राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-22/2005
उ0प्र0 पावर कारपोरेशन लिमिटेड व एक अन्य
बनाम
सहकारी गन्ना विकास समिति लिमिटेड व एक अन्य
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थीगण के अधिवक्ता : श्री इसार हुसैन
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 04.8.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/ विद्युत विभाग की ओर से इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद सं0-675/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 03.11.2004 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी एक पंजीकृत संस्था है एवं प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी संख्या एक के कार्यालय में दिनांक 28.7.1993 को 25 हार्सपावर का अतिरिक्त भार हेतु आवेदन किया और जिस पर विधिवत सर्वे कराया गया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्पेशल सचिव के नाम एक पत्र दिनांक 15.01.1994 को जारी किया जिस पर अपीलार्थी/विपक्षी संख्या एक द्वारा 7,500.00 रू0 बतौर जमानत राशि एवं रू0 91,588 बतौर लाईन खींचने का खर्च जमा करने का आदेश दिया गया। उपरोक्त आदेश के अनुपालन में प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 31.3.1995 को रू0 91,588.00 एवं रू0 7,475.00 दो चेक द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के बैंक में जमा करा दिये तथा सूचना अपीलार्थी/विपक्षी को दी गई, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा
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अतिरिक्त भार स्वीकृत नहीं किया गया। दिनांक 12.6.1998 को पुन: एक पत्र अपीलार्थी/विपक्षी को भेजा गया, जिसके जवाब में अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने गलत कारनामों पर पर्दा डालने के उद्देश्य से दिनांक 27.6.1998 को प्रत्यर्थी/परिवादी को एक पत्र भेजा, जिसके आधार पर बढ़ी हुई राशि बताते हुए रू0 17,320.00 की टी0सी0 भेजी। अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा जारी पत्र दिनांक 27.6.1998 के अनुपालन में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 14.7.1998 को पत्र जारी किया गया जिसके आधार पर अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 को सूचित किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी समिति द्वारा उसके पूर्व कनेक्शन का बिल जमा करने के बावजूद भी विद्युत विभाग द्वारा उसका कनेक्शन मुख्य खम्बे से काट दिया गया है और विभाग द्वारा कनेक्शन देने में लापरवाही बरती जा रही है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 से यह भी आग्रह किया गया कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा धनराशि पर बने ब्याज रू0 52,280.00 में से बढी हुई दर से दिनांक 23.6.1998 द्वारा मॉगी गई रकम टी0सी0 में जमा कराकर शेष ब्याज 22,307.00 रू0 का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी समिति को कर दें और उसका कनेक्शन चालू कर अतिरिक्त भार का अनुबन्ध कराया जावे, किन्तु इसका भी कोई प्रभाव अपीलार्थी/विपक्षी पर नहीं हुआ और कोई कार्यवाही अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा नहीं की गई अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर यह कथन किया गया कि परिवाद गलत एवं असत्य तथ्यों पर योजित किया गया है। यह भी कथन किया कि प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
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विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"एतद् द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी विद्युत विभागको आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी की जमा शुदा राशि अंकन 99,088.00 यह परिवाद योजित करने की तिथि 14.5.1999 से ताअदायगी अंतिम भुगतान नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ एक माह में वापस अदा करें, इसके अलावा तीन हजार रूपये बतौर हर्जाना एवं दो हजार रूपये इस परिवाद का व्यय भी अदा करें।''
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी विद्युत विभाग की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
प्रस्तुत अपील विगत 18 वर्षों से लम्बित है एवं पूर्व में अनेकों तिथियों पर अधिवक्तागण की अनुपस्थिति के कारण स्थगित की जाती रही है अत्एव मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुना गया तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि सम्मत है, जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो अपने प्रश्नगत आदेश में अपीलार्थी/विपक्षी पर 09 प्रतिशत ब्याज की देयता निर्धारित की गई है, वह वर्तमान परिस्थितियों को
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दृष्टिगत रखते हुए अत्याधिक प्रतीत हो रही है, अत्एव ब्याज की देयता 09 प्रतिशत के स्थान पर 06 प्रतिशत संशोधित की जाती है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत आदेश में अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध बतौर हर्जाना के रूप में 3,000.00 (तीन हजार रू0) एवं वाद व्यय के रूप में रू0 2,000.00 (दो हजार रू0) की देयता निर्धारित की गई है, वह वाद के सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों तथा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथन को दृष्टिगत रखते हुए अनुचित प्रतीत हो रही है, तद्नुसार उसे समाप्त किया जाना उचित पाया जाता है अत्एव प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। निर्णय/आदेश का शेष भाग यथावत कायम रहेगा।
अपीलार्थी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन की अवधि़ में किया जाना सुनिश्चित करें। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1