Rajasthan

Jalor

C.P.A 112/2012

Chuni Lal - Complainant(s)

Versus

Saka Ram - Opp.Party(s)

Abhinav Suthar

16 Mar 2015

ORDER

न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर

पीठासीन अधिकारी

अध्यक्ष:-  श्री  दीनदयाल प्रजापत,

सदस्यः-   श्री केशरसिंह राठौड

सदस्याः-  श्रीमती मंजू राठौड,

      ..........................

1.चुन्नीलाल पुत्र श्री नवाजी,  जाति पुरोहित, उम्र- 52 वर्ष, निवासी- सत्यनारायण मन्दिंर के पीछे, पुरोहितो का वास, आहोर,  जिला- जालोर। 

.......प्रार्थी।

                बनाम  

1.सकाराम पुत्र श्री मूलाजी, जाति प्रजापत, निवासी- केरावास, आहोर, तहसील- आहोर , जिला- जालोर।

               

...अप्रार्थी।

                                सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:-112/2012

परिवाद पेश करने की  दिनांक:-14-09-2012

अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता  संरक्षण  अधिनियम ।

उपस्थित:-

1.            श्री  अभिनव सुथार,  अधिवक्ता प्रार्थी।

2.            श्री  दिलीपकुमार शर्मा,  अधिवक्ता अप्रार्थी।

 

  निर्णय   दिनांक:  17-03-2015

1.              संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि  प्रार्थी ने दिनांक 30-05-2011 को स्वंय का मकान निर्माण कराने के लिए अप्रार्थी सकाराम को नियुक्त किया था, जो एक ठेकेदार हैं, तथा प्रार्थी ने सकाराम के साथ गृहनिर्माण  का इकरारनामा दिनांक 30-05-2011 को निष्पादित किया था। तथा इकरारनामे के साथ मौखिक इकरार किया था, कि कार्य प्रारंभ्भ करने के 8 माह के भीतर पूरा करके देगा। तथा अप्रार्थी ने ईकरारनामा निष्पादित करने के 10 दिन के बाद अपने मजदूरो के साथ काम प्रारंभ्भ कर दिया था। तथा प्रथम माह तक अप्रार्थी रोज सुबह-शाम काम देखने आता- जाता रहता था। तथा एक माह के पश्चात् वह चैदस को अपना हिसाब करने के लिए आता था। तब प्रार्थी का पुत्र मयूरसिंह अप्रार्थी को हिसाब करके देता था। तथा अप्रार्थी को कुल 1872 वर्गफीट का काम करना था, जिसमें से अप्रार्थी ने 1668 वर्गफीट का काम किया, जिसके सम्बन्ध में अप्रार्थी रूपयै 4,05,500/- का भुगतान प्राप्त कर चुका हैं। तथा काम 230/-रूपयै प्रति वर्गफीट के हिसाब से 1668 वर्गफीट के रूपयै 3,83,640/- होते हैं, जो शेष रूपयै 21,900/- प्रार्थी के , अप्रार्थी के पास जमा हैं, तथा दिनांक 30-04-2012 को प्रार्थी ने अप्रार्थी को काम का नाप कर हिसाब करने को कहा, तो अप्रार्थी ने कहा कि पहले 30,000/-रूपयै दो  तो माप करने का कहा। तथा प्रार्थी ने अप्रार्थी को पहले काम पूरा करने के बाद हिसाब कर देने का कहा, लेकिन अप्रार्थी ने शेष बचा काम नहीं किया, तब प्रार्थी को चेलाराम से काम पूरा करवाना पडा, जिसका अतिरिक्त भुगतान करना पडा, तथा अप्रार्थी ने आर0सी0सी0 का काम दक्षता पूर्वक नहीं किया, छत से दीवार के सहारे बरसात का पानी घर में जमा हो जाता हैं। तथा दीवारो  में प्लास्टर का काम उबड खाबड किया हैं, जिससे दीवार में सिमिलरटी नहीं आई हैं, जिससे घर का पूरा डेकोरम खराब हो गया हैं।  तथा घर के बाहर करंजी का ढाल उल्टा दे दिया हैं, जिससे पानी का भराव रहता हैं। तथा खिडकी का फ्रेम का काम पूरा नहीं किया हैं। वार्डरोब का पूरा काम बीच में ही छोड दिया। दिवारो पर वाईट वाॅश नहीं किया, तथा 8 माह में काम पूरा नहीं कर 17 माह तक काम किया। जिसमें दक्षता  नहीं हैं व पूरा काम नहीं किया, बीच में ही छोड दिया ,जिसका सीधा प्रभाव प्रार्थी के ट्रान्सपोर्ट व्यवसाय पर पडा, तथा अप्रार्थी, प्रार्थी को बार-बार झूठे मुकदमें में फसांने की घमकी देता, तथा अप्रार्थी ने एक झूठां मुकदमा मेरे पुत्र के विरूद्व श्रम कल्याण अधिकारी जालोर में किया था। इसप्रकार प्रार्थी ने अप्रार्थी के विरूद्व परिवाद प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष की प्रार्थना की हैं:-

अ.     अप्रार्थी के पास जमा 21900/-रूपयै  जो अपेक्षाकृत ज्यादा

     दिये हैं को मुझ प्रार्थी को दिया जाये।

ब.     यदि अप्रार्थी समय पर काम पूरा कर देता, तो मुझे देशावर में

     मेरे काम में हाथ बंटाने के लिए दूसरा व्यक्ति नहीं रखना पडता,

     जिसकी वजह से मुझें  1,44,000/- रूपयै की हानि हुई हैं।

स.     अप्रार्थी का काम पूरा करने में त्रुटि की गई हैं, जो काम अप्रार्थी

     ने गलत किया हैं, उसे पुनः करने के लिए मुझे दूसरे ठेकेदार से

     सेवाएं लेनी पडेगी, जिसका कुल खर्चा 50,000/- रूपयै ।

द.     अप्रार्थी द्वारा मेरे विरूद्व झुठां मुकदमा करने पर मेरी प्रतिष्ठा की

     हानि 1,00,000/- रूपयै ।

य.     मानसिक, शारीरिक क्षतिपूर्ति  के 1,00,000/- रूपयै ।

र.     परिवाद व्यय 5,000/- रूपयै ।

 

                 इसप्रकार कुल क्षतिपूर्ति  4,20,900/- रूपयै दिलाये जाने हेतु यह परिवाद जिला मंच के समक्ष पेश किया गया हैं।

 

2.                                 प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थी को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया गया। अप्रार्थी की ओर से अधिवक्ता श्री दिलीपकुमार शर्मा  ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थी ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थी जिला मंच में प्रस्तुत परिवाद संख्या- 113/12 के परिवादी मयूरसिंह का पिता हैं, पिता व पुत्र दोनो गरीब मजदूरो की मजदूरी मुफ्त में कराना चाहते हैं, मजदूरी की मांग करने पर गलत रूप से परेशान करते हैं, तथा अप्रार्थी ने चुन्नीलाल के यहंा कार्य नहीं किया हैं, जब निर्माण का कार्य हुआ ही नहीं, तो विवाद कैसा। प्रकरण विवाद बाबत् सही तथ्य इसप्रकार हैं कि मयुरसिंह के कथनो के अनुसार चुन्नीलाल के घर में बतौर कारीगर व मजदूर राजू, रतियां, ओटाराम, कुयांराम, पैकाराम, गमनाराम, समाराम आदि कुल 55 मजदूरो व कारीगरो ने मकान निर्माण का कार्य किया, तथा मुझ जवाब देहन्दा ने मजदूरी पर चुन्नीलाल के यहंा निर्माण का कार्य किया, कलर का पूरा कार्य वीसाराम ने किया, चुन्नीलाल व उसके पुत्र मयूरसिंह ने जब कारीगरो की मजदूरी नहीं दी, व बकाया रखी, तब बकाया मजदूरी हेतु श्रम कल्याण अधिकारी के समक्ष मजदूरी हेतु प्रार्थना की थी । तब जवाब देहन्दा ने निर्माण का कार्य पूरा किया हैं। अब मजदूरी नहीं देना चाहते हैं, इसलिए गलत आधार बनाकर, गलत विवाद कर रहे हैं। विवाद के तथ्यों की जटिलता को देखते हूए विवाद सिविल प्रकृति का हैं। प्रार्थी ने बदनियति से गलत तथ्य किये हैं, निर्माण कार्य पूरा सही-सही तरीके से बताये अनुसार हुआ हैं।  जिस कारण ही प्रार्थी ने वीसाराम आदि के जरिये कलर का पूरा कार्य करवाया हैं। इसप्रकार अप्रार्थी ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर परिवाद मय खर्चा खारिज करने एवं कम्पनसेटरी कोस्ट दिलाये जाने का निवेदन किया हैं।

 

3.           हमने उभय पक्षो को जवाब एवं साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद,  उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिन पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से प्रथम विधिक विवाद बिन्दु उत्पन्न होता हैं कि:-

 क्या प्रार्थी अप्रार्थी का उपभोक्ता हैं,  या  क्या प्रार्थी का परिवाद

   उपभोक्ता विवाद हैं ?

4.            उक्त विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार  प्रार्थी पर हैं, तथा जिला मंच का भी सर्वप्रथम यह दायित्व रहता है कि वह  इसप्रकार के विवादित बिन्दु पर सर्वप्रथम विचार करे, क्यों कि जब तक परिवादी एक उपभोक्ता की तारीफ में नहीं आता हो, तब तक उसके द्वारा पेश किये गये परिवाद पर कोई विचार नहीं किया जा सकता हैं। हस्तगत परिवाद में प्रार्थी ने कथन किये हैं कि परिवादी ने अप्रार्थी को दिनांक 30-05-2011 को मकान निर्माण कार्य हेतु ठेकेदार के रूप में नियुक्त किया था। इस सम्बन्ध में ईकरारनामा निष्पादित किया था। प्रार्थी ने इकरारनामा की प्रति पेश की हैं। जो 10/- रूपयै के नाॅन ज्यूडिशियल स्टाम्प पर हस्तलिखित हैं तथा स्टाम्प प्रार्थी चुन्नीलाल पुत्र नवाजी राजपुरोहित के नाम का मयूरसिंह ने क्रय किया हैं, तथा स्टाम्प क्रेता के रूप में मयूरसिंह पुत्र  के हस्ताक्षर हैं। तथा स्टाम्प क्रय का प्रयोजन सह0 पत्र लिखा हुआ हैं, तथा उक्त स्टाम्प पर निम्न लिखावट अंकित हैं:-

              आज दिनांक 23-05-2011 को मकान ठेके से सकारामजी पुत्र मूलाजी प्रजापत, रेवासी आहोर को दिया गया हैं ।

मकान ठेके पे देने वाले का नाम:- चुन्नीलालजी पुत्र नवाजी, राजपुरोहित, रेवासी आहोर।

                                मकान बनाने का काम सकारामजी को नीचे लिखि गई शर्तो के साथ दिया गया हैं। वह इसप्रकार हैं:-

1.            कोलम  और त्ण्ब्ण्ब्ण् का काम।

2.            दिवार और प्लास्टर  का काम।

3.            फ्लोरिंग के काम में टाईल / मार्बल बिडा जायेगा।

4.            लाईट फिटींग, वायर फिटींग और नल फिटींग का काम।

5.            लैटरिंग और बाथरूम की पाईप फिटींग, खाल का काम।

6.            अण्डर ग्राउण्ड पानी की टण्डी और उपर की पानी की टंकी का काम।

7.            अन्दर का मेहराप का काम।

8.            सिमेन्ट की डिजाईन रफ / स्मूत करनी होगी बाहर की तरफ

9.            वाईट वोश  चूना मारने का काम  का काम।

10.          वारड्रोब कप्पाट , घर के अन्दर बनाकर देना होगा। यह

 उपर लिखी गई शर्ते हमारे कहे अनुसार पूरी करके देनी होगी।

    

       सकारामजी और चुन्नीलालजी के बीच आपसी सहमति से 230/-रूपयै दो सौ तीस रूपयै तय की गई हैं प्रति  स्कोर फुट के हिसाब से और काम मजूरी पर सौपा गया हैं ।  घर की साईज 51ग21 फुट मापी गई हैं।

 

                                स्टाम्प पर उपरोक्त लिखावट के नीचे सकाराम , चुन्नीलाल व ूपजदमेे 1  अनिल कुमार  व 2   ओटाराम होना लिखा हैं। उक्त इकरारनामा एक व्यक्तिगत निजी सेवा संविदा हैं, जो विधिक रूप से पंजीबद्व नहीं हैं, तथा संविदा अविधिक, अनियमित व अपूर्ण हैं। उक्त निर्माण कार्य की संविदा का निवेदन सार्वजनिक कर निविदा आमंत्रित करना नहीं पाया जाता हैं, तथा उक्त संविदा के निर्माण कार्य का विधिक रूप से तकनीकि विशेषज्ञ से मुल्याकंन व आॅंकलन नहीं करवाया गया हैं, तथा अप्रार्थी ठेकेदार हो एवं उसने स्वेच्छा से लाभ कमाने हेतु आवेदनपत्र प्रार्थी को प्रस्तुत कर कार्य लिया हो, ऐसा कोई दस्तावेज प्रार्थी ने पत्रावली में पेश नहीं किया हैं, तथा प्रार्थी द्वारा अप्रार्थी को प्रतिफल की राशि भुगतान की हो, उसकी कोई रसीद, चैक की प्रति आदि कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया हैं, तथा उक्त इकरारनामे में  काम मजूरी पर सौपा गया हैं   स्पष्ट रूप से भी लिखा हैंे।  तथा अप्रार्थी ने श्रम कल्याण अधिकारी, जालोर में दिये गये प्रार्थनापत्र दिनांक 21-08-2012 की प्रति, एवं श्रम कल्याण अधिकारी के यहंा विचाराधीन प्रार्थना की आदेशिका दिनांक 04-09-2012 की प्रति पेश की हैं। उक्त दस्तावेजो में अप्रार्थी सकाराम व 54 व अन्य मजदूरो ने श्रम कल्याण अधिकारी के सामने कुल मजदूरी 4,50,000/- रूपयै में से 2,00,000/- रूपयै सकाराम के जरिये भुगतान होना तथा बकाया मजदूरी दिलाने की प्रार्थना की हैं, तथा आदेशिका दिनांक 04-09-2012 के अनुसार श्रम कल्याण अधिकारी , के समक्ष दोनो पक्षो के मध्य समझौता नहीं होने से सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपना दावा पेश करने के निर्देश दिये हैं, जिससे उक्त विवाद बकाया मजदूरी या श्रम से सम्बन्धित होना प्रतीत हो रहा हैं, तथा प्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी को उपभोक्ता मानने के सम्बन्ध में दौराने बहस न्यायिक दृष्टान्त माननीय उच्चतम न्यायालय, के निर्णय  ब्पअपस  ।चचमंस छवण् 6237   व ि 1990ए स्नबादवू क्मअमसवचउमदज  ।नजीवतपजल  अध्े  उण ळनचजं  में पारित निर्णय दिनांक 05-11-1993 व  ब्पअपस  ।चचमंस छवण् 4432.4450  व ि 2012, डध्ै  छंतदम ब्वदेजतनबजपवद चण् स्जकण् अध्े  न्दपवद  व ि पदकपं वतेण् म्जबण् में पारित निर्णय दिनांक 10-05-2012 की प्रतियां पेश की हैं। हमने माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णयों का ससम्मान अध्ययन किया, माननीय उच्चतम न्यायालयों के पारित निर्णयो एवं हस्तगत परिवाद  की विषय वस्तु ,कथन, प्रकृति एवं परिस्थिति भिन्न-भिन्न हैं जो एक समान नहीं होने से माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णय हस्तगत परिवाद पर पूर्णतया लागू नहीं होते हैं। तथा प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद एक व्यक्तिगत एवं अनियमित निजी संविदा का हैं, जो बहुत ही जटिल प्रकृति व पेचिदा  का एवं विस्तृत साक्ष्य से साबित करने एवं सिविल नेचर का विषय होने से सक्षम सिविल न्यायालय में पेश कर विचारण कराये जाने योग्य हैं। इसप्रकार प्रार्थी उपभोक्ता होना सिद्व नहीं होने से परिवाद अस्वीकार कर खारीज किये जाने योग्य हैं।

                   आदेश 

                   अतः प्रार्थी चुन्नीलाल का परिवाद विरूद्व अप्रार्थी सकाराम पुत्र श्री मूलाजी, जाति प्रजापत, निवासी- केरावास, आहोर, तहसील- आहोर , जिला- जालोर के विरूद्व परिवाद उपभोक्ता विवाद नहीं होने से व प्रार्थी उपभोक्ता होना सिद्व नहीं होने से परिवाद अस्वीकार कर खारिज किया जाता हैं।  तथा प्रार्थी को सलाह दी जाती हैं कि प्रार्थी का परिवाद उपभोक्ता विवाद न होकर व्यक्तिगत  निजी सेवा संविदा पर आधारित, शारीरिक श्रम मजदूरी की राशि से सम्बन्धित होने से सक्षम सिविल न्यायालय में प्रस्तुत करे।

                निर्णय व आदेश आज दिनांक 17-03-2015 को विवृत मंच में  लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

  मंजू राठौड        केशरसिंह राठौड          दीनदयाल प्रजापत

     सदस्या            सदस्य                       अध्यक्ष   

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