राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-422/2013
(जिला उपभोक्ता आयोग, बागपत द्वारा परिवाद सं0-46/2012 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 06-02-2013 के विरूद्ध)
1. जय भगवान सिंह पुत्र श्री खचेड़ू सिंह
2. सुधीर यादव पुत्र श्री जय भगवान सिंह
निवासीगणी-ग्राम-बाखरपुर, बालैनी, जिला-बागपत।
............अपीलार्थीगण/परिवादीगण।
बनाम
1. सहकारी समितियॉं उ0प्र0 द्वारा जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियॉं, जिला-बागपत।
2. किसान सेवा सहकारी समिति लि0, अमीपुर बालैनी, जिला-बागपत द्वारा अध्यक्ष/ प्रबन्ध निदेशक।
3. श्री वेदपाल सिंह तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक, किसान सेवा सहकारी समिति लि0, अमीपुर बालैनी हाल सचिव सहकारी संघ, अमीपुर सराय, जनपद-बागपत।
............प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री आर0के0गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : श्री आशुतोष शर्मा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 व 3 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- 02-07-2024.
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, बागपत द्वारा परिवाद सं0-46/2012 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 06-02-2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है।
परिवाद के तथ्यों के अनुसार इस मामले में परिवादीगण द्वारा विपक्षी समिति से ऋण लिया गया था। परिवादीगण विपक्षी समिति के सदस्य रहे हैं। परिवादीगण
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के हिसाब-किताब में विपक्षीगण से विवाद होने के कारण उपभोक्ता परिवाद योजित किया गया। परिवादीगण द्वारा विपक्षी सं0-3, वेदपाल सिंह, जो समिति का तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक था तथा राकेश कुमार एकाउण्टेण्ट पर विश्वास करते हुए बार-बार अपने हस्ताक्षरयुक्त चेक दिये गये और धनराशि समिति में जमा की गई। उन्हीं चेकों के आधार पर वेदपाल सिंह आद ने पैसा समिति से निकालकर स्वयं हड़प लिया। वेदपाल ने परिवादीगण से लिया हुआ रूपया नाजायज रूप से अपने पास रख लिया। परिवादीगण का यह भी कथन है कि वेदपाल व राकेश ने परिवादीगण के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर उनके खाते से पेसा निकाल लिया, बल्कि परिवादगण ने स्वयं अपने हस्ताक्षर करके चेक उनको दिये। परिवादीगण ने इस सम्बन्ध में विपक्षी सं0-2 इत्यादि को पत्र भी लिखे।
इस मामले में परिवादीगण का विवाद समिति से न होकर वेदपाल व राकेश के विरूद्ध व्यक्तिगत रूप से था। परिवादीगण का कथन है कि वेदपाल सिंह व राकेश कुमार द्वारा उनके साथ विश्वासघात, जालसाजी व धोखाधड़ी करते हुए उनके खाते से पैसा निकाल लिया गया।
परिवाद के विपक्षी सं0-2 द्वारा विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किये गये प्रतिवाद पत्र की पति अपील पत्रावली पर उपलब्ध है, जिसमें कथन किया गया है कि परिवादीगण अधुना, शाश्वत चक्रव्यूही संरचना में दक्ष एवं विवादी कार्यशैली प्रवर्तक तथा बल एवं छदमपोषक व्यवहारीगण प्रतीत हैं। यह भी कथन किया गया है कि परिवादीगण ने दौरान् वाद विवादित ऋण की वसलयावी के सम्बन्ध में मा0 उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ में एक रिट याचिका सं0-3434/2002 जय भगवान बनाम उ0प्र0 राज्य आदि दायर की, जो अनिस्तारित है एवं विचाराधीन बतायी गई है।
विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्त तथ्यों को विश्लेषित करते हुए प्रश्नगत आदेश दिनांकित 06-02-2013 द्वारा परिवादीगण का परिवाद खारिज कर दिया।
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई है।
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पीठ द्वारा अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी सं0-2 के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा पत्रावली का सम्यक् रूप से परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी सं0- 1 व 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विपक्षी समिति के तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक ने परिवादीगण के खाते से धनराशि निकाल ली और उसका व्यक्तिगत इस्तेमाल किया। उनके द्वारा यह भी तर्क किया गया कि मा0 उच्च न्यायालय में याचिका समिति द्वारा जारी की गई वसूली के विरूद्ध दायर की गई थी, जबकि प्रस्तुत वाद में परिवादी द्वारा दिये गये हस्ताक्षरित चेक के भुगतान का वाद विद्यमान है।
इस मामले में परिवादीगण द्वारा स्वयं उल्लिखित किया गया है कि वेदपाल सिंह व राकेश कुमार ने विश्वासघात, जालसाजी एवं धोखाधड़ी करते हुए उनके खाते से धनराशि आहरित कर ली।
विद्वान जिला आयोग ने भी इन दो कारणों के आधार पर ही परिवाद को खारिज किया है, एक – विवाद विश्वासघात, जालसाजी एवं धोखाधड़ी पर आधारित है, किसी अनुबन्ध या संविदा की अनापूर्ति के बारे में नहीं है। दूसरा-इसी मामले से सम्बन्धित रिट याचिका मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।
अपील की सुनवाई के दौरान् भी अपीलार्थी की ओर से मा0 उच्च न्यायालय में विचाराधीन उपरोक्त रिट याचिका की अद्यतन स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा सकी। निश्चित ही इस मामले में विवाद विश्वासघात, जालसाजी एवं धोखाधड़ी पर आधारित है। अत: पीठ के अभिमत में विद्वान जिला आयोग द्वारा दिये गये उक्त निर्णय के विरूद्ध अपील में जो आधार लिए गए हैं, वे सारहीन एवं बलहीन हैं।
विद्वान जिला आयोग ने उक्त तथ्यों का उचित एवं विधिक रूप से विश्लेषण करते हुए प्रश्नगत आदेश पारित किया है, जिसमें किसी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
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तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, बागपत द्वारा परिवाद सं0-46/2012 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 06-02-2013 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 02-07-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-3.