(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2352/2000
Jai Krishna Srivastava (Deceased) son of Late Sri V.K. Srivastava, resident of 101, Gaus Nagar, Near Pandeyganj, Police Out Post, Lucknow.
1/1 Smt. Shanti Devi (wife)
1/2 Rakesh Srivatava (Son)
1/3 Sanjay Srivastava (Son)
1/4 Manoj Srivastava (Son)
1/5 Km. Geeta Srivatava (Daughter)
1/6 Dr. Sobha Srivastava (Daughter)
1/7 Nutan Srivastava (Daughter)
अपीलार्थी/परिवादी/विधिक उत्तराधिकारीगण
बनाम
Sahara India Mutual Benefit Company, Ltd, through its authorised signatory Sahara India Bhawan, 1, Kapoor Thala Complex, Aliganj, Lucknow and two others.
प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री वी0पी0 शर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 व 2 की ओर से : श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-3 की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक: 22.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-595/1999, जे0के0 श्रीवास्तव बनाम सहारा इण्डिया म्यूचुअल बेनीफिट कं0लि0 व अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, द्वितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक
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25.08.2000 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है, जिसके द्वारा परिवाद इस आधार पर संधारणीय नहीं पाया गया कि साक्ष्यों से संबंधित जटिल प्रश्न विद्यमान हैं, जिनका निस्तारण दीवानी न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।
2. परिवाद के तथ्यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा अंकन 10-10 हजार रूपये मूल्य के चार एफडीआर दिनांक 30.09.1996 को एक वर्ष की अवधि के लिए क्रय किए गए थे और भुगतान के लिए चेक जारी किया गया था, परन्तु चेक का भुगतान नहीं हो पाया, इसलिए सेल्फ का चेक दिया गया, इस चेक का भी भुगतान नहीं हुआ तब अंकन 40,000/- रूपये नगद जमा किए गए। परिपक्वता अवधि पर अंकन 45,600/- रूपये वापस प्राप्त हो चुके हैं।
3. परिवादी द्वारा अंकन 15,000/- रूपये के दो एफडीआर दिनांक 04.02.1996 को क्रय किए गए थे, जिनकी परिपक्वता अवधि दिनांक 04.06.1998 थी और देय राशि अंकन रू0 36,220.50 पैसे थी। परिवादी द्वारा दिनांक 04.03.1997 को अंकन 20,000/- रूपये मूल्य के बाण्ड भी क्रय किए गए थे, इनकी परिपक्वता अवधि दिनांक 04.03.1998 थी। विपक्षीगण द्वारा यह राशि परिपक्वता अवधि के बाद वापस नहीं की गई और यह कथन किया गया कि अंकन 40,000/- रूपये का भुगतान कभी भी प्राप्त नहीं हुआ और इस मद में परिवादी को जो राशि वापस कर दी गई है, वह समायोजित होने योग्य है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि मामला पेचिदा है, इसलिए सिविल न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
4. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 शर्मा तथा प्रत्यर्थी संख्या-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव उपस्थित आए। प्रत्यर्थी संख्या-3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। उपस्थित
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विद्वान अधिवक्तागण की मौखिक बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अंकन 40,000/- रूपये की एफडीआर का भुगतान दिनांक 30.09.1997 को हो चुका है। इस राशि का कोई विवाद विपक्षीगण द्वारा उत्पन्न नहीं किया जाना चाहिए। परिवादी द्वारा इस राशि को प्राप्त करने के पश्चात जमा कराई गई राशि परिपक्वता पर धनराशि वापस कर दी जानी चाहिए और विद्वान जिला फोरम के समक्ष यही अनुतोष मांगा गया है।
6. प्रत्यर्थी संख्या-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि चूंकि अंकन 40,000/- रूपये कभी भी परिवादी द्वारा जमा नहीं कराए गए और इस राशि की परिपक्तवा पर देय राशि परिवादी को गलती से अदा कर दी गई है और चूंकि प्रत्यर्थी एक बैंकर है, इसलिए इस राशि को समायोजित करने का अधिकार उसे प्राप्त है। उनके द्वारा अपने तर्क के समर्थन में नजीर (1992) 2 Supreme Court Cases 330 प्रस्तुत की गई है। उपरोक्त केस के तथ्य प्रस्तुत केस के तथ्यों से पूर्णतया भिन्न हैं, इसलिए यह नजीर इस केस के लिए लागू किया जाना उचित नहीं है। परिवादी द्वारा जिस धनराशि की मांग की गई है, उस धनराशि के संबंध में ही विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को निर्णय देना है। यदि विपक्षीगण/प्रत्यर्थीगण का यह कथन है कि परिवादी द्वारा अंकन 40,000/- रूपये धोखे से प्राप्त कर लिए गए हैं तब विपक्षीगण इस राशि को दीवानी कार्यवाही करते हुए वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं, इसलिए दीवानी प्रकृति का वाद प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायित्व विपक्षी संख्या-1 व 2 सहारा इण्डिया पर डाला जाना चाहिए न कि परिवादी पर। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष विधिसम्मत नहीं है। प्रकरण विद्वान जिला उपभोक्ता
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फोरम/आयोग को प्रतिप्रेषित किए जाने योग्य है। अपील तदनुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 25.08.2000 अपास्त किया जाता है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम को निर्देशित किया जाता है कि वह सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुए प्रकरण का निस्तारण 03 माह के अन्दर पुन: विधिसम्मत तरीके से किया जाए और केवल इस बिन्दु पर विचार करें कि क्या परिवादी/विधिक उत्तराधिकारीगण परिवाद पत्र में वर्णित एफडीआर की राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं, इस बिन्दु पर कतई विचार न करें कि परिवादी द्वारा पूर्व में प्राप्त कर ली गई राशि अंकन 45,600/- रूपये समायोजित होने योग्य है या नहीं, क्योंकि ऐसा करना जिला उपभोक्ता फोरम के क्षेत्राधिकार से बाहर होगा।
8. पक्षकार दिनांक 20.03.2021 को जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष उपस्थित हों। चूंकि प्रकरण अत्यधिक पुराना है, इसलिए जिला फोरम किसी भी पक्ष का अपरिहार्य परिस्थितियों के अलावा कोई स्थगन स्वीकार नहीं करेगा।
9. उभय पक्ष अपना अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2