मानसिक नुकसानी के संबंध में 1,00,000/-रू0 उस पर ब्याज तथा वाद व्यय भी अनावेदकगण से दिलायी जावे।
04. अनावेदक क्रमांक 01 के द्वारा प्रस्तुत जवाबदावा संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदकगण ने यात्रा के दौरान अपनी सामानों की लगेज बुकिंग नहीं कराया था। उनके द्वारा अपने साथ क्या सामान ले जा रहे है, इसकी घोषणा भी नहीं की गयी थी। इसलिए धारा 100 रेल्वे अधिनियम 1989 तथा नियम 506 (1)(2) आईआरसीए कोचिंग टेरिफ नंबर 26 पार्ट 1 व्हालुम-1 के प्रावधान के अनुसार यात्री द्वारा अपने आधिपत्य में आरक्षित डिब्बे में ले जाये जा रहे सामान के संबंध में यात्री स्वयं जिम्मेदार होते है। अतः आवेदकों के संबंध में अनावेदक के द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं किया गया है। आवेदकगण धारा 2 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधान के तहत लाभ पाने के अधिकारी नहीं है, क्योंकि यात्री के सामानों के संबंध में कोई शुल्क रेल्वे प्रशासन के द्वारा प्रभारित नहीं किया गया है। आवेदकगण के द्वारा इलाज के लिए सीएमसी हाॅस्पीटल वेल्लुर जाने से संबंधित तथ्यों की जानकारी इस अनावेदक क्रमांक 01 को नहीं है। आवेदक क्रमांक 01 एवं 02 के द्वारा ट्रेन नंबर 12449 में दिनांक 06/07/ 2013 को मडगाॅव से रतलाम तक जाने के लिए यात्रा टिकट आरक्षित कराया था। उनकी यात्रा करने के लिए दिनंाक 24/05/2013 टिकट द्वारा बर्थ नंबर 1 एवं 3 का आरक्षण ए-1 एसी कोच में किया गया था। आवेदकगण के द्वारा अपने साथ कीमती सामान सोने एवं चॉंदी के जेवर एवं 20,000/-रू0 नगद ले जाने की जानकारी रेल्वे प्रशा सन को नहीं है। यदि उक्त सामान चोरी हुई है तो इसमें आवेदकगण का ही असावधानी एवं लापरवाही है। अनावेदक के कर्मचारी टीटीई के बैठने एवं आराम करने के लिए एसी ए-1 कोच में बर्थ नंबर-5 आबंटित होता है, इसलिए आवेदकगण का उक्त रेल के डिब्बे में अटेंडेट अथवा टीटीई को सोते रहने का कथन किया जाना निराधार है। आवेदकगण को बड़ोदरा रेल्वे स्टेश न में उतरकर रतलाम जाने के के लिए दूसरी ट्रेन पकड़ना था, ऐसी स्थिति में टीटीई के द्वारा उन्हें बड़ौदरा स्टेश न में उतरकर रिपोर्ट करने लिए कहने की बात गलत है। आवेदकगण ने अपनी इच्छा से बड़ौदरा रेल्वे स्टेश न में सामानों की रिपोर्ट दर्ज करायी है। आवेदकगण जीआरपी अर्थात् शासकीय रेल्वे पुलिस के समक्ष हिन्दी में रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकते थे। आवेदकगण के द्वारा चोरी गये सामानों के संबंध में विस्तृत दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। आवेदकगण के द्वारा दर्शि त कीमती सामान अपने साथ यात्रा के दौरान ले जाये जाने की बात विष्वसनीय नहीं है। आवेदकगण के आधिपत्य के सामानों की चोरी के लिए अनावेदक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। आवेदकगण ने रेल्वे स्टेश न पनवेल जो कि सेन्ट्रल रेल्वे छत्रपति शि वाजी टर्मिनश मुंबई के तहत आता है। में सामानों की चोरी होना बताया है। जबकि अनावेदक क्रमांक 01 पश्चिम रेल्वे के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत बड़ौदरा रेल्वे स्टेश न आता है। इसलिए अनावेदक क्रमांक 01 को सेवा में कमी के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इस अनावेदक क्रमांक 01 को अनावष्यक रूप से पक्षकार बनाये जाने के कारण यह परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है। अतः यह परिवाद-पत्र सव्यय निरस्त किया जावे।
05. अनावेदक क्रमांक 02 ने अनुपस्थित रहकर अपने विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवही होने दिया है। उसके द्वारा कोई जवाबदावा पेश नहीं किया गया है।
06. परिवादी/आवेदकगण की ओर से अपने परिवाद-पत्र के समर्थन में सूची अनुसार दस्तोवज तथा आवेदक क्रमांक 01 का शपथ-पत्र दिनांक 08/10/2013 का पेश किया गया है। अनावेदक क्रमांक 01 के द्वारा जवाबदावा के समर्थन में प्रदीप बनर्जी, वरिष्ठ मंडिल वाणिज्य प्रबंधक पश्चिम रेल्वे, बड़ौदरा का शपथ-पत्र दिनांक 05/05/2014 का पेश किया गया है। उभय पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन किया गया।
07. मुख्य विचारणीय प्रष्न है कि:-
क्या परिवादी/आवेदकगण द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद-पत्र स्वीकार किये जाने योग्य है ?
08. आवेदकगण की ओर से प्रस्तुत दस्तावेजों में आरक्षित यात्रा टिकट की फोटोप्रतियाॅ दस्तावेज क्रमांक ए-1ए तथा ए-1बी है, जिसके अनुसार दिनंाक 24/05/2013 को आवेदक क्रमांक 02 के द्वारा माडगॉंव से रतलाम जक्षन तक की यात्रा दिनांक 16/07/2013 को किये जाने हेतु टिकट ए.सी.-2 के ए-1 कोच में बर्थ नंबर-01 का आरक्षण कराया गया था तथा उसी दिनांक 24/05/2013 को आवेदक क्रमांक 01 के द्वारा माडगॉंव से रतलाम जक्षन तक के यात्रा दिनांक 16/07/2013 को किये जाने हेतु टिकट ए.सी.-2 के ए-1 कोच में बर्थ नंबर-03 का आरक्षण कराया गया था। उपरोक्त दोनों ही यात्रा टिकटों का आरक्षण कोरबा से कराया गया था। इस प्रकार अनावेदक क्रमांक 01 एवं 02 के मुख्यालय स्थान इस जिला उपभोक्ता फोरम, कोरबा के अंतर्गत न रहने पर भी कोरबा में वाद कारण उत्पन्न होने के कारण इस जिला उपभोक्ता फोरम को इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त होना पाया जाता है।
09. आवेदकगण के द्वारा उपरोक्त दोनों यात्रा टिकटों के आधार पर दिनांक 16/07/2013 को माडगॉंव (गोवा) से ट्रेन क्रमांक 12449 गोवा संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से रतलाम जाने के दौरान अनावेदक क्रमांक 02 के अंतर्गत आने वाले पनवेल रेल्वे स्टेश न में आवेदकगण के द्वारा भोजन करने के पश्चा त् रात्रि करीब 11.30 बजे अपने बर्थ में सो जाने पर दूसरे दिन दिनांक 17/07/2013 को सुबह 5.30 बजे करीब सोकर उठने पर आवेदक क्रमांक 01 के द्वारा सोने के पूर्व अपने सिरहाने पर रखे हेण्डपर्स को गायब होना पाया, उसे खोजने पर भी नहीं मिलने से उसके चोरी हो जाने का ज्ञान हुआ। उस समय आवेदकगण ने उक्त आरक्षित ए.सी. डिब्बे के अटेंडेट को बर्थ नंबर -05 में सोते पाया था तथा ड्युटी पर उपस्थित कंडक्टर एवं टी.सी. को ए.सी.-1 के कोच में सोते पाया। आवेदकगण के द्वारा उन्हें सामानों के चोरी चले जाने के संबंध में सूचित किये जाने पर भी उक्त कर्मचारियों के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी। उस समय ट्रेन सूरत स्टेश न से गुजर रही थी, उक्त डिब्बे के टी.सी. के द्वारा आवेदकगण को बड़ौदरा स्टेश न के रेल्वे थाने में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया, तब आवेदकण ने बड़ौदरा में उतरने के बाद रेल्वे थाने में जाकर रिपोर्ट किया किंतु उन्हें रिपोर्ट लिखने में काफी विलम्ब करते हुए 4 घंटे तक थाने में बिठाया गया था।
10. आवेदकगण के द्वारा बड़ौदरा स्थित रेल्वे थाने में दिनांक 17/07/2013 को आवेदक क्रमांक 02 के द्वारा दिये गये सामान चोरी के संबंध में दिये गये बयान को गुजराती भाषा में लिखना बताते हुए उसकी फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक ए-2 तथा उसकी हिन्दी अनुवाद दस्तावेज क्रमांक ए-3 के रूप में पेश किया है। उपरोक्त दस्तावेज के अनुसार आवेदकगण के द्वारा बड़ौदरा स्टेश न स्थित रेल्वे थाना में सामानों की चोरी होने की सूचना दिये जाने के संबंध में तथ्यों को अनावेदकगण की ओर से खंडित नहीं किया जा सका है।
11. आवेदकगण ने रेल्वे थाना बड़ौदरा में अपने चोरी गये सामानों के संबंध में हिन्दी में बताया जाना व्यक्त किया है, उनके द्वारा बतायी गयी बातों को गुजराती भाषा में अनुवाद कर चोरी गये सामानों की वजन एवं कीमत कम दर्षा दी गयी है, ऐसा भी बताया गया है। यह उल्लेखनीय है कि बड़ौदरा स्थित रेल्वे थाने के द्वारा आवेदकगण ने जो सामानों की चोरी होने के संबध्ंा में रिपोर्ट दर्ज कराया था। उसके संबध्ंा में आगे क्या कार्यवाही की गयी, अनावेदकगण ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। ऐसी स्थिति में अनावेदकगण के द्वारा रेल यात्री आवेदकगण के द्वारा की गयी चोरी के संबंध में रिपोर्ट पर कोई ध्यान नहीं दिया गया यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
12. अनावेदकगण के द्वारा नियुक्त टी.टी.ई. एवं कंडक्टर को रात्रिकालीन ड्युटी के दौरान आरक्षित डिब्बा के बर्थ में सोते पाये जाने की शि कायत आवेदकगण ने किया है, ऐसी स्थिति में अनावेदकगण के उक्त घटना दिनांक 16/07/2013 एवं दिनंाक 17/07/2013 की दरम्यानी रात्रि में कार्यरत कर्मचारी/अधिकारी के शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं करने से भी आवेदकगण के द्वारा आरक्षित डिब्बे में यात्रा के दौरान समुचित सुरक्षा की व्यवस्था नहीं किये जाने से सेवा में कमी किये जाने का निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
13. यह उल्लेखनीय है कि रेल यात्री की सामानों की चोरी होने की स्थिति में सेवा में कमी से संबंधित विवाद उत्पन्न होने पर धारा 3 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधान के अनुसार इस जिला उपभोक्ता फोरम को इस तरह की परिवाद-पत्र की सुनवाई का क्षेत्राधिकार होता है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि वर्तमान मामले में इस परिवाद का सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस उपभोक्ता फोरम को नहीं है।
14. अनावेदक की ओर से तर्क किया गया है कि धारा 100 रेल्वे अधिनियम 1989 के प्रावधान के अनुसार आवेदकगण के द्वारा अपनी यात्रा के दौरान अपने सामानों का लगेज रेल्वे प्रषासन के पास बुकिंग नहीं किया गया था। इसलिए उक्त सामान की चोरी हो जाने की जिम्मेदारी रेल्वे प्रषासन की नहीं है। इसके संबंध में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ’’श्रीमती चंद्रिका के.ऐ. विरूद्ध नार्थ जोन इंडिया रेल्वेज एवं अन्य रिवीजन पीटीश न नंबर 858/2005 निर्णय दिनांक 31/01/2006’’ में प्रतिपादित सिद्धांत की ओर ध्यान आकर्शि त किया गया। उक्त न्याय दृष्टांत में यात्री का एक सूटकेस गुम हो गयी थी। जिसमें 22,750/-रू0 कीमती सामान होना बताया गया था। उक्त न्याय दृष्टांत में रेल्वे प्रषासन एवं उसके कर्मचारी के लापरवाही एवं कदाचार होना प्रमाणित नहीं किया जा सका था।
15. अनावेदक क्रमांक 01 की ओर से यह तर्क किया गया कि धारा 16 रेल्वे अधिनियम 1989 के प्रावधान के अनुसार यदि यात्री के द्वारा कोई सामान अपने यात्री डिब्बे में बिना बुकिंग कराये ले जाया जा रहा हो, तो उसके लिए रेल्वे प्रषासन का उत्तरदायी नहीं माना जा सकता है। इसके संबंध में एक न्याय दृष्टांत माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ’’विजय कुमार जैन एडवोकेट विरूद्ध युनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य रिवीजन पीटीश न नंबर 18/2008 निर्णय दिनांक 17/05/2012’’ को पारित की ओर ध्यान आकर्शि त किया गया। इसके अलावा अनावेदक क्रमांक 01 की ओर इसी न्याय दृष्टांत के अनुसार याचिकाकर्ता विजय कुमार जैन के याचिका को निरस्त किये जाने पर उसी के द्वारा अपील प्रस्तुत करने पर माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष विषेश अनुमति अपील (सिविल) क्रमांक 34738 एवं 34739/2012 विजय कुमार जैन विरूद्ध युनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य में घोशि त निर्णय दिनांक 02/07/2013 को घोशि त की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है, जिसमें विषेश अनुमति अपील को निरस्त कर दिया गया है। यह उल्लेखनीय है कि उक्त मामले से संबंधित उपभोक्ता के द्वारा अपने सामान को अपने आरक्षित बर्थ के पास न रखकर अन्य बर्थ में रख दिया गया था, जहाॅ से उसके सामानों की चोरी हो जाना बताया गया है। इसलिए उक्त मामले में अनावेदक रेल्वे प्रषासन को उत्तरदायी नहीं माना गया है।
16. अनावेदक क्रमांक 01 की ओर से एक अन्य न्याय दृष्टांत राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोश ण आयोग पश्चिम बंगाल के द्वारा ’’अमल कुमार घोश विरूद्ध जनरल मैनेजर इस्टर्न रेल्वे व दो अन्य प्रकरण एस.सी. प्रकरण क्रमांक एफ.ए. 653/2010 निर्णय दिनांक 19/09/2011’’ में पारित का प्रस्तुत करते हुए तर्क किया गया है कि रेल यात्री के द्वारा ले जाये जाने वाले सामानों की चोरी होने की स्थिति में उक्त सामान यात्रा के दौरान चोरी हो जाने का तथ्य प्रमाणित नहीं होने पर अनावेदकगण रेल्वे प्रषासन को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता है।
17. यह उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ’’युनियन ऑफ इंडिया एवं एक अन्य विरूद्ध अंजना सिंह चैहान 2014(4) सीपीजे 198 (एनसी)’’ वाले मामले में दिनांक 22/07/2014 को पारित निर्णय में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि रेल्वे विभाग के द्वारा नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों के द्वारा आरक्षित डिब्बों में यात्रियो एवं उनके सामानों की सुरक्षा के संबंध में प्रर्याप्त व्यवस्था न किये जाने पर उनके लापरवाही के कारण सामानों की चोरी हो जाने पर निश्चित रूप से सेवा में कमी किया जाना माना जायेगा। इसी न्याय दृष्टांत में यह भी बताया गया है कि जहां पर यात्रियों की सेवा में कमी के संबंध में विवाद के निराकरण का प्रष्न है, उपभोक्ता फोरम/आयोग को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
18. माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ’’युनियन ऑफ इंडिया विरूद्ध डाॅ शोभा अग्रवाल 2013(3) सीपीजे 469 (एनसी)’’ वाले मामले में भी यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि एसी द्धितीय श्रेणी वाले आरक्षित डिब्बे में यात्रा करने वाले यात्री की कीमती सामानों सहित सूटकेस की चोरी हो जाने पर रेल्वे प्रषासन के द्वारा नियुक्त टीटीई के द्वारा रात्री के समय अनाधिकृत व्यक्तियों की आरक्षित डिब्बे में प्रवेश को नहीं रोकने एवं कर्तब्य में लापरवाही के कारण उक्त घटना घटित होने से रेल्वे प्रषासन के द्वारा सेवा में कमी का निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
19. यह उल्लेखनीय है कि अभी हाॅल ही में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ’’राकेश कुमार गौतम विरूद्ध साउथ ईस्ट सेंट्रल रेल्वे 2014(2) सीपीजे 634 (एनसी)’’ निर्णय दिनांक 16/05/2014 वाले मामले में भी यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि यात्रा के दौरान आरक्षित स्लीपर कोच से यात्री की कीमती सामान एवं नगदी चोरी होने की स्थिति में विरोधी पक्ष/अनावेदक के द्वारा यात्री एवं उनके सामानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी रेल्वे की है जिसमें लापरवाही किये जाने पर सेवा में कमी के आधार उपभोक्ता फोरम द्वारा क्षतिपूर्ति की राशि दी जा सकती है।
20. वर्तमान मामले का अवलोकन करने से यह स्पष्ट होता है कि आवेदकगण के द्वारा माडगांव से रतलाम जाने के लिए अनावेदकगण के क्षेत्र से गुजरने वाली गोवा संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के ए.सी.-2 कोच क्रमांक ए-1 में बर्थ क्रमांक 1 एवं 3 में यात्रा करने के दौरान रात्रि के समय आवेदकगण के कीमती सामान एवं नगदी जिस पर्स में रखे गये थे, उसकी चोरी कर ली गयी थी। जिसके संबंध में रिपोर्ट दिनांक 17/07/2013 को बड़ौदरा स्टेश न रेल्वे थाने में की गयी थी। आवेदकगण की ओर से प्रस्तुत किये गये दस्तावेजों में बड़ौदरा रेल्वे थाने में नगद राशि 20,000/-रू. तथा सोने, चॉंदी के जेवर कीमती 2,17,700/-रू0 इस प्रकार कुल 2,37,700/-रू0 की चोरी हो जाने से संबंधित विवरण देते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी थी, जो कि दस्तावेज क्रमांक ए-2एवं ए-3 से स्पष्ट है। ऐसी स्थिति में दस्तावेज क्रमांक ए-4ए, ए-4बी, ए-4सी, एवं ए-4डी के जो बिल ज्वेलर्स के द्वारा जारी की गयी रसीदे होना बताया गया है, के आधार पर आवेदकगण ने कीमती जेवरों की कीमत 3,88,128/-रू0 होना दर्षाया है, वे सभी सामान चोरी होने के बारे में आवेदकगण के द्वारा दिये गये कथन को उनके द्वारा की गयी रेल्वे थाने में रिपोर्ट के आधार पर मान्य नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार रेल्वे थाने में दिये गये सूचना के आधार पर जेवर के कीमत के रूप में 2,17,700/-रू0 एवं नगद राशि 20,000/-रू0 की चोरी हो जाने संबंधी आर्थिक क्षति के लिए अनावेदकगण को उचित रूप से उत्तरदायी माना जा सकता है। आवेदकगणों को मानसिक क्षतिपूर्ति की राशि दिलाना भी उचित होगा। आवेदकगणों की सेवा में कमी के लिए सभी अनावेदकगण को इस मामले की परिस्थिति को देखते हुए उत्तरदायी होना पाया जाता है।
21. अतः मुख्य विचारणीय प्रष्न का निष्कर्ष ’’हाॅ’’ में दिया जाता है।
22. तद्नुसार परिवादीगण/आवेदकगण की ओर से प्रस्तुत इस परिवाद-पत्र को धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत अंश तः स्वीकार करते हुए उनके पक्ष में एवं अनावेदकगण के विरूद्ध निम्नानुसार अनुतोष प्रदान किया जाता है और आदेश दिया जाता है किः-
अ. आवेदकगण को रेल यात्रा के दौरान उनके कीमती सामान 2,17,700/-रू0 एवं नगदी 20,000/-रू0 की चोरी हो जाने से सेवा में कमी के आधार पर अनावेदकगण संयुक्तरूप से एवं पृथकतः कुल 2,37,700/-रू0 आज से 02 माह के अंदर प्रदान करें। उक्त राशि के संबंध में आज आदेश पारित करने के दिनांक से 09 प्रतिश त् की दर से वार्षिक ब्याज भी अनावेदकगण प्रदान करें।
ब. अनावेदकगण के द्वारा उपरोक्त आदेश के पालन में त्रुटि करने पर उक्त राशि के संबंध में उन्हें आदेश पारित करने के दिनांक से आवेदकगण को 12 प्रतिश त् की दर से वार्षिक ब्याज का भुगतान करना होगा।
स. आवेदकगण को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/-रू0 (दस हजार रूपये) अनावेदकगण प्रदान करें।
द. आवेदकगण को वाद व्यय के रूप में 2000/-रू0(दो हजार रूपये) अनावेदकगण प्रदान करें।
(छबिलाल पटेल) (श्रीमती अंजू गबेल) (राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य